ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को दर्शाने वाला पहला राष्ट्रीय ‘जलवायु पूर्वानुमान मॉडल’ विकसित

‘भारतीय मौसम विज्ञान संस्थान’ (Indian Institute of Tropical Meteorology- IITM)- पुणे ने हाल ही में एक जलवायु पूर्वानुमान मॉडल (National Climate Assessment) विकसित किया है. यह मॉडल भारतीय उपमहाद्वीप पर ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के प्रभाव को दर्शाने वाला प्रथम राष्ट्रीय ‘जलवायु पूर्वानुमान मॉडल’ है.

यह मॉडल इस अवधारणा पर आधारित है कि वैश्विक समुदाय द्वारा ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन पर अंकुश लगाने की दिशा में कोई प्रयास नहीं किये गए तो जलवायु परिवर्तन की क्या स्थिति होगी. यह ‘जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल’ (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) का एक भाग है. इसकी रिपोर्ट 2022 तक तैयार होने की उम्मीद है.

जलवायु पूर्वानुमान मॉडल के मुख्य बिंदु

  • वर्ष 1901-2018 के दौरान भारत का औसत तापमान 0.7°C बढ़ा है. इस तापमान वृद्धि का प्रमुख कारण ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन है.
  • वर्ष 1986-2015 के बीच की अवधि में सबसे गर्म दिन तथा सबसे ठंडी रातों के तापमान में क्रमशः 0.63°C और 0.4°C की वृद्धि हुई है.
  • 21वीं सदी के अंत तक दिन तथा रात के तापमान में वर्ष 1976-2005 की अवधि की तुलना में लगभग 4.7°C और 5.5°C वृद्धि होने का अनुमान है.
  • वर्ष 2040 तक, वर्ष 1976-2005 की अवधि की तुलना में तापमान में 2.7°C और इस सदी के अंत तक तापमान में 4.4°C वृद्धि होने का अनुमान है.
  • भारत की जलवायु में तेज़ी से परिवर्तन के कारण देश की प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र, कृषि उत्पादकता और जल संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा.
  • वर्षा के पैटर्न में व्यापक बदलाव देखने को मिला है. वर्षा की तीव्रता में वृद्धि हुई है लेकिन वर्षा-अंतराल में लगातार वृद्धि हुई है. अरब सागर से उत्पन्न होने वाले अत्यधिक गंभीर चक्रवातों की आवृत्ति में वृद्धि हुई है.
  • मुंबई तट के साथ समुद्र स्तर में प्रति दशक में 3 सेमी की वृद्धि जबकि कोलकाता तट के साथ प्रति दशक में 5 सेमी की वृद्धि दर्ज की गई है.