स्पेसएक्स द्वारा प्रक्षेपित 40 स्टारलिंक सैटेलाइट, सौर तूफान के कारण नष्ट

स्पेसएक्स द्वारा प्रक्षेपित 40 स्टारलिंक सैटेलाइट, सौर तूफान (जियोमैग्नेटिक) के कारण नष्ट हो गए हैं. स्पेसएक्स ने 4 फरवरी को 49 स्टारलिंक सैटेलाइट का प्रक्षेपण किया था जिनमें 40 उपग्रह वातावरण में पुन: प्रवेश करके जल गए हैं. स्पेसएक्स, अमेरिकी उद्योगपति एलोन मस्क (Elon Musk) की कंपनी है.

मुख्य बिंदु

ये 40 स्टारलिंक सैटेलाइट सौर तूफान (जियोमैग्नेटिक) के कारण वातावरण में (निचली कक्षा में धरती से 210 किलोमीटर दूर) पुन: प्रवेश करके नष्ट हुए हैं. यह भू-चुंबकीय तूफान 10 फरवरी को आया था.

सौर तूफान के चलते स्टारलिंक उपग्रहों पर खिंचाव बढ़ गया और वे प्रभावी रूप से नष्ट हो गए. इस खिंचाव को कम करने के लिए तकनीकी रूप से कई कोशिशें की गईं लेकिन यह इतना तेज था कि उपग्रह एक उच्च और अधिक स्थिर कक्षा में जाने में नाकाम रहे.

स्पेसएक्स के पास अब भी करीब 2,000 स्टारलिंक उपग्रह हैं, जो पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हैं और दुनिया के दूरदराज के हिस्सों में इंटरनेट सेवा प्रदान कर रहे हैं. वे 550 किलोमीटर से अधिक की दूरी पर पृथ्वी का चक्कर लगाते हैं.

धरती को खतरा नहीं

प्रक्षेपण के करने वाली कंपनी स्पेसएक्स के अनुसार नष्ट हुए उपग्रहों से धरती को फिलहाल कोई खतरा नहीं है. इन उपग्रहों को इस तरह तैयार किया गया था कि किसी खतरे में ये धरती के वातावरण में दोबारा आकर राख बन जाएं.

क्या है सौर तूफान?

भू-चुंबकीय (जियोमैग्नेटिक) तूफान सूर्य में होने वाले विस्फोटों के चलते उससे निकलने वाली ऊर्जा होते हैं, जिसका असर जीपीएस, सैटेलाइट कम्युनिकेशंस और रेडियो पर पड़ता है. ऐसे तूफान जीपीएस नेविगेशन प्रणाली और हाई-फ्रीक्वेंसी रेडियो कम्युनिकेशंस को भी प्रभावित करते हैं. इनसे हवाई सेवा, पावर ग्रिड्स व स्पेस एक्सप्लोरेशन प्रोग्राम्स को भी खतरा होता है.

गगनयान के लिए क्रायोजेनिक इंजन का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने हाल ही में अन्तरिक्ष में मानव भेजने के मिशन ‘गगनयान’ के लिए क्रायोजेनिक इंजन की क्षमता सफलतापूर्वक परीक्षा किया था. यह परीक्षण तमिलनाडु के महेंद्रगिरि में इसरो प्रोपल्शन कॉम्प्लेक्स में किया गया था.

गगनयान मिशन के लिए क्रायोजेनिक इंजन की क्षमता के लिए कई और परीक्षण किया जाना है. यह परीक्षण गगनयान के लिए क्रायोजेनिक इंजन की विश्वसनीयता और मजबूती सुनिश्चित करता है.

गगनयान मिशन

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अन्तरिक्ष में मानव भेजने के गगनयान मिशन की योजना बनाई है. इस मिशन के तहत दो मानव रहित उड़ानें और एक मानव सहित अंतरिक्ष उड़ान संचालित किया जायेगा. मानव सहित अंतरिक्ष उड़ान में एक महिला सहित तीन भारतीय अंतरिक्ष यात्री होंगे. गगनयान पृथ्वी से 300-400 किमी की ऊंचाई पर पृथ्वी की निचली कक्षा में 5-7 दिनों तक पृथ्वी का चक्कर लगाएगा.

पहली बार मानव में सूअर के हृदय का सफलतापूर्वक प्रत्यारोपण किया गया

पहली बार मानव में सूअर के हृदय का सफलतापूर्वक प्रत्यारोपण किया गया है. यह प्रत्यारोपण अमेरिका के यूनिवर्सिटी आफ मैरीलैंड मेडिकल स्कूल के शल्य चिकित्सक डॉ. बार्टले ग्रिफिथ ने की. इस प्रत्यारोपण में 57 साल के एक व्यक्ति में आनुवंशिक रूप से परिवर्तित एक सूअर का दिल प्रत्यारोपण किया गया.

अमेरिका के दवा नियामक (FDA) ने इस सर्जरी के लिए 31 दिसम्बर 2021 को मंजूरी दी थी. सूअर के दिल के प्रत्यारोपण की यह आपात मंजूरी 57 साल के पीड़ित व्यक्ति डेविड बेनेट की जान बचाने के लिए अंतिम उपाय के रूप में दी गयी थी.

इस प्रत्यारोपण से हृदय की गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लाखों लोग के दिल के प्रत्यारोपण का नया रास्ता खुल गया है. यह शल्य चिकित्सा पशुओं के अंगों के इंसान में प्रत्यारोपण की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी.

बेनेट का परंपरागत रूप से होने वाले हृदय प्रत्यारोपण नहीं हो सकता था, इसलिए अमेरिकी चिकित्सकों ने यह बड़ा फैसला लेकर सूअर का दिल प्रत्यारोपित कर दिया.

देश के पहले ‘क्वांटम कंप्यूटर सिम्युलेटर टूलकिट’ लांच किया गया

भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने स्वदेश विकसित देश के पहले ‘क्वांटम कंप्यूटर सिम्युलेटर (QSim) टूलकिट’ लांच किया है. इसका विकास IIT रुड़की, IISC बंगलूरू और सी-डैक की साझा पहल से किया गया है.

QSim: मुख्य बिंदु

QSim (Quantum Computer Simulator) पहला स्वदेशी टूलकिट है. इससे प्रोग्रामिंग के व्यावहारिक पहलुओं को सीखने और समझने में मदद मिलेगी. इसे भारत में क्वांटम कंप्यूटिंग अनुसंधान के नए युग की शुरुआत माना जा रहा है. साथ ही शोधकर्ताओं और छात्रों को कम खर्च पर क्वांटम कंप्यूटिंग में बेहतर शोध करने का अवसर मिलेगा.

क्वांटम कंप्यूटिंग से क्रिप्टोग्राफी, कंप्यूटेशनल केमिस्ट्री और मशीन लर्निंग जैसे क्षेत्रों में कंप्यूटिंग पावर में कई गुनी वृद्धि की संभावना है.

लडाकू विमानों को दुश्‍मन के राडारों से सुरक्षित रखने के लिए कैफ टैक्‍नोलोजी विकसित

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने भारतीय वायु सेना के लडाकू विमानों को दुश्‍मन के राडारों से सुरक्षित रखने संबंधी एक उन्‍नत प्रौद्योगिकी– कैफ टैक्‍नोलोजी (advanced chaff technology) विकसित की है. भारतीय वायु सेना ने सफलतापूर्वक प्रयोग के बाद इस प्रौद्योगिकी के उपयोग की प्रक्रिया शुरू कर दी है.

इससे संबंधित उपकरणों के उत्‍पादन के लिए यह प्रौद्योगिकी उद्योगों को दी गई है ताकि भारतीय वायु सेना की वार्षिक मांग को पूरा किया जा सके.

कैफ प्रौद्योगिकी (chaff technology) क्या है?

यह एक तकनीक है जिसका का उपयोग दुनिया भर में सेना द्वारा लड़ाकू जेट या नौसेना के जहाजों को दुश्मन के मिसाइलों से बचाने के लिए किया जाता है. यह रडार और रेडियो फ्रीक्वेंसी (RF) को अबरुद्ध कर किया जाता है. कैफ टैक्‍नोलोजी दुश्मन के राडार को गलत जानकारी देकर दुश्मन के मिसाइलों को विक्षेपित करता है.

जेफ बेजोस ने अपनी अंतरिक्ष यात्रा पूरी की

दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति जेफ बेजोस (Jeff Bezos) ने 20 जुलाई को अपनी अंतरिक्ष यात्रा पूरी की. वह सिर्फ 11 मिनट के भीतर अंतरिक्ष की यात्रा कर धरती पर लौट आए. उनके साथ 3 और यात्री थे. इनमें एक उनके भाई मार्क, 82 साल की वैली फंक और 18 साल के ओलिवर डेमेन शामिल थे.

मुख्य बिंदु

  • जेफ बेजोस ने यह अंतरिक्ष यात्रा अपनी स्पेस कंपनी ‘ब्लू ओरिजिन’ (Blue Origin) के स्पेसशिप ‘न्यू शेपर्ड’ (New Shepard) और कैप्सूल के माध्यम से की. यह न्यू शेपर्ड रॉकेट की कुल 16वीं उड़ान और अंतरिक्ष यात्रियों के साथ पहली उड़ान थी. न्यू शेपर्ड पूरी तरह स्वचालित रॉकेट विमान है, जिसे भीतर से नहीं चलाया जा सकता.
  • ‘न्यू शेपर्ड’ स्पेसशिप को बनाने में भारतीय संजल गावंडे ने अहम भूमिका निभाई है. 30 वर्षीय संजल गावंडे महाराष्ट्र के एक छोटे से शहर कल्याण की रहने वाली हैं.
  • जेफ बेजोस अमेजन संस्थापक हैं. वह दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति हैं. जेफ बेजोस की कुल दौलत 206 बिलियन डॉलर के करीब है.
  • 11 जुलाई को अमेरिकी अंतरक्षि यान कंपनी वर्जिन गैलेक्टिक (Virgin Galactic) के रिचर्ड ब्रेनसन सहित छह लोगों ने अंतरिक्ष की यात्रा की थी. इन्हीं छह लोगों में भारतीय मूल की सिरिशा बांदला का नाम भी शामिल था.

नासा ने शुक्र ग्रह के वातावरण की जांच करने के लिए दो नए मिशन की घोषणा की

अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा शुक्र ग्रह के वातावरण और भूगर्भीय विशेषताओं की जांच करने के लिए दो नए मिशन भेजने की घोषणा की है. पहले मिशन का नाम ‘डेवेंसी प्‍लस’ (Davinci Plus) और दूसरा मिशन का नाम ‘वेरिटास’ (Veritas) है. 2028 और 2030 के बीच भेजे जाने वाले इन दोनों मिशन पर पचास करोड़ डॉलर का खर्च आयेगा.

नासा का शुक्र ग्रह पर मिशन: मुख्य बिंदु

  • 30 वर्ष से अधिक समयावधि के बाद शुक्र ग्रह पर दो नये अंतरिक्ष यान भेजे जा रहे हैं. शुक्र ग्रह पर अंतिम बार 1990 में मैगलन ऑर्बिटर भेजा गया था.
  • शुक्र सौरमंडल का सबसे गर्म ग्रह है जिसकी सतह का तापमान 500 डिग्री सेल्सियस है. यह तापमान सीसा पिघलाने के लिए पर्याप्त माना जाता है.
  • डेविंसी प्‍लस मिशन के जरिए ग्रह के वायुमंडल को मापकर यह पता लगाया जायेगा कि शुक्र ग्रह कैसे बना और विकसित हुआ. इसका उद्देश्य यह निर्धारित करना भी होगा कि क्या शुक्र के पास कभी महासागर था.
  • डेवेंसी प्‍लस मिशन के जरिए शुक्र ग्रह के भू-वैज्ञानिक विशेषताओं युक्‍त पहली उच्च रिज़ॉल्यूशन तस्‍वीरें मिलने की उम्मीद है.
  • दूसरा मिशन, वेरिटास शुक्र ग्रह भूगर्भीय इतिहास को समझने के लिए ग्रह की सतह का नक्शा तैयार करेगा और यह जांच करेगा कि यह पृथ्वी की तुलना में इतना अलग कैसे विकसित हुआ.

भारत में ब्लैक फंगस के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है, जानिए क्या है ब्लैक फंगस

इन दिनों भारत में कोरोना वायरस के साथ ही ब्लैक फंगस के मरीजों की संख्या भी बढ़ती जा रही है. कोविड-19 के साथ-साथ फंगल संक्रमण भी हो सकता है, खासकर उन लोगों को जो पहले से ही गंभीर रोगों से पीड़ित हैं या जिनकी इम्यूनिटी कमजोर है.

ब्लैक फंगस का वैज्ञानिक नाम ‘म्यूकोरमायकोसिस’ है. फिलहाल देश के कई राज्यों में ब्लैक फंगस के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है. एक रिपोर्ट के अनुसार, कोविड ​​​​-19 के साथ-साथ यह फंगल संक्रमण उन लोगों में होता है, जिन्हें मधुमेह या HIV जैसी मौजूदा बीमारियां हैं.

दुर्लभ किस्म की यह बीमारी आंखों में होने पर मरीज की रोशनी के लिए घातक साबित हो रही है. यह शरीर में बहुत तेजी से फैलती है. इस बीमारी से शरीर के कई अंग प्रभावित हो सकते हैं.

ब्लैक फंगस के लक्षण

विशेषज्ञों के मुताबिक ब्लैक फंगस के कारण सिर दर्द, बुखार, आंखों में दर्द, नाक बंद या साइनस के अलावा देखने की क्षमता पर भी असर पड़ता है.

अन्तरिक्ष यान वोयेजर-1 ने अन्तरिक्ष से आती के ध्वनि का पता लगाया

अमेरिकी अन्तरिक्ष एजेंसी (NASA) के अन्तरिक्ष यान (spacecraft) वोयेजर-1 (Voyager-1) ने अन्तरिक्ष से आती से आती भिनभिनाने की ध्वनि (humming sound) का पता लगाया है. इस ध्वनि का पता वोयेजर के प्लाज्मा वेव सिस्टम इंस्ट्रूमेंट द्वारा पता लगाया गया है.

वैज्ञानिकों ने इसे तारे के बीच अन्तरिक्ष (interstellar space) में थोड़े मात्रा में गैस की मौजूदगी के कारण बताया है. इस आवाज को “प्लाज्मा वेव परसिस्‌टन्‍ट्‌” (persistent plasma waves) नाम दिया गया है. यह ध्वनि तब सुनी गयी जब वोयेजर-1 ने हेलियोस्फीयर से बाहर निकलकर इंटरस्टेलर स्पेस में प्रवेश किया.

वोयेजर-1 (Voyager-1) क्या है?

वोयेजर-1 (Voyager-1), अमेरिकी अन्तरिक्ष एजेंसी (NASA) का एक अन्तरिक्ष यान (spacecraft) है, जिसे 1977 में प्रक्षेपित किया गया था. इसे बाहरी सौर मंडल और रास्ते में आने वाले शनि और बृहस्पति जैसे ग्रहों का अध्ययन करने के लिए भेजा गया था. वोयेजर-1 अन्तरिक्ष यान 44 वर्षों से लगातार सेवा कर रहा है.

NASA के इन्जेन्यूटी हेलिकॉप्टर ने मंगल पर कई सफल उड़ानें पूरी की

अमेरिका की स्पेस एजेंसी (NASA) के हेलिकॉप्टर इन्जेन्यूटी (Ingenuity) ने मंगल ग्रह पर अब तक कई सफल उड़ानें पूरी कर ली हैं. NASA ने मंगल ग्रह के अध्ययन के लिए इन्जेन्यूटी हेलिकॉप्टर और परसेवरांस रोवर (Perseverance rover) के हाल ही में भेजा था.

NASA ने मंगल पर इन्जेन्यूटी हेलिकॉप्टर के उड़ान का हाल ही में विडियो जारी किया है. यह विडियो मंगल गृह की सतह से परसेवरांस रोवर (Perseverance rover) द्वारा रिकॉर्ड किया गया है. तीन मिनट के इस में जेजेरो क्रेटर (Jezero crater) में बहने वाली हवाओं को दिखाया गया है. परसेवरांस रोवर ने मंगल ग्रह के जेजेरो क्रेटर पर लैंडिंग की थी.

हेलिकॉप्टर इन्जेन्यूटी ने अपनी पांचवी उड़ान (फ्लाइट) के दौरान मंगल ग्रह के करीब 10 मीटर की ऊंचाई तक पहुंचा. इस हेलिकॉप्टर ने मंगल पर लैंड होने से पहले हाई-रेजॉलूशन तस्वीरें भी लीं.

चौथी फ्लाइट के दौरान NASA को हेलिकॉप्टर की आवाज भी सुनाई दी. यह आवाज थी इन्जेन्यूटी के रोटर ब्लेड्स की थी. यह 262 फीट दूर खड़े परसेवरांस रोवर से रिकॉर्ड की हुई थी. पृथ्वी के बाद ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी ग्रह पर आवाज रिकॉर्ड की गयी हो.

नासा का मार्स मिशन (Mars Mission) 2020

अमेरिकी अन्तरिक्ष एजेंसी (NASA) ने मंगल ग्रह के अध्ययन के लिए जुलाई 2020 में मार्स मिशन (Mars Mission) 2020 शुरू की थी. इस मिशन में नासा ने इन्जेन्यूटी हेलिकॉप्टर और परसेवरांस रोवर (Perseverance rover) को मंगल गृह पर भेजा था. इस मिशन को ‘एटलस वी लॉन्च वाहन’ (Atlas V Launch Vehicle) से प्रक्षेपित किया गया था.

NASA के पार्कर सोलर प्रोब ने पहली बार शुक्र ग्रह से आ रही आवाज रिकॉर्ड की

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के पार्कर सोलर प्रोब ने शुक्र ग्रह से आ रही आवाज और रेडियो सिग्नल को रिकॉर्ड किया है. यह आवाज शुक्र के ऊपरी वातावरण से आ रही थी.

नासा ने पार्कर सोलर प्रोब को सूरज का अध्ययन करने के लिए भेजा था. सूरज की परिक्रमा करते हुए जब यह प्रोब शुक्र के ऊपर से गुजरा तो उसने इस भयंकर आवाज को सुना.

पार्कर सोलर प्रोब ने इस आवाज को शुक्र के करीब से तीसरी बार उड़ने के दौरान 11 जुलाई 2020 को रिकॉर्ड किया था. उस समय पार्कर प्रोब और शुक्र के बीच की दूरी मात्र 832 किलोमीटर ही थी. इससे पहले भी पार्कर प्रोब ने शुक्र के करीब से दो बार उड़ान भरी थी, लेकिन इतनी नजदीकी से कभी भी नहीं गुजरा था.

पार्कर सोलर प्रोब: एक दृष्टि

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने ‘पार्कर सोलर प्रोब’ अंतरिक्षयान को सूरज के बाहरी कोरोना के बारे में अध्ययन करने के लिए 2018 में लॉन्च किया था. इस प्रोब को नासा का ‘गोडार्ड स्पेस सेंटर’ संचालित कर रहा है.

यह प्रोब हर चक्कर के दौरान सूरज के नजदीक जाने की कोशिश कर रहा है. 2025 तक इस प्रोब को सूरज के 4.3 मिलियन मील की दूरी तक पहुंचाने का प्लान है. अगर इस प्रोब ने सूरज की गर्मी को बर्दाश्त कर लिया तो इसे और नजदीक तक पहुंचाया जाएगा.

शुक्र ग्रह

धरती की जुड़वा बहन कहे जाने वाले शुक्र ग्रह से आ रहे प्राकृतिक रेडियो सिग्नल से मिली आवाज की जांच से इस ग्रह के वातावरण के बारे में और अधिक जानकारी मिल सकती है. शुक्र को सौर मंडल का सबसे गर्म ग्रह माना जाता है क्योंकि सूरज से अधिक नजदीक होने के कारण बुध का वायुमंडल नष्ट हो चुका है. जिस कारण वह उष्मा को अवशोषित नहीं कर पाता है.

नासा के अनुसार, पृथ्वी और शुक्र दोनों जुड़वा दुनिया हैं. ये दोनों ग्रह पहाड़ी, समान आकार और संरचना के हैं. लेकिन, दोनों का रास्ता शुरू से ही अलग है. शुक्र में एक चुंबकीय क्षेत्र की कमी होती है. इसकी सतह का तापमान इतना ज्यादा होता है कि सीसा भी पिघल जाए. इस ग्रह का अध्ययन करने के लिए भेजा गया स्पेसक्राफ्ट भी गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पाता है.

मेघालय में 10 करोड़ साल पहले के सॉरोपॉड डायनासोर की हड्डियों के जीवाश्म मिले

मेघालय के पश्चिम खासी हिल्स जिले के पास सॉरोपॉड डायनासोर की हड्डियों के जीवाश्म मिले हैं. यह अनुमानत: करीब 10 करोड़ साल पुराना है.

यह अनुसन्धान भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) के पूर्वोत्तर स्थित जीवाश्म विज्ञान प्रभाग के अनुसंधानकर्ताओं ने कियाहै. GSI अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार यह टाइटैनोसॉरियाई मूल के सॉयरोपॉड के अवशेष हैं.

सॉरोपॉड की लंबी गर्दन, लंबी पूंछ, शरीर के बाकी हिस्से की तुलना में छोटा सिर, चार मोटी एवं खंभे जैसी टांग होती हैं. गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के बाद मेघालय भारत का पांचवां राज्य और पहला पूर्वोत्तर राज्य है जहां टाइटैनोसॉरियन मूल के सॉरोपोड की हड्डियां मिली हैं.

डायनासोर

एक अनुमान के अनुसार पृथ्वी की जलवायु परिवर्तन के कारण डायनासोर विलुप्त हो गये. भारत में पाए जाने वाले डायनासोरों में से, बारापासॉरस (Barapasaurus) सबसे बड़ा था. यह चार मीटर ऊँचा और 24 मीटर लंबा था. सबसे खतरनाक टायरानोसॉरस रेक्स (Tyrannosaurus rex) था.