राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया गया

केंद्र सरकार ने 2 मार्च को मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (eco-sensitive zone- ESZ) घोषित किया. राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य में गांगेय डॉल्फिन और अत्यंत लुप्तप्राय घड़ियाल पाए जाते हैं.

पर्यावरण मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार इस अभयारण्य की सीमा से 0 से 2 किलोमीटर के दायरे में आने वाले क्षेत्र को पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील घोषित किया गया है. अधिसूचना में वन्यजीव अभयारण्य के एक किलोमीटर या ESZ तक, जो भी नजदीक हो, किसी भी होटल या रिजॉर्ट के निर्माण पर रोक लगायी है.

राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य: एक दृष्टि

राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य मध्य प्रदेश के श्योपुर, मुरैना और भिंड जिलों में 435 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैला हुआ है. यह 75 प्रतिशत घड़ियालों का प्राकृतिक आवास है. इस अभयारण्य में ताजा पानी में पायी जाने वाली गांगेय डॉल्फिन, ताजा पानी के कछुओं की नौ प्रजातियां और पक्षियों की 180 से अधिक प्रजातियां भी पायी जाती हैं.

इको-सेंसिटिव जोन क्या हैं?

इको-सेंसिटिव जोन (ESZ) संरक्षित क्षेत्रों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास के क्षेत्र हैं. ESZ को भारत सरकार द्वारा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत अधिसूचित किया जाता है. इसका मूल उद्देश्य राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आस-पास कुछ गतिविधियों को विनियमित करना है ताकि ऐसी गतिविधियों के नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सके.

एशियाई हाथी, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को संरक्षण हेतु सूचीबद्ध किया था

सरकार ने इससे पहले प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण को लेकर एशियाई हाथी, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और बंगाल फ्लोरीकन को सूचीबद्ध किया था. इन प्रजातियों के वास स्थलों को सुरक्षित क्षेत्र के रूप में घोषित करने के अलावा भारत में दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजातियों में शामिल हिम तेंदुआ, ओलिव रिडले कछुए, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, गांगेय डॉल्फिन और डुगोंग आदि को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की पहली अनुसूची में सूचीबद्ध कर इन्हें उच्चतम श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की गई है.