अमेरिका ने Covid-19 की रोकथाम के लिए एक नई वैक्सीन के मंजूरी दी है. यह मंजूरी अमेरिका में खाद्य पदार्थों और औषधियों का विनियमन करने वाली एजेंसी ‘फूड एण्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन’ (FDF) ने 28 फरवरी को दी. इस वैक्सीन का निर्माण अमेरिकी कम्पनी जॉनसन एण्ड जॉनसन (Johnson & Johnson) ने किया है. जॉनसन की कोरोना वैक्सीन को अमेरिका में 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र के व्यक्तियों को लगाने की ही अनुमति दी गयी है.
एक डोज वाली वैक्सीन
यह एक डोज वाली वैक्सीन है, यानि इस वैक्सीन का सिर्फ एक डोज दिया जाना है. यह वैक्सीन पहली ही डोज के बाद अपना असर दिखाना शुरू कर देती है. फूड एण्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन’ (FDF) ने इस वैक्सीन को तीसरी वैक्सीन के रूप में लगाने की अनुमति दी है.
इससे पहले आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण (EUA) ने दो डोज वाली मोडर्ना और फाइजर की वैक्सीन को पिछले साल दिसंबर में मंजूरी दी थी. दोनों वैक्सीन में दो सप्ताह के भीतर दो शॉट्स की आवश्यकता होती है.
जॉनसन की वैक्सीन’ फाइजर और मॉडर्ना का किफायती विकल्प है और इसे फ्रीजर की बजाय रेफ्रिजरेटर में ही सुरक्षित रखा जा सकता है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2021-03-01 13:50:372021-03-01 13:50:37अमेरिका ने Covid-19 की रोकथाम के लिए जॉनसन एण्ड जॉनसन निर्मित वैक्सीन को मंजूरी दी
भारत में विश्व के सबसे बड़े टीकाकरण कार्यक्रम चलाया जा रहा है. यह टीकाकरण कार्यक्रम Covid-19 संक्रमण को रोकने के लिए चलाया जा रहा है. इसकी शुरूआत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 16 जनवरी को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए की. टीकाकरण कार्यक्रम का पहला टीका दिल्ली एम्स (AIIMS) के सफाईकर्मी मनीष कुमार को दिया गया.
कोविडशील्ड और कोवैक्सीन के इस्तेमाल की अनुमति
इस टीकाकरण के दौरान देश में ही निर्मित दो टीके कोविडशील्ड (Covishield) और कोवैक्सीन (Covaxin) में से किसी एक टिके का दो डोज दिया जायेगा. दोनों ही टीकों को देश के औषधि नियंत्रक (DGCA) और विशेषज्ञों द्वारा आपात स्थिति में इस्तेमाल करने के लिए स्वीकृत किया गया है.
कोविशील्ड को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनिका के साथ भारत में पुणे की प्रयोगशाला सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इण्डिया में विकसित किया गया है.
भारत बायोटेक ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद और राष्ट्रीय विषाणु संस्थान पूणे के सहयोग से कोवैक्सीन तैयार किया है. यह पहली स्वदेशी रूप से विकसित वैक्सीन है जिसका अनुसन्धान और निर्माण भारत में किया गया है.
पहले चरण में स्वास्थ्यकर्मियों को टीका लगाया जाएगा
टीकाकरण के प्रथम चरण में सरकारी या प्राइवेट स्वास्थ्यकर्मियों- डाक्टर्स, नर्स, अस्पताल में सफाई कर्मी, मेडिकल-पेरामैडिकल स्टॉफ और समेकित बाल विकास सेवा से संबंधित कर्मियों को टीके दिए जा रहे हैं. इस चरण में तीन करोड़ लोगों को टीका लगाया जाएगा.
टीकाकरण के अगले चरण में उन लोगों को टीका लगाया जाएगा जिन पर जरूरी सेवाओं और देश की रक्षा या कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी है. इस चरण में 30 करोड़ लोगों को टीके लगाए जाएंगे.
उसके बाद 50 वर्ष से अधिक की आयु वाले लोगों तथा इससे कम के आयु वाले वैसे लोगों को दी जाएगी जो किसी बीमारी से ग्रसित हैं. इनकी संख्या लगभग 27 करोड़ है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2021-01-16 23:55:512021-01-17 20:26:02भारत में विश्व के सबसे बड़े टीकाकरण कार्यक्रम चलाया जा रहा है
भारत के ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने कोविड के दो टीकों के आपात स्थिति में सीमित उपयोग की स्वीकृति दे दी है. CDSCO ने सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इण्डिया के कोविशील्ड (Covishield) और भारत बायोटैक के कोवैक्सीन (Covaxin), को अनुमति दी है. औषधि महानियंत्रक (DGCA) वीजी सोमानी ने इसकी घोषणा 3 जनवरी को की.
दोनों टीकों का आपात उपयोग के बारे में केन्द्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) की विशेषज्ञ समिति की सिफारिश पर यह स्वीकृति प्रदान की गयी है. कोविशील्ड और कोवाक्सिन दोनों टीकों में से किसी एक टिके की दो खुराकें दी जाएगीं.
कोविशील्ड
कोविशील्ड को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनिका के साथ भारत में पुणे की प्रयोगशाला सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इण्डिया में विकसित किया गया है.
सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इण्डिया ने 23745 लोगों संबंधी सुरक्षा, रोग प्रतिरक्षा क्षमता के आकड़े प्रस्तुत किये और वैक्सीन के समग्र प्रभाव कार्य का 70.42 प्रतिशत पाई गई. इसके अतिरिक्त संस्थान को देश में 1600 लोगों पर दूसरे और तीसरे चरण के परीक्षण की अनुमति दी गई.
कोवैक्सीन
भारत बायोटेक ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद और राष्ट्रीय विषाणु संस्थान पूणे के सहयोग से कोवैक्सीन तैयार किया है. को-वैक्सीन का तीसरे चरण का परीक्षण भारत में 25800 स्वयंसेवियों पर किया गया था. यह पहली स्वदेशी रूप से विकसित वैक्सीन है जिसका अनुसन्धान और निर्माण भारत में किया गया है.
ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया
भारत में किसी दवा और वैक्सीन के मंजूरी ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) द्वारा दिया जाता है. यह देश में दवा से संबंधित सभी नियामक कार्यों के लिए जिम्मेदार है. DCGI भारत में दवाओं के विनिर्माण, बिक्री, आयात और वितरण के लिए मानक स्थापित करती है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2021-01-04 19:30:232021-01-17 16:10:38भारत में COVID-19 वैक्सीन के रूप में कोविशील्ड और कोवैक्सीन को स्वीकृति
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने फाइजर और बायोएनटेक की COVID-19 (कोरोना वायरस) वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दी है. संयुक्त राष्ट्र की इस संस्था की मंजूरी मिलने के बाद अब दुनियाभर के देशों में फाइजर की कोरोना वैक्सीन के इस्तेमाल का रास्ता खुल गया है.
फाइजर की कोरोना वैक्सीन को सबसे पहले ब्रिटेन ने इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दी थी. जिसके बाद अमेरिका, यूरोपीय यूनियन, इजरायल, सऊदी अरब समेत दुनिया के कई देशों ने वैक्सीन के इमरजेंसी प्रयोग को मंजूरी दे दी.
ब्रिटेन में अबतक 1.40 लाख लोगों को फाइजर बायोएनटेक की वैक्सीन की डोज दी जा चुकी है. इस वैक्सीन को –70 डिग्री के तापमान पर रखने की जरूरत होती है.
ब्रिटेन में ऑक्सफर्ड-एस्ट्राजेनेका द्वारा विकसित COVID-19 वैक्सीन ‘Covishield’ के इमरजेंसी इस्तेमाल को भी हाल ही में मंजूरी दी गयी है. इस वैक्सीन को कमरे के तापमान पर भी रखा जा सकता है. ऐसे में इस वैक्सीन की मांग और इसे दूर दराज के इलाकों तक लेकर जाने में काफी सहूलियत होने वाली है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2020-12-31 23:02:262021-01-02 14:22:55WHO ने फाइजर और बायोएनटेक की COVID-19 वैक्सीन के इस्तेमाल की मंजूरी दी
ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका द्वारा विकसित COVID-19 वैक्सीन ‘Covishield’ के भारत में आपातकालीन उपयोग की मंजूरी दी गयी है. केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) की कोविड-19 पर एक विशेषज्ञ समिति ने इसकी मंजूरी 31 दिसम्बर को दी.
Covishield वैक्सीन का उत्पादन पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) कर रहा है. इससे पहले सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने पहले इस वैक्सीन के आपातकालीन उपयोग के लिए आवेदन किया था. SII ने Covishield के उत्पादन के लिए एस्ट्रेजेनेका के साथ करार किया है. यह दुनिया की सबसे बड़ी टीका निर्माता कंपनी है.
‘कोवैक्सीन’ को सीमित इस्तेमाल की अनुमति
विशेषज्ञ समिति ने स्वदेशी वैक्सीन ‘कोवैक्सीन’ को एहतियात के तौर पर नैदानिक परीक्षण मोड में, विशेष रूप से परिवर्तित स्ट्रेन द्वारा फैलाए जा रहे संक्रमण से संबंधित आपात स्थिति में इसके सीमित इस्तेमाल की अनुमति देने की सिफारिश की है. भारतीय औषध महानियंत्रक वैक्सीन की मंजूरी के बारे में अंतिम फैसला करेंगे. कोवैक्सीन भारत में निर्मित पहली वैक्सीन है, जिसे भारत बायोटेक ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद और राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान के सहयोग से तैयार किया है.
विशेषज्ञ समिति ने कैडिला हेल्थकेयर लिमिटेड अहमदाबाद को फेस-3 नैदानिक परीक्षण करने की भी सिफारिश की है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2020-12-31 23:01:272021-01-03 16:44:21ऑक्सफोर्ड की COVID-19 वैक्सीन ‘Covishield’ को भारत में आपात इस्तेमाल की मंजूरी दी गयी
भारत के स्वदेशी कोविड-19 टीके ‘कोवैक्सीन’ (Covaxin) के तीसरे और अंतिम चरण का परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा हो गया है. यह टीका अंतिम चरण में 13 हजार से अधिक लोगों को दिया गया है. मानव परीक्षणों के तीसरे चरण में कोवैक्सीन को देश भर के लगभग 26 हजार लोगों को दिया जाएगा. पहले दो चरणों में लगभग एक हजार लोगों पर वैक्सीन का परीक्षण किया गया है.
कोवैक्सीन का विकास हैदराबाद स्थित ‘भारत बायोटेक’ और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा किया गया है. भारत बायोटेक ने पहले कहा था कि प्रथम चरण के नैदानिक परीक्षणों से पता चला है कि इस वैक्सीन का मानव पर कोई गंभीर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है और यह कोरोना वायरस के खिलाफ एक मजबूत प्रतिरक्षा पैदा करने में सक्षम पाया गया है.
आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति के लिए आवेदन
कोवैक्सीन विकसित करने वाली कम्पनी भारत बायोटेक ने 8 दिसम्बर को भारतीय औषधि महानियंत्रक (DCGI) से इस टीके के आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति के लिए आवेदन किया है.
कोवैक्सीन से पहले भारत में दो अन्य टीके के आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति मांगी गयी थी. भारत में फाइजर कंपनी ने अपनी वैक्सीन के आपातकालीन उपयोग की अनुमति मांगी थी. इसका विकास अमेरिकी कंपनी फाइजर ने जर्मन दवा कंपनी ‘बायोएनटेक’ (BioNTech) के साथ किया है.
उसके अलावा टीके बनाने वाली दुनिया की सबसे बडी कम्पनी पुणे के ‘सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया’ ने भी ‘कोविशील्ड’ (Covishield) की मंजूरी के लिए आवेदन किया है. कोविशील्ड को ब्रिटेन की दवा कंपनी एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किया गया है.
किसी दवा के आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति तभी दी जाती है जब इस बात के पर्याप्त प्रमाण हों कि वह इलाज के लिए सुरक्षित और प्रभावी है. अंतिम मंजूरी परीक्षणों के पूरा होने और सम्पूर्ण आंकडों के विश्लेषण के बाद ही दी जाती है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2020-12-22 15:51:452021-12-21 21:20:31स्वदेशी कोविड-19 टीके ‘कोवैक्सीन’ के अंतिम चरण का परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा हुआ
CIVID-19 के लिए स्वदेश विकसित टीका ‘कोवैक्सीन’ (Covaxin) के इस्तेमाल की अनुमति के लिए आवेदन किया गया है. कोवैक्सीन विकसित करने वाली कम्पनी भारत बायोटेक ने 8 दिसम्बर को भारतीय औषधि महानियंत्रक (DCGI) से इस टीके के आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति के लिए आवेदन किया है.
CIVID-19 के लिए कोवैक्सीन से पहले भारत में दो अन्य टीके के आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति मांगी गयी थी. भारत में फाइजर कंपनी ने CIVID-19 के अपनी वैक्सीन के आपातकालीन उपयोग की अनुमति मांगी थी. इसका विकास अमेरिकी कंपनी फाइजर ने जर्मन दवा कंपनी ‘बायोएनटेक’ (BioNTech) के साथ किया है.
उसके अलावा टीके बनाने वाली दुनिया की सबसे बडी कम्पनी पुणे के ‘सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया’ ने भी ‘कोविशील्ड’ (Covishield) की मंजूरी के लिए आवेदन किया है. कोविशील्ड को ब्रिटेन की दवा कंपनी एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किया गया है.
कोवैक्सीन: एक दृष्टि
हैदराबाद स्थित ‘भारत बायोटेक’, ‘भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद’ (ICMR) के सहयोग से स्वदेशी तौर पर कोवैक्सीन विकसित कर रही है. अभी यह परीक्षण के तीसरे चरण में है. अभी तक देशभर में 18 स्थानों पर 22 हजार से अधिक स्वयंसेवकों पर इसका परीक्षण किया गया है.
आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति क्या है?
किसी दवा के आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति तभी दी जाती है जब इस बात के पर्याप्त प्रमाण हों कि वह इलाज के लिए सुरक्षित और प्रभावी है. अंतिम मंजूरी परीक्षणों के पूरा होने और सम्पूर्ण आंकडों के विश्लेषण के बाद ही दी जाती है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2020-12-08 09:01:352020-12-09 09:26:49भारत बायोटेक ने स्वदेशी टीका कोवैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति मांगी
सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (SII) ने कोविड-19 वैक्सीन ‘कोविशील्ड’ (Covid-19 vaccine Covishield) का ट्रायल रोक दिया है. देशभर में 17 अलग-अलग जगहों पर इस टीके का परीक्षण हो रहा था. कंपनी ने यह फैसला ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) से नोटिस पाने के बाद लिया. DCGI ने नोटिस में कहा कि SII ने वैक्सीन के ‘सामने आए गंभीर प्रतिकूल प्रभावों’ के बारे में अपना एनालिसिस भी उसे नहीं सौंपा.
ब्रिटेन की दावा कंपनी अस्त्राजेनेका ने ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स के साथ मिलकर यह वैक्सीन बनाई है. DCGI ने सीरम इंस्टिट्यूट से पूछा था कि उसने यह क्यों नहीं बताया कि अस्त्राजेनेका ने इस वैक्सीन का ट्रायल रोक दिया है. अस्त्राजेनेका के ट्रायल रोकने का ऐलान करने के बावजूद सीरम इंस्टिट्यूट ने ट्रायल जारी रखने की बात कही थी.
संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और यूनाइटेड किंगडम सहित विभिन्न देशों में ‘कोविशील्ड’ परीक्षण चरण में था. भारत में इस टीका के फेज 2 और 3 ट्रायल को मंजूरी दी गई थी. सीरम इंस्टिट्यूट ने अस्त्राजेनेका के साथ कोविड- 19 टीके की एक अरब डोज बनाने की डील कर रखी है. वही इस वैक्सीन का भारत में क्लिनिकल ट्रायल कर रही है. अबतक देश में करीब 100 लोगों को यह टीका लगाया जा चुका है.
सीरम इंस्टिट्यूट अपना जवाब DCGI को सौंपेगा. बहुत कुछ अस्त्राजेनेका पर भी निर्भर करेगा कि उसकी जांच में क्या निकलकर आता है. ट्रायल अस्थायी तौर पर इसलिए रोका गया है ताकि बीमारी के बारे में और जाना जा सके.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2020-09-10 23:42:262020-09-11 17:57:15सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया ने कोविड-19 वैक्सीन ‘कोविशील्ड’ के ट्रायल रोक लगाई
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने कोविड-19 के उपचार के लिए रोग मुक्त करने वाली ‘प्लाज़्मा थैरेपी’ (Plasma Therapy) को स्वीकृति दी है. इसका उद्देश्य उपचार के बाद कोविड-19 से पूरी तरह ठीक हुए व्यक्ति के खून के प्लाज्मा का उपयोग रोगियों के इलाज के लिए किया जाता है. इस थैरेपी में प्लाज्मा में मौजूद एंटीबॉडी के आधार पर रोगी व्यक्ति में वायरस रोधी क्षमता विकसित की जाती है. चीन और दक्षिण कोरिया में इस इलाज का इस्तेमाल हो रहा है.
श्री चित्रा तिरूनल आयुर्विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान को उपचार की स्वीकृति
ICMR ने केरल में श्री चित्रा तिरूनल आयुर्विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान को ‘प्लाज़्मा थैरेपी’ से कोरोना वायरस से संक्रमित रोगियों के उपचार की स्वीकृति दी थी. तिरूअनंतपुरम में यह संस्थान केंद्र सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत राष्ट्रीय महत्व का संस्थान है.
प्लाज़्मा थैरेपी (Plasma Therapy): एक दृष्टि
वे मरीज़ जो किसी कोरोना वायरस संक्रमण (कोविड-19) से उबर जाते हैं उनके शरीर में संक्रमण को बेअसर करने वाले प्रतिरोधी ऐंटीबॉडीज़ विकसित हो जाते हैं. इन ऐंटीबॉडीज़ की मदद से कोविड-19 के रोगी के रक्त में मौजूद वायरस को ख़त्म किया जा सकता है.
ठीक हो चुके मरीज़ का ELISA (The enzyme-linked immunosorbent assay) टेस्ट किया जाता है जिससे उसके शरीर में ऐंटीबॉडीज़ की मात्रा का पता लगता है.
फिर इस ठीक हो चुके रोगी के शरीर से ऐस्पेरेसिस विधि से ख़ून निकाला जाता है जिसमें ख़ून से प्लाज़्मा या प्लेटलेट्स जैसे अवयवों को निकालकर बाक़ी ख़ून को फिर से उसी रोगी के शरीर में वापस डाल दिया जाता है. ऐंटीबॉडीज़ केवल प्लाज़्मा में मौजूद होते हैं.
डोनर के शरीर से लगभग 800 मिलीलीटर प्लाज़्मा लिया जाता है. इसमें से संक्रमित रोगी को लगभग 200 मिलीलीटर ख़ून चढ़ाने की ज़रूरत होती है. यानी एक डोनर के प्लाज़्मा का चार रोगियों में इस्तेमाल हो सकता है.
18 साल से 55 साल का कोई भी पुरुष जो कोरोना से ठीक हो चुका है प्लाज्मा दे सकता है. सभी अविवाहित महिला या विवाहित लेकिन जिसके बच्चे ना हो ऐसी महिला प्लाज्मा दे सकती हैं.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2020-04-25 23:55:412020-04-26 22:26:27‘प्लाज़्मा थैरेपी’ से ‘कोविड-19’ का उपचार, जानिए क्या है प्लाज़्मा थैरेपी
स्विट्जरलैंड ने 18 अप्रैल को अपने सबसे ऊंचे पर्वत माउंट मैटरहॉर्न (Matterhorn Mountain) पर रोशनी से तिरंगा बनाया. कोरोना से जंग के लिए भारत की कोशिशों के प्रति सम्मान दर्शाने के लिए यह तिरंगा बनाया गया था. स्विट्जरलैंड के मशहूर लाइट आर्टिस्ट गेरी हॉफस्टेटर ने लाइट प्रोजेक्शन के जरिए करीब 1000 मीटर से बड़े आकार के तिरंगे के आकार में रोशनी की थी.
माउंट मैटरहॉर्न आल्प्स पर्वत श्रृंखला का सबसे ऊंचा बिंदु है. इसकी ऊँचाई 14690 फीट है. स्विट्जरलैंड के लैंडमार्क पर भारतीय तिरंगे का अर्थ है, कोरोनावायरस के खिलाफ जंग में भारतीयों को उम्मीद और ताकत देना.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2020-04-19 21:20:062020-04-19 21:20:06स्विट्जरलैंड ने अपने सबसे ऊंचे पर्वत माउंट मैटरहॉर्न पर तिरंगा बनाया
तिरुवनंतपुरम के Sree Chitra Tirunal Institute for Medical Sciences and Technology (SCTIMST) ने ‘कोविड-19’ की जांच के लिए एक किफायती और तेज परीक्षण किट विकसित की है. इस किट के जरिए सिर्फ 2 घंटे में कोरोना संक्रमण का पता लग जाएगा. इसका खर्च करीब 1000 रुपये है. इस किट को ‘Chitra Gene LAMP-N’ नाम दिया गया है.
अलप्पूझा के राष्ट्रीय वाइरॉलॉजी संस्थान ने इस परीक्षण किट को मान्यता दी है और ICMR को इसकी जानकारी दे दी है. अब एससीटी संस्थान इस तकनीक को बड़े स्तर पर काम लाने के लिए ज़रुरी बदलाव की प्रक्रिया में है, ताकि ज़रूरत पड़ने पर इसका ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल हो सके.
कीमत के लिहाज़ से नई किट से की जाने वाकी जाँच काफी किफायती है, क्योंकि इसकी कीमत महज़ 1000 रुपए होगी, जबकि अबतक प्रयोग में ली जाने वाली पीसीआर किट से की जाने वाली जाँच की कीमत 2000-2500 रुपए के बीच होती है. इसके साथ ही नई मशीन की कीमत भी 2.5 लाख रुपए होगी, जबकि RT-PCR मशीन की कीमत करीब 15-40 लाख रुपए के बीच होती है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2020-04-18 22:53:002020-04-18 22:53:00SCTIMST ने ‘कोविड-19’ की जांच के लिए एक किफायती और तेज परीक्षण किट विकसित किया
भारत सरकार ने Hydroxychloroquine (HCQ) सहित कई दवाओं के निर्यात पर लगा प्रतिबंध 7 अप्रैल को हटा लिया. जिन दवाओं से प्रतिबंध हटाया गया है उनमें विटामिन B1, विटामिन B12, टिनिडाजोल, मेट्रानिडाजोल, एसिक्लोविर, विटामिन B6, क्लोरमफेनिकॉल जैसी 14 दवाएं शामिल हैं.
इसमें से Hydroxychloroquine से आंशिक प्रतिबंध हटाया गया है. सरकार ने मानवीय आधार पर अमेरिका सहित कुछ चुनिंदा देशों को इसकी आर्पूति करने के आदेश दिए हैं. ये दवाएं उन देशों को भेजी जाएंगी जिन्हें भारत से मदद की आस है. हालांकि घरेलू जरुरतें पूरी होने के बाद स्टॉक की उपलब्धता के आधार पर निर्यात किया जाएगा.
Hydroxychloroquine की मांग क्यों
वैसे कोरोना वायरस सक्रमण को रोकने के लिए कोई दावा या वैक्सीन अभी तक उपलब्ध नहीं है. लेकिन फिर भी कुछ दवाएं ऐसी है जो इसके प्रभाव को कम करने में मददगार साबित हुई हैं. Hydroxychloroquine उन दवाओं में से एक है, जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी पुष्टि की है. इस कारण पूरी दुनिया में Hydroxychloroquine की मांग बढ़ गई है.
अमेरिका सहित कई देशों ने भारत से मांग की थी
कोरोना वायरस के इलाज में प्रभावी Hydroxychloroquine की मांग दुनियाभर में तेजी से बढ़ रही है. भारत सरकार ने भविष्य में पड़ने वाले घरेलू जरूरतों को देखते हुए Hydroxychloroquine सहित कई दवाओं के निर्यात पर प्रतिवंध लगा दिया था. इस कारण अमेरिका सहित कई देशों ने भारत से इस दवा के निर्यात से प्रतिबंध को हटाने मांग की थी.
भारत में Hydroxychloroquine का इस्तेमाल
भारत में Hydroxychloroquine का इस्तेमाल मलेरिया, आर्थेराइटिस (गठिया) और ल्यूपस (LUPUS) नाम की बीमारी के उपचार में किया जाता है. हाल के दिनों में इस दावा को कोरोना वायरस संक्रमण के इलाज में इस्तेमाल किया जा रहा है.
भारत Hydroxychloroquine का सबसे बड़ा उत्पादक
Hydroxychloroquine एक ऐंटी मलेरिया टैबलेट है. भारत में मलेरिया के मामले हर साल बड़ी संख्या में आते हैं और यही वजह है कि भारत इसका सबसे बड़ा उत्पादक है. इंडियन फार्मास्यूटिकल अलायंस (IPA) के अनुसार, दुनिया को hydroxychloroquine की 70 फीसदी सप्लाई भारत करता है.
देश के पास इस दवा को बनाने की कैपासिटी इतनी है कि वह 30 दिन में 40 टन hydroxychloroquine का उत्पादन कर सकता है. यानी इससे 20 मिलीग्राम की 20 करोड़ टैबलेट्स बनाई जा सकती हैं. भारत में इस दवा को बनाने वाली कंपनी में Ipca Laboratories, Zydus Cadila औार Wallace Pharmaceuticals का नाम शामिल है.
Hydroxychloroquine बनाने के लिए API
Hydroxychloroquine बनाने के लिए जिन एक्टिव फार्मास्यूटिकल्स इंग्रीडिएंट्स (API) की जरूरत पड़ती है उसका 70 प्रतिशत सप्लाई चीन करता है.
https://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.png00Team EduDosehttps://www.edudose.com/wp-content/uploads/2014/05/Logo.pngTeam EduDose2020-04-08 22:24:552020-04-09 15:21:27सरकार ने HCQ के निर्यात पर लगा प्रतिबंध हटाया, जानिए क्यों HCQ है चर्चा में