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अफगानिस्तान पर भारत की अध्यक्षता में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर की बैठक

अफगानिस्तान की स्थिति पर भारत की अध्यक्षता में 10 नवम्बर को ‘दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा संवाद’ आयोजित किया गया था. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर की इस बैठक की अध्यक्षता भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री अजीत डोभाल ने की थी.

इस संवाद में रूस, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उजबेकिस्तान ने भाग लिया था. पाकिस्तान और चीन को भी बैठक के लिए आमंत्रित किया गया था लेकिन ये दोनों देश इस बैठक में शामिल नहीं हुए.

इस बैठक में अफगानिस्तान में हाल के घटनाक्रम से उत्पन्न सुरक्षा स्थिति की समीक्षा की गयी. बैठक में अफगानिस्‍तान में शांति, सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ावा देने का समर्थन किया गया. अफगानिस्‍तान की जमीन का इस्‍तेमाल आतंकवादियों को शरण और प्रशिक्षण देने तथा योजना और धन मुहैया न कराने पर बल दिया गया.

अफगानिस्‍तान में तालिबान ने नई कार्यवाहक सरकार की घोषणा की

अफगानिस्‍तान में तालिबान ने 8 सितम्बर को नई कार्यवाहक (अंतरिम) सरकार की घोषणा कर दी. अंतरिम मंत्रिमंडल में मुल्‍ला हसन अखुंद नई सरकार के कार्यवाहक प्रधानमंत्री होंगे. मंत्रिमंडल के सभी सदस्य पुरुष हैं. अंखुद पिछले बीस साल से अमरीका और सैन्‍य बलों पर हमलों में शामिल समूह नेतृत्‍व परिषद के अध्यक्ष थे.

तालिबान प्रमुख हिबतुल्‍लाह अंखुदजादा सरकार के प्रमुख नेता होंगे. राजनीतिक कार्यालय ग्रुप के अध्‍यक्ष मुल्‍ला अब्‍दुल गनी बरादर और मुल्‍ला अब्‍दुल सलाम हनाफी को उपप्रधानमंत्री बनाया गया है.

कुख्‍यात हक्‍कानी नेटवर्क के प्रमुख सिराजुद्दीन हक्‍कानी को गृहमंत्री बनाया गया है. अमरीका ने हक्‍कानी नेटवर्क को वैश्विक आतंकवादी संगठन बताया है. अमरीका ने इस पर 50 लाख डॉलर का ईनाम रखा है.

अमेरिका ने अफगानिस्तान में अपने सैन्य मिशन को समाप्त करने की घोषणा की

अमेरिका ने अफगानिस्तान में अपने 20 वर्ष के सैन्य मिशन को 31 अगस्त को समाप्त करने की घोषणा की. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की पूर्ण वापसी के लिए अंतिम समय सीमा 31 अगस्त निर्धारित की थी.

15 अगस्त 2021 को तालिबान ने अफगान शासन को परास्त कर देश की सत्ता अपने हाथ में ले ली थी. इसके बाद राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर भाग गए थे और 3,00,000 अफगान सशस्त्र बलों के सैनिकों ने बिना किसी लड़ाई के हार मान ली.

अमेरिकी सैन्य मिशन और अफगान युद्ध

अफगानिस्तान में तत्कालीन शासक तालिबान के खिलाफ अमेरिकी सैन्य मिशन 2001 में शुरू हुआ था जिसे अफगान युद्ध के रूप में जाना जाता है. इसकी शुरुआत उस आक्रमण से हुई जिसके कारण अमेरिका और उसके सहयोगियों ने अफगानिस्तान के तालिबान शासित इस्लामिक अमीरात को गिरा दिया. तालिबान के आतंकवादियों के खिलाफ यह युद्ध नाटो और अफगान सशस्त्र बलों द्वारा लड़ा गया था. यह अमेरिका के इतिहास में सबसे लंबा युद्ध था.

तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा किया

अफगानिस्तान की सत्ता पर एक बार फिर से चरमपंथी संगठन तालिबान ने कब्जा कर लिया है. 20 साल की लंबी लड़ाई के बाद पूरे अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्ज़ा हो चुका है. काबुल में राष्ट्रपति भवन पर कब्जा करने के साथ ही उसने युद्ध समाप्ति की घोषणा की. इससे पहले अफगानिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद अशरफ गनी ने राष्ट्र छोड़ दिया.

भारत और अमेरिका समेत कई देश अपने नागरिकों और राजनयिक कर्मचारियों को निकालने के लिए विशेष अभियान चला रहे हैं. अमेरिका ने अपने सभी राजनयिक कर्मचारियों को काबुल हवाई अड्डे पहुंचा दिया है जहाँ से उन्हें छोटे छोटे समूहों में अमेरिका रवाना किया जा रहा है.

तालिबान दूसरी बार अफगानिस्‍तान की सत्‍ता पर काबिज हुआ है. पहली बार अफगानिस्‍तान में तालिबान 1990 के बाद आया था और इसके करीब छह वर्ष (1996-2001) बाद तालिबान अफगानिस्‍तान के कंधार समेत काफी हिस्‍से में आ गया था. उस वक्‍त केवल तीन इस्‍लामिक देशों ने ही इस सरकार को मान्‍यता दी थी, जिनमें पाकिस्‍तान, सऊदी अरब और संयुक्‍त अरब अमीरात शामिल था.

तालिबान क्या है?

तालिबान एक सुन्नी इस्लामिक आधारवादी आन्दोलन है जिसकी शुरूआत 1994 में दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान में हुई थी. यह इस्लामिक कट्टपंथी राजनीतिक आंदोलन हैं. इसकी सदस्यता पाकिस्तान तथा अफ़ग़ानिस्तान के मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को मिलती है.

1996 से लेकर 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के दौरान मुल्ला उमर देश का सर्वोच्च धार्मिक नेता था. उसने खुद को हेड ऑफ सुप्रीम काउंसिल घोषित कर रखा था.

जेनेवा में अफगानिस्तान सम्मेलन 2020 आयोजित किया गया

जेनेवा में 23 से 24 नवंबर तक अफगानिस्तान सम्मेलन 2020 आयोजित किया गया था. सम्मेलन की सह-मेजबानी संयुक्त राष्ट्र (UN), इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान की सरकार और फिनलैंड की सरकार ने की थी.

अफगानिस्तान सम्मेलन का उद्देश्य परिवर्तनकारी दशक 2015-2024 के दूसरे भाग के दौरान अफगानिस्तान के लिए अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय की प्रतिबद्धता की पुन: पुष्टि करना है.

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने विडियो कांफ्रेंसिंग माध्यम से इस सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया था. भारत-अफगान संबंधों को और मजबूत करने के लिए एक और कदम आगे बढ़ाते हुए भारत सरकार ने अफगानिस्तान में एक नया बांध बनाने की घोषणा की है. यह बांध काबुल के लाखों लोगों को पीने का साफ पानी मुहैया कराएगा.

सम्मेलन में विदेश मंत्री जयशंकर ने अफगानिस्तान में उच्च प्रभाव सामुदायिक विकास परियोजनाओं के चौथे चरण के शुभारंभ की भी घोषणा की. इन परियोजनाओं में आठ करोड़ अमेरिकी डॉलर की 100 से अधिक परियोजनाओं की परिकल्पना की गई है.

अफगानिस्तान में राजनीतिक संकट: अशरफ गनी और अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली

अफगानिस्तान में 9 मार्च को दो प्रतिंद्वद्वी नेताओं- अशरफ गनी और अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने समांतर समारोहों में राष्ट्रपति के रूप में शपथ ले ली. वहीं अशरफ गनी के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान लगातार विस्फोट हुए. इससे वहां राजनीतिक संकट गहरा गया और इस दौरान राजधानी में कम से कम दो विस्फोट भी हुए. इससे तालिबान के साथ वार्ता की अमेरिका की योजना पर ही संकट गहरा गया.

चुनाव परिणामों में अशरफ गनी को जीत

18 फरवरी को घोषित हुए चुनाव परिणामों में अशरफ गनी को जीत हासिल हुई थी. लेकिन अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने मतगणना में धांधली का आरोप लगते हुए इस चुनाव परिणाम को मनाने से माना कर दिया था. अशरफ गनी के राष्ट्रपति पद के शपथ की घोषणा के बीच ही अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने भी खुद को राष्ट्रपति घोषित करते हुए शपथ की घोषणा कर दी थी.

अशरफ गनी तालिबान के कैदियों को रिहा करेगी

अशरफ गनी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह के दौरान अफगानिस्तान में शांति के लिए तालिबान के कैदियों को रिहा करने की घोषणा की. अफगान सरकार की नार्वे में तालिबान के साथ शांति वार्ता होनी है. वार्ता के तहत अफगान सरकार और तालिबान को एक दूसरे के कैदी छोड़ने होंगे. हालांकि, पहले गनी ने कैदियों को छोड़ने से मना कर दिया था.

अफगानिस्तान राष्ट्रपति चुनाव

अफगानिस्तान में 28 सितंबर 2019 को राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हुए थे. अब्दुल्ला ने मतगणना में धांधली का आरोप लगाया था. दोबारा वोटों की गिनती के बाद 18 फरवरी को परिणाम जारी किए गए थे. 50.64% वोटों के साथ अशरफ गनी की जीत हुई थी. लेकिन अब्दुल्ला ने इसे मानने से इनकार कर दिया था.

कौन है अब्दुल्ला अब्दुल्ला?

अशरफ गनी और अब्दुल्ला अब्दुल्ला पुराने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं. अब्दुल्ला अब्दुल्ला अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हैं. वह अफगानिस्तान के विदेश मंत्री भी रह चुके हैं. पिछली सरकार में विवाद होने पर उन्हें मुख्य कार्यकारी बनाकर सत्ता में साझेदार बनाया गया था.

अमरीका और तालिबान के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर, भारत पर्यवेक्षक के रूप में आम‍ंत्रित

अफगानिस्तान में शांति के लिए अमेरिका और तालिबान के बीच 29 फरवरी को ऐतिहासिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर हुए. इस समझौते पर कतर की राजधानी दोहा में हस्‍ताक्षर किए गये. अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने तालिबान के प्रतिनिधियों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किया. दोनों पक्षों के बीच 18 महीनों की वार्ता के बाद यह समझौता हुआ.

भारत पर्यवेक्षक के रूप में आम‍ंत्रित

भारत को इस ऐतिहासिक कार्यक्रम में पर्यवेक्षक के रूप में आम‍ंत्रित किया गया था. कतर में भारत के राजदूत पी कुमारन इस ऐतिहासिक समारोह में उपस्थित थे. भारत, अफगानिस्‍तान में शांति और सुलह प्रक्रिया में महत्‍वपूर्ण भागीदार रहा है. यह पहला मौका था जब भारत तालिबान से जुड़े किसी मामले में आधिकारिक तौर पर शामिल हुआ.

क्या है समझौता?

इस समझौते से अफगानिस्‍तान से हजारों अमरीकी सैनिकों की चरणबद्ध वापसी होगी. अफगानिस्तान में अमेरिका के करीब 13 हजार सैनिक हैं. विदेशी सैनिकों की वापसी के लिए 14 महीने की समय सीमा तय की गई है. अमेरिका अपने बलोंसैनिकों की संख्या शुरू में ही घटाकर 8,600 तक करने के लिए प्रतिबद्ध है. यह वह स्तर है जिसे अफगानिस्तान में अमेरिकी और नाटो बलों के कमांडर, जनरल स्कॉट्स मिलर ने उनके मिशन को पूरा करने के लिए आवश्यक बताया था.

समझौते के तहत तालिबान को स्‍थायी युद्धविराम और युद्ध के बाद के अफगानिस्‍तान में सत्‍ता में भागीदारी के लिए अफगान सरकार, सिविल सोसायटी तथा राजनीतिक गुटों के साथ बातचीत शुरू करनी होगी. समझौते में 10 मार्च तक एक हजार सरकारी बंदियों को छोडे जाने के बदले में पांच हजार तालिबान बंदियों की रिहाई की बात भी कही गई है.

भारत का पक्ष

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि राष्ट्रीय एकता, क्षेत्रीय अखंडता, लोकतंत्र, विविधता को मजबूत बनाने और बाहर से प्रायोजित आतंकवाद की समाप्ति में भारत अफगानिस्‍तान का साथ देगा. शांति समझौते पर हस्ताक्षर से पहले विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रंगला काबुल पहुंचे हैं. विदेश सचिव ने वहां के नेताओं को बताया कि भारत शांतिपूर्ण और स्थिर अफगानिस्तान को निरंतर समर्थन देता रहेगा.

भारत की चिंता

तालिबान के साथ पाकिस्‍तान के अच्‍छे संबंध हैं. इस समझौते के बाद पाकिस्‍तान अपने आतंकी शिविर अपने देश से हटाकर अफगानिस्‍तान भेज सकता है. साथ ही दुनिया को दिखा सकता है कि वह आ‍तंकियों का पोषण नहीं कर रहा है. इसके अलावा तालिबानी आतंकी कश्‍मीर की ओर रुख कर सकता है.

अफगानिस्‍तान के राष्‍ट्रपति ने आतंकवादियों की रिहाई की शर्त को अस्‍वीकार किया

अफगानिस्‍तान के राष्‍ट्रपति अशरफ गनी ने 1 मार्च को समझौते को खारिज करते हुए जेलों में बंद तालिबानी आतंकवादियों की रिहाई की शर्त को अस्‍वीकार कर दिया. उन्‍होंने पूर्ण-युद्धविराम के लक्ष्‍य तक पहुंचने के लिए हिंसा में कमी लाने के प्रयास जारी रखे जाने की बात कही.

अफ़ग़ानिस्तान राष्ट्रपति चुनाव में राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी को विजेता घोषित किया गया

अफ़ग़ानिस्तान में हाल ही में हुए राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव के परिणाम घोषित कर दिए गये हैं. इस चुनाव में वर्तमान राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी को विजेता घोषित किया गया है. चुनाव परिणाम की घोषणा अफ़ग़ानिस्तान के इंडिपेंडेंट इलेक्शन कमिशन ने 19 फरवरी को की.

अफ़ग़ानिस्तान में राष्ट्रपति पद के लिए 28 सितंबर 2019 को मतदान हुए थे. साल 2001 में अमरीकी बलों ने तालिबान को सत्ता से उखाड़ फेंका था. उसके बाद यह चौथी बार चुनाव कराए गए थे. इस चुनाव में अफ़ग़ानिस्तान के 9.6 मिलियन मतदाताओं में से केवल 1.8 मिलियन मतदाताओं ने ही मतदान किया था.

इस चुनाव में अशरफ़ ग़नी को 50.64% मत मिले और उनके प्रतिद्वंद्वी अब्दुल्ला अब्दुल्ला को 39.52% वोट मिले. वहीं, अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने देश में ताजा राष्ट्रपति चुनाव परिणामों को मानने से इंकार कर दिया है और उन्होंने खद को ही विजेता घोषित कर दिया है.

इसके अलावा तालिबान ने भी अशरफ गनी की जीत को खारिज कर दिया है और अमेरिका की शांति योजना पर सवाल खड़े किए हैं. इस योजना में हिंसा में कमी करने और स्थाई समझौते पर अमेरिका और तालिबान के बीच 29 फरवरी तक हस्ताक्षर करने का आह्वान किया है. चुनावी नतीजे की घोषणा ऐसे वक्त में हुई है जब तालिबान से शांति समझौते की कोशिश चल रही है.