केन-बेतवा नदी को जोड़ने वाले परियोजना को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 8 दिसम्बर को केन-बेतवा नदी को जोड़ने वाले परियोजना (Ken-Betwa River Interlinking Project) को मंजूरी दी. इस परियोजना में 44,605 करोड़ रुपए का खर्च आएगा. इसका 90% खर्च केंद्र सरकार वहन करेगी. यह प्रोजेक्ट 8 साल में पूरा कर लिया जाएगा.

परियोजना के मुख्य बिंदु

  • केन-बेतवा परियोजना के तहत 176 किलोमीटर की लिंक कैनाल का निर्माण किया जाएगा, जिससे दोनों नदियों को जोड़ा जा सके. प्रोजेक्ट के अस्तित्व में आने के बाद मध्य प्रदेश के सागर-विदिशा सहित 12 जिलों को पानी मिलेगा. इसके साथ ही 10 लाख हेक्टेयर में सिंचाई होगी.
  • केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट से नॉन मानसून सीजन (नवंबर से अप्रैल के बीच) में मध्यप्रदेश को 1834 मिलियन क्यूबिक मीटर (MCM) व उत्तर प्रदेश को 750 मिलियन क्यूबिक मीटर (MCM) पानी मिलेगा.
  • प्रोजेक्ट के पहले फेज में केन नदी पर ढोड़न गांव के पास बांध बनाकर पानी रोका जाएगा. यह पानी नहर के जरिया बेतवा नदी तक पहुंचाया जाएगा. वहीं, दूसरे फेज में बेतवा नदी पर विदिशा जिले में 4 बांध बनाए जाएंगे. इसके साथ ही बेतवा की सहायक बीना नदी जिला सागर और उर नदी जिला शिवपुरी पर भी बांधों का निर्माण किया जाएगा.
  • प्रोजेक्ट के दोनों फेज से सालाना करीब 10.62 लाख हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. साथ ही, 62 लाख लोगों को पीने के पानी के साथ 103 मेगावॉट हाइड्रो पावर भी पैदा किया जाएगा. केन-बेतवा लिंक परियोजना में दो बिजली प्रोजेक्ट भी प्रस्तावित हैं, जिनकी कुल स्थापित क्षमता 72 मेगावॉट है.
  • परियोजना से बुंदेलखंड के उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के 12 जिलों को पानी मिलेगा. मध्यप्रदेश के पन्ना, टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दमोह, दतिया, विदिशा, शिवपुरी को पानी मिलेगा. वहीं, उत्तर प्रदेश के बांदा, महोबा, झांसी और ललितपुर जिलों को राहत मिलेगी.

केन और बेतवा नदी

केन और बेतवा नदियों का उद्गम स्थल मध्य प्रदेश में है, ये यमुना की सहायक नदियाँ हैं. केन नदी उत्तर प्रदेश के बांदा ज़िले में यमुना नदी में मिलती है तथा बेतवा नदी से यह उत्तर प्रदेश के हमीरपुर ज़िले में मिलती है.

नदियों को जोड़ने का लाभ

नदियों को आपस में जोड़ने से बुंदेलखंड क्षेत्र में सूखे की पुनरावृत्ति का समाधान होगा. इससे सिंचाई के स्थायी साधन प्रदान करके तथा भूजल पर अत्यधिक निर्भरता को कम करके उनके लिये स्थायी आजीविका सुनिश्चित करेगा. बहुउद्देशीय बांध के निर्माण से न केवल जल संरक्षण में तेज़ी आएगी, बल्कि जल-विद्युत का उत्पादन भी होगा.