कश्मीरी सैफरन, मणिपुर के काले चावल सहित कई उत्पादों को GI Tag दिया गया

देश में उगाई जाने वाली कश्मीरी सैफरन, मणिपुर के काले चावल सहित कई उत्पादों को हाल ही में भौगोलिक संकेतक (GI Tag) पहचान दी गयी है.

कश्मीरी केसर

कश्मीरी केसर (Saffron) यानी जाफ़रान को GI Tag मिला है. जियोग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री (Geographical Indications Registry) ने कश्मीरी केसर को GI Tag नंबर 635 प्रदान किया है. भारत में केसर कश्मीर के कुछ क्षेत्र में उगाया जाता है.

मणिपुर का काला चावल (चक-हाओ)

मणिपुर के काले चावल को चाक-हाओ से भी जाना जाता है. चाक-हाओ के GI Tag के लिए आवेदन उत्तर पूर्वी क्षेत्रीय कृषि विपणन निगम लिमिटेड (NERAMAC) ने गया था. एंथोसायनिन एजेंट के कारण इस चावल का रंग काला होता है. यह चावल मिष्ठान, दलिया बनाने के लिए उपयुक्त है.

गोरखपुर का टेराकोटा

गोरखपुर टेराकोटा के लिए उत्तर प्रदेश के लक्ष्मी टेराकोटा मुर्तिकला केंद्र द्वारा आवेदन दायर किया गया था. गोरखपुर का टेराकोटा लगभग 100 वर्ष पुराना है जिसका उपयोग हस्तशिल्पियों द्वारा नक्काशी और आकृतियां बनाने में किया जाता है.

कोविलपट्टी की कदलाई मितई

कदलाई मितई तमिलनाडु के दक्षिणी भागों में बनाई जाने वाली मूंगफली कैंडी है. मूंगफली और गुड़ से कैंडी को तैयार की जाता है. इसमें विशेष रूप से थामीबरानी नदी के पानी का उपयोग किया जाता है.

GI टैग क्या है?

GI (Geographical Indication) टैग किसी भी उत्पाद के लिए एक भौगोलिक चिन्ह होता है जो कुछ विशिष्ट उत्पादों (कृषि, प्राक्रतिक, हस्तशिल्प और औधोगिक सामान) को दिया जाता है. यह टैग एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में 10 वर्ष या उससे अधिक समय से उत्पन्न या निर्मित हो रहे उत्पादों को दिया जाता है.

भारत में GI टैग

भारत ने GI टैग उत्पादों का (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम को 15 सितम्बर, 2003 को पारित किया था. इस आधार पर भारत के किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाली विशिष्ट वस्तु का कानूनी अधिकार उस राज्य को दे दिया जाता है. भारत में GI टैग सर्वप्रथम वर्ष 2004- 2005 में, दार्जिलिंग चाय को दिया गया. भारत में GI टैग्स किसी खास फसल, प्राकृतिक और निर्मित सामानों को दिए जाता है.

कई बार ऐसा भी होता है कि एक से अधिक राज्यों में बराबर रूप से पाई जाने वाली फसल या किसी प्राकृतिक वस्तु को उन सभी राज्यों का मिला-जुला GI टैग दिया जाए. यह बासमती चावल के साथ हुआ है. बासमती चावल पर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्सों का अधिकार है.

 

GI टैग प्राप्त कर चुके भारत के कुछ उत्पाद

जम्मू और कश्मीर कि पश्मीना, वालनट की लकड़ी पर नक्काशी, सिक्किम कि बड़ी इलायची, मैसूर की रेशम, जयपुर की ब्लू मिट्टी के बर्तन, कन्नौज का परफ्यूम, गोवा कि फेनी, राजस्थान कि थेवा पेंटिंग, महाबलेश्वर स्ट्रोबैरी, जयपुर की ब्लूपोटेरी, बनारसी साड़ी, बिहार की ‘शाही लीची’ और तिरूपति के लड्डू कुछ ऐसे उदाहरण है जिन्हें जीआई टैग मिला हुआ है.

GI टैग के फायदे

  • GI टैग उन उत्पादों को संरक्षण प्रदान करता है, जहाँ घरेलू और अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में प्रीमियम मूल्य निर्धारण का आश्वासन देता है.
  • GI टैग यह भी सुनिश्चित करता है कि अधिकृत उपयोगकर्ताओं निदिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में दर्ज किए गये उत्पादों का नाम अन्य किसी को उपयोग करने कि अनुमति नही देता है.
  • GI उत्पाद किसी भौगोलिक क्षेत्रों में किसानों, बुनकरों शिल्पों और कलाकारों की आय को बढ़ाकर वहां की अर्थव्यवस्था को फायदा पहुंचा सकते हैं.
  • GI टैग मिलने के बाद अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में उस वस्तु की कीमत और उसका महत्व बढ़ जाता है. इस वजह से देश-विदेश से लोग एक खास जगह पर उस विशिष्ट सामान को खरीदने आते हैं.
  • किसी भौगोलिक क्षेत्रों में रहने वाले कारीगरों/ कलाकारों के पास बेहतरीन हुनर, कौशल और पारंपरिक पद्धतियों का ज्ञान होता है जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता रहता है. इसे सहेज कर रखने तथा बढ़ावा देने के लिए GI टैग की आवश्यकता होती है.

GI टैग और पेटेंट में अंतर

GI टैग किसी भौगोलिक परिस्थिति के आधार पर दिए जाते हैं, जबकि पेटेंट नई खोज और आविष्कारों को बचाए रखने का जरिया हैं. GI टैग्स और पेटेंट दोनों ही इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स (IPR) का हिस्सा हैं, जो पेटेंट्स से मिलते-जुलते ही हैं.