पर्यावरण संरक्षण के लिए 1,400 किलोमीटर लंबी ‘ग्रीन वॉल ऑफ इंडिया’ को विकसित किया जाएगा

केंद्र सरकार देश में पर्यावरण के संरक्षण और हरित क्षेत्र को बढ़ाने के लिए 1,400 किलोमीटर लंबी ‘ग्रीन वॉल ऑफ इंडिया’ परियोजना पर विचार कर रही है. भारत में घटते वन और बढ़ते रेगिस्तान को रोकने के लिए यह परियोजना हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की कॉन्फ्रेंस (COP14) से आया है. इस परियोजना पर मंजूरी के बाद यह भारत में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए भविष्य में भी एक मिसाल की तरह होगा.

अफ्रीका के ‘ग्रेट ग्रीन वॉल’ तर्ज पर विकसित किया जायेगा

भारत सरकार की यह परियोजना अफ्रीका में बनी हरित पट्टी ‘ग्रेट ग्रीन वॉल’ की तर्ज पर विकसित किया जायेगा. अफ्रीका का ग्रेट ग्रीन वॉल सेनेगल से जिबूती तक बनी है. अफ्रीका में क्लाइमेट चेंज और बढ़ते रेगिस्तान से निपटने के लिए यह हरित पट्टी तैयार किया गया है. इसे ‘ग्रेट ग्रीन वॉल ऑफ सहारा’ भी कहा जाता है. इसपर करीब एक दशक पहले काम शुरू हुआ था.

गुजरात से लेकर दिल्ली-हरियाणा सीमा तक ‘ग्रीन वॉल ऑफ इंडिया’

इस परियोजना के तहत गुजरात से लेकर दिल्ली-हरियाणा सीमा तक ‘ग्रीन वॉल ऑफ इंडिया’ को विकसित किया जाएगा. इसकी लंबाई 1,400 किलोमीटर होगी, जबकि यह 5 किलोमीटर चौड़ी होगी.

इस परियोजना को थार रेगिस्तान के पूर्वी तरफ विकसित किया जाएगा. पोरबंदर से लेकर पानीपत तक बनने वाली इस ग्रीन बोल्ट से घटते वन क्षेत्र में इजाफा होगा. इसके अलावा गुजरात, राजस्थान, हरियाणा से लेकर दिल्ली तक फैली अरावली की पहाड़ियों पर घटती हरियाली के संकट को भी कम किया जा सकेगा.

यह ग्रीन बेल्ट लगातार नहीं होगी, लेकिन अरावली रेंज का बड़ा हिस्सा इसके तहत कवर किया जाएगा ताकि उजड़े हुए जंगल को फिर से पूरी तरह विकसित किया जा सके. इस परियोजना से पश्चिमी भारत और पाकिस्तान के रेगिस्तानों से दिल्ली तक उड़कर आने वाली धूल को भी रोका जा सकेगा.

2030 तक काम पूरा करने का लक्ष्य

भारत सरकार ‘ग्रीन वॉल ऑफ इंडिया’ परियोजना को 2030 तक राष्ट्रीय प्राथमिकता में रखकर जमीन पर उतारने पर विचार कर रही है. इसके तहत 26 मिलियन हेक्टेयर भूमि को प्रदूषण मुक्त करने का लक्ष्य है.

कई राज्यों में रेगिस्तान का दायरा बढ़ने का खतरा

भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 2016 में एक नक्शा जारी किया था, जिसके मुताबिक गुजरात, राजस्थान और दिल्ली ऐसे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में हैं, जहां 50 फीसदी से अधिक भूमि हरित क्षेत्र से बाहर है. इसके चलते इन इलाकों में रेगिस्तान का दायरा बढ़ने का खतरा है.