संविधान के रक्षक संत केशवानंद भारती का निधन
संविधान के मूल ढांचे का सिद्धांत दिलाने वाले संत केशवानंद भारती का 6 सितम्बर को केरल के इडनीर मठ में निधन हो गया. वे 79 साल के थे.
1973 में सुप्रीम कोर्ट ने ‘केशवानंद भारती बनाम स्टेट ऑफ केरल’ मामले में एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया था. इस निर्णय के अनुसार, संविधान की प्रस्तावना के मूल ढांचे को बदला नहीं जा सकता. इस निर्णय के कारण केशवानंद भारती को ‘संविधान का रक्षक’ भी कहा जाता है, क्योंकि इसी याचिका पर फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी कि उसे संविधान के किसी भी संशोधन की समीक्षा का अधिकार है.
संविधान के मूल ढांचे में संशोधन नहीं किया जा सकता
23 मार्च 1973 को केशवानंद भारती मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने संविधान में संशोधन की संसद की शक्तियों पर निर्णय सुनाया था. इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद के पास संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन का अधिकार तो है, लेकिन संविधान के मूल ढांचे में से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती.
कोर्ट ने कहा कि संविधान के हर हिस्से में संशोधन हो सकता है, लेकिन उसकी न्यायिक समीक्षा होगी ताकि यह तय हो सके कि संविधान का आधार और मूल ढांचा बरकरार है. कोर्ट ने मूल संरचना को परिभाषित नहीं किया. इसने केवल कुछ सिद्धांतों को सूचीबद्ध किया जैसे कि धर्मनिरपेक्षता, संघवाद और लोकतंत्र.
भारती का केस जाने-माने वकील नानी पालकीवाला ने लड़ा था. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी व्यवस्था दी थी कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, इसलिए उससे छेड़छाड़ नहीं की जा सकती.
अब तक का सबसे बड़ी पीठ ने सुनवाई की थी
यह फैसला शीर्ष अदालत की अब तक सबसे बड़ी पीठ ने दिया था. चीफ जस्टिस एसएम सीकरी और जस्टिस एचआर खन्ना की अगुवाई वाली 13 जजों की पीठ ने 7:6 से यह फैसला दिया था. इस मामले की सुनवाई 31 अक्टूबर 1972 को शुरू हुई और 23 मार्च 1973 को सुनवाई पूरी हुई थी.
सुप्रीम कोर्ट में याचिका का आधार
केशवानंद भारती केरल में कासरगोड़ जिले के इडनीर मठ के उत्तराधिकारी थे. केरल सरकार ने भूमि सुधार कानून बनाए थे जिसके जरिए धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधन पर नियंत्रण किया जाना था. इस कानून को संविधान की नौंवी सूची में रखा गया था ताकि न्यायपालिका उसकी समीक्षा न कर सके. साल 1970 में केशवानंद ने इसी भूमि सुधार कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.