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प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम 2024 लागू किया गया

भारत के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने हाल ही में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम (Plastic Waste Management (Amendment) Rules) 2024 लागू किया है. ये नियम प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 में संशोधन कर लाया गया है.

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम 2024: मुख्य बिन्दु

  • नए नियम के तहत डिस्पोजेबल प्लास्टिक उत्पादों के निर्माताओं के लिए उन्हें ‘बायोडिग्रेडेबल’ (जैवनिम्नीकरणीय) के रूप में लेबल करना अधिक कठिन हो जाएगा.
  • नए नियम के अनुसार अब यह आवश्यक है कि बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक न केवल विशिष्ट वातावरण में जैविक प्रक्रियाओं के माध्यम से विघटित हो, बल्कि जैविक प्रक्रियाओं द्वारा बिना कोई माइक्रोप्लास्टिक (सूक्ष्म प्लास्टिक) छोड़े पूर्ण रूप से नष्ट होने में सक्षम हो.
  • 1 µm से 1,000 µm के बीच के आयामों वाले पानी में अघुलनशील ठोस प्लास्टिक कणों को माइक्रोप्लास्टिक के रूप में परिभाषित किया जाता है. हाल के वर्षों में ये नदियों और महासागरों को प्रभावित करने वाले प्रदूषण के एक प्रमुख स्रोत के रूप में देखे गए हैं.
  • बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक पर बढ़ता ध्यान केंद्र सरकार द्वारा 2022 में सिंगल-यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने और अन्य उपायों के साथ-साथ बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक को अपनाने की सिफारिश करने के बाद आया है.
  • विनिर्माताओं को कंपोस्टेबल अथवा बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक से कैरी बैग और वस्तुओं का उत्पादन करने की अनुमति है. उन्हें अपने उत्पादों के विपणन अथवा बिक्री से पूर्व केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से प्रमाण-पत्र प्राप्त करना होगा.
  • कम्पोस्टेबल प्लास्टिक, उन सामग्रियों को कहते हैं जिन्हें कवक, बैक्टीरिया या रोगाणुओं द्वारा तोड़ा जा सकता है. ये प्लास्टिक, मक्का, आलू, टैपिओका स्टार्च, सेलूलोज़, सोया प्रोटीन और लैक्टिक एसिड जैसी नवीकरणीय सामग्रियों से बनाए जाते हैं.

29 जुलाई: अन्तर्राष्ट्रीय बाघ दिवस, भारत में बाघों की स्थिति पर मुख्य तथ्य

प्रत्येक वर्ष 29 जुलाई को अन्तर्राष्ट्रीय बाघ दिवस (International Tiger Day) मनाया जाता है. यह दिवस बाघ और उनके प्राकृतिक परिवास के सरंक्षण के बारे में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से मनाया जाता है.

2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में एक सम्मेलन में प्रत्येक वर्ष 29 जुलाई को बाघ दिवस मनाने का फैसला लिया गया था. इस सम्मेलन में बाघों को लुप्तप्राय प्रजाति करार दिया था. उस समय 2022 तक बाघ की आबादी को दोगुना करने का भी लक्ष्य रखा गया था. भारत ने इस टारगेट को 2018 में ही हासिल कर लिया था. 2018 में भारत में बाघों की संख्या 2967 से ज्यादा हो चुकी थी.

World Wildlife Fund के अनुसार पिछले 150 सालों में बाघों की आबादी में लगभग 95 प्रतिशत की गिरावट आई है. मौजूदा समय में जिन गिने-चुने देशों में बाघ अभी बाकी हैं, उनमें भारत सबसे ऊपर है. इसके बाद रूस है जहां पर 433 बाघ हैं. इसके बाद का इंडोनेशिया जहां 371, मलेशिया में 250, नेपाल में 198 बाघ ही जिंदा हैं.

भारत में बाघों की स्थिति: मुख्य तथ्य

  • भारत सरकार ने देश में बाघों को विलुप्त होने से बचाने के लिए 1973 में प्रॉजेक्ट टाइगर शुरू किया था.
  • 1973-74 में देश में केवल 9 बाघ अभयारण्‍य थे और अब इनकी संख्‍या बढकर 51 हो गई है. दुनिया में बाघों की कुल संख्‍या के मामले में भारत पहले स्थान पर है.
  • पर्यवारण मंत्रालय ने 2005 में नैशनल टाइगर कन्जर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) का गठन किया था. प्रॉजेक्ट टाइगर के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी NTCA सौंपी गई थी.
  • दुनिया में बाघों की कुल संख्‍या में से करीब 70 प्रतिशत भारत में हैं. भारत में बाघों की जनसंख्या का 80 प्रतिशत रॉयल बंगाल टाइगर है.
  • बाघ, भारत और बांग्लादेश दोनों का राष्ट्रीय पशु है.

बाघ आकलन रिपोर्ट-2023

  • विश्व बाघ दिवस 2023 के अवसर पर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री अश्विनी कुमार ने एक रिपोर्ट जारी की थी.
  • इस रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में विश्व में बाघों की कुल संख्‍या का लगभग 75 प्रतिशत भारत में है.
  • भारत में बाघों की आबादी 6.1 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर के साथ 3925 होने का अनुमान है.
  • बाघों की सबसे बड़ी आबादी मध्य प्रदेश में पाई गई है, जिनकी संख्या 785 है वहीं कर्नाटक में 563 उत्तराखंड में, 560 और महाराष्ट्र में 444 बाघ है.
  • बाघ अभ्यारण के भीतर बाघों की संख्या सबसे अधिक 260 कोरबेट में है इसके बाद बांदीपुर में 150 और नागर हॉल में 141 बाघ है.

मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को मंजूरी दी

केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन (National Green Hydrogen Mission) को मंजूरी दी है. मिशन का उद्देश्य देश को हरित हाइड्रोजन के उत्पादन, उपयोग और निर्यात का बडा केन्द्र बनाना है.

राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन: मुख्य बिन्दु

  • 19.7 हजार रुपए की शुरुआती लागत से शुरू इस मिशन के तहत प्रतिवर्ष पचास लाख टन हरित हाइड्रोजन का उत्पादन किया जाएगा. इससे हर साल जीवाश्म ईंधन के आयात पर एक लाख करोड़ रुपए बचाए जा सकेंगे.
  • राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को शुरू किए जाने की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2021 के अपने लाल किले की प्राचीर से भाषण में कहा था.
  • इससे 2070 तक शून्‍य कार्बन उत्‍सर्जन के लक्ष्‍य को हासिल करने में मदद मिलेगी. क्‍लाइमेंट चेंज से निपटने के लिए ग्रीन हाइड्रोजन एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा.
  • राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन क्या है?
  • यह हरित हाइड्रोजन के व्यावसायिक उत्पादन को प्रोत्साहित करने और भारत को ईंधन का शुद्ध निर्यातक बनाने हेतु एक कार्यक्रम है. यह मिशन हरित हाइड्रोजन मांग में वृद्धि लाने के साथ-साथ इसके उत्पादन, उपयोग और निर्यात को बढ़ावा देगा.
  • इस मिशन का उद्देश्य वर्ष 2030 तक भारत में लगभग 125 GW की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता विकसित करना है. इसके परिणामस्वरूप जीवाश्म ईंधन के आयात में 1 लाख करोड़ रुपए से अधिक की शुद्ध कमी के साथ-साथ वार्षिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में लगभग 50 मीट्रिक टन की कमी आएगी.

कनाडा के मॉन्ट्रियल में कॉप-15 संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन

कनाडा के मॉन्ट्रियल में 18-19 दिसम्बर को कॉप-15 संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन (COP-15 Biodiversity Summit) आयोजित किया गया था. इस सम्मेलन में सदस्य देशों के बीच दो अहम मुद्दों पर सहमति बनी.

पहली सहमति जैव विविधता की रक्षा के लिए गरीब और विकासशील देशों को हर साल 30 अरब डॉलर की वित्तीय मदद पर बनी.

वहीं, वर्ष 2030 तक जैव विविधता के लिए अहम मानी जाने वाली 30 फीसदी भूमि और महासागरों की रक्षा पर अहम सहमति भी बनी. वर्तमान में 17 फीसदी स्थलीय और 10 फीसदी समुद्री क्षेत्र संरक्षित हैं.

मुख्य बिन्दु

  • समझौते के तहत गरीब देशों के लिए 2025 तक सालाना वित्तीय मदद को बढ़ाकर कम से कम 20 अरब डॉलर किया जाएगा. वर्ष 2030 तक यह रकम बढ़कर 30 अरब डॉलर प्रति वर्ष हो जाएगी.
  • 2030 तक विभिन्न स्रोतों से जैव विविधता के लिए 200 अरब डॉलर जुटाने और सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने या सुधार करने के लिए भी काम करने का आह्वान किया गया है, जो प्रकृति के लिए 500 अरब डॉलर प्रदान कर सकता है.
  • सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे चीन के पर्यावरण मंत्री हुआंग रनकिउ ने इस समझौते का मसौदा पेश किया था. कांगो को छोड़कर सभी देश इस पर राजी हो गए.

लीथ सॉफ्ट शेल कछुए का संरक्षण: पनामा संधि देशों ने भारत का प्रस्ताव स्वीकार किया

भारत ने लुप्त प्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संबंधी संधि के अंतर्गत लीथ सॉफ्ट शेल कछुए के सरंक्षण के लिए ठोस कदम उठाये हैं. कछुए की इस प्रजाति को संधि के परिशिष्ट-2 से परिशिष्ट-1 (गंभीर रूप से लुप्तप्राय) में स्थानांतरित करने का भारत का प्रस्ताव पनामा संधि में शामिल देशों ने स्वीकार कर लिया है. इससे व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए इस प्रजाति के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर पाबंदी लगेगी.

मुख्य बिन्दु

  • लीथ का सोफ्ट शेल कछुआ ताजे पानी का नरम खोल वाला एक बड़ा कछुआ है. यह कछुआ प्रायद्वीपीय भारत के लिए स्थानिक है और यह नदियों और जलाशयों में रहता है.
  • पिछले 30 वर्षों में कछुए की प्रजातियो का बहुत अधिक शोषण हुआ है. अवैध रूप से इसका शिकार किया गया और इसका उपभोग किया गया. मांस के लिए विदेशों में इसका अवैध रूप से कारोबार भी किया गया है.
  • पिछले 30 वर्षों में इस कछुए की प्रजाति की आबादी में 90 प्रतिशत की गिरावट आने का अनुमान है. अब इस प्रजाति का पता लगाना मुश्किल है.
  • प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ द्वारा इसे ‘गंभीर रूप से लुप्तप्राय’ कछुए की प्रजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है.

सरकार ने अपशिष्ट से ऊर्जा कार्यक्रम के लिये दिशा-निर्देश जारी किये

नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने अपशिष्ट से ऊर्जा कार्यक्रम के लिये दिशा-निर्देश जारी किये. यह कार्यक्रम अम्ब्रेला योजना, राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम का हिस्सा है. भारतीय नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी (IREDA) इस कार्यक्रम के लिये कार्यान्वयन एजेंसी होगी.

मुख्य बिन्दु

  • नए दिशा-निर्देश से कंपनियों के लिये शहरी, औद्योगिक और कृषि अपशिष्ट तथा अवशेषों से बायोगैस, बायोसीएनजी व बिजली का उत्पादन करने का मार्ग प्रशस्त हुआ है. सरकार अपशिष्ट से ऊर्जा परियोजना विकसित करने वालों को वित्तीय सहायता प्रदान करेगी.
  • बायोगैस एक जैव रासायनिक प्रक्रिया के माध्यम से उत्पन्न होती है, जिसमें कुछ प्रकार के बैक्टीरिया जैविक कचरे को उपयोगी बायोगैस में परिवर्तित करते हैं. मीथेन गैस बायोगैस का मुख्य घटक है. बायोगैस हमारे शहरों को स्वच्छ एवं प्रदूषण मुक्त बनाने में मदद कर सकता है.
  • बायोसीएनजी, बायोगैस को शुद्ध करके प्राप्त किया जाने वाला नवीकरणीय ईंधन है. बायोगैस का उत्पादन तब होता है जब सूक्ष्मजीव कार्बनिक पदार्थ जैसे- भोजन, फसल अवशेष, अपशिष्ट जल आदि को अपघटित करते हैं.
  • नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम को 2025-26 तक जारी रखने की बात कही है. इसके लिये पहले चरण में 858 करोड़ रुपये का बजटीय खर्च निर्धारित किया गया है.
  • MNRE 1980 के दशक से जैव ऊर्जा को बढ़ावा दे रहा है. इसका उद्देश्य ऊर्जा उत्पादन के लिये बड़े पैमाने पर उपलब्ध कृषि अवशेष, गोबर और औद्योगिक तथा शहरी जैव कचरे का उपयोग करना है.

इंडिया स्पेस कांग्रेस का आयोजन दिल्ली में किया गया

इंडिया स्पेस कांग्रेस 2022 (ISC 2022) का आयोजन 26 से 28 अक्टूबर तक नई दिल्ली में किया गया था. इसका आयोजन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), रक्षा मंत्रालय, नीति आयोग, इन-स्पेस, न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) और सैटकॉम इंडस्ट्री एसोसिएशन (SIAIndia) ने किया था.

मुख्य बिन्दु

  • इस आयोजन का थीम “नेक्स्ट-जेन कम्युनिकेशन और व्यवसायों को पावर देने के लिए स्पेस का लाभ उठाना” (Leveraging Space to Power Next-Gen Communication & Businesses) था.
  • ISC एक अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस है जो अंतरिक्ष क्षेत्र में सरकार, औद्योगिक विशेषज्ञों, नीति निर्माताओं, विचारकों, कानूनी पेशेवरों और शिक्षाविदों को एक साथ लाती है ताकि अंतरिक्ष अन्वेषण के प्रभावी प्रबंधन को सुनिश्चित करने के तरीकों पर चर्चा की जा सके.

WWF की लिविंग प्लेनेट रिपोर्ट: पांच दशक में 69 प्रतिशत वन्यजीवों की आबादी घटी

विश्व वन्यजीव कोष (WWF) ने हाल ही में ‘लिविंग प्लेनेट रिपोर्ट’ (LPR) 2022 जारी की थी. इस रिपोर्ट के अनुसार साल 1970 से 2018 के बीच दुनियाभर में निगरानी वाली वन्यजीव आबादी में 69 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है.

LPR 2022 के मुख्य बिन्दु

  • यह रिपोर्ट कुल 5,230 नस्लों की लगभग 32,000 आबादी पर केंद्रित है. इसमें प्रदान किए गए ‘लिविंग प्लैनेट सूचकांक’ (LPI) के मुताबिक, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के भीतर वन्यजीवों की आबादी तेजी से घट रही है.
  • वैश्विक स्तर पर लातिन अमेरिका और कैरिबियाई क्षेत्र में वन्यजीवों की आबादी में सबसे बड़ी गिरावट देखी गई है. पांच दशकों में यहां औसतन 94 प्रतिशत की गिरावट आई है.
  • अफ्रीका में वन्यजीवों की आबादी में 66 प्रतिशत और एशिया प्रशांत में 55 प्रतिशत की कमी आई है.
  • अन्य नस्लों के समूहों की तुलना में ताजे पानी वाले क्षेत्रों में रह रहे वन्यजीवों की आबादी में औसतन 83 प्रतिशत अधिक गिरावट आई है.
  • साइकैड की आबादी पर सबसे ज्यादा खतरा है, जबकि कोरल (प्रवाल) सबसे तेजी से घट रहे हैं और उनके बाद उभयचर का स्थान आता है.
  • WWF ने कहा कि पर्यावास की हानि और प्रवास के मार्ग में आने वाली बाधाएं प्रवासी मछलियों की नस्लों के समक्ष आए लगभग आधे खतरों के लिए जिम्मेदार हैं.
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि वन्यजीवों की आबादी में गिरावट के मुख्य कारण वनों की कटाई, आक्रामक नस्लों का उभार, प्रदूषण, जलवायु संकट और विभिन्न बीमारियां हैं.

भारत के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में नामीबिया से आठ चीतों को लाया गया

भारत के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में नामीबिया से आठ चीतों को लाया गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17 सितम्बर को मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में स्थित कुनो-पालपुर राष्ट्रीय उद्यान (केएनपी) में चीतों के पुनर्वास की महत्वाकांक्षी परियोजना का शुभारम्भ किया था. इसके तहत उन्होंने इन चीतों को कुनो राष्ट्रीय उद्यान को उपहार स्वरूप दिया.

मुख्य बिन्दु

  • भारत में इस जंगली जानवर को वापस लाने के लिए विश्व की यह पहली अंतरमहाद्वीपीय परियोजना है.
  • नामीबिया से आठ चीतों को भारत लाया गया है, जिसमें चार नर और चार मादा चीते हैं. इन चीतों को एक समझौता ज्ञापन के तहत नामीबिया की राजधानी विंडहोक से एक विशेष मालवाहक विमान से लाया गया.
  • भारत से चीते विलुप्त हो गए थे. आखिरी चीता 1947 में छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में मारा गया था. इसके बाद 1952 में इसे विलुप्त घोषित कर दिया गया था.
  • दुनिया में चीतों की सबसे अधिक आबादी नामीबिया में है. नामीबिया को ‘चीतों की राजधानी’ कहा जाता है.
  • अगले पांच वर्षों में नामीबिया, दक्षिण अफ्रीका और अन्य अफ्रीकी देशों से कुल 50 चीतों को भारत लाए जाने की योजना है.
  • चीता दुनिया का सबसे तेज जानवर है जो 113 किमी प्रति घंटे तक की रफ्तार से दौड़ सकता है.

भारत 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करेगा

प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने कहा है कि वर्ष 2030 तक भारत के ऊर्जा उत्‍पादन का पचास प्रतिशत, गैर-जीवाश्‍म ईंधन से होने लगेगा और 2070 तक भारत शून्‍य कार्बन उत्‍सर्जन का लक्ष्‍य हासिल कर लेगा.

मुख्य बिन्दु

  • प्रधानमंत्री, गांधीनगर में 28 अगस्त को सुजुकी मोटर कॉर्पोरेशन के भारत में चालीस वर्ष पूरे होने के अवसर पर एक समारोह को संबोधित करते हुए यह बात कही.
  • श्री मोदी ने कहा कि देश में इलैक्ट्रिक वाहनों की बढती मांग के साथ इस दिशा में एक मौन क्रांति हो रही है.
  • इस बीच सुजुकी मोटर कॉर्पोरेशन के अध्‍यक्ष तोशिहिरो सुजुकी ने भारत में एक नई कंपनी – ‘सुजुकी आर एंड डी’ सेंटर इंडिया की स्थापना की घोषणा की. उन्‍होंने कहा कि इस जापानी कंपनी का लक्ष्‍य न केवल भारत में अनुसंधान और विकास प्रतिस्‍पर्धा और क्षमता बढाना है, बल्कि वैश्विक बाजारों को भी इसका लाभ पहुंचाना है.

भारत में 11 नए आर्द्रभूमि को रामसर स्थल का दर्जा दिया गया

रामसर कन्वेंशन (Ramsar Convention) के तहत भारत के 11 नए आर्द्रभूमि को रामसर स्थल (Ramsar Sites) सूची में शामिल किया गया है. भारत ने स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने के अवसर पर ये स्थल जोड़े गए हैं. इसके बाद अब भारत में रामसर स्थलों की कुल संख्‍या 75 हो गई है. ये क्षेत्र देश के 13.27 लाख हैक्‍टेयर भूमि में फैले हैं.

जोडे गये 11 नये स्‍थलों में चार तमिलनाडु, तीन ओडिशा, दो जम्‍मू-कश्‍मीर में और एक-एक महाराष्ट्र तथा मध्‍यप्रदेश में हैं.

इन स्‍थलों को रामसर साइट्स में शामिल करने से इनका रख-रखाव करने में मदद मिलेगी और आर्द्र भूमि संसाधनों का उचित उपयोग हो सकेगा.

रामसर स्थल: एक दृष्टि

  • अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमि को रामसर स्थल कहा जाता है. रामसर स्थल पानी में स्थित मौसमी या स्थायी पारिस्थितिक तंत्र हैं. इनमें मैंग्रोव, दलदल, नदियाँ, झीलें, डेल्टा, बाढ़ के मैदान और बाढ़ के जंगल, चावल के खेत, प्रवाल भित्तियाँ, समुद्री क्षेत्र (6 मीटर से कम ऊँचे ज्वार वाले स्थान) के अलावा मानव निर्मित आर्द्रभूमि जैसे- अपशिष्ट जल उपचार तालाब और जलाशय आदि शामिल होते हैं.
  • आर्द्रभूमियां प्राकृतिक पर्यावरण का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं. ये बाढ़ की घटनाओं में कमी लाती हैं, तटीय इलाकों की रक्षा करती हैं, साथ ही प्रदूषकों को अवशोषित कर पानी की गुणवत्ता में सुधार करती हैं.
  • आर्द्रभूमि मानव और पृथ्वी के लिये महत्त्वपूर्ण हैं. 1 बिलियन से अधिक लोग जीवनयापन के लिये उन पर निर्भर हैं और दुनिया की 40% प्रजातियाँ आर्द्रभूमि में रहती हैं तथा प्रजनन करती हैं.
  • रामसर स्थल का दर्जा उन आर्द्रभूमियों को दिया जाता है जो रामसर कन्वेंशन के मानकों को पूरा करते हैं. रामसर कन्वेंशन एक पर्यावरण संधि है जो आर्द्रभूमि एवं उनके संसाधनों के संरक्षण तथा उचित उपयोग हेतु राष्ट्रीय कार्रवाई और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये रूपरेखा प्रदान करती है.
  • रामसर स्थल नाम ईरान के रामसर शहर के नाम पर रखा गया है क्योंकि यहीं 02 फरवरी 1971 को रामसर कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए गए थे. भारत ने इस संधि पर 1 फरवरी 1982 को हस्ताक्षर किये थे.
  • भारत में अब कुल 75 रामसर स्थल हैं जो देश की कुल भूमि का लगभग 5% है. ये क्षेत्र देश के 13.27 लाख हैक्‍टेयर भूमि में फैले हैं.
  • आर्द्रभूमि के राज्य-वार वितरण में तमिलनाडु पहले और गुजरात दूसरे स्थान पर है (एक लंबी तटरेखा के कारण). इसके बाद आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल का स्थान है.
  • रामसर सूची के अनुसार, सबसे अधिक रामसर स्थलों वाले देश यूनाइटेड किंगडम (175) और मेंक्सिको (142) हैं. अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि का क्षेत्रफल (148,000 वर्ग किमी) सबसे अधिक बोलीविया में है.

भारत में 10 नए आर्द्रभूमि को रामसर स्थल का दर्जा दिया गया

रामसर कन्वेंशन (Ramsar Convention) के तहत भारत के 10 नए आर्द्रभूमि को रामसर स्थल (Ramsar Sites) सूची में शामिल किया गया है. सूची में शामिल किए गए 10 नए स्थलों में से तमिलनाडु के छह और गोवा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश तथा ओडिशा का एक-एक स्थल शामिल है. इन 10 स्थलों को शामिल किए जाने के बाद देश में कुल रामसर स्थलों की संख्या 64 हो गई है.

जिन आर्द्रभूमि को रामसर स्थल का दर्जा दिया गया है उनमें शामिल हैं:

कोंथनकुलम पक्षी अभयारण्य (तमिलनाडु), 2. सतकोसिया गॉर्ज (ओडिशा), 3. नंदा झील (गोवा), 4. मन्नार की खाड़ी समुद्री जीवमंडल रिजर्व (तमिलनाडु), 5. रंगनाथिट्टू पक्षी अभयारण्य (कर्नाटक), 6. वेम्बन्नूर वेटलैंड कॉम्प्लेक्स (तमिलनाडु), 7. वेलोड पक्षी अभयारण्य (तमिलनाडु), 8. सिरपुर आर्द्रभूमि (मध्यप्रदेश), 9. वेदान्थंगल पक्षी अभयारण्य (तमिलनाडु) और 10. उदयमर्थनपुरम पक्षी अभयारण्य तमिलनाडु

रामसर स्थल: एक दृष्टि

  • अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमि को रामसर स्थल कहा जाता है. रामसर स्थल पानी में स्थित मौसमी या स्थायी पारिस्थितिक तंत्र हैं. इनमें मैंग्रोव, दलदल, नदियाँ, झीलें, डेल्टा, बाढ़ के मैदान और बाढ़ के जंगल, चावल के खेत, प्रवाल भित्तियाँ, समुद्री क्षेत्र (6 मीटर से कम ऊँचे ज्वार वाले स्थान) के अलावा मानव निर्मित आर्द्रभूमि जैसे- अपशिष्ट जल उपचार तालाब और जलाशय आदि शामिल होते हैं.
  • आर्द्रभूमियां प्राकृतिक पर्यावरण का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं. ये बाढ़ की घटनाओं में कमी लाती हैं, तटीय इलाकों की रक्षा करती हैं, साथ ही प्रदूषकों को अवशोषित कर पानी की गुणवत्ता में सुधार करती हैं.
  • आर्द्रभूमि मानव और पृथ्वी के लिये महत्त्वपूर्ण हैं. 1 बिलियन से अधिक लोग जीवनयापन के लिये उन पर निर्भर हैं और दुनिया की 40% प्रजातियाँ आर्द्रभूमि में रहती हैं तथा प्रजनन करती हैं.
  • रामसर स्थल का दर्ज उन आर्द्रभूमियों को दिया जाता है जो रामसर कन्वेंशन के मानकों को पूरा करते हैं. रामसर कन्वेंशन एक पर्यावरण संधि है जो आर्द्रभूमि एवं उनके संसाधनों के संरक्षण तथा उचित उपयोग हेतु राष्ट्रीय कार्रवाई और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये रूपरेखा प्रदान करती है.
  • रामसर स्थल नाम ईरान के रामसर शहर के नाम पर रखा गया है क्योंकि यहीं 02 फरवरी 1971 को रामसर कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए गए थे.
  • भारत में अब कुल 64 रामसर स्थल हैं जो देश की कुल भूमि का 5% है. आर्द्रभूमि के राज्य-वार वितरण में गुजरात शीर्ष पर है (एक लंबी तटरेखा के कारण). इसके बाद आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल का स्थान है.
  • रामसर सूची के अनुसार, सबसे अधिक रामसर स्थलों वाले देश यूनाइटेड किंगडम (175) और मेंक्सिको (142) हैं. अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि का क्षेत्रफल (148,000 वर्ग किमी) सबसे अधिक बोलीविया में है.