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भारत के 5 नए आर्द्रभूमि को रामसर स्थल का दर्जा दिया गया

रामसर कन्वेंशन (Ramsar Convention) के तहत भारत के 5 नए आर्द्रभूमि को रामसर स्थल (Ramsar Sites) सूची में शामिल किया गया है. इनमें दो स्थल तमिलनाडु से और मिजोरम और मध्य प्रदेश से एक-एक स्थल हैं. इन पांच स्थलों को शामिल किए जाने के बाद देश में कुल रामसर स्थलों की संख्या 54 हो गई है.

जिन आर्द्रभूमि को रामसर स्थल का दर्जा दिया गया है उनमें शामिल हैं:

  1. पल्लिकरनई मार्श रिजर्व फॉरेस्ट, तमिलनाडु (चेन्नई में मीठे पानी का दलदल)
  2. करिकीली पक्षी अभयारण्य, तमिलनाडु (कांचीपुरम में 61.21 हेक्टेयर संरक्षित क्षेत्र है)
  3. पिचवरम मैंग्रोव, तमिलनाडु (कुड्डालोर जिले में देश के सबसे बड़े मैंग्रोव वनों में गिना जाता है)
  4. पाला आर्द्रभूमि, मिजोरम (यह जानवरों और पक्षियों की कई प्रजातियों सहित पशु प्रजातियों की समृद्ध विविधता के लिए जानी जाती है)
  5. साख्य सागर, मध्य प्रदेश (यह झील शिवपुरी में माधव राष्ट्रीय उद्यान का एक अभिन्न अंग है)

रामसर स्थल: एक दृष्टि

  • अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमि को रामसर स्थल कहा जाता है. रामसर स्थल पानी में स्थित मौसमी या स्थायी पारिस्थितिक तंत्र हैं. इनमें मैंग्रोव, दलदल, नदियाँ, झीलें, डेल्टा, बाढ़ के मैदान और बाढ़ के जंगल, चावल के खेत, प्रवाल भित्तियाँ, समुद्री क्षेत्र (6 मीटर से कम ऊँचे ज्वार वाले स्थान) के अलावा मानव निर्मित आर्द्रभूमि जैसे- अपशिष्ट जल उपचार तालाब और जलाशय आदि शामिल होते हैं.
  • आर्द्रभूमियां प्राकृतिक पर्यावरण का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं. ये बाढ़ की घटनाओं में कमी लाती हैं, तटीय इलाकों की रक्षा करती हैं, साथ ही प्रदूषकों को अवशोषित कर पानी की गुणवत्ता में सुधार करती हैं.
  • आर्द्रभूमि मानव और पृथ्वी के लिये महत्त्वपूर्ण हैं. 1 बिलियन से अधिक लोग जीवनयापन के लिये उन पर निर्भर हैं और दुनिया की 40% प्रजातियाँ आर्द्रभूमि में रहती हैं तथा प्रजनन करती हैं.
  • रामसर स्थल का दर्ज उन आर्द्रभूमियों को दिया जाता है जो रामसर कन्वेंशन के मानकों को पूरा करते हैं. रामसर कन्वेंशन एक पर्यावरण संधि है जो आर्द्रभूमि एवं उनके संसाधनों के संरक्षण तथा उचित उपयोग हेतु राष्ट्रीय कार्रवाई और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये रूपरेखा प्रदान करती है.
  • रामसर स्थल नाम ईरान के रामसर शहर के नाम पर रखा गया है क्योंकि यहीं 02 फरवरी 1971 को रामसर कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए गए थे.
  • भारत में अब कुल 54  रामसर स्थल हैं जो देश की कुल भूमि का 4.6% (15.26 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र) है. आर्द्रभूमि के राज्य-वार वितरण में गुजरात शीर्ष पर है (एक लंबी तटरेखा के कारण). इसके बाद आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल का स्थान है.
  • रामसर सूची के अनुसार, सबसे अधिक रामसर स्थलों वाले देश यूनाइटेड किंगडम (175) और मेंक्सिको (142) हैं. अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि का क्षेत्रफल (148,000 वर्ग किमी) सबसे अधिक बोलीविया में है.

विलुप्त चीतों को भारत लाने के लिए नामीबिया के साथ सहमति

भारत ने विलुप्त चीतों को देश में लाने के लिए नामीबिया के साथ एक महत्वपूर्ण सहमति-पत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर किया है. भारत में 1952 में चीता को विलुप्त घोषित कर दिया गया था.

मुख्य बिन्दु

  • इस सहमति के अनुसार अगस्त में नामीबिया से आठ चीतों को भारत लाया जाएगा, जिसमें चार नर और चार मादा चीते होंगे.
  • इन चीतों को मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में स्थित कुनो-पालपुर राष्ट्रीय उद्यान (केएनपी) में रखा जाएगा.
  • ये चीते भारत से पूरी तरह विलुप्त हो चुके हैं. इसका मुख्य कारण अधिक शिकार किया जाना और रहने के लिए जगह का न होना बताया जाता है.
  • आखिरी बार 1948 में छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के साल वनों में एक मृत चीता पाया गया था.
  • दुनिया में चीतों की सबसे अधिक आबादी नामीबिया में है. नामीबिया को ‘चीतों की राजधानी’ कहा जाता है.
  • अगले पांच वर्षों में नामीबिया, दक्षिण अफ्रीका और अन्य अफ्रीकी देशों से कुल 50 चीतों को भारत लाए जाने की योजना है.
  • चीता दुनिया का सबसे तेज जानवर है जो 113 किमी प्रति घंटे तक की रफ्तार से दौड़ सकता है.

MoEFCC ने वन (संरक्षण) नियम 2022 जारी किया

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने हाल ही में वन (संरक्षण) नियम 2022 जारी किया था.

ये नियम वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 की धारा 4 और वन (संरक्षण) नियम, 2003 के अधिक्रमण (Supersession) में प्रदान किया गया है.

वन (संरक्षण) नियम 2022 के प्रावधान:

  • निगरानी उद्देश्यों के लिए एक सलाहकार समिति, राज्य/केंद्र शासित प्रदेश (UT) में एक स्क्रीनिंग समिति और एक क्षेत्रीय अधिकार प्राप्त समिति का गठन किया जाएगा. ये समितियाँ राज्य सरकारों को समयबद्ध तरीके से परियोजनाओं पर सलाह देगी.
  • 40 हेक्टेयर तक की भूमि पर सभी रैखिक परियोजनाओं (राजमार्ग और सड़कों) और 0.7 घनत्व तक वन भूमि का उपयोग करने वाली परियोजनाओं की जांच के लिए एकीकृत क्षेत्रीय कार्यालय की स्थापना की जाएगी.
  • वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत वनवासियों के वन अधिकारों के निपटान के लिए राज्य जिम्मेदार होंगे. वे वन भूमि के डायवर्जन की भी अनुमति देंगे.

भारत में वन: एक दृष्टि

भारत वन स्थिति रिपोर्ट-2021 के अनुसार, भारत का कुल वन और वृक्षावरण क्षेत्र अब 7,13,789 वर्ग किलोमीटर है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 21.71% है. भारत में सर्वाधिक वनावरण क्षेत्रफल के मामले में मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ क्रमशः शीर्ष तीन राज्य हैं.

1 जुलाई से एकल उपयोग वाले प्लास्टिक के इस्तेमाल पर प्रतिवंध

1 जुलाई 2022 से एकल (सिंगल) उपयोग वाले प्लास्टिक के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया गया है. पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पिछले साल एक गजट नोटिफिकेशन जारी कर प्रतिबंध की घोषणा की थी. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने उन चीजों की सूची जारी की है, जिनका इस्तेमाल अगले महीने से नहीं किया जा सकेगा.

मुख्य बिंदु

  • CPCB द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, एकल उपयोग प्लास्टिक चीजों के निर्माण, आयात, भण्डारण, विरतन, बिक्री और इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया गया है. CPCB ने प्लास्टिक के बजाय इको-फ्रेंडली विकल्प चुनने का अनुरोध किया है.
  • सिंगल यूज प्लास्टिक का मतलब प्लास्टिक से बनी उन प्रोडक्ट से है जिसे एक बार ही इस्तेमाल किया जा सकता है. यह आसानी से डिस्पोज नहीं किए जा सकते.
  • सिंगल यूज वाले प्लास्टिक में के तहत – वस्तुओं की पैकेजिंग से लेकर बोतलों (शैम्पू, डिटर्जेंट, कॉस्मेटिक्स), पॉलिथीन बैग, फेस मास्क, कॉफी कप, क्लिंग फिल्म, कचरा बैग, फूड पैकेजिंग जैसी चीजें आती हैं.
  • 1 जुलाई से जिन सिंगल यूज़ वाले प्लास्टिक पर प्रतिवंध है उनमें शामिल हैं- प्लास्टिक स्टिक वाले ईयर बड्स, गुब्बारों की प्लास्टिक स्टिक, प्लास्टिक के झंडे, कैंडी स्टिक, आइस्क्रीम स्टिक, सजावट वाले थर्माकोल, प्लास्टिक प्लेट, कप, प्लास्टिक पैंकिंग आइटम, प्लास्टिक के इनविटेशन कार्ड, सिगरेट के पैकेट, 100 माइक्रोन से कम वाले प्लास्टिर और PVC.

जलवायु परिवर्तन पर IPCC रिपोर्ट: संयुक्त राष्ट्र में 195 देशों ने दी मंजूरी

संयुक्त राष्ट्र ने जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (IPCC) द्वारा जारी रिपोर्ट “क्लामेट चेंज 2022: इंपैक्ट, एडप्शन और वल्नरबिलिटी” (Climate Change 2022: Impacts, Adaptation and Vulnerability) को मंजूरी दी है. रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसान को बताया गया है और इस नुकसान को कम करने के तरीके पर चर्चा की गई है. IPCC की रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र में 195 देशों ने मंजूरी दी है.

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

  • जलवायु परिवर्तन के कारण देश के तटीय शहर और हिमालय से लगे इलाकों पर बड़ा असर पड़ेगा.
  • मौसम बदलने के कारण ज्यादा या कम बारिश, बाढ़ की विभीषिका और लू के थेपेड़े बढ़ सकते हैं. रिपोर्ट में बढ़ते तापमान के कारण भारत में कृषि उत्पादन में बड़े पैमाने पर कमी की भी आशंका जताई गई है.
  • दुनिया की 3.6 अरब की आबादी ऐसे इलाकों में रहती है जहां जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर हो सकता है. अगले दो दशक में दुनियाभर में तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ने का अनुमान लगाया गया है.
  • तापमान बढ़ने के कारण फूड सिक्योरिटी, पानी की किल्लत, जंगल की आग, हेल्थ, ट्रांसपोटेशन सिस्टम, शहरी ढांचा, बाढ़ जैसी समस्याएं बढ़ने का अनुमान जताया गया है.

भारत के सन्दर्भ में

  • भारत में 7,500 किलोमीटर लंबा तटीय इलाका है. समुद्र का स्तर ऊपर जाने के कारण इन इलाकों में बाढ़ जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. यही नहीं, यहां चक्रवाती तूफानों का भी खतरा मंडराएगा.
  • अगर तापमान में 1-4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ोतरी होती है तो भारत में, चावल का उत्पादन 10 से 30 प्रतिशत तक, जबकि मक्के का उत्पादन 25 से 70 प्रतिशत तक घट सकता है.
  • इस रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन से निपटने के तरीकों पर भी चर्चा की गई है. भारतीय शहर सूरत, इंदौर और भुवनेश्वर के जलवायु परिवर्तन से निपटने के तौर-तरीकों का भी जिक्र किया गया है.
  • इस सदी के मध्य तक देश की करीब साढ़े 3 करोड़ की आबादी तटीय बाढ़ की विभीषिका झेलेगी और सदी के अंत तक यह आंकड़ा 5 करोड़ तक जा सकता है. रिपोर्ट में दक्षिण भारत के तेलंगाना में पानी संचयन की पुरानी तकनीक का भी जिक्र किया गया है.

जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (IPCC)

IPCC संयुक्त राष्ट्र का एक अंतर सरकारी समूह है जो जलवायु परिवर्तन पर अध्ययन करता है. इसकी स्थापना विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने 1988 में किया था. इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्जरलैंड में है.

‘हरित हाइड्रोजन’ के उत्पादन के लिए एक प्रमुख नीति प्रवर्तक की घोषणा

केन्द्र सरकार ने ‘हरित हाइड्रोजन’ (Green Hydrogen) या ‘हरित अमोनिया’ के उत्पादन के लिए एक प्रमुख नीति प्रवर्तक की घोषणा की है. इस नीति के लागू होने से जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होगी और कच्चे तेल का आयात भी कम होगा.

  • प्रधानमंत्री ने 2021 में भारत के 75वें स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन का शुभारंभ किया था. मिशन का उद्देश्य सरकार को जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने और भारत को हरित हाइड्रोजन का केंद्र बनाने में सहायता करना है.
  • सरकार, भारत को ग्रीन हाइड्रोजन के प्रोडक्‍शन और एक्‍सपोर्ट का ग्‍लोबल हब बनाना चाहती है. ये ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की एक नई प्रगति उसको आत्‍मनिर्भर बनाएगा और पूरे विश्‍व में क्‍लीन एनर्जी ट्रांजीशन की नई प्रेरणा भी बनेगा. सरकार का लक्ष्य 2030 तक 50 लाख टन हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करना है.
  • हरित हाइड्रोजन नीति से कार्बन-मुक्त हरित हाइड्रोजन की उत्पादन लागत को कम करने में मदद मिलेगी. नीति के अन्तर्गत कंपनियों को स्वयं या दूसरी इकाई के माध्यम से सौर या पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय स्रोतों से बिजली पैदा करने को लेकर क्षमता स्थापित करने की आजादी होगी.

भारत में अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की दो नए आर्द्रभूमि ‘रामसर स्थल’ को जोड़ा गया

02 फरवरी 2022 को विश्व आर्द्रभूमि दिवस (World Wetlands Day) के दिन भारत में दो नए रामसर स्थलों (अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि) को शामिल किया गया था. ये दो स्थल- गुजरात में खिजड़िया वन्यजीव अभयारण्य और उत्तर प्रदेश में बखिरा वन्यजीव अभयारण्य हैं. ये भारत के 48वें और 49वें रामसर स्थल हैं.

विश्व आर्द्रभूमि दिवस 2022 के अवसर पर इसरो के अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (SAC) द्वारा ‘नेशनल वेटलैंड डेकाडल चेंज एटलस’ तैयार किया गया था. SAC द्वारा इससे संबंधित मूल एटलस वर्ष 2011 में जारी किया गया था.

मुख्य बिंदु

  • विश्व आर्द्रभूमि दिवस 02 फरवरी, 1971 को ईरानी शहर रामसर में ‘आर्द्रभूमि पर कन्वेंशन’ को अपनाने की तारीख को चिह्नित करता है. यह दिवस पहली बार वर्ष 1997 में मनाया गया था.
  • रामसर कन्वेंशन एक अंतर-सरकारी संधि है जो आर्द्रभूमि एवं उनके संसाधनों के संरक्षण तथा उचित उपयोग हेतु राष्ट्रीय कार्रवाई और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये रूपरेखा प्रदान करती है.
  • रामसर सूची के अनुसार, सबसे अधिक रामसर स्थलों वाले देश यूनाइटेड किंगडम (175) और मेंक्सिको (142) हैं. अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि का क्षेत्रफल (148,000 वर्ग किमी) सबसे अधिक बोलीविया में है.

आर्द्रभूमि क्या होता है?

  • आर्द्रभूमि पानी में स्थित मौसमी या स्थायी पारिस्थितिक तंत्र हैं. इनमें मैंग्रोव, दलदल, नदियाँ, झीलें, डेल्टा, बाढ़ के मैदान और बाढ़ के जंगल, चावल के खेत, प्रवाल भित्तियाँ, समुद्री क्षेत्र (6 मीटर से कम ऊँचे ज्वार वाले स्थान) के अलावा मानव निर्मित आर्द्रभूमि जैसे- अपशिष्ट जल उपचार तालाब और जलाशय आदि शामिल होते हैं.
  • आर्द्रभूमियां प्राकृतिक पर्यावरण का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं. ये बाढ़ की घटनाओं में कमी लाती हैं, तटीय इलाकों की रक्षा करती हैं, साथ ही प्रदूषकों को अवशोषित कर पानी की गुणवत्ता में सुधार करती हैं.
  • आर्द्रभूमि मानव और पृथ्वी के लिये महत्त्वपूर्ण हैं. 1 बिलियन से अधिक लोग जीवनयापन के लिये उन पर निर्भर हैं और दुनिया की 40% प्रजातियाँ आर्द्रभूमि में रहती हैं तथा प्रजनन करती हैं.
  • भारत में कुल 49 रामसर स्थल (आर्द्रभूमि) हैं जो देश की कुल भूमि का 4.6% (15.26 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र) है. आर्द्रभूमि के राज्य-वार वितरण में गुजरात शीर्ष पर है (एक लंबी तटरेखा के कारण). इसके बाद आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल का स्थान है.

जापान में चेरी ब्लॉसम मौसम समय से पहले खत्म हुआ

हर साल बसंत के मौसम में जापान की जमीन खूबसूरत गुलाबी चेरी ब्लॉसम (Cherry Blossom) के फूलों से ढकी रहती है. इस साल यह मौसम पहले के मुकाबले जल्दी आ गया है और जल्दी ही खत्म भी हो गया.

चेरी ब्लॉसम का इतना जल्दी खिलाना अपने आप में एक रेकॉर्ड है. वैज्ञानिकों के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम पर यह असर पड़ा है. जापान में इतने पहले चेरी ब्लॉसम 1,200 साल से पहले हुआ था.

चेरी ब्लॉसम की पीक की तारिख मौसम और बारिश जैसी चीजों पर निर्भर करता है. लेकिन ट्रेंड से पता चलता है कि यह पहले होता जा रहा है. इस साल क्योटो में इसका पीक 26 मार्च को और राजधानी टोक्यो में 22 मार्च को आया. क्योटो में पीक सदियों से अप्रैल के मध्य में रहा है.

चेरी ब्लॉसम क्या है?

चेरी ब्लॉसम एक फूल है. जापान में इसे ‘सकूरा’ (Sakura) कहा जाता है. पर्यटक चेरी ब्लॉसम को देखने दूर-दूर से आते हैं. चेरी ब्लॉसम के मुख्य रूप से उत्तरी गोलार्ध में समशीतोष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं. इसमें जापान, भारत, नेपाल, पाकिस्तान, चीन, कोरिया, अमेरिका, ब्रिटेन, इंडोनेशिया आदि शामिल हैं.

बारिश के पानी को संरक्षित करने के लिए ‘कैच द रेन’ नाम से देशव्यापी अभियान

सरकार ने बारिश के पानी को संरक्षित करने के लिए ‘कैच द रेन’ (Catch the Rain) नाम से देशव्यापी अभियान चलाने की घोषणा की है. इस पहल की घोषणा केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने 3 मार्च को की. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अभियान में देश के नागरिकों से बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने की अपील की है.

‘कैच द रेन’ अभियान: मुख्य बिंदु

  • बारिश के पानी को संरक्षित करने के लिए ‘कैच द रेन’ अभियान 1 अप्रैल से 30 जून तक चलाया जायेगा. इस अभियान में सरकार के सात मंत्रालय हिस्सा लेंगे. इसे स्वच्छता अभियान की तर्ज पर इसे चलाया जाएगा.
  • इस अभियान में लोगों की भागीदारी के द्वारा मानसून से पहले बारिश के पानी को एकत्रित करने वाली जगहों को साफ करने सुरक्षित बनाने पर जोर रहेगा. यह अभियान देश के 623 जिलों में चलेगा. गांवों को भी योजना से जोड़ा जाएगा.
  • इस दौरान लोगों को जल के महत्व के बारे में जागरूक बनाने का एक बड़ा अभियान छेड़ा जाएगा. इसमें पौने दो लाख नेहरू युवा केंद्रों की भूमिका को और कारगर बनाने पर जोर दिया जाएगा.
  • वर्ष 2019 में जुलाई से सितंबर के बीच देश के 252 जिलों में अभियान चलाया गया था. इस दौरान भूजल की भारी कमी वाले चिह्नित ब्लॉक, जिलों और राज्यों को लक्षित करके 6,000 करोड़ रुपये की लागत वाली अटल भूजल योजना शुरू की गई. इस बार यह अभियान देशव्यापी होगा.
  • इस अभियान में रेल और रक्षा मंत्रालय की भूमिका बहुत बड़ी होगी. इन दोनों मंत्रालयों के पास लाखों हेक्टेयर जमीन पड़ी हुई है, जहां बारिश के पानी को एकत्रित किया जा सकता है. इसके अलावा खाद्य व सार्वजनिक वितरण मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय, नागरिक उड्डयन, शिक्षा और खेल व युवा मामले मंत्रालय की सहभागिता सुनिश्चित की जाएगी.

भारत ने तटीय सुरक्षा के लिए अपने सभी समुद्र तटों पर आठ नीले झंडे फहराए

भारत ने तटीय क्षेत्र की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय स्तर के अभियान के तहत अपने सभी समुद्र तटों पर 28 दिसम्बर को आठ नीले झंडे फहराए. भारत के आठ समुद्री तटों को प्रतिष्ठित ‘ब्लू फ्लैग’ सर्टिफिकेट से सम्मानित किया गया है. इसमें गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और ओडिशा समेत पांच राज्यों के तट शामिल हैं. भारत एक ही प्रयास में आठ समुद्री तटों के लिए ब्लू फ्लैग सर्टिफिकेशन प्राप्त करने वाला दुनिया का पहला देश बना है.

ब्लू फ्लैग से सम्मानित भारत के आठ समुद्री तट

ब्लू फ्लैग से सम्मानित भारत के आठ समुद्री तट गुजरात का शिवराजपुर बीच, दियु का घोघला, कर्नाटक का कासरकोड व पदुबिद्री, केरल का कप्पड, आंध्र प्रदेश का रुषिकोंडा, ओडिशा का गोल्डन और अंडमान व निकोबार का राधानगर तट हैं.

भारत में ‘ब्लू फ्लैग’ के मानकों के मुताबिक समुद्र तटों को विकसित करने का पायलट प्रोजेक्ट दिसंबर 2017 में शुरू किया था. ओडिशा के कोणार्क तट पर चंद्रभागा बीच भारत का पहला बीच है जिसे ब्लू फ्लैग सर्टिफिकेट मिला है. यह ब्लू फ्लैग प्रमाणन प्राप्त करने वाला एशिया का पहला समुद्र तट है.

ब्लू फ्लैग प्रमाणन क्या है?

ब्लू फ्लैग दुनिया का सबसे मान्यता प्राप्त व प्रतिष्ठित स्वैच्छिक इको लेबल (पर्यावरण हितैषी) अवार्ड है जो समुद्र तटों को दिया जाता है. ब्लू फ्लैग कार्यक्रम को फ्रांस के पेरिस से शुरू किया गया था.
यह प्रमाणन डेनमार्क की एजेंसी द्वारा 33 सख्त मानदंड के आधार पर किया जाता है. ये मानदंड चार प्रमुख वर्गों- पर्यावरण सूचना और शिक्षा, स्नान के लिए जल की गुणवत्ता, पर्यावरण प्रबंधन और संरक्षण तथा समुद्र तट पर सुरक्षा और सेवाओं से संबंधित हैं.

राष्ट्रीय जल पुरस्कार 2020: तमिलनाडु को सर्वश्रेष्ठ राज्य और लुठियाग को सर्वश्रेष्ठ गांव का पुरस्कार

उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने 12 नवम्बर को राष्ट्रीय जल पुरस्कार (NWA) प्रदान किए. यह इन पुरस्कारों का दूसरा संस्करण था. पुरस्कार समारोह का आयोजन जल शक्ति मंत्रालय, जल संसाधन विभाग, नदी विकास और गंगा कायाकल्प द्वारा 11 और 12 नवंबर 2020 को आभासी मंच के माध्यम से किया गया था.

इन पुरस्कारों में राज्यों की श्रेणी में, तमिलनाडु को सर्वश्रेष्ठ राज्य का पुरस्कार दिया गया. महाराष्ट्र और राजस्थान क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे. राष्ट्रीय जल पुरस्कार के तहत उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के चिरबिटिया लुथियाग को सर्वश्रेष्ठ ग्राम पंचायत (उत्तर क्षेत्र) का पुरस्कार मिला.

NGT ने दिल्ली और NCR में पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल पर प्रतिबन्ध लगाया

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने दिल्ली समेत पूरे NCR में पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल पर प्रतिबन्ध लगा दिया है. यह प्रतिबन्ध 10 नवम्बर से 30 नवंबर तक रहेगा. बढ़ते प्रदूषण और कोरोना को देखते हुए यह फैसला लिया गया है. NGT का यह आदेश देश के उन सभी शहरों में भी लागू होगा जहां पिछले साल नवंबर में वायु की गुणवत्ता ‘खराब’ (poor) श्रेणी या इससे ऊपर की श्रेणी तक चला गया था.

ऐसा शहर जहाँ नवंबर 2019 में वायु की गुणवत्ता ‘मध्यम’ (moderate) यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 51-100 के बीच था, तो प्रदूषण रहित पटाखे बेचे और चलाए जा सकते हैं. लेकिन, दिवाली और छठ पर सिर्फ 2 घंटे की छूट मिलेगी. यह 2 घंटे राज्य सरकारों की तरफ से तय समय के मुताबिक होंगे.

एयर क्वालिटी इंडेक्स क्या है?

एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) वायु की गुणवत्ता को बताता है. इसमें बताया जाता है कि वातावरण में मौजूद हवा में किन गैसों की कितनी मात्रा घुली हुई है. इस इंडेक्स में 6 कैटेगरी बनाई गई हैं.

AQIश्रेणी
0-50अच्छी
51-100ठीक (मॉडरेट)
101-150सेंसेटिव लोगों की सेहत के लिए खराब
151-200सभी की सेहत के लिए खराब
201-300सेहत के लिए बहुत खराब
301-500खतरनाक