बिहार के लखीसराय में गंगा घाटी का पहला बौद्ध स्तूप मिला

बिहार के लखीसराय में गंगा घाटी का पहला बौद्ध स्तूप मिला है. यह बौद्ध स्तूप लाल पहाड़ी की खुदाई में मिला है. यह देश का पहला पहाड़ी बौद्ध मठ (Hilltop Buddhist monastery) बन गया है. अब तक प्राप्त सभी बौद्ध स्तूप धरातल यानी जमीन पर हैं. लेकिन यह पहला बौद्ध स्तूप है जो किसी पहाड़ी पर मिला है.

मुख्य बिंदु

  • इतिहासकारों के अनुसार 11वीं 12वीं शताब्दी के इस मठ में कुछ ऐसी विशेषताएं मिली हैं जो देश के किसी और बौद्ध मठ में नहीं देखी गईं. पूर्वी भारतीय बौद्ध मठों के बीच इस मठ की वास्तुकला इसे एक अलग पहचान देती है. इससे पहले बिहार के किसी भी हिस्से से विहार-स्तरीय मठ की वास्तुकला का कोई प्रमाण नहीं मिला है.
  • खुदाई में मिली चीजों से पता चलता है कि यह मठ मुख्य रूप से महिलाओं के लिए बनवाया गया होगा. अभिलेख के जरिए भी यहां ऐसा प्रमाण मिला है कि पाल रानी मल्लिका देवी ने विजयश्री भद्र नाम की एक महिला बौद्ध भिक्षु को दान दिया था. साथ ही यह स्थान देखने पर ऐसा लगता है कि इसमें चारों तरफ से सुरक्षा के भी इंतजाम किए गए हैं जो अक्सर महिलाओं के रहने के स्थानों पर ही जाते हैं.
  • इस मठ के सभी कमरों में दरवाजे पाए गए हैं, जबकि आमतौर पर नालंदा, विक्रमशिला जैसे मठों में दरवाजों के प्रमाण नहीं मिले हैं. इसी के साथ यहां तांबे की चूड़ियां, हाथी दांत की अंगूठी, नाक की लौंग आदि मिली हैं. इससे पता चलता है कि यह मठ विशेष रूप से या तो महिलाओं के लिए बनवाया गया होगा.
  • लाल पहाड़ी की खुदाई में पहली बार लकड़ी से बना हुआ वोटिव टेबलेट मिला है. खुदाई से मिलीं दो जली हुई मिट्टी की मुहरों पर संस्कृत में ‘श्रीमदधर्माभिर्वाचिका’ नाम लिखा हुआ है. इस नाम से पता चलता है कि प्रारंभिक मध्ययुगीन मगध में महायान बौद्ध धर्म की कितनी प्रतिष्ठा थी.
  • यह राज्य का पहला विहार या बौद्ध मठ हो सकता है, जिसने संभवतः बिहार को अपना नाम दिया, जैसा कि नालंदा, विक्रमशिला और तेलहारा में पाए गए महाविहार (बड़े बौद्ध मठ) थे. बिहार में नालंदा और तेलहारा के बाद, यह पहला मठ है, जिसमें मिली मुहरों पर मठ के नाम का उल्लेख किया गया है. आमतौर पर महाविहारों के नाम भारत के एपिग्राफिक और पुरातात्विक रिकॉर्ड से पता चलते हैं.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शुरू करवाई थी खुदाई
इस लाल पहाड़ी की खुदाई का काम 25 नवंबर, 2017 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शुरू करवाया था. यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा बिहार में 3 साल के अंदर पूरी की गई पहली खुदाई परियोजना है.