रूस ने जानवरों के लिए कोरोना वायरस के खिलाफ दुनिया का पहला वैक्सीन (टीका) विकसित किया है. जानवरों के लिए बनाई गई इस वैक्सीन का नाम ‘कार्निवैक-कोव’ (Carnivac-Cov) है.
जानवरों के लिए कोरोना वैक्सीन कार्निवैक-कोव (Carnivac-Cov) वैक्सीन रूस में पशु चिकित्सा और फाइटोसैनिटरी निगरानी के लिए एक संघीय सेवा रोसेलखोज़नाज़ोर (Rosselkhoznadzor) द्वारा विकसित किया गया है. इस वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल अक्टूबर 2020 में शुरू हुआ था. इसमें कुत्तों, बिल्लियों, आर्कटिक लोमड़ियों, मिंक, लोमड़ियों और अन्य जानवरों को शामिल किया गया था.
ट्रायल के परिणाम में यह बात सामने आई कि वैक्सीन जानवरों के लिए हानिरहित और अत्यधिक प्रतिरक्षात्मक है. जितने जानवरों को टीका लगाया गया था उन सब में कोरोना वायरस के लिए एंटीबॉडी विकसित हुई. टीकाकरण के बाद प्रतिरक्षण छह महीने तक रहता है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2021-05-03 21:49:442021-05-03 21:49:44रूस ने जानवरों के लिए कोरोना वायरस के खिलाफ दुनिया का पहला टीका विकसित किया
भारतीय वैज्ञानिकों ने सोयाबीन की एक अधिक उपज देने वाली और कीट प्रतिरोधी किस्म विकसित की है. MACS-1407 नाम की यह नई किस्म असम, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पूर्वोत्तर राज्यों में खेती के लिए उपयुक्त. इसके बीज वर्ष 2022 के खरीफ के मौसम के दौरान किसानों को बुवाई के लिए उपलब्ध कराये जायेंगे.
सोयाबीन की नई किस्म MACS-1407 का विकास अग्रहार रिसर्च इंस्टीट्यूट (ARI), पुणे के वैज्ञानिकों ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), नई दिल्ली के सहयोग से किया है. ARI, भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (MACS) के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान है.
MACS-1407 का विकास पारंपरिक क्रॉस ब्रीडिंग तकनीक का उपयोग करके किया है, जो कि प्रति हेक्टेयर में लगभग 39 क्विंटल का पैदावार देते हुए इसे एक अधिक उपज देने वाली किस्म बनाता है. यह गर्डल बीटल, लीफ माइनर, लीफ रोलर, स्टेम फ्लाई, एफिड्स, व्हाइट फ्लाई और डिफोलिएटर जैसे प्रमुख कीट-पतंगों का प्रतिरोधी भी है. यह पूर्वोत्तर भारत की वर्षा आधारित परिस्थितियों के लिए उपयुक्त है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2021-05-01 21:26:152021-05-03 21:47:37भारतीय वैज्ञानिकों ने सोयाबीन की अधिक उपज देने किस्म MACS-1407 विकसित की
भारत के प्रस्तावित पहला सौर मिशन ‘आदित्य एल-1’ (Aditya L-1 Mission) से प्राप्त होने वाले आंकड़ों को एक वेब इंटरफेस पर जमा करने के लिए एक कम्युनिटी सर्विस सेंटर की स्थापना की गई है. इस सेंटर का नाम ‘आदित्य L1 सपोर्ट सेल’ (AL1SC) दिया गया है. इसकी स्थापना उत्तराखंड स्थित हल्द्वानी में किया गया है.
आदित्य L1 सपोर्ट सेल (AL1SC): मुख्य बिंदु
इस सेंटर को भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (ISRO) और भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंस (ARIES) ने मिलकर बनाया है.
सपोर्ट सेल ‘AL1SC’ की स्थापना का उद्देश्य भारत के प्रस्तावित पहले सौर अंतरिक्ष मिशन आदित्य L1 (Aditya-L1) से मिलने वाले सभी वैज्ञानिक विवरणों और आंकड़ों का अधिकतम विश्लेषण करना है. इस केंद्र का उपयोग अतिथि पर्यवेक्षकों (गेस्ट ऑब्जर्वर) द्वारा किया जा सकेगा. यह विश्व के प्रत्येक इच्छुक व्यक्ति को आंकड़ों का वैज्ञानिक विश्लेषण करने की छूट देगा.
AL1SC की स्थापना ARIES के उत्तराखंड स्थित हल्द्वानी परिसर में किया गया है, जो इसरो के साथ संयुक्त रूप काम करेगा.
यह केंद्र दुनिया की अन्य अंतरिक्ष वेधशालाओं से भी जुड़ेगा. सौर मिशन से जुड़े आंकड़े उपलब्ध कराएगा, जो आदित्य L1 से प्राप्त होने वाले विवरण में मदद कर सकते हैं.
भारत का प्रस्तावित सौर मिशन ‘आदित्य एल-1’
‘आदित्य एल-1’ (Aditya-L1) भारत का प्रस्तावित पहला सौर मिशन है. इसरो (ISRO) ने अगले वर्ष (2022 में) इस मिशन को प्रक्षेपित करने की योजना बनायी है.
इसरो द्वारा आदित्य L-1 को 400 किलो-वर्ग के उपग्रह के रूप में वर्गीकृत किया है जिसे ‘ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान-XL’ (PSLV- XL) से प्रक्षेपित (लॉन्च) किया जाएगा.
आदित्य L-1 को सूर्य एवं पृथ्वी के बीच स्थित एल-1 लग्रांज/ लेग्रांजी बिंदु (Lagrangian point) के निकट स्थापित किया जाएगा. आदित्य L-1 का उद्देश्य ‘सन-अर्थ लैग्रैनियन प्वाइंट 1’ (L-1) की कक्षा से सूर्य का अध्ययन करना है.
यह मिशन सूर्य का नज़दीक से निरीक्षण करेगा और इसके वातावरण तथा चुंबकीय क्षेत्र के बारे में अध्ययन करेगा. आदित्य L-1 को सौर प्रभामंडल के अध्ययन हेतु बनाया गया है. सूर्य की बाहरी परतों, जोकि डिस्क (फोटोस्फियर) के ऊपर हजारों किमी तक फैला है, को प्रभामंडल कहा जाता है.
प्रभामंडल का तापमान मिलियन डिग्री केल्विन से भी अधिक है. सौर भौतिकी में अब तक इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पाया है कि प्रभामंडल का तापमान इतना अधिक क्यों होता है.
आदित्य L-1 देश का पहला सौर कॅरोनोग्राफ उपग्रह होगा. यह उपग्रह सौर कॅरोना के अत्यधिक गर्म होने, सौर हवाओं की गति बढ़ने तथा कॅरोनल मास इंजेक्शंस (CMES) से जुड़ी भौतिक प्रक्रियाओं को समझने में मदद करेगा.
लग्रांज/लेग्रांजी बिंदु क्या होता है?
सूर्य के केंद्र से पृथ्वी के केंद्र तक एक सरल रेखा खींचने पर जहां सूर्य और पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल बराबर होते हैं, वह लग्रांज बिंदु (Lagrangian point) कहलाता है.
लग्रांज बिंदु पर सूर्य और पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल समान रूप से लगने से दोनों का प्रभाव बराबर हो जाता है. इस स्थिति में वस्तु को ना तो सूर्य अपनी ओर खींच पाएगा, ना पृथ्वी अपनी ओर खींच सकेगी और वस्तु अधर में लटकी रहेगी.
भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO): एक दृष्टि
भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान है. इसकी स्थापना वर्ष 1969 में की गई थी. इस संस्थान का प्रमुख काम उपग्रहों का निर्माण करना और अंतरिक्ष उपकरणों के विकास में सहायता प्रदान करना है.
आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंस (ARIES)
‘आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंस’ (ARIES), भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा संचालित एक स्वायत्त संस्थान है. यह संस्थान उत्तराखंड की मनोरा पीक (नैनीताल) में स्थित है. इसकी स्थापना 20 अप्रैल, 1954 को की गई थी. इस संस्थान के कार्यक्षेत्र खगोल विज्ञान, सौर भौतिकी और वायुमंडलीय विज्ञान इत्यादि हैं.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2021-04-28 23:55:082021-04-29 09:17:25भारत के प्रस्तावित सौर मिशन ‘आदित्य एल-1’ के लिए सपोर्ट सेल ‘AL1SC’ की स्थापना की गयी
भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने सिंगल क्रिस्टल ब्लेड प्रौद्योगिकी (Single Crystal Blade Technology) विकसित की है. यह प्रौद्योगिकी ज्यादा गर्मी में भी इंजन को सुरक्षित रखते हैं. भारत इस प्रौद्योगिकी को विकसित करने वाला विश्व का पांचवां देश है. इससे पहले अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस के पास ही यह तकनीक थी.
सिंगल क्रिस्टल ब्लेड प्रौद्योगिकी: मुख्य बिंदु
सिंगल क्रिस्टल ब्लेड प्रौद्योगिकी से छोटे और ज्यादा शक्तिशाली इंजनों का निर्माण किया जा सकेगा. ये ब्लेड्स इंजन को ज्यादा गर्मी में भी सुरक्षित रखते हैं. ये ब्लेड्स 1500 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सहन कर सकते हैं.
इस ब्लेड को DRDO की प्रीमियम प्रयोगशाला डिफेंस मेटालर्जिकल रिसर्च लेबोरेटरी (DMRL) ने बनाया है. इसमें निकल-आधारित उत्कृष्ट मिश्रित धातु (CMSX-4) का उपयोग किया गया है. सिंगल क्रिस्टल उच्च दबाव वाले टरबाइन (HPT) ब्लेड के पांच सेट (300 ब्लेड) विकसित किए जा रहे हैं.
DRDO ने इनमें से 60 ब्लेड की आपूर्ति हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) को हेलिकॉप्टर इंजन एप्लीकेशन (Helicopter) के लिए दिया है. HAL इस समय स्वदेशी हेलीकॉप्टर विकास कार्यक्रम के तहत हेलिकॉप्टर बना रहा है. जिसमें इस क्रिस्टल ब्लेड का उपयोग किया जाएगा.
रणनीतिक व रक्षा एप्लीकेशन्स में इस्तेमाल किए जाने वाले हेलिकाप्टरों को चरम स्थितियों में अपने विश्वसनीय संचालन के लिए कॉम्पैक्ट तथा शक्तिशाली एयरो-इंजन की आवश्यकता होती है. इसके लिए जटिल आकार वाले अत्याधुनिक सिंगल क्रिस्टल ब्लेड काम आते हैं. ये मिशन के दौरान उच्च तापमान सहन करने में सक्षम होता है.
रक्षा अनुसन्धान व विकास संगठन (DRDO): एक दृष्टि
रक्षा अनुसन्धान व विकास संगठन (DRDO), भारत की रक्षा से जुड़े अनुसंधान कार्यों के लिये देश की अग्रणी संस्था है. इस संस्थान की स्थापना 1958 में भारतीय थल सेना एवं रक्षा विज्ञान संस्थान के तकनीकी विभाग के रूप में की गयी थी. इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है. डॉ जी सतीश रेड्डी DRDO के वर्तमान चेयरमैन हैं.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2021-04-28 23:55:072021-04-29 09:17:12भारत सिंगल क्रिस्टल ब्लेड प्रौद्योगिकी को विकसित करने वाला विश्व का पांचवां देश बना
मछलियों में होने वाली ‘वायरल नर्वस नेक्रोसिस’ (Viral Nervous Necrosis) बीमारी के लिए भारत में पहली बार एक स्वदेशी टीका (वैक्सीन) विकसित किया गया है. इस टीके का विकास चेन्नई स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रैकिश एक्वाकल्चर (Central Institute of Brackish Aquaculture) ने किया है. इस टीके का नाम नोडावैक-आर (Nodavac-R) है.
‘वायरल नर्वस नेक्रोसिस’ (VNN) बीमारी बीटानोडै-वायरस (Betanoda-virus) के कारण होती है. यह बीमारी मछलियों के 40 से अधिक प्रजातियों को प्रभावित करती है, उनमें से ज्यादातर समुद्री प्रजातियां हैं. यह ज्यादातर टेलीस्ट मछली (teleost fish) को प्रभावित करता है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2021-04-28 18:05:392021-04-30 18:22:32मछलियों में होने वाली ‘वायरल नर्वस नेक्रोसिस’ बीमारी के लिए भारत में एक स्वदेशी टीका विकसित
दिग्गज टेक कंपनी ‘माइक्रोसॉफ्ट’ और ब्रिटेन के ‘मेट ऑफिस’ मिलकर दुनिया के सबसे शक्तिशाली सुपर कंप्यूटर के निर्माण की घोषणा की है. यह सुपर कंप्यूटर मौसम और जलवायु-परिवर्तन से संबंधित पूर्वानुमान के लिये होगा.
इस सुपर कंप्यूटर के वर्ष 2022 तक परिचालन शुरू कर देने का अनुमान है. इसके माध्यम से गंभीर मौसम घटनाओं की सटीक पूर्वानुमान और चेतावनी जारी की जा सकेगी, जिससे आम लोगों को ब्रिटेन में लगातार बढ़ रहे तूफान, बाढ़ और बर्फ के प्रभाव से बचाने में मदद मिलेगी.
यह सुपर कंप्यूटर नवीकरणीय ऊर्जा से चलेगा जिससे एक वर्ष में 7,415 टन कार्बन डाइऑक्साइड को बचाने में मदद मिलेगी. इसमें 5 मिलियन से अधिक प्रोसेसर कोर होंगे जो प्रति सेकंड 60 क्वाड्रिलियन गणना करने में सक्षम होगा.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2021-04-27 21:10:102021-04-29 09:15:03जलवायु परिवर्तन के लिये सबसे शक्तिशाली सुपर कंप्यूटर
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 13 मार्च को अपने साउंडिंग रॉकेट RH-560 का परीक्षण किया था. यह परीक्षण आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा परीक्षण केंद्र से किया गया था.
इसरो के साउंडिंग रॉकेट की मदद से इसरो वायुमंडल में मौजूद तटस्थ हवाओं में ऊंचाई पर होने वाले बदलावों और प्लाज्मा की गतिशीलता का अध्यन किया जाएगा. यह रॉकेट हवाओं में व्यवहारिक बदलाव और प्लाज्मा गतिशीलता पर अध्यन की दिशा में नए आयाम स्थापित करेगा.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2021-03-14 16:32:212021-03-15 16:38:03ISRO ने साउंडिंग रॉकेट RH-560 का परीक्षण किया, हवाओं के बदलाव से जुड़े अध्ययन में मदद करेगा
ब्रिटेन के डॉक्टरों ने मृत घोषित हो चुके व्यक्तियों के दिल का उपयोग कर 6 बच्चों का सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांट किया है. इसके लिए एक खास किस्म की मशीन का इस्तेमाल किया गया है. ये सभी बच्चे अब पूरी तरह स्वस्थ हैं. इससे पहले हार्ट ट्रांसप्लांट में केवल उन व्यक्तियों के ही हार्ट का उपयोग होता था, जो ब्रेन डेड घोषित होते थे.
ब्रिटेन के नेशनल हेल्थ सर्विस (NHS) के डॉक्टरों ने हार्ट ट्रांसप्लांट की यह तकनीक विकसित की है. इसके लिए NHS ने ‘ऑर्गन केयर सिस्टम’ (Organ care system) मशीन बनाई है.
इस तकनीक का उपयोग करते हुए केंब्रिजशायर के रॉयल पेपवर्थ अस्पताल के डॉक्टरों ने ऑर्गन केयर मशीन के जरिए मृत व्यक्तियों के दिल को जिंदा कर 6 बच्चों के शरीर में धड़कन पैदा कर दी. यह उपलब्धि हासिल करने वाली यह दुनिया की पहली टीम बन गई है.
इस तकनीक से 12 से 16 साल के 6 ऐसे बच्चों को नया जीवन मिला, जो पिछले दो-तीन सालों से अंगदान के रूप में हार्ट मिलने का इंतजार कर रहे थे.
मरणोपरांत हार्ट डोनेट की प्रक्रिया: एक दृष्टि
इस तकनीक के बिकसित हो जाने के बाद अब मरणोपरांत दिल (हार्ट) डोनेट किया जा सकेगा, और लोगों को ट्रांसप्लांट के लिए लंबे समय तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा.
मृत्यु की पुष्टि होते ही डोनर के दिल को तुरंत निकालकर इस मशीन में रखकर 12 घंटे तक जांचा जाता है और उसके बाद ही ट्रांसप्लांट किया जाता है.
डोनर से मिले दिल को जिस मरीज के शरीर में लगाना है, उसके शरीर की आवश्यकतानुसार ऑक्सीजन, पोषक तत्व और उसके ग्रुप का ब्लड इस मशीन में रखे दिल में 24 घंटों तक प्रवाहित किया जाता है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2021-02-24 10:44:322021-02-24 10:44:32पहली बार मृतकों के दिल को मशीन से जिंदा कर 6 बच्चों में ट्रांसप्लांट किया गया
निजी अंतरिक्ष एजेंसी स्पेस एक्स (Space X) ने एक ही रॉकेट से सबसे अधिक उपग्रहों को प्रक्षेपित कर एक नया विश्व कीर्तिमान स्थापित किया है. स्पेस एक्स ने यह कीर्तिमान 25 जनवरी को एक साथ 143 उपग्रहों प्रक्षेपित कर बनाया. यह प्रक्षेपण फ्लोरिडा (अमेरिका) के केप कनेवरल स्पेस फोर्स स्टेशन से ‘Falcon-9’ रॉकेट के माध्यम से किया गया.
ISRO के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ा
इस उपलब्धि के साथ ही स्पेस एक्स ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ा है. ISRO ने फरवरी 2017 में एक ही रॉकेट से 104 उपग्रहों को प्रक्षेपित किया था.
स्पेस एक्स द्वारा प्रक्षेपित 143 उपग्रहों में व्यावसायिक और सरकारी क्यूबसेट, माइक्रोसेट और दस स्टारलिंक उपग्रह शामिल हैं. इन उपग्रहों के प्रक्षेपण से स्पेस एक्स ने 2021 तक समूचे विश्व में ब्रॉडबैंड इंटरनेट सुविधा उपलब्ध कराने का लक्ष्य तय किया है. स्पेस एक्स ने ध्रुवीय कक्षा में उपग्रह प्रक्षेपण के लिए बहुत कम शुल्क लिया है. उसने प्रत्येक उपग्रह के लिए प्रति किलोग्राम 15 हजार डॉलर लिया है.
स्पेस एक्स (Space X): एक दृष्टि
स्पेस एक्स अमेरिका में एक निजी अन्तरिक्ष एजेंसी है. इसकी स्थापना स्पेस एक्स के वर्तमान CEO एलॉन मस्क द्वारा 2002 में की गयी थी. स्पेस एक्स ने फाल्कन रॉकेट्स की श्रृंखला तैयार की है. अंतिरक्ष परिवहन की लागत को कम करने के लिए स्पेस एक्स ने पुनः इस्तेमाल किये जा सकने वाले राकेट निर्मित किये हैं.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2021-01-25 23:55:022021-01-27 12:59:25स्पेस एक्स ने एक ही रॉकेट से सबसे अधिक उपग्रहों को प्रक्षेपित कर नया विश्व कीर्तिमान बनाया
वैज्ञानिकों ने धरती से सबसे दूर स्थित महाविशाल ब्लैक होल (Supermassive Black Hole) की खोज कर ली है. यह 13 अरब प्रकाश वर्ष दूर है. J0313-1806 नाम के ब्लैक होल का द्रव्यमान हमारे सूरज से 1.6 अरब गुना ज्यादा है और इसकी चमक हमारी आकाशगंगा से हजार गुना ज्यादा है.
महाविशाल ब्लैक होल: मुख्य तथ्य
ऐरिजोना यूनिवर्सिटी के एक्सपर्ट्स के मुताबिक यह महाविशाल ब्लैक होल तब पैदा हुआ था जब ब्रह्मांड सिर्फ 67 करोड़ साल पुराना था.
इस महाविशाल ब्लैक होल का शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण आसपास के मटीरियल को अपनी ओर खींच लेता है जिससे उसके आसपास बेहद गर्म मटीरियल की एक डिस्क पैदा हो जाती है. इससे बड़ी मात्रा में ऊर्जा का उत्सर्जन होता है और क्वाजर (Quasar) पैदा होते हैं.
अभी तक माना जाता रहा है कि महाविशाल ब्लैक होल सितारों के क्लस्टर के मरने से पैदा होते हैं. हालांकि, इस ब्लैक होल की खोज और आकार के साथ अब ऐस्ट्रोनॉमर्स का कहना है कि हो सकता है कि एकदम शुरुआती ठंडी हाइड्रोजन गैस के ढहने से ये बने हों.
स्टडी में पाया गया है कि अगर यह महाविशाल ब्लैक होल बिग बैंग के सिर्फ 10 करोड़ साल बाद पैदा हुआ है तो इसे तेजी से बढ़ने के लिए हमारे सूरज के 10 हजार गुना द्रव्यमान की शुरू में जरूरत रही होगी.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2021-01-13 23:10:342021-01-14 11:20:15वैज्ञानिकों ने धरती से सबसे दूर स्थित ब्लैक होल की खोज की
वैज्ञानिकों के अनुसार धरती के घूमने की गति बढ़ रही है. हम सभी जानते हैं कि पृथ्वी 24 घंटे में अपनी धुरी पर एक चक्कर पूरा करती है. इसी कारण हमें दिन और रात का अनुभव होता है. अब यह 24 घंटे से पहले ही अपनी धुरी पर एक चक्कर पूरा कर रही है. वैज्ञानिक इसके करणों की खोज कर रहे हैं. नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी के वैज्ञानिकों के अनुसार, पिछले 50 सालों के दौरान धरती अपनी धुरी पर तेजी से घूमने लगी है.
वैज्ञानिकों को पहली बार पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमने की गति बढ़ने का पता जून 2020 में लगा था. तब से पृथ्वी 24 घंटे में 0.5 मिली सेकंड पहले ही एक चक्कर पूरा कर रही है. उनका कहना है कि इसके कारण हर देश को अपनी घड़ियों में बदलाव करना होगा. यह बदलाव एटॉमिक क्लॉक में करना होगा. विज्ञान की भाषा में इसे लीप सेकंड कहा जाता है. कुल मिलाकर वैज्ञानिकों को निगेटिव लीप सेकंड जोड़ना होगा.
पेरिस स्थित इंटरनेशनल अर्थ रोटेशन सर्विस के वैज्ञानिक पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमने का पिछले 50 साल का रिकॉर्ड की जाँच कर रहे हैं. उनका अनुमान है कि 50 साल का सटीक समय निकालकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि आगे क्या होगा.
पिछले 50 साल में कई बार लीप सेकेंड जोड़े जा चुके हैं. साल 1970 से अब तक 27 लीप सेकेंड जोडे़ गए हैं. पृथ्वी की घूमने की गति में होने वाले बदलाव के कारण ऐसा किया जाता है. आखिरी बार 31 दिसंबर 2016 को लीप सेकेंड जोड़ा गया था. अब, लीप सेकेंड की जगह ‘निगेटिव लीप सेकेंड’ जोड़ने की बात हो रही है.
पृथ्वी के घूमने की गति में परिवर्तन का असर
पृथ्वी के घूमने का असर व्यापक रूप से इन्सानों पर पड़ता है. यह बात महज चंद मिली सेकंड की नहीं है. यह समय गड़बड़ाने से हमारी संचार व्यवस्था में परेशानी आ सकती है. कारण हमारे सैटेलाइट्स और संचार यंत्र सोलर टाइम के अनुसार सेट किये जाते हैं. ये समय तारों, चांद और सूरज के पोजिशन के अनुसार सेट हैं.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2021-01-08 13:57:502021-01-08 13:57:50पृथ्वी के घूमने की गति बढ़ी, 0.5 मिली सेकंड पहले ही एक चक्कर पूरा कर रही है
भारत के स्वदेशी कोविड-19 टीके ‘कोवैक्सीन’ (Covaxin) के तीसरे और अंतिम चरण का परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा हो गया है. यह टीका अंतिम चरण में 13 हजार से अधिक लोगों को दिया गया है. मानव परीक्षणों के तीसरे चरण में कोवैक्सीन को देश भर के लगभग 26 हजार लोगों को दिया जाएगा. पहले दो चरणों में लगभग एक हजार लोगों पर वैक्सीन का परीक्षण किया गया है.
कोवैक्सीन का विकास हैदराबाद स्थित ‘भारत बायोटेक’ और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा किया गया है. भारत बायोटेक ने पहले कहा था कि प्रथम चरण के नैदानिक परीक्षणों से पता चला है कि इस वैक्सीन का मानव पर कोई गंभीर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है और यह कोरोना वायरस के खिलाफ एक मजबूत प्रतिरक्षा पैदा करने में सक्षम पाया गया है.
आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति के लिए आवेदन
कोवैक्सीन विकसित करने वाली कम्पनी भारत बायोटेक ने 8 दिसम्बर को भारतीय औषधि महानियंत्रक (DCGI) से इस टीके के आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति के लिए आवेदन किया है.
कोवैक्सीन से पहले भारत में दो अन्य टीके के आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति मांगी गयी थी. भारत में फाइजर कंपनी ने अपनी वैक्सीन के आपातकालीन उपयोग की अनुमति मांगी थी. इसका विकास अमेरिकी कंपनी फाइजर ने जर्मन दवा कंपनी ‘बायोएनटेक’ (BioNTech) के साथ किया है.
उसके अलावा टीके बनाने वाली दुनिया की सबसे बडी कम्पनी पुणे के ‘सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया’ ने भी ‘कोविशील्ड’ (Covishield) की मंजूरी के लिए आवेदन किया है. कोविशील्ड को ब्रिटेन की दवा कंपनी एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किया गया है.
किसी दवा के आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति तभी दी जाती है जब इस बात के पर्याप्त प्रमाण हों कि वह इलाज के लिए सुरक्षित और प्रभावी है. अंतिम मंजूरी परीक्षणों के पूरा होने और सम्पूर्ण आंकडों के विश्लेषण के बाद ही दी जाती है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2020-12-22 15:51:452021-12-21 21:20:31स्वदेशी कोविड-19 टीके ‘कोवैक्सीन’ के अंतिम चरण का परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा हुआ