सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: GST परिषद की सिफारिशें बाध्यकारी नहीं

वास्तु एवं सेवा कर (GST)  परिषद और केंद्र-राज्य संबंध के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 20 मई को एक ऐतिहासिक फैसला दिया. जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि GST परिषद की सिफारिशें केंद्र और राज्यों के लिए बाध्यकारी नहीं हैं. कोर्ट ने केंद्र सरकार की इस दलील को अस्वीकार कर दिया कि GST परिषद की सिफारिशें विधायिका और कार्यपालिका के लिए बाध्यकारी हैं.

न्यायालय ने गुजरात हाई कोर्ट के एक फैसले को बरकरार रखते हुए यह निर्णय दिया. दरअसल, हाई कोर्ट ने फैसला दिया था कि समुद्री माल ढुलाई पर एकीकृत जीएसटी असंवैधानिक है.

मुख्य बिंदु

  • कोर्ट ने कहा कि GST परिषद सिर्फ अप्रत्यक्ष कर प्रणाली तक सीमित एक संवैधानिक निकाय नहीं है, बल्कि संघवाद और लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बिंदु भी है.
  • सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह भी कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों के पास GST पर कानून बनाने की शक्तियां हैं लेकिन परिषद को एक व्यावहारिक समाधान प्राप्त करने के लिए सामंजस्यपूर्ण तरीके से काम करना चाहिए.
  • न्यायालय कहा कि अनुच्छेद 246A के मुताबिक संसद और राज्य विधायिका के पास कराधान के मामलों पर कानून बनाने की एक समान शक्तियां हैं. वहीं अनुच्छेद 279 कहता है कि केंद्र और राज्य एक-दूसरे से स्वतंत्र रहते हुए काम नहीं कर सकते.

जीएसटी परिषद: एक दृष्टि

  • देश में GST लागू करने के लिए भारतीय संविधान में 101वां संशोधन (122वां संशोधन विधेयक) किया गया था. GST और जीएसटी परिषद से संबंधित प्रावधान अनुच्छेद 279-A में दिए गये हैं. इस अनुच्छेद के अनुसार जीएसटी महत्वपूर्ण मुद्दों पर केंद्र और राज्यों के लिए सिफारिशें करेगा.
  • देश के वित्त मंत्री को जीएसटी परिषद के पदेन अध्यक्ष होते हैं. इस परिषद में सभी राज्य और संघ शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि होते हैं. GST परिषद में केंद्र का एक तिहाई मत होता है. जबकि दो तिहाई मत राज्यों का होता है. किसी भी सहमति पर पहुंचने के लिए तीन चौथाई बहुमत जरूरी होता है.