इसरो ने ‘चन्द्रयान-2’ का सफल प्रक्षेपण कर इतिहास रचा

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 22 जुलाई 2019 को मिशन ‘चन्द्रयान-2’ का सफल प्रक्षेपण कर इतिहास रचा. यह प्रक्षेपण आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से GSLV-मार्क-3 रॉकेट के माध्यम से किया गया. प्रक्षेपण के 16 मिनट बाद है ‘चन्द्रयान-2’ पृथ्वी की कक्षा में पहुंच चुका है.
‘चंद्रयान-2’ लगभग 50 दिनों में 3 लाख 84 हजार किलोमीटर की यात्रा के बाद चांद की दक्षिणी ध्रुव की सतह पर 7 सितम्‍बर 2019 को उतरेगा.

‘चन्द्रयान-2’ को चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरा जायेगा

ISRO ने ‘चन्द्रयान-2’, को चाँद के दक्षिणी ध्रुव (साउथ पोल) पर उतारेगा. दरअसल, चांद पर अपना यान भेज चुके अमेरिका, रूस और चीन ने अभी तक इस भाग में अपना यान नहीं भेजा है. इस कारण चंद्रमा के इस भाग के बारे में अभी बहुत जानकारी सामने नहीं आई है. भारत के ‘चंद्रयान-1’ मिशन के दौरान दक्षिणी ध्रुव में बर्फ के बारे में पता चला था.

‘चंद्रयान-2’ के कुल तीन मुख्य हिस्से
चंद्रयान-2 के कुल तीन मुख्य हिस्से हैं- ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर. तीनों हिस्से पूरी तरह से स्वदेश में विकसित और निर्मित हैं.

  1. ऑर्बिटर: ऑर्बिटर, चंद्रमा की सतह का निरीक्षण करेगा और पृथ्वी तथा लैंडर के बीच संकेत रिले करेगा. यह चंद्रमा की कक्षा में 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर उसकी परिक्रमा करता रहेगा. ऑर्बिटर वहां 1 साल तक ऐक्टिव रहेगा.
  2. लैंडर (विक्रम): चन्द्रयान-2 के लैंडर का नाम डॉ विक्रम साराभाई के नाम पर ‘विक्रम’ रखा गया है. चांद की सतह के नजदीक पहुंचने पर लैंडर, ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा और आखिर में चांद की सतह पर लैंडिंग करेगा.
  3. रोवर (प्रज्ञान): चंद्रयान का तीसरा हिस्सा रोवर है जिसे प्रज्ञान नाम दिया गया है. चाँद पर लैंडिंग के बाद लैंडर का दरवाजा खुलेगा और वह रोवर को बहार निकालेगा. इस मिशन में रोवर ही चांद की सतह पर रहकर हमें नई जानकारियां उपलब्ध कराएगा. रोवर इस दौरान 1 सेंटीमीटर/सेकंड की गति से चांद की सतह पर चलेगा और उसके तत्वों की स्टडी करेगा व तस्वीरें भेजेगा.

रोवर प्रज्ञान 6 पहिए वाला एक रोबॉट वाहन है जिसका वजन 27 किलोग्राम है. यह चांद पर 500 मीटर तक घूम सकता है. यह सौर ऊर्जा की मदद से काम करता है. रोवर सिर्फ लैंडर के साथ संवाद कर सकता है. इसकी कुल लाइफ 1 लूनर डे (14 दिन) है.

चंद्रयान-2 की यात्रा के चरण

  • ‘चंद्रयान-2’ को स्वदेश निर्मित भारत के सबसे शक्तिशाली रॉकेट ‘GSLV-मार्क-3’ रॉकेट ने पृथ्‍वी की वलयाकार कक्षा में प्रक्षेपित किया है.
  • ‘चंद्रयान-2’, 16 दिनों तक यह पृथ्वी की कक्षा में परिक्रमा करेगा. इस दौरान चंद्रयान की अधिकतम गति 10 किलोमीटर/प्रति सेकंड और न्यूनतम गति 3 किलोमीटर/प्रति सेकंड होगी.
  • 16 दिनों की पृथ्वी की परिक्रमा के बाद इसमें लगे इंजनों के माध्यम से ‘चंद्रयान-2’ पृथ्वी के गुरुत्वार्षण से बाहर हो जायेगा. इस दौरान चंद्रयान-2 से ‘GSLV-मार्क-3’ अलग हो जाएगा. 5 दिनों बाद ‘चंद्रयान-2’ चांद की कक्षा में पहुंचेगा.
  • चांद की कक्षा में यह 27 दिनों तक परिक्रमा करेगा. इस दौरान उसकी गति 10 किलोमीटर प्रति सेकंड और 4 किलोमीटर प्रति सेकंड रहेगी.
  • चांद की 27 दिनों की परिक्रमा के बाद ‘चंद्रयान-2’ के लैंडर और रोवर चंद्रमा के सतह पर पहुँच जांयेंगे, जबकि ऑर्बिटर चंद्रमा की कक्षा में 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर उसकी परिक्रमा करता रहेगा.
  • लैंडर, चांद की सतह पर उतरने वाली जगह का मुआयना (स्कैन) कर लैंडिंग करेगा. लैंडिंग के बाद लैंडर का दरवाजा खुलेगा और वह रोवर को रिलीज करेगा. रोवर वैज्ञानिक परीक्षणों के लिए चांद की सतह पर निकल जाएगा.
  • रोवर चंद्रमा की सतह से महत्‍वपूर्ण जानकारी लेगा और लैंडर को देगा लैंडर इसे आर्बिटर को भेजेगा।

‘चन्द्रयान-2’ का प्रक्षेपण ‘GSLV-मार्क-3’ के माध्यम से किया गया
‘चन्द्रयान-2’ का प्रक्षेपण स्वदेश निर्मित ‘GSLV-मार्क-3’ रॉकेट के माध्यम से किया गया है. 4 टन तक का भार (पेलोड) ले जाने की अपनी क्षमता के कारण इस रॉकेट को ‘बाहुबली’ कहा जाता है. ISRO दिसंबर 2021 के लिए निर्धारित अपने मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम ‘गगनयान’ के लिए भी ‘GSLV-मार्क-3’ रॉकेट का प्रयोग करेगी.

मिशन ‘चन्द्रयान-2’: एक दृष्टि

  • ‘चंद्रयान-2’ भारत का चंद्रमा पर भेजा जाने वाला दूसरा अभियान है. भारत ने इससे पहले अक्टूबर 2008 में ‘चंद्रयान-1’ चंद्रमा की कक्षा में भेजा था.
  • ‘चन्द्रयान-2’ को चंद्रमा के रहस्यों, भौगोलिक वातावरण, खनिज तत्वों, उसके वायुमंडल की बाहरी परत और पानी की उपलब्धता की जानकारी एकत्र करने के लिए भेजा गया है.
  • स्वदेशी तकनीक से निर्मित ‘चंद्रयान-2’ का वज़न 3.85 टन है. इस अभियान पर लगभग 978 करोड़ रुपये ख़र्च हुए हैं.
  • ‘चंद्रयान-2’ में कुल 13 पेलोड हैं. आठ ऑर्बिटर में, तीन पेलोड लैंडर और दो पेलोड रोवर में हैं. पांच पेलोड भारत के, तीन यूरोप, दो अमेरिका और एक बुल्गारिया के हैं.
  • चंद्रयान -2 बेंगलुरु में इसरो के डीप स्पेस नेटवर्क में डाटा भेजने में सक्षम हैं.
  • भारत चंद्रयान-2 की सफलता के साथ ही अमेरिका, रूस और चीन के बाद चांद पर अंतरिक्ष यान उतारने वाला चौथा देश बन जाएगा.
  • रोवर ‘प्रज्ञान’ से पहले भी चांद पर विभिन्न देशों (रूस, अमेरिका, चीन) के अलग-अलग यानों के साथ 5 रोवर जा चुके हैं.
  • ‘चन्द्रयान-2’ को मूल रूप से 15 जुलाई को प्रक्षेपित किया जाना था लेकिन प्रक्षेपण यान के क्रायोजेनिक हिस्से में गड़बड़ी का पता लगने के बाद इसका प्रक्षेपण टालना पड़ा.
  • क्रायोजेनिक इंजन में लिक्विड हाइड्रोजन और ऑक्सिजन का उपयोग होता है.