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केंद्रीय जल आयोग रिपोर्ट: देश में सूख रहीं नदियां, 13 में नहीं बचा पानी

केंद्रीय जल आयोग (CWC) ने देश में सूख रहीं नदियों को लेकर हाल ही में हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की थी. इस रिपोर्ट में दिए गए आंकड़ों के अनुसार भारत की नदियां लगातार सूख रही हैं.

CWC के आँकड़े: मुख्य बिन्दु

  • महानदी और पेन्नार के बीच पूर्व की ओर बहने वाली 13 नदियों में इस समय पानी नहीं है. इनमें रुशिकुल्या, बाहुदा, वंशधारा, नागावली, सारदा, वराह, तांडव, एलुरु, गुंडलकम्मा, तम्मिलेरु, मुसी, पलेरु और मुनेरु शामिल हैं.
  • आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा राज्यों के 86,643 वर्ग किमी क्षेत्र से बहती हुईं नदियां सीधे बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं. इस बेसिन में कृषि भूमि कुल क्षेत्रफल का लगभग 60 फीसदी है. विशेषज्ञों के मुताबिक, गर्मी के कारण पहले ही यह स्थिति चिंताजनक है.
  • देश के 150 प्रमुख जलाशयों में जल भंडारण क्षमता 36 फीसदी तक गिर चुकी है. छह जलाशयों में कोई जल भंडारण दर्ज नहीं किया गया है. वहीं, 86 जलाशय ऐसे हैं जिनमें भंडारण या तो 40 प्रतिशत या उससे कम है.  इनमें से ज्यादातर दक्षिणी राज्यों, महाराष्ट्र और गुजरात में हैं.
  • 11 राज्यों के लगभग 2,86,000 गांव गंगा बेसिन पर स्थित हैं, जहां पानी की उपलब्धता धीरे-धीरे घट रही है. विशेषज्ञों के मुताबिक, यह चिंता की बात है, क्योंकि यहां कृषि भूमि कुल बेसिन क्षेत्र का 65.57 फीसदी है.
  • नर्मदा, तापी, गोदावरी, महानदी और साबरमती नदी घाटियों में उनकी क्षमता के सापेक्ष क्रमशः 46.2 फीसदी, 56, 34.76, 49.53 और 39.54 फीसदी भंडारण रिकॉर्ड किया गया.
  • कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्य वर्षा की कमी के कारण सूखे से जूझ रहे हैं, जिससे देश के प्रमुख जलाशय सूख गए हैं. चिंताजनक बात यह है कि इसमें से 7.8% क्षेत्र अत्यधिक सूखे की स्थिति में है.

भारत ने वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान जलवायु अनुकूलन पर 13.35 लाख करोड़ रुपये खर्च किये

भारत ने वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान जलवायु अनुकूलन पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का 5.5 प्रतिशत से अधिक लगभग 13.35 लाख करोड़ रुपये खर्च किये. इसकी जानकारी भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क को सौंपी गई रिपोर्ट में दी गई है.

मुख्य बिन्दु

  • भारत ने यह जानकारी भी दी है कि इस प्रयोजन से अगले सात वर्ष में लगभग 57 लाख करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे ताकि जलवायु परिवर्तन की स्थिति को और अधिक प्रतिकूल होने से रोका जा सके.
  • जलवायु अनुकूलन प्रयास, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए किये जाते हैं और इसका उद्देश्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाना है.
  • इसके लिए किये जा रहे प्रयासों में समुद्र के बढ़ते जलस्तर को देखते हुए दीवाल खड़ी करना, तापमान से अप्रभावित रहने वाली फसलें विकसित करना, तापमान को नियंत्रित करने की योजना बनाना और आपदाओं से मुकाबला कर सकने वाले बुनियादी ढांचे तैयार करना शामिल हैं.
  • वैश्विक जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क के अंतर्गत हर देश अपने यहां हो रहे ग्रीन गैस उत्सर्जन का वार्षिक आकलन कर संयुक्त राष्ट्र को जानकारी उपलब्ध कराता है.
  • इसी क्रम में भारत ने क्योटो-प्रोटोकोल के तहत संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क को अपनी रिपोर्ट दी है.

अंटार्कटिका में विश्‍व का सबसे बड़ा बर्फ का पहाड़ ‘A-76’ टूटा

अंटार्कटिका से बर्फ का एक विशाल पहाड़ (हिमखंड) टूटकर अलग हो गया है. यह दुनिया में सबसे बड़ा हिमखंड है. यह हिमखंड 170 किलोमीटर लंबा है और करीब 25 किलोमीटर चौड़ा है. इस हिमखंड के टूटने की तस्‍वीर को यूरोपीय यूनियन के सैटलाइट कापरनिकस सेंटीनल ने ली है.

यह हिमखंड अंटारकर्टिका के पश्चिमी हिस्‍से में स्थित रोन्‍ने ‘आइस सेल्‍फ’ (ice shelves) से टूटा है. यह हिमखंड टूटने के बाद अब समुद्र में स्‍वतंत्र होकर तैर रहा है. इस महाकाय हिमखंड का पूरा आकार 4320 किलोमीटर है. इसे A-76 नाम दिया गया है.

मुख्य बिंदु

  • नैशनल स्‍नो एंड आइस डेटा सेंटर के मुताबिक इस हिमखंड के टूटने से समुद्र के जलस्‍तर में वृद्धि होगी. यह हिमखंड समुद्र के धाराओं की गति को धीमा कर सकता है.
  • अंटारर्कटिका धरती के अन्‍य हिस्‍सों की तुलना में ज्‍यादा तेजी से गरम हो रहा है. अंटारकर्टिका में बर्फ के रूप में इतना पानी जमा है जिसके पिघलने पर दुनियाभर में समुद्र का जलस्‍तर 200 फुट तक बढ़ सकता है.
  • ग्लेशियर के बर्फ की परतें समुद्रस्तर को बढ़ाने से रोकने में बफर का काम करती हैं. जब ये टूटकर गिरती हैं तो ग्लेशियर से महासागर में भारी मात्रा में पानी जाता है. इसका असर पूरी दुनिया के तटीय इलाकों में होता है.
  • अगर वैश्विक तापमान 2 डिग्री सेल्सियस ही बढ़ जाता है तो आधा इलाका खतरे की जद में होगा. जीवाश्म आधारित ईंधन के स्रोतों पर निर्भरता कम करने के लिए 2030 तक का समय है जिससे तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़त तक सीमित किया जा सकता है.

विश्व आर्थिक मंच ने ‘ऊर्जा ट्रांजीशन सूचकांक-2021 जारी किया

विश्व आर्थिक मंच (WEF) ने हाल ही में ‘ऊर्जा ट्रांजीशन सूचकांक’ (Energy Transition Index- ETI)- 2021 जारी किया था. इस सूचकांक में दुनिया के 115 देशों की ऊर्जा प्रणाली के प्रदर्शन स्तर पर सर्वेक्षण किया गया है.

सर्वेक्षण में 115 देशों के ‘नेट-शून्य उत्सर्जन’ (Net-Zero Emissions) के मामले में अग्रणी देशों का विश्लेषण किया जाता है. मानव द्वारा उत्सर्जित ‘ग्रीनहाउस गैस’ (Greenhouse Gas- GHG) को वायुमंडल से पूरी तरह हटाने को ‘नेट-शून्य उत्सर्जन’ की स्थिति कहा जाता है.

ऊर्जा ट्रांजीशन सूचकांक (ETI)-2021: मुख्य बिंदु

  • स्वीडन लगातार चौथे वर्ष ETI रैंकिंग में शीर्ष स्थान पर रहा है, इसके बाद नॉर्वे और डेनमार्क का स्थान है. सूचकांक में स्विट्जरलैंड चौथे और ऑस्ट्रिया पांचवें स्थान पर है.
  • शीर्ष स्थान पर वे देश रहे हैं जिन्होंने अपने ऊर्जा आयात तथा ऊर्जा सब्सिडी में कमी की है तथा राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में प्रतिबद्धता व्यक्त की है.

भारत और चीन

भारत इस सूचकांक में 87वें और चीन 68वें स्थान पर है. इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत सब्सिडी सुधारों के माध्यम से ऊर्जा बदलाव ला रहा है. दूसरी ओर, चीन निवेश और बुनियादी ढांचे के माध्यम से नवीकरण का विस्तार कर रहा है. वैश्विक ऊर्जा मांग का एक-तिहाई हिस्सा भारत और चीन में हैं.

विश्व आर्थिक मंच (WEF): एक दृष्टि

विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) एक गैर-लाभकारी संस्था है. वर्ष 1971 में स्थापित विश्व आर्थिक मंच का मुख्यालय स्विट्जरलैंड में है.

जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अमेरिका और चीन में सहमति

जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए चीन और अमेरिका ने दूसरे देशों के साथ मिलकर काम करने पर सहमति जताई हैं. यह सहमति चीन के जलवायु दूत शी झेनहुआ ​​और उनके अमेरिकी समकक्ष जॉन केरी के बीच शंघाई में हाल ही में हुई कई बैठकों के बाद बनी है. 18 अप्रैल को जारी एक संयुक्त बयान में दोनों ने उत्सर्जन कम करने के लिए भविष्य में उठाए जाने वाले विशेष कदमों पर भी अपनी सहमति जताई.

जलवायु परिवर्तन पर अमेरिका और चीन में सहमति: मुख्य बिंदु

  • दोनों देश ‘पेरिस समझौते’ के अनुरूप धरती के तापमान को तय सीमा के भीतर रखने के उद्देश्य से उत्सर्जन कम करने के लिए इस दशक में ठोस कार्रवाई करने पर अपनी चर्चा जारी रखेंगे.
  • दोनों देश विकासशील देशों को कम कार्बन उत्सर्जन करने वाले ऊर्जा के स्रोतों को अपनाने के लिए धन मुहैया कराने पर भी सहमत हुए हैं.
  • वैज्ञानिकों ने चेताया है कि दुनिया के तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर की तुलना में दो डिग्री से भी कम बढ़ने का लक्ष्य रखना चाहिए.
  • दोनों देशों ने स्वीकार किया है कि पूंजी के प्रवाह को ज्यादा कार्बन उत्सर्जित करने वाली परियोजनाओं की बजाय कम-कार्बन परियोजनाओं की ओर मोड़ना चाहिए. दोनों देशों ने अपने उत्सर्जन को और भी कम करने का वादा किया है.

चीन को 588 बिजली घरों को बंद कर देना चाहिए

हाल की एक रिपोर्ट में कहा गया कि चीन को जलवायु पर अपने वादे पूरा करने के लिए कोयला से चलने वाले 588 बिजली घरों को बंद कर देना चाहिए. इस वक़्त अर्थव्यवस्था बढ़ाने के लिए इसके कई इलाकों में कई नए कोयला चालित बिजली घर बनाए जा रहे हैं.

अमेरिका द्वारा वर्चुअल जलवायु सम्मेलन का आयोजन

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन विश्व पृथ्वी दिवस यानी 22 अप्रैल को एक वर्चुअल जलवायु सम्मेलन का आयोजन कर रहे हैं. इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित कई देशों के प्रमुखों के भाग लेने की उम्मीद है. हालांकि अब तक यह साफ नहीं है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस सम्मेलन में भाग लेंगे या नहीं.

भारत ने पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए समिति का गठन किया

भारत ने जलवायु परिवर्तन पर 2015 के पेरिस समझौते (AIPA) के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हाल ही में एक शीर्ष समिति का गठन किया है. पेरिस यह समझौता आधिकारिक रूप से 1 जनवरी 2021 से लागू होगा.

इस समिति में 17 सदस्य को शामिल किया गया है जिसमें केंद्र सरकार के 13 प्रमुख मंत्रालयों के सदस्य शामिल होंगे. पर्यावरण सचिव आरपी गुप्ता इस समिति के अध्यक्ष होंगे. यह समिति संबंधित मंत्रालयों की जिम्मेदारियों को परिभाषित करेगी और जलवायु संबंधी लक्ष्यों की निगरानी, ​​समीक्षा और पुनरीक्षण करेगी.

यह समिति पेरिस समझौते के तहत भारत में कार्बन बाजारों को विनियमित करने के लिए एक राष्ट्रीय प्राधिकरण के रूप में काम करेगा. इसके पास पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 5 के तहत उद्योगों या किसी भी संस्था को भारत के लक्ष्यों के अनुरूप क्लीनर प्रयासों के अनुपालन के लिए दिशा-निर्देश जारी करने की शक्ति होगी.

जानिए क्या है UNFCCC COP और पेरिस समझौता…»

न्यूजीलैंड ने जलवायु आपातकाल की घोषणा की, 2025 तक कार्बन उत्सर्जन तटस्थ करने का वादा

न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न ने देश में जलवायु आपातकाल (क्लाइमेट इमरजेंसी) की घोषणा की है. वहां की संसद ने इससे संबंधित एक विधेयक 2 दिसम्बर को पारित किया. इस विधेयक के मुताबिक, देश के सभी सरकारी विभागों और इंस्टीट्यूशन्स को साल 2025 तक कार्बन न्यूट्रल किया जाएगा. यानी यहां कार्बन उत्सर्जन नहीं होगा.

इससे पहले ब्रिटेन, कनाडा और फ्रांस सहित दुनिया में करीब 30 देशों ने जलवायु आपातकाल की घोषणा कर चुके हैं. जलवायु आपातकाल, ग्लोबल वार्मिंग के औसत लेवल को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने के लक्ष्य के लिए किया गया है.

अमेरिका जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते से औपचारिक रूप से अलग हुआ

अमेरिका 4 नवंबर को औपचारिक रूप से ‘जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते 2015’ से अलग हो गया। यह जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के तहत एक समझौता है, जो नवंबर 2016 से प्रभावी हुआ था।

पेरिस समझौते के तहत देशों को तापमान में दो डिग्री सेल्सियस से कम वृद्धि रखने और वैश्विक ऊष्मा को 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक न होने देने का संकल्प लेना होता है। अगस्त 2017 में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने समझौते से पीछे हटने के फैसले से संयुक्त राष्ट्र महासचिव को अवगत कराया था।

जानिए क्या है UNFCCC COP और पेरिस समझौता…»

ग्रेटा थनबर्ग को गुलबेनकियन पुरस्कार से सम्मानित किया गया

पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग को मानवता के लिए हाल ही में ‘पहला गुलबेनकियन पुरस्कार’ (Inaugural Gulbenkian Prize) से सम्मानित किया गया था. उन्हें जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए युवा पीढ़ियों को जागरुक करने के उनके प्रयासों के लिए सम्मानित किया गया है. उन्हें पुरस्कार के रूप में 1 मिलियन यूरो राशि दी गयी थी.

ग्रेटा थनबर्ग कौन है?

ग्रेटा थनबर्ग (Greta Thunberg) स्वीडन की 17 वर्षीय पर्यावरण कार्यकर्ता हैं. उनके पर्यावरण आन्दोलन को अन्तर्राष्ट्रीय पहचान मिली है. वह 2018 में, 15 की उम्र में, जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर लोगों में जागरुकता पैदा करने के लिए स्वीडिश संसद के बाहर विरोध प्रदर्शन शुरू करने बाद सुर्खिया में आई थी.

ग्रेटा ने स्वीडन की संसद के बाहर विरोध-प्रदर्शन के लिए हर शुक्रवार अपना स्कूल छोड़ा था जिसे देखकर कई देशों में #FridaysForFuture के साथ एक मुहिम शुरू हो गई. दिसम्बर 1019 में इन्हे ‘टाइम पर्सन ऑफ़ द इयर’ पुरस्कार प्रदान किया गया था.

गुलबेनकियन पुरस्कार: एक दृष्टि

गुलबेनकियन पुरस्कार कैलूस्टे गुलेनबेकियन फाउंडेशन द्वारा प्रदान किया जाता है. इस पुरस्कार का वितरण समारोह पुर्तगाल में आयोजित किया जाता है. यह पुरस्कार जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर अपनी नवीनता, नवाचार और प्रभावी प्रयासों के लिए दिया जाता है.

ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को दर्शाने वाला पहला राष्ट्रीय ‘जलवायु पूर्वानुमान मॉडल’ विकसित

‘भारतीय मौसम विज्ञान संस्थान’ (Indian Institute of Tropical Meteorology- IITM)- पुणे ने हाल ही में एक जलवायु पूर्वानुमान मॉडल (National Climate Assessment) विकसित किया है. यह मॉडल भारतीय उपमहाद्वीप पर ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के प्रभाव को दर्शाने वाला प्रथम राष्ट्रीय ‘जलवायु पूर्वानुमान मॉडल’ है.

यह मॉडल इस अवधारणा पर आधारित है कि वैश्विक समुदाय द्वारा ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन पर अंकुश लगाने की दिशा में कोई प्रयास नहीं किये गए तो जलवायु परिवर्तन की क्या स्थिति होगी. यह ‘जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल’ (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) का एक भाग है. इसकी रिपोर्ट 2022 तक तैयार होने की उम्मीद है.

जलवायु पूर्वानुमान मॉडल के मुख्य बिंदु

  • वर्ष 1901-2018 के दौरान भारत का औसत तापमान 0.7°C बढ़ा है. इस तापमान वृद्धि का प्रमुख कारण ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन है.
  • वर्ष 1986-2015 के बीच की अवधि में सबसे गर्म दिन तथा सबसे ठंडी रातों के तापमान में क्रमशः 0.63°C और 0.4°C की वृद्धि हुई है.
  • 21वीं सदी के अंत तक दिन तथा रात के तापमान में वर्ष 1976-2005 की अवधि की तुलना में लगभग 4.7°C और 5.5°C वृद्धि होने का अनुमान है.
  • वर्ष 2040 तक, वर्ष 1976-2005 की अवधि की तुलना में तापमान में 2.7°C और इस सदी के अंत तक तापमान में 4.4°C वृद्धि होने का अनुमान है.
  • भारत की जलवायु में तेज़ी से परिवर्तन के कारण देश की प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र, कृषि उत्पादकता और जल संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा.
  • वर्षा के पैटर्न में व्यापक बदलाव देखने को मिला है. वर्षा की तीव्रता में वृद्धि हुई है लेकिन वर्षा-अंतराल में लगातार वृद्धि हुई है. अरब सागर से उत्पन्न होने वाले अत्यधिक गंभीर चक्रवातों की आवृत्ति में वृद्धि हुई है.
  • मुंबई तट के साथ समुद्र स्तर में प्रति दशक में 3 सेमी की वृद्धि जबकि कोलकाता तट के साथ प्रति दशक में 5 सेमी की वृद्धि दर्ज की गई है.

वैज्ञानिकों ने घोंघे की एक नई प्रजाति खोजी, ग्रेटा थनबर्ग का नाम दिया

ब्रुनेई में वैज्ञानिकों ने घोंघे की एक नई प्रजाति की खोज की है. इस प्रजाति का नाम पर्यावरण एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग के नाम पर ‘क्रास्पेडोट्रोपिस ग्रेटाथनबर्ग’ रखा गया है. यह घेंघा दो मिमी लंबा और एक मिमी चौड़ा है.

घोंघों की यह प्रजाति ‘केनोगैस्ट्रोपॉड्स’ समूह से संबंधित है. जमीन पर रहने वाली इस प्रजाति पर सूखा, तापमान में अत्यधिक उतार-चढ़ाव और जंगलों की कटाई का असर होता है. नई प्रजाति के घोंघे ब्रूनेई के कुआला बेलालॉन्ग फील्ड स्टबडीज सेंटर के करीब पाए गए.

घोंघे का तापमान के प्रति संवेदनशील होने के कारण इसका नाम ग्रेटाथनबर्ग पर गया है. ग्रेटा जलवायु परिवर्तन को लेकर दुनियाभर में जागरुकता फैलाने का काम कर रही हैं. यह सम्मान इन्हीं प्रयासों को देखते दिया गया है.

वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्रेटा थनबर्ग के नाम पर इसका नामकरण करने के पीछे हमारा उद्देश्य यह बताना है कि थनबर्ग की पीढ़ी को उन समस्याओं का समाधान भी ढूंढना होगा, जिन्हें उन्होंने पैदा नहीं किया.

ग्रेटा थनबर्ग: एक दृष्टि

ग्रेटा थनबर्ग जलवायु परिवर्तन के ख़तरों पर केंद्रित एक स्वीडिश पर्यावरण कार्यकर्ता हैं. अगस्त 2018 में, 15 वर्ष की उम्र में, ग्रेटा थनबर्ग ने स्वीडन की संसद के समक्ष पेरिस समझौते के मुताबिक कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए विरोध प्रदर्शन किये जाने के कारण चर्चित हो गयीं थीं. 11 दिसम्बर 2019 को इन्हें ‘टाइम पर्सन ऑफ़ द इयर’ का अवॉर्ड दिया गया था.

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन (Climate Action Summit) को संबोधित करते हुए थनबर्ग ने विकसित देशों पर अपनी प्रतिबद्धताएं पूरी न करने का आरोप लगाया था. विश्व नेताओं को भावुकता से संबोधित करते हुए ग्रेटा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण लोग यातना झेल रहे हैं, मर रहे हैं और पूरी पारिस्थितिकीय प्रणाली ध्वस्त हो रही है.

मैड्रिड में अन्तर्राष्ट्रीय जलवायु सम्मेलन ‘COP 25’ आयोजित किया गया

स्पेन के मैड्रिड में 2 से 14 दिसम्बर तक संयुक्त राष्ट्र का जलवायु सम्मेलन ‘COP 25’ (UN Climate Change Conference- UNFCCC COP 25) का आयोजन किया गया. यह सम्मेलन चिली में आयोजित किया जाना था लेकिन देश में बढ़ते विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए इसके आयोजन में असमर्थता जताई थी. इस सम्मेलन में लगभग 200 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया.

दुनिया भर में, तापमान में वृद्धि, जंगलों में आग, बाढ़, सूखा आदि की बढती घटना को मानव निर्मित ग्लोबल वार्मिंग से जोड़ा जा रहा है, जो इस सम्मेलन के वार्ता का मुख्य हिस्सा था. इस जलवायु वार्ता में कार्बन बाजारों के बारे में कोई समझौता नहीं हो पाया.

यह सम्मेलन 2015 के पेरिस समझौते को पूरा करने में असफल रही जिसके कारण संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतेरेस ने इसे ग्लोबल वार्मिंग से लड़ने के लिए एक गंवाया हुआ मौका कहा. दो सप्ताह की इस लंबी वार्ता में प्रमुख मुद्दों जैसे कि अनुच्छेद 6, हानि और क्षति, और दीर्घकालीन वित्तीय सहायता पर कोई समझौता नहीं हो सका.

COP 25 सम्मेलन में दुनिया के करीब दो सौ देशों के प्रतिनिधियों ने सामूहिक घोषणा-पत्र जारी किया. इसमें धरती के बढ़ते तापमान के लिए जिम्‍मेदार ग्रीन हाउस गैसों के उत्‍सर्जन में कटौती तथा जलवायु परिवर्तन से प्रभावित गरीब देशों की मदद की बात कही गई. जलवायु परिवर्तन पर अगली वार्ता (COP 26) ग्‍लासगो में होगी.

COP 25 में वैज्ञानिकों ने भविष्य में ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए शीघ्र बड़े कदम उठाने की आवश्यकता बताई. सम्मेलन में पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन से संबंधित आपदाओं पर चर्चा की गई, जिसमें अप्रत्याशित चक्रवात, अकाल और रिकॉर्ड-तोड़ ‘लू’ शामिल था.

भारतीय जलवायु कार्यकर्ता लिसिप्रिया कांगुजम चर्चा में रही

COP25 जलवायु सम्मेलन में भारत की आठ वर्षीय जलवायु कार्यकर्ता लिसिप्रिया कांगुजम की उपस्थिति चर्चा में रही. उसने दुनिया को भावी पीढ़ियों के प्रति उसके दायित्‍यों को याद दिलाया. सम्मेलन के दौरान कंगुजाम ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव अन्तोनियो गुतरश गुतरेस से मुलाकात की और दुनिया के बच्चों की ओर से एक ज्ञापन प्रस्तुत किया.

संयुक्तराष्ट्र महासचिव का संबोधन

सम्मेलन को संबोधित करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव अन्तोनियो गुतरश गुतरेस ने जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए विश्व में किए जा रहे प्रयास अपर्याप्त बताया. उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन से धरती का तापमान बढने का खतरा काफी बढ़ गया है. महासचिव ने कहा कि धरती का तापमान बढ़ने और मौसम पर इसके तीव्र प्रभाव का असर दुनिया-भर में महसूस किया जा रहा है.

वैज्ञानिकों ने अनुत्क्रमणीय परिवर्तन की चेतावनी जारी की

COP25 सम्मेलन में वैज्ञानिकों ने जलवायु पर कोई कार्रवाई नहीं किये जाने पर ‘अनुत्क्रमणीय परिवर्तन’ की चेतावनी जारी की. “वर्ल्ड साइंटिस्ट्स वार्निंग ऑफ ए क्लाइमेट इमरजेंसी” के सह-लेखक, विलियम मूमाव ने कहा कि वर्तमान वैश्विक प्रतिबद्धताएं जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को रिवर्स करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं.

मोओमा द्वारा सह-लिखित एक अध्ययन जो नवंबर में बायोसाइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ था, जलवायु परिवर्तन के चलते होने वाली ‘अनकही पीड़ा’ की चेतावनी दी थी. इस अध्ययन का समर्थन 11,000 वैज्ञानिकों ने किया था.

भारतीय शिष्टमंडल का नेतृत्व पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने किया

भारत रचनात्‍मक और सकारात्‍मक परिप्रेक्ष्‍य के साथ इस सम्‍मेलन में भाग लिया. सम्मेलन में भारतीय शिष्टमंडल का नेतृत्व वन, पर्यावरण तथा जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने किया. सम्मेलन को संबोधित करते हुए पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने मैड्रिड जलवायु सम्‍मेलन में अपने दीर्घावधि विकास हितों की सुरक्षा पर कम करने की बात कही.

सम्‍मेलन के दौरान मंत्रिस्‍तरीय बैठक के पूर्ण सत्र में पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने और अधिक देशों से अंतरराष्‍ट्रीय सौर गठबंधन में शामिल होने का आह्वान किया है. ऊर्जा की बढ़ती मांग को देखते हुए जीवाश्‍म ईंधन पर निर्भरता कम करने के लिए 2015 में पेरिस में प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी और फ्रांस के तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति फ्रांस्‍वा ओलांद ने अंतरराष्‍ट्रीय सौर गठबंधन का शुभारंभ किया था.

पर्यावरण की रक्षा के लिए भारत द्वारा उठाये गये मुख्य कदम

भारत पिछले चार वर्ष में जलवायु परितर्वन से निपटने के कार्य करने में अग्रणी रहा है. देश के चार सौ पचास गीगावाट के महत्‍वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा कार्यक्रम ने पूरी दुनिया का ध्‍यान आकर्षित किया है. यह इस क्षेत्र में विश्‍व का सबसे बड़ा कार्यक्रम है.

भारत विश्‍व के कुछ ऐसे देशों में शामिल है, जहां वन क्षेत्र बढ़ा है. अंतर्राष्‍ट्रीय सौर गठजोड़ और आपदा अनुकूल बुनियादी ढांचे के लिए गठजोड़ का सबसे पहले प्रस्‍ताव कर प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने इस क्षेत्र में महत्‍वपूर्ण योगदान दिया है.
जानिए क्या है UNFCCC-COP और पेरिस समझौता