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सार्वजनिक परीक्षा कदाचार रोकथाम विधेयक 2024 को मंजूरी

राष्‍ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने सार्वजनिक परीक्षा कदाचार रोकथाम विधेयक (Public Examinations (Prevention of Unfair Means) Bill) 2024 को 13 फ़रवरी को मंजूरी दे दी. संसद ने हाल में बजट सत्र में यह विधेयक पारित किया था.

मुख्य बिन्दु

  • विधेयक का उद्देश्य सार्वजनिक परीक्षाओं में धांधली और अनुचित तरीकों का इस्तेमाल रोकना है.
  • विधेयक में अपराध साबित होने पर तीन से 10 वर्ष तक के कारावास और 10 लाख से लेकर एक करोड़ रुपए तक जुर्माने का प्रावधान है.
  • इस विधेयक के तहत आने वाले सभी अपराध संज्ञेय, गैर-जमानती और गैर-समाधेय होंगे.

जल प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण संशोधन विधेयक 2024 संसद में पारित

संसद ने हाल ही में जल प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण संशोधन विधेयक 2024 पारित किया था. लोकसभा ने इसे 8 फ़रवरी को स्‍वीकृति दी, राज्यसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी थी.

मुख्य बिन्दु

  • जल प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण संशोधन विधेयक, 2024 के माध्यम से जल प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण अधिनियक, 1974 को संशोधित किया गया है.
  • अधिनियम के अंतर्गत जल प्रदूषण पर रोक लगाने और नियंत्रण के लिए केन्द्र और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्थापना का प्रावधान है.
  • नए विधेयक के अंतर्गत कई उल्लंघनों को अपराधमुक्त किया गया है और जुर्माने लगाएं गए हैं. विधेयक के अनुसार प्रावधानों के उल्लंघन के लिए 10 हजार रुपये से 15 लाख रुपये तक का जुर्माना लगेगा.
  • शुरुआत में यह हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू होगा.

संसद से तीन आपराधिक संहिता विधेयकों के पारित किया

भारतीय संसद से हाल ही में तीन तीन आपराधिक संहिता विधेयकों के पारित किया था. संसद के शीतकालीन सत्र 2023 के दौरान इन तीन विधेयकों को पेश किया गया था. ये विधेयक हैं-  भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक 2023.

भारतीय न्‍याय द्वितीय संहिता 2023, भारतीय दण्‍ड संहिता (आईपीसी) 1860 का स्‍थान लेगी. यह देश में फौजदारी अपराधों से संबंधित प्रमुख कानून है. भारतीय नागरिक सुरक्षा द्वितीय सं‍हिता 2023, दण्‍ड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) 1973 का स्‍थान लेगी. इसमें गिरफ्तारी, अभियोग और जमानत की प्रक्रिया के प्रावधान हैं. भारतीय साक्ष्‍य द्वितीय विधेयक 2023, भारतीय साक्ष्‍य अधिनियम 1872 का स्‍थान लेगी. इसमें देश के न्‍यायालयों में साक्ष्‍यों की स्वीकार्यता से जुडे प्रावधान हैं.

मुख्य बिन्दु

  • राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद इन विधेयकों ने कानून का रूप ले लिया है. ये कानून औपनिवेशिक काल के पुराने आपराधिक कानूनों का स्थान लेंगे.
  • इन अधिनियमों में कानूनी, पुलिस और जांच प्रणालियों को अद्यतन किया गया है जिससे कमजोर लोगों के लिए सुरक्षा बढ़ती है. इससे संगठित अपराध और आतंकवाद के खिलाफ प्रभावी प्रतिक्रिया की सुविधा भी मिलती है.
  • नए अधिनियमों में प्रथम सूचना रिपोर्ट से लेकर केस डायरी, आरोप पत्र और अदालत के फैसले तक की पूरी प्रक्रिया डिजिटल बनाने का प्रावधान है.
  • इन अधिनियमों में आतंकवादी गतिविधियों, मॉब लिंचिंग, भारत की संप्रभुता को खतरा पैदा करने वाले अपराधों को कानूनों में शामिल किया गया है और बलात्कार जैसे कई अपराधों में सजा में बढ़ोतरी की गई है.
  • भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों को एक नए अपराध की कैटेगिरी में डाला गया है. जबकि तकनीकी रूप से राजद्रोह को आईपीसी से हटा दिया गया है.
  • आतंकवादी कृत्य, जो पहले गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम जैसे विशेष कानूनों का हिस्सा थे, इसे अब भारतीय न्याय संहिता में शामिल किया गया है.
  • पॉकेटमारी जैसे छोटे संगठित अपराधों समेत संगठित अपराध से निपटने के लिए प्रावधान पेश किए गए हैं. पहले इस तरह के संगठित अपराधों से निपटने के लिए राज्यों के अपने कानून थे.
  • मॉब लिंचिंग, यानी जब पांच या अधिक लोगों का एक समूह मिलकर जाति या समुदाय आदि के आधार पर हत्या करता है, तो समूह के प्रत्येक सदस्य को आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी.
  • शादी का झूठा वादा करके संबंध बनाने को विशेष रूप से अपराध के रूप में पेश किया गया है. व्यभिचार और धारा 377, जिसका इस्तेमाल समलैंगिक यौन संबंधों पर मुकदमा चलाने के लिए किया जाता था, इसे अब हटा दिया गया है.
  • पहले केवल 15 दिन की पुलिस रिमांड दी जा सकती थी. लेकिन अब अपराध की गंभीरता को देखते हुए इसे 60 या 90 दिन तक दिया जा सकता है.
  • छोटे अपराधों के लिए सजा का एक नया रूप सामुदायिक सेवा को शामिल किया गया है. सामुदायिक सेवा को समाज के लिए लाभकारी बताया गया है. जांच-पड़ताल में अब फॉरेंसिक साक्ष्य जुटाने को अनिवार्य बनाया गया है.
  • एफआईआर, जांच और सुनवाई के लिए अनिवार्य समय-सीमा तय की गई है. उदाहरण के लिए, अब सुनवाई के 45 दिनों के भीतर फैसला देना होगा, शिकायत के 3 दिन के भीतर एफआईआर दर्ज करनी होगी.
  • अब सिर्फ मौत की सजा पाए दोषी ही दया याचिका दाखिल कर सकते हैं. पहले गैर सरकारी संगठन या नागरिक समाज समूह भी दोषियों की ओर से दया याचिका दायर कर देते थे.

संसद ने केंद्रीय विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक 2023 पारित किया

संसद ने हाल ही में केंद्रीय विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक (Central Universities Amendment Bill) 2023 पारित किया है. राज्यसभा ने 14 दिसम्बर को इसे मंजूरी दी जबकि लोकसभा ने इसे पहले ही पारित कर चुका था.

मुख्य बिन्दु

  • यह विधेयक विभिन्‍न राज्‍यों में शिक्षण और अनुसंधान के लिए केंद्रीय विश्‍वविद्यालयों की स्थापना से सम्‍बंधित है.
  • इसमें तेलंगाना के लिए केंद्रीय जनजातीय विश्‍वविद्यालय की स्‍थापना का प्रावधान है. इसका नाम सम्‍मक्‍का-सरक्‍का केन्द्रीय जनजातीय विश्‍वविद्यालय होगा.
  • इससे जनजातीय समुदाय के लोगों को उच्च शिक्षा और अनुसंधान की सुविधाएं प्राप्त होगी.

संसद ने जम्‍मू-कश्‍मीर आरक्षण-संशोधन विधेयक-2023 पारित किया

संसद ने हाल ही में जम्‍मू-कश्‍मीर आरक्षण-संशोधन विधेयक (Jammu and Kashmir Reservation Amendment Bill) 2023 और जम्‍मू-कश्‍मीर पुनर्गठन-संशोधन विधेयक-2023 पारित किया था. राज्‍यसभा ने इस विधेयक को 11 दिसम्बर को मंजूरी दी जबकि लोकसभा ने 6 दिसम्बर को स्‍वीकृति दी थी.

मुख्य बिन्दु

  • जम्‍मू-कश्‍मीर आरक्षण-संशोधन विधेयक-2023, जम्‍मू-कश्‍मीर आरक्षण विधेयक-2004 में संशोधन के बारे में है. इसके अंर्तगत अनुस‍ूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और सामाजिक तथा शैक्षिक रूप से पिछडे लोगों को पेशेवर संस्‍थानों में नौकरियों तथा प्रवेश में आरक्षण का प्रावधान है.
  • जम्‍मू-कश्‍मीर पुनर्गठन-संशोधन विधेयक-2023, जम्‍मू-कश्‍मीर पुर्नगठन विधेयक-2019 में संशोधन से संबंधित है. इस विधेयक में जम्‍मू-कश्‍मीर विधानसभा में कुल 83 सीटों को निर्दिष्‍ट करने वाले 1950 के अधिनियम की दूसरी अनुसूची में संशोधन किया गया था.
  • प्रस्तावित विधेयक में सीटों की कुल संख्या बढाकर 90 करने का प्रावधान किया गया है. इसमें अनुसूचित जातियों के लिए 7 और अनुसूचित जनजातियों के लिए 9 सीटों का प्रस्ताव है.

संसद ने 128वां संविधान संशोधन विधेयक पारित किया

संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) ने हाल ही में संविधान का 128वां संशोधन विधेयक (128th Constitutional Amendment Bill) 2023 पारित किया था. इस विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने का प्रावधान है.

इस विधेयक का नाम ‘नारी शक्ति वंदन विधेयक’ (Nari Shakti Vandan Vidheyak) दिया गया था. केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल ने इस विधेयक को संसद में पेश किया था.

128वां संविधान संशोधन विधेयक: मुख्य बिन्दु

  • यह विधेयक संसद के विशेष सत्र में पारित किया गया था. मुख्य रूप से इस विधेयक को पारित करने के लिए 18 से 21 सितम्बर तक के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाया गया था.
  • संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही 19 सितम्बर से नये संसद भवन में शुरू हुई थी. इस प्रकार नए संसद भवन में पारित होने वाला यह पहला विधेयक था.
  • राज्यसभा में यह विधेयक 21 सितंबर को सभी सदस्यों के समर्थन से पारित किया गया. इससे पहले लोकसभा ने इस विधेयक को पारित किया था, जिसमें दो सदस्यों को छोड़कर सभी सदस्यों ने समर्थन दिया था.
  • इस विधेयक को पारित कराने के लिए दो तिहाई बहुमत आवश्यक था. आगे इसे देश की 20 विधानसभाओं से भी मंजूरी दिलानी होगी.
  • राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हस्ताक्षर के बाद यह विधेयक कानून बन जाएगा और यह ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ कहलाएगा.
  • इस अधिनियम के तहत लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण 15 वर्ष के लिए लागू रहेगा, जिसकी अवधि संसद द्वारा और आगे बढ़ाई जा सकेगी.
  • इस अधिनियम के तहत जनगणना के आधार पर, परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने के बाद महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित की जाएंगी.
  • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए निर्धारित आरक्षण के भीतर ही महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान होगा.
  • वर्तमान लोकसभा में कुल 82 महिला सदस्य हैं, जो कुल 543 सदस्यों का 15 प्रतिशत से भी कम है.

निवार्चन आयुक्त (सेवा नियुक्ति शर्तें और पद की अवधि) विधेयक 2023

राज्य सभा में 11 अगस्त को मुख्य निवार्चन आयुक्त और अन्य निवार्चन आयुक्त (सेवा नियुक्ति शर्तें और पद की अवधि) विधेयक 2023 पेश किया गया था. विधि मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने यह विधेयक पेश किया था.

विधेयक का उद्देश्य मुख्य निवार्चन आयुक्त (CEC) और अन्य चुनाव आयुक्तों (EC) की नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव करना है.

विधेयक के मुख्य बिन्दु

  • इस विधेयक के मुताबिक, CEC और अन्य EC की नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली एक चयन समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति करेगी। इस कमेटी में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और एक कैबिनेट मंत्री भी सदस्य होंगे. मुख्य न्यायाधीश (CJI) को शामिल नहीं किया गया है.
  • दरअसल, इससे पहले मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने मौजूदा चयन प्रक्रिया को खारिज कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि अब CEC और EC की नियुक्ति का भी वही तरीका होगा, जो सीबीआई चीफ की नियुक्ति का है. अब तक CEC और EC की नियुक्तियां केंद्र सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती थी.
  • सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने फैसले में कहा था कि अब ये नियुक्ति प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और चीफ जस्टिस की कमेटी की सिफारिश पर राष्ट्रपति करेंगे. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया था कि मौजूदा व्यवस्था तब तक जारी रहेगी, जब तक संसद इस पर कानून ना बना दे.
  • CEC और EC का वेतन और भत्ते कैबिनेट सचिव के बराबर होंगे. वर्तमान कानून के तहत उन्हें सुप्रीम कोर्ट के जज के वेतन के बराबर वेतन दिया जाता है. वरीयता क्रम में CEC और EC को राज्य मंत्री से नीचे स्थान दिया जाएगा.
  • CEC और EC की नियुक्ति उन व्यक्तियों में से की जाएगी जो भारत सरकार के सचिव के पद के बराबर पद पर हैं या रह चुके हैं.
  • CEC और EC पद ग्रहण से छह साल की अवधि के लिए पद पर रहेंगे या जब तक वह 65 वर्ष की आयु पूरी नहीं कर लेते, जो भी पहले हो. मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त पुनर्नियुक्ति के पात्र नहीं होंगे.
  • जब एक चुनाव आयुक्त को मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया जाता है, उसका कार्यकाल कुल मिलाकर छह साल से ज्यादा नहीं होगा. मौजूदा कानून भी उसी तर्ज पर है.

निर्वाचन आयोग (Election Commission)

  • देश का संविधान 26 जनवरी 1950 से लागू किया गया. लेकिन भारत निर्वाचन आयोग को एक संवैधानिक संस्‍था के रूप में स्‍थापित करने वाला संविधान का अनुच्‍छेद 324 उन गिने-चुने प्रावधानों में से है जिन्हें पूरे दो महीने पहले 26 नवम्‍बर 1949 को ही लागू कर दिया गया था.
  • भारत निर्वाचन आयोग का गठन भारत के गणतंत्र बनने के एक दिन पहले 25 जनवरी 1950 को हो गया था. निर्वाचन आयोग लोकसभा, राज्य सभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव करवाता है.
  • भारतीय संविधान का भाग 15 चुनावों से संबंधित है. संविधान के अनुच्छेद 324 से 329 तक चुनाव आयोग और सदस्यों की शक्तियों, कार्य, कार्यकाल, पात्रता आदि से संबंधित हैं.
  • मूल संविधान में निर्वाचन आयोग में केवल एक चुनाव आयुक्त का प्रावधान था. 1 अक्तूबर, 1993 को इसे तीन सदस्यीय आयोग वाला कर दिया गया. तब से निर्वाचन आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त होते हैं.

न्याय प्रणाली में सुधार के लिए संसद में तीन विधेयक पेश किए गए

भारत में न्याय प्रणाली में सुधार के लिए तीन विधेयक पेश किए गए हैं। ये विधेयक केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 11 अगस्त को लोक सभा में प्रस्तुत किया था। इन विधेयकों में भारतीय न्याय संहिता विधेयक 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023 शामिल हैं.

ये विधेयक औपनिवेशिक काल में बने वर्तमान तीन कानूनों की जगह लेंगे. भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860 की जगह भारतीय न्याय संहिता 2023, आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) 1898 की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023; और भारतीय साक्ष्य संहिता (आईईए) 1872 की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 प्रभाव में आ जाएगा.

वर्तमान कानूनों में 313 बदलाव किए गए हैं, जिनका उद्देश्य आपराधिक न्याय प्रणाली को सशक्‍त बनाना है.

महिलाओं और बच्चों को त्वरित न्याय दिलाने के लिए विशेष प्रावधान किये गये हैं. संपूर्ण आपराधिक न्याय प्रणाली को डिजिटल बनाने पर विशेष ध्यान दिया गया है.

विधेयक के मुख्य बिन्दु

  • नई सीआरपीसी में 356 धाराएं होंगी जबकि पहले उसमें कुल 511 धाराएं होती थी.
  • सबूत जुटाने के टाइव वीडियोग्राफी करनी जरूरी होगी.
  • जिन भी धाराओं में 7 साल से अधिक की सजा है वहां पर फॉरेंसिक टीम सबूत जुटाने पहुंचेगी.
  • राज्य में किसी भी पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करने की अनुमति देता है, चाहे अपराध कहीं भी हुआ हो.
  • 3 साल तक की सजा वाली धाराओं का समरी ट्रायल होगा. इससे मामले की सुनवाई और फैसला जल्द आ जाएगा.
  • 90 दिनों के अंदर चार्जेशीट दाखिल करनी होगी और 180 दिनों के अंदर हर हाल में जांच समाप्त की जाएगी.
  • चार्ज फ्रेम होने के 30 दिन के भीतर न्यायाधीश को अपना फैसला देना होगा.
  • गलत पहचान देकर यौन संबंध बनाने वालों को अपराध की श्रेणी में लाया जाएगा. गैंगरेप के सभी मामलों में 20 साल की सजा या आजीवन कारावास की सजा होगी.
  • 18 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ यौन शोषण मामले में मौत की सजा का प्रावधान जोड़ा जाएगा.
  • राजद्रोह कानून पूरी तरह से खत्म किया गया है.

संसद ने अंतर-सेना संगठन सहित चार विधेयकों को पारित किया

संसद ने 8 अगस्त को चार विधेयकों को पारित किया था. इनमें अंतर-सेना संगठन (कमान, नियंत्रण और अनुशासन) विधेयक-2023, भारतीय प्रबंधन संस्‍थान (संशोधन) विधेयक 2023, राष्ट्रीय नर्सिंग और मिडवाइफरी आयोग विधेयक 2023 तथा राष्ट्रीय दंत चिकित्सा आयोग विधेयक, 2023 शामिल हैं.

अंतर-सेना संगठन विधेयक: संसद ने अंतर-सेना संगठन (कमान, नियंत्रण और अनुशासन) विधेयक-2023 अंतर-सेना संगठनों के ऑफिसर इन कमांड को उनकी कमान के अंतर्गत कर्मियों पर अनुशासनात्मक और प्रशासनिक नियंत्रण रखने का अधिकार देता है. विधेयक का मुख्य उद्देश्य तीनों सेनाओं में बेहतर समन्वय कायम करना है.

भारतीय प्रबंधन संस्‍थान (संशोधन) विधेयक: इस विधेयक में भारतीय प्रबंधन संस्थान अधिनियम 2017 में संशोधन का प्रस्ताव है. इसमें भारतीय प्रबंधन संस्‍थानों को राष्‍ट्रीय महत्‍व के संस्‍थान घोषित किया गया है. नए अधिनियम के अंतर्गत आईआईएम निदेशक की नियुक्ति चयन समिति की सिफारिशों के आधार पर बोर्ड ऑफ गवर्नर्स द्वारा की जाएगी. इसके लिए पहले कुलाध्‍यक्ष की मंजूरी लेनी होगी.

राष्ट्रीय नर्सिंग और मिडवाइफरी आयोग विधेयक: इस विधेयक 2023 में नर्सिंग और मिडवाइफरी पेशेवरों द्वारा शिक्षा और सेवाओं के मानकों के विनियमन और रखरखाव का प्रावधान किया गया है. विधेयक में राष्ट्रीय नर्सिंग और मिडवाइफरी आयोग के गठन का प्रावधान है. इसमें 29 सदस्य होंगे. विधेयक के अनुसार, प्रत्येक राज्य सरकार को एक राज्य नर्सिंग और मिडवाइफरी आयोग का गठन करना होगा, जहां राज्य कानून के तहत ऐसा कोई आयोग मौजूद नहीं है.

राष्ट्रीय दंत चिकित्सा आयोग विधेयक: इस विधेयक का उद्देश्य देश में दंत चिकित्सा के पेशे को विनियमित कर गुणवत्तापूर्ण और किफायती दंत चिकित्सा शिक्षा प्रदान करना है. यह विधेयक दंत चिकित्सक अधिनियम, 1948 को निरस्त करने के लिए लाया गया. इसमें दंत चिकित्सा शिक्षा और दंत चिकित्सा के मानकों को विनियमित करने के लिए राष्ट्रीय दंत आयोग, दंत सलाहकार परिषद और तीन स्वायत्त बोर्डों के गठन का प्रावधान है.

मध्यस्थता विधेयक 2023 संसद में पारित

संसद ने हाल ही में मध्यस्थता विधेयक (Mediation Bill) 2023 पारित किया था. लोकसभा ने इसे 7 अगस्त को पारित किया था जबकि राज्य सभा इसे पहले ही मंजूरी दे चुकी थी.

मुख्य बिन्दु

  • विधेयक में व्यक्तियों को किसी भी न्यायालय न्यायाधिकरण में जाने से पहले मध्यस्थता के माध्यम से विवादों को निपटाने का अवसर देने का प्रावधान है. विधेयक में भारतीय मध्यस्थता परिषद की स्थापना का प्रावधान भी है.
  • एक पक्ष दो मध्यस्थता सत्रों के बाद मध्यस्थता से हट सकता है. मध्यस्थता प्रक्रिया 180 दिनों के अन्दर पूरी की जानी चाहिए तथा इसे और 180 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है.
  • यह विधेयक जीवन में सुगमता लाएगा. इस विधेयक से मध्यस्थता केंद्रों को कानूनी मदद मिलेगी. इससे मुकदमों पर खर्च और उसका बोझ भी कम होगा.

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्‍ली सरकार संशोधन विधेयक-2023 पारित

संसद ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली-(संशोधन) विधेयक (Government of NCT of Delhi (Amendment) Bill) 2023 पारित किया है. राज्यसभा ने इस विधेयक को 7 अगस्त को पारित किया था, जबकि लोकसभा पहले ही इस विधेयक पारित कर चुकी थी. यह विधेयक, सेवाओं से संबंधित केंद्र के अध्यादेश का स्थान लेगा. 19 मई 2023 को राष्ट्रपति ने अध्यादेश जारी किया था.

राज्यसभा में विधेयक के पक्ष में 131 सांसदों ने जबकि विपक्ष में 102 सांसदों ने वोट किया. लोकसभा में यह विधेयक ध्वनि मत से ही पारित हो गया था.

विधेयक के मुख्य बिन्दु

  • इस विधेयक में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम 1991 में संशोधन का प्रावधान है. यह केंद्र सरकार को अधिकारियों के कार्यों, नियमों और सेवा की अन्य शर्तों सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के मामलों के संबंध में नियम बनाने का अधिकार देता है.
  • इसमें राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण के गठन का भी प्रावधान है. इस प्राधिकरण में दिल्ली के मुख्यमंत्री, दिल्ली के मुख्य सचिव और दिल्ली के प्रधान गृह सचिव शामिल होंगे.
  • प्राधिकरण अधिकारियों के स्थानांतरण और नियुक्तियों तथा अनुशासनात्मक कार्रवाइयों के मामलों के संबंध में दिल्ली के उपराज्यपाल को सिफारिशें देगा.

संवैधानिक पहलू

  • दिल्‍ली संघ प्रदेश है जो एक विशेष अनुच्‍छेद (आर्टिकल) के तहत बनाया गया है. 239AA, 3-B के तहत संसद को दिल्‍ली संघ राज्‍य क्षेत्र या उसके किसी भी भाग के लिए उसके संबंधित किसी भी विषय के लिए कानून बनाने का पूर्ण अधिकार है.
  • भारतीय संविधान के 69वें संशोधन, 1992 के दो नए अनुच्छेद 239AA और 239AB जोड़े गए थे, जिसके अंतर्गत केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली को विशेष दर्जा दिया गया है.
  • अनुच्छेद 239AA के अंतर्गत केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली को ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली’ बनाया गया और इसके प्रशासक को उपराज्यपाल (Lt. Governor) नाम दिया गया.
  • 69वें संविधान संशोधन में दिल्ली के लिये विधानसभा की व्यवस्था की गई जो पुलिस, भूमि और लोक व्यवस्था के अतिरिक्त राज्य सूची और समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बना सकती है.
  • यह दिल्ली के लिये एक मंत्रिपरिषद का भी प्रावधान करता है, जिसमें मंत्रियों की कुल संख्या विधानसभा के कुल सदस्यों की संख्या के 10% से अधिक नहीं होगी.
  • अनुच्छेद 239AB के मुताबिक, राष्ट्रपति अनुच्छेद 239AA के किसी भी प्रावधान या इसके अनुसरण में बनाए गए किसी भी कानून के किसी भी प्रावधान के संचालन को निलंबित कर सकता है. यह प्रावधान अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) जैसा है.

संसद ने चलचित्र संशोधन विधेयक-2023 पारित किया

संसद ने चलचित्र संशोधन विधेयक (Cinematograph Amendment Bill) 2023 पारित किया है. इस विधेयक में चलचित्र अधिनियम-1952 में संशोधन का प्रवाधान है, जिसके अंतर्गत केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड से जारी प्रमाणपत्र दस वर्ष के लिए वैध होता था. अब यह प्रमाण पत्र हमेशा के लिए वैध माना जाएगा.

विधेयक के मुख्य बिन्दु

  • इस विधेयक में फिल्मों की अनधिकृत रिकार्डिंग पर प्रतिबंध लगाने तथा लाइसेंस देने की प्रक्रिया को आसान करने का प्रावधान है. यह विधेयक पायरेसी के कारण फिल्‍म को होने वाले नुकसान से बचायेगा.
  • अनधिकृत रिकॉर्डिंग करना अपराध की श्रेणी में रखा गया है, जिसके तहत तीन महीने से लेकर तीन साल तक की सजा हो सकती है. साथ ही तीन लाख रुपये तक और फिल्‍म की सकल उत्पादन लागत का, पांच प्रतिशत जुर्माने के रूप में देना होगा.
  • इस विधेयक में आयु के आधार पर प्रमाणपत्र की कुछ अतिरिक्‍त श्रेणियों को जोड़ने का भी प्रावधापन है. ‘A’ या ‘S’ प्रमाणपत्र वाली फिल्मों को टीवी या किसी अन्य मीडिया पर दिखाने के लिए, अलग से प्रमाणपत्र लेना होगा.
  • विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर ने कहा कि पायरेसी के कारण फिल्म उद्योग को हर साल लगभग 22 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है.