वित्त वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही के आंकड़े जारी: GDP में 7.5 फीसदी की गिरावट

सरकार के राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (NSO) ने वित्त वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) के आंकड़े 27 नवम्बर को जारी किये. इन आंकड़े के अनुसार इस तिमाही में देश के अर्थव्यवस्था की विकास दर (GDP) 7.5 फीसदी की गिरावट रही. ये आंकडे पहली तिमाही के मुकाबले काफी बेहतर हैं. कोविड-19 महामारी और इससे जुड़े लॉकडाउन के कारण पहली तिमाही में GDP में 23.9 फीसदी की ऐतिहासिक गिरावट आई थी.

GDP में लगातार गिरावट आर्थिक मंदी का संकेत माना जाता है

पिछले 40 साल में पहली बार GDP में इतनी कमी आई है. यदि किसी अर्थव्यवस्था की GDP लगातार घट रही है, तो इसे आर्थिक मंदी का बड़ा संकेत माना जाता है. इससे पहले 2007-2009 में पूरी दुनिया में आर्थिक मंदी आई थी. यह साल 1930 की मंदी के बाद सबसे बड़ा आर्थिक संकट था.

मंदी के मुख्य संकेतक

GDP का लगातार गिरना: GDP में लगातार गिरावट को आर्थिक मंदी का बड़ा संकेत माना जाता है. यदि देश की विकास दर का मतलब देश की अर्थव्यवस्था या सकल घरेलू उत्पाद (GDP) बढ़ने की रफ्तार से है. GDP एक निर्धारित अवधि में किसी देश में बने सभी उत्पादों और सेवाओं के मूल्य का योग है.

मांग में गिरावट: आर्थिक मंदी के दौरान उपभोक्ता मांग में गिरावट आती है. दरअसल, मंदी के दौरान लोग जरूरत की चीजों पर खर्च को भी काबू में करने का प्रयास करते हैं.

औद्योगिक उत्पादन में गिरावट: मंदी के दौर में उद्योगों का उत्पादन कम हो जाता है, क्योंकि बाजार में बिक्री घट जाती है. इससे माल ढुलाई, बीमा, गोदाम, वितरण, टेलिकॉम, टूरिज्म जैसी तमाम सेवाएं भी प्रभावित होती हैं.

बेरोजगारी में वृद्धि: उत्पादन न होने की वजह से उद्योग बंद हो जाते हैं. इसके चलते कंपनियां कर्मचारियों की छंटनी करने लगती हैं. इससे अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी बढ़ जाती है.