राष्‍ट्रपति ने भारतीय संविधान के अनुच्‍छेद-370 के प्रावधानों को हटाने की घोषणा की


राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जम्‍मू कश्‍मीर को विशेष दर्जा देने वाले भारतीय संविधान के अनुच्‍छेद-370 के प्रावधानों को हटाने की 7 अगस्त को घोषणा की. इस आशय की अधिसूचना विधि और न्‍याय मंत्रालय ने जारी कर दी. संसद के दोनों सदनों में जम्‍मू कश्‍मीर में अनुच्‍छेद-370 हटाये जाने का प्रस्‍ताव पारित होने के बाद राष्‍ट्रपति ने यह घोषणा की है.

जम्‍मू-कश्‍मीर में आंतरिक सुरक्षा की स्थिति और सीमा पार से हो रही आतंकवादी घटनाओं के कारण जम्‍मू-कश्‍मीर को विधानसभा युक्‍त केंद्रशासित प्रदेश बनाने का निर्णय लिया गया. धारा 370 के कारण जम्‍मू कश्‍मीर में केंद्र सरकार के कानून लागू नहीं हो रहे थे. इस कारण पाकिस्‍तान द्वारा आतंकवाद और अलगाववाद को बढ़ावा दिया जा रहा था. इस धारा के हटने से यहां के लोग, देश की मुख्‍यधारा में शामिल हो सकेंगे.

लोकसभा और राज्यसभा ने अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को हटाने और राज्य पुनर्गठन विधेयक 2019 को पारित किया

लोकसभा ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों हटाने और राज्य पुनर्गठन विधेयक 2019 को 6 अगस्त को पारित कर दिया. संसद का उपरी सदन (राज्यसभा) इसे 5 अगस्त को पारित कर चुकी थी. केंद्र सरकार ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के खंड (क) को छोड़कर इस अनुच्छेद के सभी प्रावधानों को खत्म करने और ‘राज्य पुनर्गठन विधेयक 2019’ का एक प्रस्ताव राज्यसभा में प्रस्तुत किया था. यह प्रस्ताव केंद्रीय गृह-मंत्री अमित शाह ने द्वारा प्रस्तुत किया गया था.

केंद्र सरकार ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के खंड (क) को छोड़कर इस अनुच्छेद के सभी प्रावधानों को खत्म करने और ‘राज्य पुनर्गठन विधेयक 2019’ का एक प्रस्ताव राज्यसभा में प्रस्तुत किया था. यह प्रस्ताव केंद्रीय गृह-मंत्री अमित शाह ने द्वारा प्रस्तुत किया गया था.

राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की अधिसूचना निकाली

राष्ट्रपति को अनुच्छेद 370 के उपबंध (3) के तहत एक अधिसूचना (नोटिफिकेशन) निकल कर अनुच्छेद 370 को खत्म करने का अधिकार है. संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति अनुच्छेद 370 को खत्म करने की अधिसूचना तभी निकाल सकते हैं जब राज्य की विधानसभा ऐसा करने को कहती है. चूंकि जम्मू-कश्मीर में अभी राज्यपाल शासन लागू है, ऐसे में जम्मू-कश्मीर विधानसभा के सारे अधिकार संसद के दोनों सदन के अंदर निहित है. ऐसा पहली बार नहीं हुआ. इसके पहले 1952 में और 1962 में भी धारा 370 में इसी तरीके से संशोधन किया जा चुका है.

राज्य पुनर्गठन विधेयक: जम्मू-कश्मीर का दो राज्यों में बंटवारा

केंद्र सरकार ने राज्य पुनर्गठन विधेयक 2019 के माध्यम से राज्य का विभाजन जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख के दो केंद्र शासित क्षेत्रों के रूप में करने का प्रस्ताव किया है. जम्मू-कश्मीर विधानसभा वाला केंद्रशासित प्रदेश होगा. जम्मू कश्मीर केंद्र शासित क्षेत्र में अपनी विधायिका (विधानसभा) होगी, जबकि लद्दाख बिना विधानसभा वाला केंद्रशासित क्षेत्र होगा. विधानसभा का कार्यकाल 6 साल की जगह 5 साल होगा.

आर्टिकल 370 का ऐतिहासिक पहलु

आजादी के समय अंग्रेजों ने भारत में मौजूद रियासतों को भारत या पाकिस्तान में विलय करने या फिर स्वतंत्र रहने का विकल्प दिया था. कुछ रियासतों को छोड़कर बाकी सभी रियासतों ने भारत में विलय के प्रस्ताव को स्वीकार किया. जम्मू-कश्मीर रियासत के शासक महाराजा हरि सिंह ने स्वतंत्र रहने का निर्णय किया. लेकिन 20 अक्टूबर, 1947 को पाकिस्तानी सेना के समर्थन से कबायलियों की ‘आजाद कश्मीर सेना’ ने कश्मीर पर हमला कर दिया. हालात बिगड़ते देख महाराजा हरि सिंह ने जम्मू कश्मीर के भारत में विलय प्रस्ताव (इंस्ट्रूमेंट्स ऑफ ऐक्सेशन ऑफ जम्मू ऐंड कश्मीर टु इंडिया) पर 26 अक्टूबर 1947 को दस्तखत कर दिया. तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने 27 अक्टूबर, 1947 को इसे स्वीकार कर लिया. इसके साथ ही, जम्मू-कश्मीर का भारत में विधिवत विलय हो गया.

‘इंस्ट्रूमेंट्स ऑफ ऐक्सेशन ऑफ जम्मू ऐंड कश्मीर टु इंडिया’ में कुछ शर्तें भी लगायी गयी थी. इन शर्तों के तहत सिर्फ रक्षा, विदेश और संचार मामलों पर बने भारतीय कानून ही जम्मू-कश्मीर में लागू होते थे. अनुच्छेद 370 इसी के अंतर्गत आता था. इसके प्रावधानों को शेख अब्दुला ने तैयार किया था, जिन्हें हरि सिंह और तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने जम्मू-कश्मीर का प्रधानमंत्री नियुक्त किया था. अनुच्छेद 370 को अस्थायी तौर पर भारतीय संविधान में शामिल किया गया था.

क्या है आर्टिकल 370?

भारतीय संविधान का आर्टिकल 370 जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करती है. विशेष राज्य का दर्जा मिलने के कारण ही रक्षा, विदेश मामले और कम्युनिकेशन को छोड़कर केंद्र सरकार के कानून इस राज्य पर लागू नहीं होते हैं. इस विशेष प्रावधान के कारण ही 1956 में जम्मू-कश्मीर का अलग संविधान लागू किया गया था. आर्टिकल 370 भारतीय संविधान के 21वें भाग में अस्थायी, तात्कालिक और विशेष प्रावधान (Temporary provisions with respect to the State of Jammu and Kashmir) के रूप में उल्लेखित है.

जम्मू कश्मीर की संविधान सभा
जम्मू-कश्मीर का संविधान एक संविधान सभा द्वारा बनाया गया था. इस संविधान सभा का गठन 1951 में हुआ था और 31 अक्तूबर 1951 को इसकी बैठक हुई. अपनी स्थापना के साथ ही जम्मू कश्मीर की संविधान सभा को यह अधिकार प्राप्त था कि वह भारत के संविधान की धाराओं को राज्य में लागू करने का अनुमोदन करे या धारा 370 का अभिनिषेध करे. जम्मू-कश्मीर संविधान सभा ने राज्य के संविधान का निर्माण किया और आर्टिकल 370 को निरस्त करने की सिफारिश किए बिना खुद को भंग कर दिया. उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर में 17 नवंबर 1956 को अपना संविधान लागू किया गया था.

जम्मू-कश्मीर में दोहरी नागरिकता
आर्टिकल 370 की वजह से जम्मू-कश्मीर में दोहरी नागरिकता काम करती थी. एक देश की और एक इस राज्य की. इस राज्य का अपना अलग झंडा और प्रतीक चिहृन भी था.

आर्टिकल 370 के अंतर्गत ही है 35A

सरकार ने संविधान के आर्टिकल 370 के उपबंध (1) को छोड़कर अनुच्छेद 35ए सहित सभी प्रावधानों को समाप्त किया है. अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को राष्ट्रपति के आदेश के जरिए लागू किया जा सकता है. 1954 में राष्ट्रपति के आदेश के जरिए ही अनुच्छेद 35A को संविधान में शामिल किया गया था.

अनुच्छेद 35A के अनुसार, राज्य की विधायिका को जम्मू एवं कश्मीर के स्थायी नागरिकों के दर्जे को परिभाषित करने का अधिकार है. इसके अनुसार, कोई भी बाहरी व्यक्ति जम्मू एवं कश्मीर में संपत्ति नहीं खरीद सकता और राज्य में नौकरी नहीं कर सकता. यह अनुच्छेद राज्य की महिला नागरिकों को भी किसी बाहरी व्यक्ति से शादी करने की स्थिति में राज्य में किसी भी संपत्ति के अधिकार से वंचित करता है. इसे एक याचिका के जरिए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी गई है. शीर्ष अदालत में अनुच्छेद 35A को चुनौती देती छह याचिकाएं दायर की गई हैं.

370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में क्या बदलाव होगा?

अनुच्छेद 370 के खंड (1) को छोड़कर बांकी प्रावधानों के हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर का अलग से कोई संविधान नहीं होगा, अन्य राज्यों की तरह यहाँ भी भारतीय संविधान लागू होगा. जम्मू-कश्मीर में अब दोहरी नागरिकता नहीं होगी.

आर्टिकल 370 के कारण जम्मू-कश्मीर में वोट का अधिकार सिर्फ वहां के स्थायी नागरिकों को ही था. दूसरे राज्य के लोग यहां वोट नहीं दे सकते और न चुनाव में उम्मीदवार बन सकते थे. अब भारत का कोई भी नागरिक वहां के वोटर और प्रत्याशी बन सकते हैं. देश का कोई भी नागरिक जम्मू-कश्मीर में संपत्ति खरीद पाएगा.