फार्मास्युटिकल क्षेत्र का पहला वैश्विक नवाचार शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया

फार्मास्युटिकल क्षेत्र का पहला वैश्विक नवाचार शिखर सम्मेलन 18-19 नवम्बर को आयोजित किया गया था. इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वर्चुअल माध्यम से किया था. इस सम्मेलन में 12 सत्र हुए जिसमें देश-विदेश के 40 से अधिक विशेषज्ञों ने भाग लिया.

सम्मेलन के मुख्य बिंदु

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र बनाने पर जोर दिया है, जो भारत को दवाओं और चिकित्सा उपकरणों के क्षेत्र में अग्रणी बना सके.
  • उन्होंने कहा कि भारतीय फार्मास्‍युटिकल उद्योग देश के आर्थिक विकास का एक प्रमुख घटक है. भारतीय स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र में वर्ष 2014 के बाद से 12 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ है.
  • उन्होंने कहा कि भारतीय स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र द्वारा अर्जित वैश्विक विश्वास की वजह से अब भारत को ‘दुनिया की फार्मेसी’ कहा जाने लगा है.

प्रधानमंत्री ने सिडनी संवाद को सम्‍बोधित किया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सम्मेलन से पहले सिडनी संवाद (Sydney Dialogue) को सम्‍बोधित किया था. अपने संबोधन में उन्होंने सभी लोकतांत्रिक देशों का आह्वान किया कि वे क्रिप्टो-करेंसी के मुद्दे पर संगठित रूप से कार्य करें. उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इसका संचालन गलत हाथों में न जाये अन्यथा युवाओं का भविष्य अंधकारमय हो सकता है.

उन्‍होंने भारत में हो रहे पांच महत्‍वपूर्ण बदलावों को रेखांकित किया. ये बदलाव हैं:

  1. भारत में विश्व के सबसे विस्तृत सार्वजनिक सूचना प्रौदयोगिकी ढांचे का विकास
  2. शासन तथा कल्याणकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने के लिए डिजिटल टेक्‍नोलॉजी का इस्‍तेमाल
  3. स्‍टार्टअप के लिए तेजी से विकसित होता अनुकूल तंत्र
  4. उद्योग और सेवा क्षेत्रों का बडे पैमाने पर डिजिटल रूपांतरण और
  5. टेलीकॉम टेक्‍नोलॉजी में स्‍वेदेशी क्षमता के विकास के लिए निवेश

26वां अंतरराष्ट्रीय जलवायु शिखर सम्मेलन ग्‍लासगो में आयोजित किया गया

जलवायु परिवर्तन से संबंधित 26वां शिखर सम्‍मेलन (कॉप-26) 31 अक्तूबर से 12 नवंबर तक स्‍कॉटलैंड के ग्‍लासगो में आयोजित किया गया था. इसका आयोजन ब्रिटेन और इटली की सह अध्यक्षता में किया गया था जिसमें 120 से अधिक देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने हिस्सा लिया था. सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधत्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया था.

यह सम्‍मेलन धरती के बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने के उपायों पर केन्द्रित था. सम्मेलन में पेरिस जलवायु समझौते को पूरा करने से जुड़े दिशा-निर्देशों को अंतिम रूप दिया गया और जलवायु वित्‍तीय संग्रहण तथा बढ़ते वैश्विक तापमान को नियंत्रित करने से जुड़े तय लक्ष्‍यों पर की रूप रेखा तय गयी.

एक सूर्य, एक विश्‍व, एक ग्रिड

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस सम्मेलन के दौरान ‘एक सूर्य, एक विश्‍व, एक ग्रिड’ (One Sun, One World and One Grid) दृष्टिकोण के तहत ‘ग्लोबल ग्रीन ग्रिड इनिशिएटिव’ का शुभारंभ किया था. इसमें सौर ऊर्जा के लिए एक विश्वव्यापी ग्रिड की कल्पना की गयी है.

प्रधानमंत्री ने कहा कि सौर ऊर्जा पूरी तरह से स्वच्छ और सतत है. चुनौती यह है कि यह ऊर्जा केवल दिन के समय उपलब्ध है और मौसम पर निर्भर है. उन्होंने कहा, ‘वन सन, वन वर्ल्ड एंड वन ग्रिड’ इस समस्या का समाधान है और विश्वव्यापी ग्रिड के माध्यम से स्वच्छ ऊर्जा को कहीं भी और कभी भी प्रेषित किया जा सकता है.

संवेदनशील द्वीप देशों के लिए अवसंरचना पहल का शुभारंभ

प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने सम्‍मेलन से अलग संवेदनशील द्वीप देशों के लिए अवसंरचना (IRIS) पहल का शुभारंभ किया. इसका उद्देश्य विकासशील छोटे द्वीप देशों के बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए एक गठबंधन बनाना है. यह गठबंधन जलवायु परिवर्तन के कारण आपदाओं का सामना करने वाले संवेदनशील द्वीप देशों को होने वाले आर्थिक नुकसान को कम करने में मदद करेगा.

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ऐसे छोटे द्वीप देशों (सिड्स) के लिए विशेष आंकडे एक ही जगह उपलब्‍ध कराएगा. इसरो, सिड्स के लिए एक स्‍पेशल डेटा विन्‍डो का निर्माण करेगी. इससे सिड्स को सेटेलाइट्स के माध्‍यम से साइक्‍लोन, कोरल रीफ, मॉनिटरिंग, कोस्‍टलाइन मॉनिटरिंग आदि के बारे में टाइमली जानकारी मिलती रहेगी.

2030 तक वनों की कटाई रोकने का वायदा

विश्‍व के एक सौ से अधिक देशों के नेताओं ने शिखर सम्‍मेलन में पहला बड़ा समझौता किया. इसमें 2030 तक वनों की कटाई रोकने और वनों का दायरा बढ़ाने का वायदा किया गया.

समझौते के लक्ष्‍य को हासिल करने के लिए सार्वजनिक और निजी सहायता से 19 अरब 20 करोड़ डॉलर की प्रतिबद्धता व्‍यक्‍त की गई है. समझौते पर ब्राजील ने भी हस्‍ताक्षर किए हैं, जहां अमेजन के उष्‍णकटिबंधीय वन की कटाई की गई है.

ग्‍लास्गो में अंतर्राष्‍ट्रीय जलवायु सम्‍मेलन के आयोजक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा कि पहले से कहीं ज्‍यादा कुल 110 देशों के नेताओं ने इस ऐतिहासिक प्रतिबद्धता पर सहमति व्‍यक्‍त की है.

भारत वर्ष 2070 तक कार्बन उत्सर्जन मुक्‍त देश बन जाएगा

ग्‍लास्गो जलवायु सम्‍मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने कहा कि भारत वर्ष 2070 तक कार्बन उत्सर्जन मुक्त देश बन जाएगा. वर्ष 2030 तक अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में से एक अरब टन की कमी की जायेगी. सम्मेलन में श्री मोदी ने राष्ट्रीय वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए पांच मंत्रों का जिक्र किया.

  1. भारत, 2030 तक अपनी नॉन फॉसिल एनर्जी कैपेसिटी को 500 गीगावाट तक पहुंचाएगा.
  2. भारत, 2030 तक अपनी 50 परसेंट एनर्जी रिक्वायरमेंट रिन्‍यूएबल एनर्जी से पूरी करेगा.
  3. भारत अब से लेकर 2030 तक के कुल प्रोजेक्टेड कार्बन एमिशन में एक बिलियन टन की कमी करेगा.
  4. 2030 तक भारत, अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन इंटेन्सिटी को 45 परसेंट से भी कम करेगा और
  5. वर्ष 2070 तक भारत, कार्बन उत्सर्जन मुक्त (नेट जीरो) देश का लक्ष्य हासिल करेगा. ये पंचामृत, क्लाइमेट एक्शन में भारत का एक अभूतपूर्व योगदान होंगे.

पेरिस समझौता इस वर्ष से लागू होने जा रहा है

प्रधानमंत्री ने 2015 में पेरिस में आयोजित कॉप-21 सम्‍मेलन में हिस्‍सा लिया था, जिसमें पेरिस समझौते को अंतिम रूप दिया गया था. कॉप-26 में समझौते से संबद्ध देश पेरिस समझौता क्रियान्‍वयन दिशा-निर्देशों को अंतिम रूप देने का प्रयास करेंगे.

इसमें जलवायु कार्य योजना के लिए धन जुटाने, जलवायु अनुकूलन को बढ़ावा देने, प्रौद्योगिकी विकास और हस्तांतरण तथा धरती के तापमान में वृद्धि को सीमित करने संबंधी पेर‍िस समझौते के लक्ष्‍य प्राप्‍त करने के उपायों पर भी विचार किया जायेगा.

पेरिस समझौते के अंतर्गत देशों द्वारा उत्सर्जन कम करने का स्वयं निर्धारित लक्ष्य है. पेरिस समझौते के अनुसार सभी देशों के लिये राष्ट्रीय प्रतिबद्धता योगदान तय करना और बनाए रखना आवश्यक है.

भारत के, वर्ष 2005 की तुलना में मौजूदा एनडीसी में वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद के 33 से 35 प्रतिशत तक उत्सर्जन कम करने का लक्ष्य शामिल है. भारत वर्ष 2030 तक विद्युत उत्‍पादन में चालीस प्रतिशत हिस्‍सेदारी गैर-खनिज ईंधन से करने के लिए प्रतिबद्ध है. इससे वातावरण में कार्बन गैस हटाने में मदद मिलेगी.

नेट जीरो कार्बन उत्‍सर्जन

कॉप-26 में नेट जीरो कार्बन उत्‍सर्जन पर चर्चा हुई. नेट जीरो कार्बन उत्‍सर्जन का तात्‍पर्य है कि पृथ्‍वी का तापमान कम करने के लिए मानव निर्मित सभी कार्बन गैस, वातावरण से हटा दी जाए. अमेरिका, ब्रिटेन और जापान ने 2050 तक; यूरोपीय संघ ने 2060 तक; सऊदी अरब, चीन और रूस ने 2070 तक शुद्ध शून्य लक्ष्य हासिल करने का प्रस्ताव रखा है.

जलवायु वित्त या क्‍लाइमेंट फाइनेंस क्या है?

जलवायु वित्‍त या क्‍लाइमेंट फाइनेंस का तात्‍पर्य उन सभी गतिविधियों, कार्यक्रमों या परियोजनाओं के लिए धन का प्रवाह सुनिश्चित करना से है जो जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करती हैं. इनमें जलवायु परिवर्तन के संबंध में तापमान कम करने जैसी दुनियाभर में की जा रही गतिविधियां शामिल हैं. इनके लिए धन विविध प्रकार के स्रोतों, सार्वजनिक और निजी, द्विपक्षीय और बहुपक्षीय तथा वित्‍त के वैकल्पिक स्रोतों से आ सकता है.

2015 के पेरिस समझौते में विकसित देशों ने जलवायु परिवर्तन को रोकने के उद्देश्य से विक‍ासशील देशों के लिए 2020 तक संयुक्त रूप से 100 अरब डॉलर की प्रतिबद्धता व्‍यक्‍त की थी. इसके बाद यह अवधि बढ़ाकर 2023 कर दी गई थी. भारत निरंतर जलवायु परिवर्तन से निपटने में विकासशील देशों के लिए धनी देशों से ज्यादा योगदान की अपील करता रहा है.

कार्बन ट्रेडिंग क्या है?

कार्बन ट्रेडिंग एक ऐसा सिस्टम है, इसके तहत जो भी उद्योग कार्बन डाइऑकसाइड हवा में छोड़ेगा उसको उतना ही टैक्स भरना पड़ेगा. आसान शब्दों में प्रदूषण करने वालों को इसकी भरपाई भी करनी पड़ेगी. जिसको हम प्ल्यूटेड फेज मैकेनिज्म हम कहते हैं.

कार्बन ट्रेडिंग की व्यवस्था से प्रदूषण कम होता है और उद्योग इंडस्ट्रीज के मालिक सोच-समझकर खर्च करते हैं. साथ ही साथ कार्बन ट्रेडिंग से जो पैसा इकट्ठा होता है, वो क्लाइमेट के योजनाओं के काम आते हैं.

विश्व में कम से 45 देश कार्बन ट्रेडिंग योजना चला रहे हैं. कार्बन ट्रेडिंग भारत के 2070 के नेट जीरो के लक्ष्य को प्राप्त करने में बहुत उपयोगी साबित कर सकता है.

अनुकूलन क्या है?

अनुकूलन, जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों के समायोजन की प्रक्रिया है. इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के नुकसान में कमी करना और संभावित अवसरों का उपयोग करना है. अनुकूलन के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के परिणाम से उत्पन्न खतरों को भी कम किया जाता है.

जल स्रोतों का अधिक कुशल उपयोग, भविष्य की जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल इमारतों का निर्माण, प्रतिकूल मौसम और सूखे की मार झेल सकने वाली फसलों का विकास अनुकूलन के कुछ उदाहरण हैं. अनुकूलन कार्यक्रम के माध्यम से हरित रोज़गार के अवसर, गरीबों और वंचितों के लिए खतरे में कमी और भावी पीढ़ियों के लिए पर्यावरण सुरक्षा जैसे परिणाम हासिल किए जा सकते हैं.

COP27 की मेजबानी मिस्र करेगा

ग्लासगो में COP26 सम्मेलन के दौरान, यह निर्णय लिया गया कि मिस्र 2022 में COP27 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन की मेजबानी करेगा. मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी ने सितंबर में अफ्रीकी महाद्वीप की ओर से COP27 की मेजबानी करने में मिस्र की रुचि दिखाने के बाद यह निर्णय लिया था. इसके अलावा, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) को वर्ष 2023 में COP28 अंतर्राष्ट्रीय जलवायु सम्मेलन की मेजबानी के लिए चुना गया था.

जानिए क्या है UNFCCC COP और पेरिस समझौता…»

16वां जी-20 शिखर सम्मेलन रोम में आयोजित किया गया

16वां जी-20 शिखर सम्मेलन (16th G20 Summit) 2021 इटली के रोम में 30 से 31 अक्‍तूबर तक आयोजित किया था. यह बैठक इटली के नेतृत्‍व में आयोजित किया गया था. इस शिखर सम्‍मेलन का विषय ‘लोग, पृथ्‍वी और समृद्धि’ (People, Planet, Prosperity) था.

जलवायु परिवर्तन विषयों पर मुख्य रूप से विचार-विमर्श

इस सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण और सतत विकास के विषयों पर मुख्य रूप से विचार-विमर्श हुआ. सदस्य देशों ने सदी के मध्‍य तक दुनिया को कार्बन मुक्‍त करने का वादा किया और धरती के बढ़ते तापमान को डेढ़ डिग्री पर रोकने को सहमती हुई. इसमें कहा गया है कि सदी के मध्य तक नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल किया जाएगा.

जी-20 देशों ने निर्णय लिया है कि वे देश के बाहर कोयले पर निवेश नहीं करेंगे. लेकिन देश के भीतर निवेश पर रोक पर कोई पाबंदी नहीं है.

2009 में यह तय किया गया था कि धनी देश 100 अरब डालर प्रतिवर्ष जलवायु खर्चों से निपटने के लिए देंगे. पहले 2015 में इसे पूरा होना था. फिर 2020 की तारीख रखी गई. अब जी-20 देशों ने इसे 2025 तक पूरा करने की बात कही है.

अन्य मुख्य बिंदु

  • प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने इस सम्मेलन में भारत की और से हिस्सा लिया था. वह इटली के प्रधानमंत्री मारियो द्राघी के निमंत्रण पर इस बैठक में हिस्सा लेने के लिए रोम गये थे. प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने आठवीं बार इस बैठक में हिस्सा लिया.
  • केन्‍द्रीय मंत्री पीयूष गोयल इस सम्मेलन में भारत के शेरपा थे. शेरपा अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मेलनों में बैठक की तैयारी के लिए राष्ट्राध्यक्ष और शासनाध्‍यक्ष के प्रतिनिधि होते हैं.
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रोम में यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष चार्ल्‍स मिशेल और यूरोपीय आयोग की अध्‍यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन के साथ बैठक की. उन्होंने भारत- यूरोप सहयोग के अंतर्गत राजनीतिक तथा सुरक्षा सम्‍बंधों और व्‍यापार, निवेश, आर्थिक सहयोग के बारे में समीक्षा की.
  • प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रोम में इटली के प्रधानमंत्री मारियो द्राघी के साथ प्रतिनिधि मंडल स्तर की वार्ता की. भारत और इटली ने द्विपक्षीय भागीदारी कार्ययोजना 2020-25 की समीक्षा की. दोनों देशों ने  ग्रीन कॉरिडोर परियोजनाएं, स्मार्ट ग्रिड, ऊर्जा भंडारण, गैस परिवहन, हरित हाइड्रोजन विकास और जैव ईंधन को बढ़ावा देने में साझेदारी पर सहमति व्यक्त की.
  • प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने स्‍पेन के प्रधानमंत्री पैड्रो सांचेज से भेंट की. दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों को सुदृढ करने पर विचार किया. श्री मोदी ने जर्मनी की चांसलर एंगेला मर्केल से मुलाकात कर द्विपक्षीय संबंधों पर बातचीत की और कार्यनीतिक भागीदारी बनाए रखने की प्रतिबद्धता व्‍यक्‍त की. प्रधानमंत्री मोदी ने इंडो‍नेशिया के राष्‍ट्रपति जोको विडोडो से मुलाकात कर द्विपक्षीय संबंधों पर विचार-विमर्श किया.

जानिए क्या है जी-20…»

जी-4 संगठन के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक न्‍यूयॉर्क में आयोजित की गयी

जी-4 संगठन के सदस्य देशों (भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान) के विदेश मंत्रियों की बैठक 22 सितम्बर को न्‍यूयॉर्क में आयोजित की गयी थी. इस बैठक में भारत के एस जयशंकर, ब्राजील के कार्लोस एलबर्टो फ्रैंको रांका, जर्मनी के हेको मास और जापान के तोशीमित्‍शू मोटेगी ने हिस्सा लिया था. जी-4 के मंत्रियों ने विस्‍तारित सुरक्षा परिषद में स्‍थायी सदस्‍यता के लिए एक-दूसरे की दावेदारी के प्रति समर्थन दोहराया.

बैठक के मुख्य बिंदु

  • इस बैठक में सदस्य देशों ने संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) को अधिक विधि सम्मत, प्रभावी और प्रतिनिधिक बनाने के लिए तत्‍काल सुधार की जरूरत पर जोर दिया.
  • इन मंत्रियों ने बैठक के बाद जारी संयुक्‍त वक्‍तव्‍य में कहा कि सुरक्षा परिषद में सुधारों को अब रोका नहीं जा सकता.
  • सुरक्षा परिषद को उभरती जटिलताओं तथा अंतरराष्‍ट्रीय शांति और सुरक्षा के समक्ष आ रही चुनौतियों से निपटने के लिए स्‍थायी और अस्‍थायी सदस्‍यों की संख्‍या बढ़ानी होगी, तभी परिषद अपने कर्तव्‍यों का प्रभावी ढंग से निर्वाह कर सकेगी.

जी-4 क्या है?

भारत, जापान, जर्मनी और ब्राजील ने मिलकर जी-4 (G4) नामक समूह बनाया है. ये देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यता के लिये एक-दूसरे का समर्थन करते हैं.

SCO के राष्‍ट्राध्‍यक्षों के परिषद की 21वीं बैठक दुशांबे में आयोजित की गयी

शंघाई सहयोग संगठन (SCO)  के राष्‍ट्राध्‍यक्षों के परिषद की 21वीं बैठक 17 सितम्बर को ताजिकिस्‍तान की राजधानी दुशांबे में आयोजित की गयी थी. इस सम्मलेन की अध्यक्षता ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति इमोमाली रहमान ने की थी.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस शिखर सम्मेलन के पूर्ण सत्र को वर्चुअल माध्‍यम से संबोधित किया था. इस बैठक में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्‍व ताजिकिस्‍तान की यात्रा पर गये विदेश मंत्री जयशंकर ने किया था.

इस सम्मेलन में, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व के सामयिक मुद्दों और पिछले दो दशकों की उपलब्धियों और भविष्य में सदस्‍य देशों के बीच सहयोग बढाने की संभावनाओं पर चर्चा हुई.

ईरान SCO का नया सदस्य बना

इस बैठक में ईरान को SCO के नए सदस्य के रूप में शामिल किया गया है. इसके साथ ही सऊदी अरब, मिस्र और कतर को संवाद भागीदार बनाया गया है. अब SCO के सदस्य देशों की संख्या 9 हो गई है.

क्या है SCO?

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) एक स्थायी अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, जिसका उद्देश्य संबंधित क्षेत्र में शांति, सुरक्षा व स्थिरता बनाए रखना है. SCO को बनाने की घोषणा 15 जून, 2001 को हुई थी. शुरूआत में इसमें छह देश शामिल थे- किर्गिस्तान, कजाकिस्तान, रूस, चीन, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान. वर्ष 2017 में भारत और पाकिस्तान के शामिल होने के बाद इसके सदस्यों की संख्या आठ हो गई थी.

भारतीय सैन्‍य प्रमुखों का आठवां सम्‍मेलन

भारतीय सैन्य प्रमुखों का आठवां सम्मेलन 16-18 सितम्बर नई दिल्ली में आयोजित किया गया था. सम्‍मेलन में भारतीय सेना के तीव्र रूपांतरण, आत्‍मनिर्भर और मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रमों के जरिये सेना की आत्‍मनिर्भरता और आधुनिक युद्ध लडने के लिए भारतीय सैनिकों के कौशल जैसे मुद्दों पर विचार किया गया.

इस सम्मेलन में भारतीय सेना के वर्तमान और सेवानिवृत्‍त अध्‍यक्ष हिस्‍सा लेते हैं. इस सम्‍मेलन की खास बात यह है कि इसमें नेपाल सेना के पूर्व अध्‍यक्ष भी हिस्‍सा लेते है, जो भारतीय सेना के ऑनरेरी चीफ रहे हैं. यह सम्‍मेलन एक ऐसा मंच है जहां भारतीय सेना के पूर्ववर्ती और वर्तमान अधिकारी विचारों का आदान-प्रदान करते हैं.

शंघाई सहयोग संगठन परिषद के विदेश मंत्रियों की बैठक

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) परिषद के विदेश मंत्रियों की बैठक 14-15 जुलाई को ताजिकिस्‍तान की राजधानी दुशांबे में आयोजित की गयी थी. विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने इस बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था.

इस वर्ष शंघाई सहयोग संगठन परिषद के गठन के 20 वर्ष पूरे हो रहे हैं. विदेश मंत्रियों की इस बैठक में इस वर्ष संगठन की 20वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्‍य में इसकी उप‍लब्‍धियों पर विचार किया गया.

भारत और चीन के विदेश मंत्रियों की बैठक

विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने शंघाई सहयोग संगठन के इस बैठक से अलग चीन के विदेश मंत्री वांग ई के साथ मुलाकात की. दोनों मंत्रियों ने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास मौजूदा स्थिति पर विचार-विमर्श किया और भारत-चीन संबंधों के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की. दोनों विदेश मंत्रियों ने सभी अनसुलझे मुद्दों का परस्‍पर स्‍वीकार्य समाधान ढूढने की बात कही.

टॉयकैथॉन-2021 के ग्रैंड फिनाले का आयोजन

टॉयकैथॉन-2021 के ग्रैंड फिनाले का आयोजन ऑनलाइन माध्यम से 22 से 24 जून तक किया गया था. इसका उद्देश्‍य अभिनव खिलौनों और खेलों के लिए विभिन्न स्रोतों से नए विचार और सुझाव आमंत्रित करना था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 जून को इसके प्रतिभागियों के साथ बातचीत की थी. प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि परम्परा और प्रौद्योगिकी आत्मनिर्भर भारत की ताकत हैं. उन्होंने कहा कि खिलौने और गेम्‍स, परम्परा तथा प्रौद्योगिकी को एक साथ जोड़ते हैं. उन्होंने खिलौना और खेल उद्योग को ‘टॉयकोनॉमी’ की संज्ञा दी.

इस साल 5 जनवरी को शिक्षा मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, सूक्षम, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय, डीपीआईआईटी, वस्त्र मंत्रालय, सूचना और प्रसारण मंत्रालय तथा एआईसीटीई द्वारा टॉयकैथॉन 2021 की शुरूआत संयुक्त रूप से की थी.

इस दौरान, देश भर से लगभग 1.2 लाख प्रतिभागियों ने टॉयकैथॉन 2021 के लिए 1700 से अधिक विचार प्रस्तुत किए हैं. इनमें 15 67 विचारों को टॉयकैथॉन ग्रैंड फिनाले के लिए चुना गया है.

क्या है टॉयकैथॉन?

टॉयकैथॉन-2021 का उद्देश्य भारत में खिलौना उद्योग को बढ़ावा देना है, ताकि खिलौना बाजार के व्यापक हिस्से पर भारत अग्रणी हो सके.

देश के खिलौना बाजार का आकार 1 अरब डॉलर से ज्‍यादा है, जिसमें से 80 प्रतिशत खिलौने आयात किए जाते हैं. टॉयकैथॉन सरकार की और से घरेलू खिलौना उद्योग और स्थानीय निर्माताओं के लिए एक सिस्‍टम बनाने का प्रयास है, जो इस्‍तेमाल नहीं हो पाए संसाधनों का दोहन कर घरेलू उद्योग को बढ़ावा दे सके.

31वां नाटो शिखर सम्मेलन 2021 का आयोजन ब्रुसेल्स में किया गया

उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) देशों का 31वां शिखर सम्मेलन 14 जून 2021 को बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में किया गया था. इस सम्मलेन में सदस्य देशों के सभी शासनाध्यक्षों ने हिस्सा लिया.

सम्मेलन में नाटो सदस्य देश के नेताओं ने विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की. चर्चा के मुख्य विषयों में भू-रणनीतिक वातावरण, उभरती प्रौद्योगिकियों, सामूहिक रक्षा, जलवायु परिवर्तन और सुरक्षा के मुद्दे में नाटो की भूमिका शामिल थे. भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए सभी नेता एक व्यापक पहल “नाटो 2030” एजेंडा पर सहमत हुए.

अंतरिक्ष में हमले होने पर सामूहिक कार्रवाई के लिए समझौते का विस्‍तार किया

इस सम्मेलन में नाटो सदस्य देशों ने अंतरिक्ष में हमले होने पर सामूहिक कारवाई के लिए परस्पर रक्षा के अपने समझौते का विस्तार किया है. नाटो की स्थापना संधि के अनुच्छेद 5 में कहा गया है कि 30 सहयोगी देशों में से किसी पर हमला सभी देशों पर आक्रमण माना जाएगा. अभी तक यह केवल भूमि, समुद्र या हवा में पारंपरिक सैन्य हमलों और हाल में शामिल किए गए साइबर स्पेस पर लागू होता था.

चीन को सुरक्षा के लिए स्थायी खतरा घोषित किया

नाटो सदस्य देशों ने चीन को सुरक्षा के लिए स्थायी खतरा घोषित किया. नाटो के नेताओं ने कहा है कि चीन अपने लक्ष्यों और हठी व्‍यवहार से नियमों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था और नाटो देशों की सुरक्षा के लिए चुनौती पेश कर रहा है. इन नेताओं ने चीन से कहा कि वह अपनी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं का पालन करें और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में जिम्मेदारी से काम करे.

नाटो के प्रमुख जेन्स स्टोल्टनबर्ग ने आगाह किया कि चीन सैन्य और प्रौद्योगिकी के संदर्भ में नाटो देशों के करीब पहुंच रहा है. लेकिन उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि नाटो के देश चीन के साथ नया शीत युद्ध नहीं चाहते हैं.

उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) क्या है?

नाटो या NATO, North Atlantic Treaty Organization (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) का संक्षिप्त रूप है. यह 30 यूरोपीय और उत्तरी अमरीकी देशों का एक सैन्य गठबन्धन है जो रूसी आक्रमण के खिलाफ दूसरे विश्वयुद्ध के बाद 1949 में बनाया गया था. इसका मुख्यालय ब्रुसेल्स (बेल्जियम) में है. नाटो सदस्य देशों ने सामूहिक सुरक्षा की व्यवस्था बनाई है, जिसके तहत बाहरी हमले की स्थिति में सदस्य देश सहयोग करते हैं.

नाटो के सदस्य देश

मूल रूप से नाटो में 12 सदस्य (फ्रांस, बेल्जियम, लक्जमर्ग, ब्रिटेन, नीदरलैंड, कनाडा, डेनमार्क, आइसलैण्ड, इटली, नार्वे, पुर्तगाल और संयुक्त राज्य अमेरिका) थे जो अब बढ़कर 30 हो गए हैं. सबसे हालिया सदस्य उत्तर मैसेडोनिया है जिसे 2020 में संगठन में जोड़ा गया था.

नाटो के अन्य सदस्य देश- ग्रीस, तुर्की, जर्मनी, स्पेन, चेक गणराज्य, हंगरी, पोलैंड, बुल्गारिया, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया, अल्बानिया और क्रोएशिया, मोंटेनेग्रो और उत्तर मैसेडोनिया.

46वां जी-7 देशों का शिखर सम्मेलन 2021 ब्रिटेन के कॉर्नवाल में आयोजित किया गया

46वां जी-7 देशों का शिखर सम्मेलन (46th G7 summit) 11-13 जून को ब्रिटेन के कॉर्नवाल में आयोजित किया गया था. यह इस सम्मेलन का 46वां संस्करण था. यह सम्मेलन ब्रिटेन की मेजवानी में आयोजित किया गया था जिसकी अध्यक्षता ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉन्सन ने की थी. इस वर्ष के शिखर सम्‍मेलन का विषय- ‘बिल्‍ड बैक बेटर’ यानी बेहतर भविष्‍य की ओर था.

इस वार्षिक सम्‍मेलन में सभी सदस्‍य देश – फ्रांस, इटली, कनाडा, अमरीका, जापान, जर्मनी और ब्रिटेन के नेता ने हिस्‍सा लिया. इसके आलावा यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वोन डेर लियन और यूरोपीय परिषद प्रमुख चार्ल्स माइकल ने भी सम्मेलन में भाग लिया.

सम्‍मेलन में शामिल नेता स्‍वास्‍थ्‍य और जलवायु परिवर्तन पर विशेष ध्‍यान देते हुए कोरोना महामारी से उबरने की तैयारियों पर अपने विचार रखे.

सम्मलेन के मुख्य बिंदु

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉन्सन ने मुख्य विचार-विमर्श की शुरूआत करते हुए कहा कि महामारी से उबरने के बाद वैश्विक रूप से सबके लिए समान व्यवस्था कायम करना और बेहतर स्थिति बहाल करना महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा कि जी-7 समूह एकजुट होकर जलवायु परिवर्तन की समस्याओं का समाधान करते हुए स्वच्छ और हरित विश्व का लक्ष्य हासिल करने की ओर बढ़ सकता है.

चीन के साथ प्रतिस्पर्धा के लिए एक बुनियादी ढांचा योजना का अनावरण

जी-7 के नेताओं ने चीन के वैश्विक अभियान के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए एक बुनियादी ढांचा योजना (Build Back Better World- B3W) का अनावरण किया. उल्लेखनीय है कि जी-7 देश, विकासशील देशों को ऐसे बुनियादी ढांचे की स्कीम का हिस्सा बनने का प्रस्ताव देने की योजना बना रहे हैं, जो चीन की अरबों-खरब डॉलर वाली ‘बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) को टक्कर दे सके.

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने जी-7 शिखर सम्मेलन में लोकतांत्रिक देशों पर बंधुआ मजदूरी प्रथाओं को लेकर चीन के बहिष्कार का दबाव बनाने की योजना तैयार की है.

वहीं, कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो ने चीन को लेकर हुई चर्चा की अगुवाई की. उन्होंने सभी नेताओं से अपील की कि वे चीन की ओर से बढ़ते खतरे को रोकने के लिए संयुक्त कदम उठाएं.

भारत को अतिथि देशों के रूप में आमंत्रण

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने इस सम्‍मेलन में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी को आमंत्रित किया था. वर्तमान में ब्रिटेन इस समूह का अध्‍यक्ष देश है. इस बार के शिखर सम्‍मेलन के लिए भारत के साथ ऑस्‍ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और दक्षिण अफ्रीका को अतिथि देशों के रूप में आमंत्रित किया गया था.

प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने 12 जून को जी-7 देशों के शिखर सम्‍मेलन के ऑनलाईन आउटरीच सत्रों में हिस्सा लिया. यह दूसरा अवसर था जब प्रधानमंत्री मोदी, जी-7 सम्‍मेलन में शामिल हुए. वर्ष 2019 में भी तत्‍का‍लीन अध्‍यक्ष फ्रांस ने भारत को सद्भावना निमंत्रण दिया था. उस सम्मलेन में उन्होंने जलवायु, जैव विविधता और महासागर तथा डिजिटल रूपांतरण सत्रों में अपने विचार रखे थे.

प्रधानमंत्री मोदी ने जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता पर बल दिया. जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर भारत की स्‍पष्‍ट प्रतिबद्धता के बारे में श्री मोदी ने भारतीय रेलवे द्वारा 2030 तक शून्‍य उत्‍सर्जन का लक्ष्‍य निर्धारित करने की चर्चा की. उन्‍होंने कहा कि भारत जी-20 देशों में एकमात्र राष्‍ट्र है जिसने पेरिस समझौते की प्रतिबद्धताओं को पूरा किया है. उन्‍होंने भारत द्वारा पोषित दो प्रमुख वैश्विक संगठनों-आपदा प्रतिरोधक बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन (CDRI) और अंतर्राष्‍ट्रीय सौर गठबंधन के प्रयासों की चर्चा की.

‘एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य’ का नारा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-7 शिखर सम्मेलन 2021 के दौरान ‘एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य’ (One Earth One Health) का नारा दिया जिसका जर्मनी की चांसलर एंगेला मकेर्ल ने समर्थन किया. प्रधानमंत्री मोदी ने कोविड-19 जैसी महामारियों की भविष्य में रोकथाम के लिए लोकतांत्रिक और पारदर्शी समाजों को विशेष रूप से जिम्मेदार बताते हुए वैश्विक नेतृत्व एवं एकजुटता कायम करने का आह्वान किया.

प्रधानमंत्री ने कोविड संबंधी प्रौद्योगिकियों पर पेटेंट (TRIPS) छूट के लिए भारत, दक्षिण अफ्रीका द्वारा WTO में दिए गए प्रस्ताव के लिए जी-7 के समर्थन का आह्वान भी किया.

TRIPS क्या है?

TRIPS का पूर्ण रूप Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights है. यह बौद्धिक संपदा अधिकारों पर एक बहुपक्षीय समझौता है जिसमें मुख्य रूप से पेटेंट, कॉपीराइट और औद्योगिक डिजाइन शामिल हैं. यह समझौता जनवरी 1995 में लागू हुआ था.

ब्रिटेन ने अध्‍यक्ष के तौर पर चार प्राथमिकताएं

ब्रिटेन ने अध्‍यक्ष के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान चार प्राथमिकताएं तय की हैं. इनमें भावी महामारियों से निपटने की तैयारियों के साथ कोरोना संक्रमण से उबरने में विश्‍व का नेतृत्‍व करना है, खुशहाल भविष्‍य के लिए स्‍वतंत्र और निष्‍पक्ष व्‍यापार को बढ़ावा देना, जलवायु परिवर्तन की समस्‍या का समधान और जैव विविधता का संरक्षण करना तथा साझा मूल्‍यों और मुक्‍त समाज का समर्थन करना है.

G7 संगठन: तथ्यों पर एक दृष्टि

  • ‘G7’ सात विकसित देशों का समूह है जिसमें ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और अमरीका सदस्य देश हैं. भारत उन कुछ देशों में शामिल है जिन्‍हें शिखर सम्‍मेलन में विशेष रूप से आमंत्रित किया गया है.
  • गठन: वर्ष 1975 में फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति वैलेरी जिस्कार्ड डी एस्टेइंग के आह्वान पर विश्व के सर्वाधिक औद्योगीकृत, लोकतांत्रिक एवं गैर-समाजवादी 6 राष्ट्रों- फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, जर्मनी, एवं जापान ने फ्रांस की राजधानी पेरिस में एक बैठक का आयोजन किया जिसमें इस समूह का गठन हुआ.
  • कनाडा सदस्य बना: वर्ष 1976 में कनाडा को इस समूह में शामिल कर लिया गया. कनाडा की सहभागिता के पश्चात यह समूह ‘G7’ के नाम से जाना जाने लगा.
  • रूस सदस्य बना: वर्ष 1994 में ‘G7’ में रूस के शामिल होने से यह समूह ‘G8’ के नाम से जाना गया.
  • रूस निलंबित: 27 मार्च, 2014 को इस संगठन से रूस को अनिश्चित काल के लिए निलंबित कर दिया गया. अब यह समूह पुनः ‘G7’ के नाम से जाना जाने लगा है.
  • मुख्यालय: ‘G7’ एक अनौपचारिक संगठन है जिसका कोई मुख्यालय अथवा सचिवालय नहीं है. इसके अध्यक्ष का चयन रोटेशन प्रणाली के आधार पर होता है.
  • अर्थशास्त्र: ‘G7’ देश में विश्व की जनसंख्या का 10.3% लोग रहते हैं. सदस्य देशों की GDP विश्व के GDP का 32.2% है, जबकि विश्व के निर्यात में 34.1% तथा आयात में 36.7% हिस्सा है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की 74वीं विश्व स्वास्थ्य सभा आयोजित की गयी

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की 74वीं विश्व स्वास्थ्य सभा (World Health Assembly) 24 मई को आयोजित की गयी. इस स्वास्थ्य सभा की अध्यक्षता केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन ने की. डॉ. हर्ष वर्धन WHO के कार्यकारी बोर्ड के वर्तमान अध्यक्ष है.

स्वास्थ्य सभा में WHO के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस ने भी हिस्सा लिया. उन्होंने WHO की विभिन्न गतिविधियों के बारे में जानकारी दी, जिनमें कोविड प्रबंधन के लिए उठाए गए कदम भी शामिल थे.

74वीं विश्व स्वास्थ्य सभा: मुख्य बिंदु

  • 74वीं विश्व स्वास्थ्य सभा के सामने कार्यकारी बोर्ड (EB) के 147वें और 148वें सत्र का ब्यौरा पेश किया गया.
  • डॉ. हर्ष वर्धन ने कोवैक्स सुविधा के माध्यम से कोविड-19 टीकों तक निष्पक्ष और समान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए और अधिक प्रयास करने की अपील की.
  • 2013 से 2030 की अवधि के दौरान गैर-संचारी रोगों की रोकथाम व नियंत्रण के लिए वैश्विक कार्य योजना के कार्यान्वयन की रूपरेखा तय की गयी.
  • स्वास्थ्य सभा को 2021-2030 के लिए ग्लोबल पेशेंट सेफ्टी एक्शन प्लान (वैश्विक रोगी सुरक्षा कार्य योजना) को स्वीकार करना चाहिए.
  • खाने-पीने की वस्तुओं से एंटी-माइक्रोबियल रेजिस्टेंस को सीमित करने और रोकने के लिए कोडेक्स कोड ऑफ प्रैक्टिस की समीक्षा में सदस्य राष्ट्रों की भागीदारी का स्वागत किया.

डॉ. हर्ष वर्धन WHO के कार्यकारी बोर्ड के वर्तमान अध्यक्ष
मई 2020 में आयोजित WHO के 73वें विश्व स्वास्थ्य सभा की बैठक में डॉ. हर्षवर्धन को WHO के कार्यकारी बोर्ड (Executive Board) का अध्यक्ष चुना गया था.

विश्व स्वास्थ्य संगठन: एक दृष्टि

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जिनिवा में है. भारत ने 12 जनवरी, 1948 को ही WHO की सदस्यता ले ली थी. WHO का शासन-प्रशासन दो निकाय द्वारा संचालित होता है:

1. विश्व स्वास्थ्य सभा (World Health Assembly)
2. कार्यकारी बोर्ड (Executive Board)

  • WHO स्वास्थ्य सभा, निर्णय लेने वाली संस्था है जबकि कार्यकारी बोर्ड का मुख्य काम स्वास्थ्य सभा के फैसलों और नीतियों को लागू करना और उसे समय-समय पर सलाह देना है.
  • कार्यकारी बोर्ड और स्वास्थ्य सभा मिलकर ऐसा मंच तैयार करते हैं जहां दुनिया स्वास्थ्य के मुद्दों पर चर्चा करती है और समस्याओं के समाधान ढूंढने का प्रयास करती है.
  • WHO स्वास्थ्य सभा में संयुक्त राष्ट्र के सभी 194 सदस्य देश इसके सदस्य होते हैं.
  • WHO का कार्यकारी बोर्ड 34 सदस्यों से बना है. इसके सदस्यों का चुनाव विश्व स्वास्थ्य सभा में किया जाता है. इस बोर्ड के सदस्यों को तीन साल के लिए चुना जाता है.

ब्रिक्स देशों के बीच पहली रोजगार कार्यसमूह (EWG) की बैठक आयोजित की गयी

ब्रिक्स (BRICS) देशों के बीच पहली रोजगार कार्यसमूह (Employment Working Group) की बैठक हाल ही में आयोजित की गयी थी. ब्रिक्स का अध्यक्ष होने के नाते इस बैठक की अध्यक्षता भारत (सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के सचिव अपूर्व चंद्र) ने की. भारत ने इसी साल ब्रिक्स का अध्यक्ष पद संभाला है.
ब्रिक्स सदस्य देशों के अलावा इस बैठक में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) तथा अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा एजेंसी (ISSA) के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया

ब्रिक्स की इस पहली EWG की बैठक में सामाजिक सुरक्षा समझौतों को प्रोत्साहन देने, श्रम बाजारों को आकार देने, श्रमशक्ति के रूप में महिलाओं की भागीदारी और श्रम बाजार में कार्यशील घंटे इत्यादि मुद्दों पर चर्चा हुई.

ब्रिक्स (BRICS) क्या है?

ब्रिक्स दुनिया की पाँच सबसे तेज़ी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं – ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका से मिलकर बना एक समूह है. ब्रिक्स नाम इन पांचों देशों के नाम के पहले अक्षर B, R, I, C, S से बना है. इसकी औपचारिक स्थापना जुलाई 2006 में रूस के सेंट्स पीटर्सबर्ग में जी-8 देशों के सम्मेलन के दौरान हुई थी.