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26वां अंतरराष्ट्रीय जलवायु शिखर सम्मेलन ग्‍लासगो में आयोजित किया गया

जलवायु परिवर्तन से संबंधित 26वां शिखर सम्‍मेलन (कॉप-26) 31 अक्तूबर से 12 नवंबर तक स्‍कॉटलैंड के ग्‍लासगो में आयोजित किया गया था. इसका आयोजन ब्रिटेन और इटली की सह अध्यक्षता में किया गया था जिसमें 120 से अधिक देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने हिस्सा लिया था. सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधत्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया था.

यह सम्‍मेलन धरती के बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने के उपायों पर केन्द्रित था. सम्मेलन में पेरिस जलवायु समझौते को पूरा करने से जुड़े दिशा-निर्देशों को अंतिम रूप दिया गया और जलवायु वित्‍तीय संग्रहण तथा बढ़ते वैश्विक तापमान को नियंत्रित करने से जुड़े तय लक्ष्‍यों पर की रूप रेखा तय गयी.

एक सूर्य, एक विश्‍व, एक ग्रिड

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस सम्मेलन के दौरान ‘एक सूर्य, एक विश्‍व, एक ग्रिड’ (One Sun, One World and One Grid) दृष्टिकोण के तहत ‘ग्लोबल ग्रीन ग्रिड इनिशिएटिव’ का शुभारंभ किया था. इसमें सौर ऊर्जा के लिए एक विश्वव्यापी ग्रिड की कल्पना की गयी है.

प्रधानमंत्री ने कहा कि सौर ऊर्जा पूरी तरह से स्वच्छ और सतत है. चुनौती यह है कि यह ऊर्जा केवल दिन के समय उपलब्ध है और मौसम पर निर्भर है. उन्होंने कहा, ‘वन सन, वन वर्ल्ड एंड वन ग्रिड’ इस समस्या का समाधान है और विश्वव्यापी ग्रिड के माध्यम से स्वच्छ ऊर्जा को कहीं भी और कभी भी प्रेषित किया जा सकता है.

संवेदनशील द्वीप देशों के लिए अवसंरचना पहल का शुभारंभ

प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने सम्‍मेलन से अलग संवेदनशील द्वीप देशों के लिए अवसंरचना (IRIS) पहल का शुभारंभ किया. इसका उद्देश्य विकासशील छोटे द्वीप देशों के बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए एक गठबंधन बनाना है. यह गठबंधन जलवायु परिवर्तन के कारण आपदाओं का सामना करने वाले संवेदनशील द्वीप देशों को होने वाले आर्थिक नुकसान को कम करने में मदद करेगा.

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ऐसे छोटे द्वीप देशों (सिड्स) के लिए विशेष आंकडे एक ही जगह उपलब्‍ध कराएगा. इसरो, सिड्स के लिए एक स्‍पेशल डेटा विन्‍डो का निर्माण करेगी. इससे सिड्स को सेटेलाइट्स के माध्‍यम से साइक्‍लोन, कोरल रीफ, मॉनिटरिंग, कोस्‍टलाइन मॉनिटरिंग आदि के बारे में टाइमली जानकारी मिलती रहेगी.

2030 तक वनों की कटाई रोकने का वायदा

विश्‍व के एक सौ से अधिक देशों के नेताओं ने शिखर सम्‍मेलन में पहला बड़ा समझौता किया. इसमें 2030 तक वनों की कटाई रोकने और वनों का दायरा बढ़ाने का वायदा किया गया.

समझौते के लक्ष्‍य को हासिल करने के लिए सार्वजनिक और निजी सहायता से 19 अरब 20 करोड़ डॉलर की प्रतिबद्धता व्‍यक्‍त की गई है. समझौते पर ब्राजील ने भी हस्‍ताक्षर किए हैं, जहां अमेजन के उष्‍णकटिबंधीय वन की कटाई की गई है.

ग्‍लास्गो में अंतर्राष्‍ट्रीय जलवायु सम्‍मेलन के आयोजक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा कि पहले से कहीं ज्‍यादा कुल 110 देशों के नेताओं ने इस ऐतिहासिक प्रतिबद्धता पर सहमति व्‍यक्‍त की है.

भारत वर्ष 2070 तक कार्बन उत्सर्जन मुक्‍त देश बन जाएगा

ग्‍लास्गो जलवायु सम्‍मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने कहा कि भारत वर्ष 2070 तक कार्बन उत्सर्जन मुक्त देश बन जाएगा. वर्ष 2030 तक अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में से एक अरब टन की कमी की जायेगी. सम्मेलन में श्री मोदी ने राष्ट्रीय वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए पांच मंत्रों का जिक्र किया.

  1. भारत, 2030 तक अपनी नॉन फॉसिल एनर्जी कैपेसिटी को 500 गीगावाट तक पहुंचाएगा.
  2. भारत, 2030 तक अपनी 50 परसेंट एनर्जी रिक्वायरमेंट रिन्‍यूएबल एनर्जी से पूरी करेगा.
  3. भारत अब से लेकर 2030 तक के कुल प्रोजेक्टेड कार्बन एमिशन में एक बिलियन टन की कमी करेगा.
  4. 2030 तक भारत, अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन इंटेन्सिटी को 45 परसेंट से भी कम करेगा और
  5. वर्ष 2070 तक भारत, कार्बन उत्सर्जन मुक्त (नेट जीरो) देश का लक्ष्य हासिल करेगा. ये पंचामृत, क्लाइमेट एक्शन में भारत का एक अभूतपूर्व योगदान होंगे.

पेरिस समझौता इस वर्ष से लागू होने जा रहा है

प्रधानमंत्री ने 2015 में पेरिस में आयोजित कॉप-21 सम्‍मेलन में हिस्‍सा लिया था, जिसमें पेरिस समझौते को अंतिम रूप दिया गया था. कॉप-26 में समझौते से संबद्ध देश पेरिस समझौता क्रियान्‍वयन दिशा-निर्देशों को अंतिम रूप देने का प्रयास करेंगे.

इसमें जलवायु कार्य योजना के लिए धन जुटाने, जलवायु अनुकूलन को बढ़ावा देने, प्रौद्योगिकी विकास और हस्तांतरण तथा धरती के तापमान में वृद्धि को सीमित करने संबंधी पेर‍िस समझौते के लक्ष्‍य प्राप्‍त करने के उपायों पर भी विचार किया जायेगा.

पेरिस समझौते के अंतर्गत देशों द्वारा उत्सर्जन कम करने का स्वयं निर्धारित लक्ष्य है. पेरिस समझौते के अनुसार सभी देशों के लिये राष्ट्रीय प्रतिबद्धता योगदान तय करना और बनाए रखना आवश्यक है.

भारत के, वर्ष 2005 की तुलना में मौजूदा एनडीसी में वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद के 33 से 35 प्रतिशत तक उत्सर्जन कम करने का लक्ष्य शामिल है. भारत वर्ष 2030 तक विद्युत उत्‍पादन में चालीस प्रतिशत हिस्‍सेदारी गैर-खनिज ईंधन से करने के लिए प्रतिबद्ध है. इससे वातावरण में कार्बन गैस हटाने में मदद मिलेगी.

नेट जीरो कार्बन उत्‍सर्जन

कॉप-26 में नेट जीरो कार्बन उत्‍सर्जन पर चर्चा हुई. नेट जीरो कार्बन उत्‍सर्जन का तात्‍पर्य है कि पृथ्‍वी का तापमान कम करने के लिए मानव निर्मित सभी कार्बन गैस, वातावरण से हटा दी जाए. अमेरिका, ब्रिटेन और जापान ने 2050 तक; यूरोपीय संघ ने 2060 तक; सऊदी अरब, चीन और रूस ने 2070 तक शुद्ध शून्य लक्ष्य हासिल करने का प्रस्ताव रखा है.

जलवायु वित्त या क्‍लाइमेंट फाइनेंस क्या है?

जलवायु वित्‍त या क्‍लाइमेंट फाइनेंस का तात्‍पर्य उन सभी गतिविधियों, कार्यक्रमों या परियोजनाओं के लिए धन का प्रवाह सुनिश्चित करना से है जो जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करती हैं. इनमें जलवायु परिवर्तन के संबंध में तापमान कम करने जैसी दुनियाभर में की जा रही गतिविधियां शामिल हैं. इनके लिए धन विविध प्रकार के स्रोतों, सार्वजनिक और निजी, द्विपक्षीय और बहुपक्षीय तथा वित्‍त के वैकल्पिक स्रोतों से आ सकता है.

2015 के पेरिस समझौते में विकसित देशों ने जलवायु परिवर्तन को रोकने के उद्देश्य से विक‍ासशील देशों के लिए 2020 तक संयुक्त रूप से 100 अरब डॉलर की प्रतिबद्धता व्‍यक्‍त की थी. इसके बाद यह अवधि बढ़ाकर 2023 कर दी गई थी. भारत निरंतर जलवायु परिवर्तन से निपटने में विकासशील देशों के लिए धनी देशों से ज्यादा योगदान की अपील करता रहा है.

कार्बन ट्रेडिंग क्या है?

कार्बन ट्रेडिंग एक ऐसा सिस्टम है, इसके तहत जो भी उद्योग कार्बन डाइऑकसाइड हवा में छोड़ेगा उसको उतना ही टैक्स भरना पड़ेगा. आसान शब्दों में प्रदूषण करने वालों को इसकी भरपाई भी करनी पड़ेगी. जिसको हम प्ल्यूटेड फेज मैकेनिज्म हम कहते हैं.

कार्बन ट्रेडिंग की व्यवस्था से प्रदूषण कम होता है और उद्योग इंडस्ट्रीज के मालिक सोच-समझकर खर्च करते हैं. साथ ही साथ कार्बन ट्रेडिंग से जो पैसा इकट्ठा होता है, वो क्लाइमेट के योजनाओं के काम आते हैं.

विश्व में कम से 45 देश कार्बन ट्रेडिंग योजना चला रहे हैं. कार्बन ट्रेडिंग भारत के 2070 के नेट जीरो के लक्ष्य को प्राप्त करने में बहुत उपयोगी साबित कर सकता है.

अनुकूलन क्या है?

अनुकूलन, जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों के समायोजन की प्रक्रिया है. इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के नुकसान में कमी करना और संभावित अवसरों का उपयोग करना है. अनुकूलन के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के परिणाम से उत्पन्न खतरों को भी कम किया जाता है.

जल स्रोतों का अधिक कुशल उपयोग, भविष्य की जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल इमारतों का निर्माण, प्रतिकूल मौसम और सूखे की मार झेल सकने वाली फसलों का विकास अनुकूलन के कुछ उदाहरण हैं. अनुकूलन कार्यक्रम के माध्यम से हरित रोज़गार के अवसर, गरीबों और वंचितों के लिए खतरे में कमी और भावी पीढ़ियों के लिए पर्यावरण सुरक्षा जैसे परिणाम हासिल किए जा सकते हैं.

COP27 की मेजबानी मिस्र करेगा

ग्लासगो में COP26 सम्मेलन के दौरान, यह निर्णय लिया गया कि मिस्र 2022 में COP27 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन की मेजबानी करेगा. मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी ने सितंबर में अफ्रीकी महाद्वीप की ओर से COP27 की मेजबानी करने में मिस्र की रुचि दिखाने के बाद यह निर्णय लिया था. इसके अलावा, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) को वर्ष 2023 में COP28 अंतर्राष्ट्रीय जलवायु सम्मेलन की मेजबानी के लिए चुना गया था.

जानिए क्या है UNFCCC COP और पेरिस समझौता…»