‘प्लाज़्मा थैरेपी’ से ‘कोविड-19’ का उपचार, जानिए क्या है प्लाज़्मा थैरेपी

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने कोविड-19 के उपचार के लिए रोग मुक्त करने वाली ‘प्लाज़्मा थैरेपी’ (Plasma Therapy) को स्वीकृति दी है. इसका उद्देश्‍य उपचार के बाद कोविड-19 से पूरी तरह ठीक हुए व्‍यक्ति के खून के प्‍लाज्‍मा का उपयोग रोगियों के इलाज के लिए किया जाता है. इस थैरेपी में प्‍लाज्‍मा में मौजूद एंटीबॉडी के आधार पर रोगी व्‍यक्ति में वायरस रोधी क्षमता विकसित की जाती है. चीन और दक्षिण कोरिया में इस इलाज का इस्तेमाल हो रहा है.

श्री चित्रा तिरूनल आयुर्विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्‍थान को उपचार की स्वीकृति

ICMR ने केरल में श्री चित्रा तिरूनल आयुर्विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्‍थान को ‘प्लाज़्मा थैरेपी’ से कोरोना वायरस से संक्रमित रोगियों के उपचार की स्वीकृति दी थी. तिरूअनंतपुरम में यह संस्‍थान केंद्र सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत राष्‍ट्रीय महत्‍व का संस्‍थान है.

प्लाज़्मा थैरेपी (Plasma Therapy): एक दृष्टि

  • वे मरीज़ जो किसी कोरोना वायरस संक्रमण (कोविड-19) से उबर जाते हैं उनके शरीर में संक्रमण को बेअसर करने वाले प्रतिरोधी ऐंटीबॉडीज़ विकसित हो जाते हैं. इन ऐंटीबॉडीज़ की मदद से कोविड-19 के रोगी के रक्त में मौजूद वायरस को ख़त्म किया जा सकता है.
  • ठीक हो चुके मरीज़ का ELISA (The enzyme-linked immunosorbent assay) टेस्ट किया जाता है जिससे उसके शरीर में ऐंटीबॉडीज़ की मात्रा का पता लगता है.
  • फिर इस ठीक हो चुके रोगी के शरीर से ऐस्पेरेसिस विधि से ख़ून निकाला जाता है जिसमें ख़ून से प्लाज़्मा या प्लेटलेट्स जैसे अवयवों को निकालकर बाक़ी ख़ून को फिर से उसी रोगी के शरीर में वापस डाल दिया जाता है. ऐंटीबॉडीज़ केवल प्लाज़्मा में मौजूद होते हैं.
  • डोनर के शरीर से लगभग 800 मिलीलीटर प्लाज़्मा लिया जाता है. इसमें से संक्रमित रोगी को लगभग 200 मिलीलीटर ख़ून चढ़ाने की ज़रूरत होती है. यानी एक डोनर के प्लाज़्मा का चार रोगियों में इस्तेमाल हो सकता है.
  • 18 साल से 55 साल का कोई भी पुरुष जो कोरोना से ठीक हो चुका है प्लाज्मा दे सकता है. सभी अविवाहित महिला या विवाहित लेकिन जिसके बच्चे ना हो ऐसी महिला प्लाज्मा दे सकती हैं.