bimstec logo

क्या है बिम्सटेक?

बिम्सटेक ‘बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर सेक्टोरल टेक्नीकल एंड इकॉनोमिक को-ऑपरेशन’ का संक्षिप्त रूप है. यह बंगाल की खाड़ी से तटवर्ती या समीपी देशों का एक अंतर्राष्ट्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग संगठन है.

मूल रूप से यह एक सहयोगात्मक संगठन है. बिम्सटेक का गठन व्यापार, ऊर्जा, पर्यटन, मत्स्य पालन, परिवहन और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों आपसी सहयोग के लिए किया गया था. परंतु बाद में कृषि, गरीबी उन्मूलन, आतंकवाद, संस्कृति, जनसंपर्क, सार्वजनिक स्वास्थ्य, पर्यावरण और जलवायु-परिवर्तन जैसे क्षेत्रों को भी इसमें शामिल किया गया.

बिम्सटेक की स्थापना और सदस्य देश

बिम्सटेक की स्थापना 6 जून 1997 को बैंकाक घोषणा के माध्यम से की गई थी. इस संगठन में 7 सदस्य देश है. इसके सातों सदस्य देश दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के लगभग 22% (1.5 अरब) वैश्विक आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं.
बिम्सटेक के सदस्य देश: भारत, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार और थाईलैंड.
बिम्सटेक का मुख्यालय: ढाका, बांग्लादेश

बिम्सटेक का इतिहास

वर्ष 1997 में इसके गठन के समय यह चार देशों भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश और थाईलैंड (BIST-EC) के आर्थिक सहयोग पर आधारित संगठन था. उसी वर्ष दिसंबर में इसमें म्यांमार को शामिल किया गया और समूह का नाम (BIMST-EC) कर दिया गया. फरवरी, 2004 में नेपाल और भूटान के शामिल होने के बाद इस समूह का नया नाम ‘बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन’ (बिम्सटेक) रखा गया.

बिम्सटेक की जरूरत क्‍यों

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) में एक पाकिस्तान के नकारात्मक रवैये के चलते एक क्षेत्रीय संगठन की आवश्‍यकता महसूस की जा रही थी. पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को बढ़ावा देना जारी रखने के चलते भारत सहित सार्क के अन्य सदस्य देशों ने इस्लामाबाद में प्रस्तावित शिखर सम्मेलन में भाग लेने से मना कर दिया था. भारत की ओर से बिम्सटेक को अधिक बढ़ावा दिया जा रहा है क्योंकि बिम्सटेक में पाकिस्तान को शामिल नहीं किया गया हैै.

सार्क के विफलता का कारण

सार्क यानी दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन का गठन 1985 में हुआ था. इसमें करीब-करीब वही देश शामिल हैं, जो सार्क में हैं. ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि आखिर सार्क के विफलता के क्या कारण थे?

अपने गठन के बाद से सार्क दक्षिण एशियाई देशों के विकास में कोई सार्थक और उपयोगी पहल नहीं कर सका. क्षेत्रीय सुरक्षा के मामले में पाकिस्तान ने भारत का साथ नहीं दिया वल्कि इसके विपरीत उसने भारत में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देते रहा है. पाकिस्तान में पल रही कट्टरता के कारण दक्षिण एशियाई देशों के बीच क्षेत्रीय सहयोग पर आतंकवाद की छाया मंडराती रही. सार्क में कोई भी निर्णय सभी सदस्य देशों की सहमति से लिया जाता था. जिसके चलते साफ्टा (साउथ एशियन फ्री ट्रेड एरिया) का कोई लाभ नहीं मिल सका.

बिम्सटेक और भारत

पाकिस्तान की नकारात्मक भूमिका के कारण भारत ‘दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन’ (सार्क) के बगैर भी भारत दक्षिण एशियाई देशों के बीच सहयोग को बढ़ाने के लिये कई स्तरों पर काम कर रहा है. बिम्सटेक देशों से बहुस्तरीय संबंध स्थापित कर भारत अपने पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास को गति प्रदान करना चाहता है.

बिम्सटेक भारत के व्यापार के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि म्यांमार और थाईलैंड भारत को दक्षिण पूर्वी इलाकों से जोड़ने के लिये बेहद अहम हैं. ये देश दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्वी देशों के बीच सेतु का काम करते हैं.

बिम्सटेक शिखर सम्मेलन

बिम्सटेक की अब तक चार शिखर सम्मेलन और अनेक मंत्री व अधिकारी स्तरीय बैठकें हो चुकी हैं. इसका प्रथम शिखर सम्मेलन बैंकॉक में जुलाई, 2004 में हुआ था.

शिखर सम्मेलनतिथिमेजवान देशमेजवान शहर
पहला31 जुलाई 2004थाइलैंडबैंकॉक
दूसरा13 नवम्बर 2008भारतनई दिल्ली
तीसरा4 मार्च 2014म्यांमारने पई दव (Nay Pyi Daw)
चौथा30-31 अगस्त 2018नेपालकाठमांडू
पांचवांप्रस्तावितश्रीलंकाकोलम्बो

बिम्सटेक की अध्यक्षता

1997-99: बांग्लादेश
2000: भारत
2001-02: म्यांमार
2002-03: श्रीलंका
2003-05: थाइलैंड
2005-06: बांग्लादेश
2006-09: भूटान के मना करने पर भारत ने तक अध्यक्षता की थी.
2009-014: म्यांमार
2015-18: नेपाल
2018-अब तक: श्रीलंका

महत्वपूर्ण तथ्य

  • बिम्सटेक के विकास के लिए इस संगठन का डेवलपमेंटल पार्टनर एडीबी (एशियन डेवलपमेंट बैंक) बना. बिम्सटेक देशों के बीच में भौतिक संपर्क, आर्थिक संपर्क और सांस्कृतिक संपर्क इन तीनों को बढ़ाने के लिए एडीबी प्रोत्साहन करता है और फंड देता है.
  • वर्ष 2005 में बिम्सटेक का आंतरिक व्यापार महज 25.16 अरब डॉलर था जो वर्ष 2013 में बढ़कर 74.63 अरब डॉलर हो गया. मुक्त व्यापार समझौते के लागू होने के बाद इस समूह के अंदर व्यापार में 43 से 59 अरब डॉलर तक की बढ़ोतरी हो सकती है, लेकिन इसके लिए हर सदस्य देश को अपने यहां यातायात और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर सुविधाओं में बहुत अधिक बेहतरी करनी होगी.