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गर्भपात के अधिकार को संविधान में शामिल कराने वाला पहला देश बना फ़्रांस

फ्रांस विश्व का ऐसा पहला देश बन गया है जिसने गर्भपात के अधिकार को अपने संविधान में शामिल किया है. फ्रांस में संसद के दोनों सदनों के सदस्‍यों ने विशेष सत्र में संविधान में संशोधन के लिए मतदान किया. उनमें से 780 ने पक्ष में और 72 ने विपक्ष में मत दिया. संविधान में संशोधन से फ्रांस में गर्भपात की स्वतंत्रता सुनिश्चित हो गई है.

मुख्य बिन्दु

  • फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने कहा कि सरकार इस संशोधन को पारित किए जाने के संबंध में 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर विशेष समारोह आयोजित करेगी.
  • फ्रांस में गर्भपात के अधिकार को समर्थन देने का लंबा इतिहास रहा है. वहां गर्भ धारण को स्‍वेच्‍छा से समाप्त करने की व्यवस्था को वैधानिक बनाने के लिए सन् 1975 में कानून बनाया गया था.
  • यह कानून तत्कालीन स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री सिमोन वेल के नाम पर बना था जिन्होंने इसका समर्थन किया था. इस कानून में दस सप्ताह तक के गर्भपात की अनुमति दी गई थी. बाद में वर्ष 2001 में इसे बढ़ाकर 12 सप्ताह कर दिया गया और 2022 में इसे 14 सप्ताह कर दिया गया.

एलिजाबेथ बोर्न को फ्रांस का नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने लेबर पार्टी की नेता एलिसाबेथ बोर्न (Elisabeth Borne) को देश की नई प्रधानमंत्री नियुक्त किया है. वह फ्रांस की दूसरी महिला प्रधानमंत्री हैं.

उन्होंने पूर्व-प्रधानमंत्री ज्यां कास्तेक्स का स्थान लिया है. ज्यां कास्तेक्स ने इमैनुएल मैक्रों के दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने के बाद अपेक्षित कदम के तहत इस्तीफा दे दिया था.

फ्रांस में एमैनुअल मैक्रों दूसरे कार्यकाल के लिए राष्‍ट्रपति निर्वाचित हुए

फ्रांस में वर्तमान राष्‍ट्रपति एमैनुअल मैक्रों दूसरे कार्यकाल के लिए राष्‍ट्रपति निर्वाचित हुए हैं. 44 वर्षीय मैक्रों बीस वर्ष में लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए चुने जाने वाले पहले राष्‍ट्रपति हैं. बीस वर्ष पहले श्री ज़्याक शिराक दूसरे कार्यकाल के लिए चुने गए थे.

राष्ट्रपति चुनाव के लिए 24 अप्रैल को निर्णायक चरण का मतदान हुआ था. इस चरण में राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों और दक्षिणपंथी मरीन ली पेन के बीच मुकाबला था. मैक्रों ने 58.2 प्रतिशत वोटों के साथ राष्‍ट्रपति चुनाव जीत लिया जबकि मरीन लीपेन को 41.8 प्रतिशत वोट मिले. 2017 के चुनाव में मैक्रों ने ली पेन को पराजित कर 39 साल की उम्र में  फ्रांस के सबसे युवा राष्ट्रपति बने थे.

फ्रांस-अमेरिका गतिरोध, फ्रांस ने अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में अपने राजदूतों को वापस बुलाया

फ्रांस ने ‘ऑकस’ (AUKUS) सुरक्षा समझौते के विरोध में अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में अपने राजदूतों को वापस बुला लिया है. यह निर्णय हाल ही में ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच हुए त्रिपक्षीय सुरक्षा साझेदारी ‘ऑकस’ (AUKUS) के विरोध में लिया गया है.

क्या है मामला?

ऑस्ट्रेलिया ने फ्रांस के साथ अरबों डॉलर की डील खत्म करके AUKUS-गठबंधन के तहत परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों के लिए नई डील की है. ऑस्ट्रेलिया ने फ्रांस के साथ ये डील डीजल चालित पनडुब्बियों के लिए की थी. दरअसल चीन से टक्कर लेने को ऑस्ट्रेलिया ने परमाणु- पनडुब्बियों के लिए, अमेरिका के साथ डील की है.

ऑकस-गठबंधन के तहत ऑस्‍ट्रेलिया को परमाणु चालित पनडुब्‍बी बनाने की टेक्‍नॉलोजी उपलब्ध कराई जानी है. फ्रांस की सरकार का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया ने उसके साथ अरबों डॉलर की डील खत्म करके उसे धोखा दिया है.

ऑकस (AUKUS) क्या है?

‘ऑकस’ (AUKUS) ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच त्रिपक्षीय सुरक्षा साझेदारी है. अमरीकी राष्‍ट्रपति जो बाइडेन, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और ऑस्‍ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्‍कॉट मॉरीसन ने इसकी घोषणा हाल ही में की थी. ऑकस संधि मोटे तौर पर दक्षिण चीन सागर में चीन का प्रभाव रोकने के उद्देश्‍य से की गई है.

अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुए इस समझौते से फ्रांस बेहद नराज है. फ्रांस को उम्मीद थी कि समझौते के साथ ही ऑस्ट्रेलिया के साथ उसकी नजदीकी बढ़ेगी.

परमाणु और डीजल पनडुब्बी क्या है?

प्रत्येक परमाणु पनडुब्बी में एक छोटा न्यूक्लियर रिएक्टर होता है. जिसमें ईंधन के रूप में अत्यधिक समृद्ध यूरेनियम का उपयोग करते हुए बिजली पैदा की जाती है. इससे पूरी पनडुब्बी को पावर की सप्लाई की जाती है.

पारंपरिक या डीजल पनडुब्बी में पावर की सप्लाई बैटरी से की जाती है जिसे चार्ज करने के लिए डीजल जनरेटर का उपयोग किया जाता है. किसी दूसरी बैटरी की तरह इसे रीचार्ज करने के लिए पनडुब्बियों को सतह पर आना पड़ता है. ऐसे में दुश्मन देश के पनडुब्बी खोजी विमान या युद्धपोत उन्हें आसानी से देख सकते हैं.

फ्रांस के प्रधानमंत्री एडवर्ड फिलिप ने अपने पद से इस्तीफा दिया

फ्रांस के प्रधानमंत्री एडवर्ड फिलिप (Edouard Philippe) ने 3 जुलाई को अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. देश के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों द्वारा सरकार में फेरबदल की संभावनाओं के बीच उन्होंने अपना इस्तीफा दिया है. यह फेरबदल ऐसे समय में किया जाएगा, जब कुछ दिन पहले स्थानीय चुनावों में मैक्रों की पार्टी को फ्रांस के बड़े शहरों में हार का सामना करना पड़ा था.

राष्ट्रपति मैक्रों अपने कार्यकाल के अंतिम दो साल में कोरोना वायरस संकट से बुरी तरह प्रभावित देश की अर्थव्यवस्था को पुन: पटरी पर लाने के प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं.