37वां आसियान शिखर सम्मेलन, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते पर हस्ताक्षर

37वां दक्षिण पूर्व एशियाई देशों (ASEAN) शिखर सम्मेलन 13-15 नवम्बर को वियतनाम के हनोई में आयोजित किया गया था. सम्मलेन की अध्यक्षता आसियान (ASEAN) के वर्तमान अध्यक्ष देश वियतनाम के प्रधानमंत्री गुयेन जुआन फुक ने की थी.

सम्मेलन के दौरान आसियान सदस्य देशों और उनके संवाद भागीदारों ने कोविड-19 महामारी के बाद आर्थिक बहाली और क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (RCEP) के हस्ताक्षर आदि मुद्दों पर विचार-विमर्श किया.

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते पर हस्ताक्षर

इस सम्मलेन के दौरान 10 आसियान (ASEAN) देशों और उनके 5 अन्य मुक्त व्यापार साझेदार देशों (ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, न्यूज़ीलैंड तथा दक्षिण कोरिया) के बीच ‘क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी’ (RCEP) पर हस्ताक्षर किये गये. RCEP के सदस्य दुनिया की लगभग एक तिहाई आबादी और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 30% हिस्सा हैं.

क्या है क्षेत्रीय व्‍यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP)?

  • RCEP, Regional Comprehensive Economic Partnership का संक्षिप्त रूप है. यह आसियान के दस सदस्य देशों तथा पाँच अन्य देशों द्वारा अपनाया गया एक मुक्त व्यापार समझौता (FTA) है. इस समझौते पर 15 नवंबर 2020 को हस्ताक्षर किये गए.
  • RCEP में 10 आसियान देशों के अलावा भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के शामिल होने का प्रावधान था, जिसमें से अब भारत ने इसमें से बाहर रहने का फैसला किया है.
  • आसियान और उसके व्‍यापारिक साझेदार देशों के बीच आर्थिक संबंध को मजबूत करने के लिए नवम्‍बर 2012 में RCEP का गठन किया गया था.
  • RCEP समझौते के तहत सदस्य देशों के बीच आयात और निर्यात कर मुक्त या आंशिक कर लगाने का प्रावधान था.
    भारत का मानना है कि आयात शुल्क कम करने या खत्म करने से विदेश (मुख्य तौर पर चीन) से भारी मात्रा में सामान भारत आएगा और इससे देश के घरेलू उद्योगों को काफी नुकसान होगा.

भारत का RCEP समझौते से अलग होने के कारण और परिणाम

  • भारत ने RCEP समझौते की वार्ता में शामिल रहने के बाद आखिरी मौके पर इससे अलग रहने का निर्णय लिया है. RCEP से अलग रहने के पीछे भारत ने इस समझौते में अपने कई मुद्दों और चिंताओं पर आवश्यकता अनुरूप ध्यान नहीं दिये जाने को बड़ा कारण बताया है.
  • इस समझौते में शामिल होने के पश्चात् भारत को अपना बाजार खोलना पड़ता है, जिससे चीन से सस्ते उत्पादों का आयात बढ़ने की आशंका थी इससे घरेलू उद्योग व कारोबार पर असर पड़ने की संभावना बनी हुई थी.
  • इस समझौते में शामिल होने के पश्चात् भारत में स्थानीय और छोटे उत्पादकों को कड़ी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ सकता था. उदाहरण के तौर पर आयात शुल्क में कमी होने से भारत के कृषि, डेयरी उत्पाद और अन्य ‘सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम’ (MSMEs) क्षेत्रों को क्षति हो सकती थी.
  • भारत के RCEP समझौते से अलग होने से RCEP सदस्यों के साथ भारत के द्विपक्षीय व्यापार संबंधों के प्रभावित होने की आशंका भी बढ़ गई है क्योंकि इस समूह में शामिल अधिकांश देश RCEP के अंदर अपने व्यापार को मज़बूत करने को अधिक प्राथमिकता देंगे.

जानिए क्या है आसियान…»