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सांसद महुआ मोइत्रा की संसद सदस्यता रद्द, जानिए किन परिस्थितियों में होती है सदस्यता रद्द

तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा की संसद सदस्यता 9 दिसम्बर को रद्द कर दी गई. लोकसभा की एथिक्स कमेटी की सिफ़ारिश पर मोइत्रा की सदस्यता रद्द की गई है. उनपर पैसे लेकर संसद में सवाल पूछने का मामला दर्ज किया गया था.

महुआ मोइत्रा पर आरोप था कि उन्होंने भारतीय कारोबारी गौतम अदानी और उनकी कंपनियों के समूह को निशाना बनाने के लिए रिश्वत लेकर लगातार संसद में सवाल पूछे. ये आरोप बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने लगाए थे.

संसद सदस्यता रद्द किन परिस्थितियों में होती है?

भारतीय संसद के इतिहास में अलग-अलग दौर में कई कारणों से राज्यसभा और लोकसभा सांसदों की सदस्यता रद्द हुई है. ऐसा भारतीय संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों, जन प्रतिनिधित्व से जुड़े क़ानूनों और संसदीय नियमों के तहत होता है. कमोबेश ऐसे ही नियम विधानसभा सदस्यों पर भी लागू होते हैं.

अनुच्छेद 101

  • अगर कोई सदस्य संसद के दोनों सदनों यानी लोकसभा और राज्यसभा के लिए चुन लिया जाता है तो उसे किसी एक सदन की सदस्यता से इस्तीफ़ा देना होता है. इसी के साथ, यह भी कहा गया है कि कोई सदस्य संसद और विधानसभा, दोनों का सदस्य नहीं हो सकता.
  • अगर संसद के किसी भी सदन का सदस्य बिना इजाज़त सभी बैठकों से 60 दिनों की अवधि तक ग़ैर-हाज़िर रहता है तो उसकी सीट ख़ाली घोषित की जा सकती है.

अनुच्छेद 102

  • कोई भी सदस्य अगर भारत सरकार या राज्य सरकार में ऐसे पद पर है, जो लाभ के पद की श्रेणी में आता है तो उसे अयोग्य घोषित किया जाता है.
  • अगर कोई सांसद किसी अदालत द्वारा मानसिक रूप से अस्वस्थ घोषित कर दिया जाए तो उसकी सदस्यता ख़त्म हो सकती है.
  • अगर कोई सांसद दीवालिया घोषित है और किसी अदालत से राहत नहीं मिली तो उसकी सदस्यता रद्द की जा सकती है.
  • अगर कोई व्यक्ति भारत का नागरिक न हो या फिर वह किसी और देश की नागरिकता ग्रहण कर ले तो उसकी सदस्यता रद्द कर दी जाएगी.
  • इसके अलावा, किसी और देश के प्रति निष्ठा जताने पर भी सदस्यता जा सकती है.
  • किसी सांसद की सदस्यता दसवीं अनुसूची (दल-बदल रोधी क़ानून) के तहत, अगर कोई सांसद उस पार्टी की सदस्यता छोड़ता है, जिससे वह चुना गया है तो उसकी सदस्यता रद्द हो जाएगी. हालांकि, इसके लिए अपवाद भी है. एक राजनीतिक दल किसी दूसरे दल में विलय कर सकता है, बशर्ते उसके कम से कम दो तिहाई विधायक विलय के पक्ष में हों.
  • दसवीं अनुसूची में ही यह प्रावधान किया गया है कि सांसद को अपनी पार्टी की ओर से जारी व्हिप का सम्मान करना होगा. अगर कोई सांसद किसी विषय पर मतदान के दौरान अपनी पार्टी के आदेशों का पालन ना करे या फिर वोटिंग से ग़ैर-हाजिर रहे तो उसकी सदस्यता रद्द की जा सकती है.

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम

  • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में प्रावधान है कि अगर कोई सांसद कुछ क़ानूनों के तहत दो साल या इससे अधिक की सज़ा पाता है तो उसकी सदस्यता जा सकती है.
  • अगर यह पाया जाए कि किसी सांसद ने अपने चुनावी हलफ़नामे में कोई ग़लत जानकारी दी है या फिर वह लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम का उल्लंघन करता है तो उसकी सदस्यता जा सकती है.
  • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों के तहत इन कारणों से सदस्यता रद्द हो सकती है:
  • आरक्षित सीटों पर ग़लत प्रमाण पत्र के आधार पर चुनाव लड़ना, दो समूहों के बीच नफ़रत फैलाना, चुनाव प्रभावित करना, घूस लेना, बलात्कार या महिलाओं के खिलाफ गंभीर अपराध, धार्मिक सौहार्द खराब करना, छुआछूत करना, प्रतिबंधित वस्तुओं का आयात-निर्यात.
  • संसद की आचार संहिता का उल्लंघन करने पर सदस्यता रद्द हो सकती है. संसद के दोनों सदनों में एथिक्स कमेटियां हैं, जो सांसदों के आचरण संबंधित शिकायतों की जांच कर करती हैं.
  • एथिक्स कमेटी को सदस्यों के ‘अनएथिकल’ व्यवहार की शिकायतों की जांच करके लोकसभा अध्यक्ष को सिफ़ारिशें भेजने का अधिकार है.
  • एथिक्स कमेटी को समय-समय पर नियम बनाने और उन्हें संशोधित करने का भी अधिकार है. महुआ मोइत्रा की संसद सदस्यता भी इसी एथिक्स कमेटी की सिफ़ारिश के आधार पर रद्द की गई है.
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संविधान का 106वां संशोधन: नारी शक्ति वंदन विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी

राष्‍ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने 29 सितम्बर को संविधान के 128वें संशोधन विधेयक (128th Constitutional Amendment Bill) 2023 को मंजूरी दे दी. संसद के विशेष सत्र में दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) ने हाल ही में संविधान इस संशोधन विधेयक को पारित किया था.

राष्‍ट्रपति की मंजूरी के बाद अब यह विधेयक कानून बन गया है. इसके अंतर्गत लोकसभा और राज्‍य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित की गई हैं.

मुख्य बिन्दु

  • नए संसद भवन में पारित होने वाला यह पहला विधेयक है. राज्यसभा में यह विधेयक सभी सदस्यों के समर्थन से पारित हुआ था. लोकसभा में दो सदस्यों को छोड़कर सभी सदस्यों ने समर्थन दिया था. इस विधेयक को पारित कराने के लिए दो तिहाई बहुमत आवश्यक था.
  • इस विधेयक का नाम ‘नारी शक्ति वंदन विधेयक’ (Nari Shakti Vandan Bill) दिया गया था. राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह विधेयक, अधिनियम (Nari Shakti Vandan Act) का रूप ले लिया है.
  • इससे पहले भारतीय संविधान में 105 संशोधन हो चुके थे. यह भारतीय संविधान का 106वां संशोधन (106th Constitutional Amendment) होगा. 106वें संशोधन के तहत भारतीय संविधान में एक नया अनुच्छेद 334A जोड़ा गया है.
  • नया अनुच्छेद प्रभावी होने के बाद 15 वर्षों की अवधि के लिए लोकसभा (330A), राज्य विधानसभाओं (332A) और दिल्ली विधान सभा (239AA) में एक तिहाई (33 प्रतिशत) सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित रहेगा. आरक्षण की अवधि संसद द्वारा और आगे बढ़ाई जा सकेगी.
  • इस विधेयक के लागू होने के बाद होने वाली जनगणना के प्रकाशन में आरक्षण प्रभावी होगा. जनगणना के आधार पर महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित करने हेतु परिसीमन किया जाएगा.
  • इस अधिनियम के तहत जनगणना के आधार पर, परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने के बाद महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित की जाएंगी.
  • अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए मौजूदा कोटे के अन्‍दर इन जातियों की महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण भी दिया गया है.
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आर वेंकटरमणी भारत के नए अटॉर्नी जनरल नियुक्त किए गए

वरिष्ठ अधिवक्ता आर वेंकटरमणी को तीन साल की अवधि के लिए भारत का नया अटॉर्नी जनरल नियुक्त किया गया है. रोहतगी ने केके वेणुगोपाल की जगह ली है जिनका कार्यकाल 30 सितंबर को समाप्त हो गया था.

भारत के महान्ययवादी (Attorney General): एक दृष्टि

  • भारतीय संविधान के अनुछेद 76 के अनुसार भारत के महान्ययवादी (अटॉर्नी जनरल) की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है. उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनने की योग्यता रखने वाले किसी व्यक्ति को राष्ट्रपति महान्यायवादी के पद पर नियुक्त कर सकते हैं.
  • देश के महान्यायवादी का कर्तव्य कानूनी मामलों में केंद्र सरकार को सलाह देना और कानूनी प्रकिया की उन जिम्मेदारियों को निभाना है जो राष्ट्रपति की ओर से उनके पास भेजे जाते हैं. इसके अतिरिक्त संविधान और किसी अन्य कानून के अंतर्गत उनका जो काम निर्धारित है, उनका भी पालन उन्हें पूरा करना होता है.
  • अपने कर्तव्य के निर्वहन के दौरान उन्हें देश के किसी भी न्यायालय में उपस्थित होने का अधिकार है. उन्हें संसद की कार्यवाही में भी भाग लेने का अधिकार है, हालांकि उनके पास मतदान का अधिकार नहीं होता. उनके कामकाज में सहायता के लिए सॉलिसिटर जनरल और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल होते हैं.
  • भारत के लिए पहले महान्ययवादी एमसी सीतलवाड हैं.
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अध्यक्षता में अंतर्राज्यीय परिषद का पुनर्गठन किया गया

सरकार ने हाल ही में अंतर्राज्यीय परिषद (ISC) का पुनर्गठन किया है. इस परिषद में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अध्यक्ष और सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और 16 केंद्रीय मंत्री सदस्य हैं.

राजनाथ सिंह, अमित शाह, निर्मला सीतारमण, नरेंद्र सिंह तोमर, वीरेंद्र कुमार, हरदीप सिंह पुरी, नितिन गडकरी, एस जयशंकर, अर्जुन मुंडा, पीयूष गोयल, धर्मेंद्र प्रधान, प्रल्हाद जोशी, अश्विनी वैष्णव, गजेंद्र सिंह शेखावत, किरेन रिजिजू और भूपेंद्र यादव केंद्रीय मंत्रियों में शामिल हैं.

सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित की अध्यक्षता में अंतर्राज्यीय परिषद की स्थायी समिति का भी पुनर्गठन किया है. आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री इस समिति के सदस्य होंगे. सदस्यों में केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण, नरेंद्र सिंह तोमर, वीरेंद्र कुमार और गजेंद्र सिंह शेखावत शामिल होंगे.

अंतर्राज्यीय परिषद: एक दृष्टि

  • न्यायमूर्ति आरएस सरकारिया की अध्यक्षता में वर्ष 1988 में गठित आयोग ने अंतर्राज्यीय परिषद स्थापित किये जाने की सिफारिश की थी.
  • अंतर्राज्यीय परिषद के अध्यक्ष, प्रधानमंत्री और सभी राज्यों के मुख्यमंत्री इसके सदस्य होते हैं. विधानसभा नहीं रखने वाले केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासक इसके सदस्य होते हैं. इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत केंद्रीय मंत्रिपरिषद में कैबिनेट रैंक के छह मंत्री भी इसके सदस्य होते हैं.
  • अंतर्राज्यीय परिषद का कार्य देश में सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने और उसका समर्थन करने के लिये एक मज़बूत संस्थागत ढाँचा तैयार करना है. अंतर्राज्यीय परिषद में केंद्र-राज्य तथा अंतर-राज्य संबंधों के सभी लंबित मुद्दों पर विचार किया जाता है. परिषद की एक वर्ष में कम-से-कम तीन बार बैठक हो सकती है.
  • अंतर्राज्यीय परिषद का एक स्थायी समिति भी होता है. स्थायी समिति की स्थापना वर्ष 1996 में परिषद के विचारार्थ मामलों के निरंतर परामर्श और प्रसंस्करण के लिये की गई थी. इसमें केंद्रीय गृह मंत्री अध्यक्ष और पांच केन्द्रीय मंत्री सदस्य होते हैं.
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भारतीय संविधान के 105वें संशोधन अधिनियम को मंजूरी दी गयी

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 105वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2021 को अपनी स्वीकृति दे दी. यह अधिनियम सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान उल्लिखित करने के लिए राज्य सरकारों की शक्ति को बहाल करता है. कानून और न्याय मंत्रालय ने इस आशय की अधिसूचना जारी की थी.

भारतीय संविधान का 105वां संशोधन

संसद के दोनों सदनों ने अगस्त 2021 के मानसून सत्र में इससे संबंधित 127वें संविधान संशोधन विधेयक 2021 को सर्वसम्मति से पारित किया था. राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद इस विधेयक ने भारतीय संविधान के 105वें संशोधन अधिनियम का रूप लिया है.

इस अधिनियम राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को अन्य पिछड़े वर्गों की सूची स्वयं बनाने का अधिकार बहाल करने का प्रावधान है. यह विधेयक अनुच्छेद 342A के खंड 1 और 2 में संशोधन करेगा.

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संविधान के रक्षक संत केशवानंद भारती का निधन

संविधान के मूल ढांचे का सिद्धांत दिलाने वाले संत केशवानंद भारती का 6 सितम्बर को केरल के इडनीर मठ में निधन हो गया. वे 79 साल के थे.

1973 में सुप्रीम कोर्ट ने ‘केशवानंद भारती बनाम स्टेट ऑफ केरल’ मामले में एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया था. इस निर्णय के अनुसार, संविधान की प्रस्तावना के मूल ढांचे को बदला नहीं जा सकता. इस निर्णय के कारण केशवानंद भारती को ‘संविधान का रक्षक’ भी कहा जाता है, क्‍योंकि इसी याचिका पर फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने व्‍यवस्‍था दी कि उसे संविधान के किसी भी संशोधन की समीक्षा का अधिकार है.

संविधान के मूल ढांचे में संशोधन नहीं किया जा सकता

23 मार्च 1973 को केशवानंद भारती मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने संविधान में संशोधन की संसद की शक्तियों पर निर्णय सुनाया था. इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद के पास संविधान के अनुच्‍छेद 368 के तहत संशोधन का अधिकार तो है, लेकिन संविधान के मूल ढांचे में से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती.

कोर्ट ने कहा कि संविधान के हर हिस्‍से में संशोधन हो सकता है, लेकिन उसकी न्‍यायिक समीक्षा होगी ताकि यह तय हो सके कि संविधान का आधार और मूल ढांचा बरकरार है. कोर्ट ने मूल संरचना को परिभाषित नहीं किया. इसने केवल कुछ सिद्धांतों को सूचीबद्ध किया जैसे कि धर्मनिरपेक्षता, संघवाद और लोकतंत्र.

भारती का केस जाने-माने वकील नानी पालकीवाला ने लड़ा था. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी व्‍यवस्‍था दी थी कि न्‍यायपालिका की स्‍वतंत्रता संविधान के मूल ढांचे का हिस्‍सा है, इसलिए उससे छेड़छाड़ नहीं की जा सकती.

अब तक का सबसे बड़ी पीठ ने सुनवाई की थी

यह फैसला शीर्ष अदालत की अब तक सबसे बड़ी पीठ ने दिया था. चीफ जस्टिस एसएम सीकरी और जस्टिस एचआर खन्‍ना की अगुवाई वाली 13 जजों की पीठ ने 7:6 से यह फैसला दिया था. इस मामले की सुनवाई 31 अक्टूबर 1972 को शुरू हुई और 23 मार्च 1973 को सुनवाई पूरी हुई थी.

सुप्रीम कोर्ट में याचिका का आधार

केशवानंद भारती केरल में कासरगोड़ जिले के इडनीर मठ के उत्‍तराधिकारी थे. केरल सरकार ने भूमि सुधार कानून बनाए थे जिसके जरिए धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधन पर नियंत्रण किया जाना था. इस कानून को संविधान की नौंवी सूची में रखा गया था ताकि न्‍यायपालिका उसकी समीक्षा न कर सके. साल 1970 में केशवानंद ने इसी भूमि सुधार कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

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भारत के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल को एक वर्ष का सेवा विस्तार दिया गया

भारत के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल को एक वर्ष का सेवा विस्तार दिया गया है। वेणुगोपाल का मौजूदा तीन साल का कार्यकाल 30 जून 2020 को समाप्त हो रहा था।

केके वेणुगोपाल देश के एक प्रमुख अधिवक्ता हैं, उन्हें 30 जून 2017 को देश के 15वें अटॉर्नी जनरल यानी महान्यायवादी के रूप में नियुक्त किया गया था. पद्मभूषण और पद्मविभूषण से अलंकृत संविधान विशेषज्ञ वेणुगोपाल ने मोरारजी देसाई की सरकार में भी करीब ढाई साल तक अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के रूप में काम किया था.

भारत के महान्ययवादी (Attorney General): एक दृष्टि

  • भारतीय संविधान के अनुछेद 76 के अनुसार भारत के महान्ययवादी (अटॉर्नी जनरल) की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है. उच्चतम न्यायालय का न्यायधीश बनने की योग्यता रखने वाले किसी व्यक्ति को राष्ट्रपति महान्यायवादी के पद पर नियुक्त कर सकते हैं.
  • देश के महान्यायवादी का कर्तव्य कानूनी मामलों में केंद्र सरकार को सलाह देना और कानूनी प्रकिया की उन जिम्मेदारियों को निभाना है जो राष्ट्रपति की ओर से उनके पास भेजे जाते हैं. इसके अतिरिक्त संविधान और किसी अन्य कानून के अंतर्गत उनका जो काम निर्धारित है, उनका भी पालन उन्हें पूरा करना होता है.
  • अपने कर्तव्य के निर्वहन के दौरान उन्हें देश के किसी भी न्यायालय में उपस्थित होने का अधिकार है. उन्हें संसद की कार्यवाही में भी भाग लेने का अधिकार है, हालांकि उनके पास मतदान का अधिकार नहीं होता. उनके कामकाज में सहायता के लिए सॉलिसिटर जनरल और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल होते हैं.
  • भारत के लिए पहले महान्ययवादी एमसी सीतलवाड हैं.
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संजय कोठारी ने मुख्य सतर्कता आयुक्त के रूप में शपथ ली

संजय कोठारी ने 25 अप्रैल को मुख्य सतर्कता आयुक्त (CVC) के रूप में शपथ ली. राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने राष्ट्रपति भवन में उन्‍हें पद की शपथ दिलाई. कोठारी का कार्यकाल जून 2021 तक होगा. CVC का पद जून 2019 में केवी चौधरी के सेवानिवृति के बाद से खाली था. कोठारी के नाम की सिफारिश प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता वाली चयन समिति ने की थी.

संजय कोठारी हरियाणा कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के वरिष्‍ठ अधिकारी थे. 2016 में वे डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग के सचिव पद से सेवानिवृत हुए थे. जुलाई 2017 में उन्हें राष्ट्रपति का सचिव बनाया गया था.

केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC)

  • केन्द्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission) भारत सरकार के विभिन्न विभागों के अधिकारियों/कर्मचारियों से सम्बन्धित भ्रष्टाचार नियंत्रण की सर्वोच्च संस्था है. यह सांविधिक दर्जा (statutory status) प्राप्त एक बहु-सदस्यीय संस्था है.
  • इस आयोग की स्थापना सन् 1964 में की गयी थी. इसका गठन संथानम समिति की सिफारिश पर की गयी थी, जिसे भ्रष्टाचार रोकने से सम्बन्धित सुझाव देने के लिए गठित किया गया था.
  • संसद ने 2003 में केन्द्रीय सतर्कता आयोग विधेयक पारित किया था. इस विधेयक में आयोग को वैधानिक दर्जा देने वाला कानून (सतर्कता आयोग अधिनियम) बनाया गया था. इस अधिनियम में आयोग के अधिकार एवं कार्य का विस्तार से उल्लेख किया गया है.

केंद्रीय सतर्कता आयोग के आयुक्त

  • केंद्रीय सतर्कता आयोग में एक केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त (Chief Vigilance Commissioner- CVC) जो कि अध्यक्ष होता है तथा दो अन्य सतर्कता आयुक्त होते हैं.
  • इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक तीन सदस्यीय समिति की सिफारिश पर होती है. इस समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता व केन्द्रीय गृहमंत्री होते हैं.
  • इनका कार्यकाल 4 वर्ष अथवा 65 वर्ष की आयु तक (जो भी पहले हो), तक होता है. अवकाश प्राप्ति के बाद आयोग के ये पदाधिकारी केन्द्र अथवा राज्य सरकार के किसी भी पद के योग्य नहीं होते हैं.
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24 अप्रैल: राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस, संबंधित महत्त्वपूर्ण संवैधानिक तथ्य

प्रत्येक वर्ष 24 अप्रैल को ‘राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस’ (National Panchayati Raj Day) के रूप में मनाया जाता है. यह दिन देश में ज़मीनी स्‍तर पर सत्‍ता के विकेन्‍द्रीकरण के इतिहास में महत्त्वपूर्ण दिन माना जाता है. इसी दिन भारतीय संविधान के 73वें संशोधन अधिनियम 1992 के जरिए 24 अप्रैल 1993 को पंचायती राज व्‍यवस्‍था लागू हुई थी.

पंचायती राज क्या है?

सिर्फ केंद्र या राज्य सरकार ही पूरे देश को चलाने में सक्षम नहीं हो सकती है. इसके लिए स्थानीय स्तर पर भी प्रशासन की व्यवस्थ की गई है. इसी व्यवस्था को पंचायती राज का नाम दिया गया है.

त्रि-स्तरीय ढांचा

भारत में पंचायती राज त्रि-स्तरीय है. पंचायती राज में गांव के स्तर पर ग्राम सभा, ब्लॉक स्तर पर मंडल परिषद और जिला स्तर पर जिला परिषद होता है. इन संस्थानों के लिए सदस्यों का चुनाव होता है जो जमीनी स्तर पर शासन की बागडोर संभालते हैं.

भारत में पंचायती राज का इतिहास

भारत में प्राचीन काल से ही पंचायती राज व्यवस्था आस्तित्व में रही हैं. आधुनिक भारत में पहली बार तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राजस्थान के नागौर जिले के बगदरी गाँव में 2 अक्टूबर 1959 को पंचायती राज व्यवस्था लागू की थी. 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत साल 2010 से हुई थी.

पंचायती राज से संबंधित संवैधानिक तथ्य

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 40 में राज्यों को पंचायतों के गठन का निर्देश दिया गया हैं.
  • भारतीय संविधान के 73वें संशोधन विधेयक से देश में पंचायती राज संस्था को संवैधानिक मान्यता दी गयी है.
  • भारतीय संसद ने 1992 में इस संशोधन विधेयक को पारित किया था. यह संशोधन विधेयक 24 अप्रैल 1993 से लागू हुआ था.
  • 73वें संशोधन के द्वारा संविधान के अनुच्छेद 243 में पंचायतों की व्यवस्था का उल्लेख किया गया है. इस संशोधन के द्वारा संविधान में 11वीं अनुसूची जोड़ी गयी, इसमें पंचायत के 29 विषयों को शामिल किया गया है.
  • 73वें संशोधन में एक त्रि-स्तरीय ढांचे की स्थापना (ग्राम पंचायत, पंचायत समिति तथा जिला पंचायत) का प्रावधन किया गया है.

पंचायती राज संस्था अवधारणा के लिए गठित मुख्य समिति और सिफारिशें

  1. बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिशें (1957)
  2. अशोक मेहता समिति की सिफारिशें (1977)
  3. पीवीके राव समिति (1985)
  4. डॉ एलऍम सिन्घवी समिति (1986)
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जम्मू-कश्मीर के लिए 37 कानूनों को समवर्ती सूची में रखने के आदेश को मंजूरी दी गयी

केंद्रीय कैबिनेट ने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में लागू करने के लिए 37 केंद्रीय कानूनों को समवर्ती सूची में शामिल करने के आदेश को मंजूरी दी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 26 फरवरी को हुई बैठक में कैबिनेट की बैठक में यह मंजूरी दी गयी है. मंजूरी के बाद कश्मीर घाटी में जो 37 कानून लागू नहीं थे, वह अब लागू हो जाएंगे.

केंद्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 की धारा 96 के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर में केंद्रीय कानूनों के समवर्ती आदेश को जारी करने को स्वीकृति दी. धारा 96 के अंतर्गत केंद्र सरकार के पास कानूनों को आवश्यकतानुसार ढालने और उनमें संशोधन करने का अधिकार है.

अगस्त 2019 में संसद ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद-370 और 35A के प्रावधानों को खत्म कर दिया था और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभक्त किया था. ये दोनों राज्य 31 अक्तूबर 2019 से अस्तित्व में आए थे. इसमें जम्मू-कश्मीर में विधानसभा का प्रावधान किया गया था जबकि लद्दाख बिना विधानसभा का केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था.

पूरे देश में एक सामान लागू होगा केंद्रीय कानून

31 अक्तूबर, 2019 से पूर्व जम्मू-कश्मीर को छोड़कर अन्य सभी राज्यों में सभी केंद्रीय कानून लागू होते थे. सरकार द्वार 37 केंद्रीय कानूनों को समवर्ती सूची में शामिल करने के बाद अब सभी केंद्रीय कानून पूरे देश में एक सामान लागू होगा. इससे पहले देश के कानून को स्वीकार करना जम्‍मू-कश्‍मीर की विधानसभा पर निर्भर होता था.

क्या है समवर्ती सूची?

भारतीय संविधान में केंद्र सरकार और राज्य सरकार की शक्तियों का विभाजन किया गया है. इन शक्तियों को संविधान की सातवीं अनुसूची में तीन सूचियों में वर्गीकृत किया गया है. ये तीन सूची हैं:

  1. संघ सूची: संघ सूची के विषयों से सम्बंधित कानून बनाने का अधिकार संसद को प्रदान किया गया है. वर्तमान समय में संघ सूची में कुल 100 विषयों को सम्मिलित किया गया है.
  2. राज्य सूची: राज्य सूची के विषयों से सम्बंधित कानून बनाने का अधिकार राज्य विधानसभा को प्रदान किया गया है. राज्य सूची में वर्तमान में 61 विषय शामिल हैं.
  3. समवर्ती सूची: समवर्ती सूची में उन विषयों को रखा गया है, जिसपर राज्य विधानसभा और संसद दोनों कानून का निर्माण कर सकती है. दोनों सरकारों द्वारा बनाये गए कानून में गतिरोध उत्पन्न होने पर केंद्र सरकार के क़ानून को मान्यता प्रदान की गयी है. वर्तमान समय में समवर्ती सूची में कुल 52 विषय को रखा गया है.
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‘बीटिंग द रिट्रीट’ के साथ गणतंत्र दिवस समारोह का समापन

71वें गणतंत्र दिवस समारोह का औपचारिक रूप से समापन नई दिल्‍ली के विजय चौक पर ‘बीटिंग द रिट्रीट’ के साथ हो गया. गणतंत्र दिवस समारोह 26 से 29 जनवरी तक नई दिल्ली में आयोजित किया गया था. इस अवसर पर मुख्‍य समारोह दिल्ली में राजपथ पर आयोजित किया गया था. यहां हर साल की तरह देश की संस्कृति को दिखाने वाली झाकियों के साथ भारतीय सेना ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया था. राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद ने परेड की सलामी ली थी.

बीटिंग द रिट्रीट एक सैन्य परंपरा है

बीटिंग द रिट्रीट सदियों पुरानी सैन्य परंपरा है जब सूर्यास्त होने पर सेना युद्ध बंद कर देती थी. जैसे ही बिगुल वादक समापन की धुन बजाते थे सैनिक युद्ध बंद कर देते थे और अपने शस्त्रास्त्र समेट कर युद्ध के मैदान से लौट जाते थे. इसी को ध्यान में रखते हुए समापन धुन बजाने के दौरान अविचल खड़े रहने की परंपरा आज तक कायम है. समापन पर ध्वज और पताकाएं खोलकर रख दी जाती हैं और झंडे उतार दिये जाते हैं.

बीटिंग द रिट्रीट का इतिहास

बीटिंग द रीट्रीट कार्यक्रम 1950 के शुरूआती दशक से चला आ रहा है. जब भारतीय सेना के मेजर रोबर्ट्स ने स्वदेशी तर्ज पर सामूहिक बैंड के प्रदर्शन का अनोखा समारोह प्रस्तुत किया था. समय के साथ ही यह राष्ट्रीय स्वाभिमान प्रदर्शित करने वाला कार्यक्रम बन गया है.

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संसद ने 126वां संविधान संशोधन विधेयक 2019 पारित किया, अनुच्छेद 334 में संशोधन किया गया

संसद ने हाल ही में भारतीय संविधान का 126वां संविधान संशोधन विधेयक 2019 पारित किया. यह भारतीय संविधान का 104वां संशोधन (104th Amendment of Indian Constitution) है. इसके तहत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 334 में संशोधन किया गया है.

इस विधेयक को राज्यसभा ने 12 दिसम्बर को पारित किया था. लोकसभा इस विधेयक को पहले ही पारित कर चुकी थी. इस विधेयक के तहत लोकसभा और विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए आरक्षण की अवधि को दस साल और बढ़ाया गया है.

इस विधेयक के पारित हो जाने के बाद अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए लोकसभा और राज्‍य विधानसभाओं में 25 जनवरी 2030 तक सीटों का आरक्षण बढ़ाने का प्रावधान है. पहले इस आरक्षण का समय सीमा 25 जनवरी 2020 तक के लिए था.

एंग्‍लो-इंडियन समुदाय का आरक्षण समाप्त

इस संविधान संशोधन विधेयक द्वारा संसद में एंग्‍लो-इंडियन समुदाय को दिए जाने वाले आरक्षण को समाप्त कर दिया है. एंग्लो-इंडियन समुदाय को दिए जाने वाला आरक्षण 25 जनवरी, 2020 को समाप्त हो रहा था. इस आरक्षण के तहत इस समुदाय के 2 सदस्य लोकसभा में प्रतिनिधित्व करते आ रहे थे.

आरक्षण को अनुच्छेद 334 में शामिल किया गया है

आरक्षण को आर्टिकल 334 में शामिल किया गया है. अनुच्छेद 334 कहता है कि एंग्लो-इंडियन, एससी और एसटी को दिए जाना वाला आरक्षण 40 साल बाद खत्म हो जाएगा. इस खंड को 1949 में शामिल किया गया था. 40 वर्षों के बाद इसे 10 वर्षों के विस्तार के साथ संशोधित किया जा रहा है.

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