भारत ने दुनिया के सबसे बड़े परमाणु फ्यूजन प्रोजेक्ट के ‘क्रायोस्टेट’ का अंतिम हिस्सा पूरा किया

भारत ने दुनिया के सबसे बड़े ‘परमाणु फ्यूजन प्रोजेक्ट’ के ‘क्रायोस्टेट’ का अंतिम हिस्सा पूरा कर लिया है. ‘क्रायोस्टेट’ के इस हिस्से को देश के एक निजी क्षेत्र की कंपनी ‘एलएंडटी’ ने सूरत के हजीरा में बनाया है. इसे 30 जून को फ्रांस भेजा गया. यह प्रोजेक्ट फ्रांस के कादार्शे में डेढ़ लाख करोड़ रुपए की लागत से तैयार किया जा रहा है. यह धरती पर सूरज से ज्यादा ऊर्जा पैदा करने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट है.

क्रायोस्टेट क्या है?

क्रायोस्टेट स्टील का हाई वैक्यूम प्रेशर चैम्बर होता है. जब कोई रिएक्टर बेहद गर्मी पैदा करता है, तो उसे ठंडा करने के लिए एक विशाल रेफ्रिजरेटर की जरूरत होती है जिसे क्रायोस्टेट कहते हैं.

परमाणु फ्यूजन प्रोजेक्ट: मुख्य तथ्य

  • परमाणु फ्यूजन प्रोजेक्ट के तहत 15 करोड़ डिग्री सेल्सियस तापमान पैदा होगा. यह सूर्य की कोर से 10 गुना ज्यादा होगा.
  • क्रायाेस्टेट का कुल वजन 3850 टन है. इसका 50वां और अंतिम हिस्सा करीब 650 टन वजनी, 29.4 मीटर चाैड़ा और 29 मीटर ऊंचा है.
  • इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (ITER) की यह मैग्नेटिक फ्यूजन डिवाइस की परियोजना परमाणु विखंडन के बजाए सूरज की तरह परमाणु संलयन पर आधारित है.

भारत, अमेरिका, जापान समेत 7 देश इस संयंत्र को बनाने में शामिल

  • इस प्रोजेक्ट में भारत के अलावा यूरोपीय देश, अमेरिका, जापान, चीन, फ्रांस और रूस शामिल हैं. इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (ITER) प्रोजेक्ट के सदस्य देश हाेने के नाते भारत ने क्रायोस्टेट बनाने की जिम्मेदारी चीन से ली थी.
  • भारत ने इस क्रायोस्टेट का निचला सिलेंडर जुलाई 2019 में और मार्च 2020 में इसके ऊपरी सिलेंडर को भेजा गया था. अब इसकी ऊपरी सतह भेजी गयी है.
  • इन सभी हिस्सों को जाेड़कर चैम्बर का आकार देने के लिए भारत ने कादार्शे के पास एक वर्कशॉप भी बनाई है. इस प्राेजेक्ट में भारत का योगदान 9% है, लेकिन क्रायोस्टेट देकर देश के पास इसके बौद्धिक संपदा के अधिकार सुरक्षित रहेंगे.