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जम्मू-कश्मीर में भूमि स्वामित्व अधिनियम संबंधी कानून में संशोधन किया गया

केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में भूमि स्वामित्व अधिनियम संबंधी कानून में संशोधन किया है. इस संशोधन के बाद अब देश का कोई भी नागरिक जम्मू-कश्मीर में अपने घर या कारोबार के लिए जमीन खरीद सकता है. हालांकि खेती की जमीन सिर्फ राज्य के लोगों के लिए ही रहेगी.

5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 और 35-A के प्रावधान खत्म होने के बाद यह संशोधन किया गया है. अगस्त 2019 से पहले जम्मू-कश्मीर की एक अपनी अलग संवैधानिक व्यवस्था थी. उसके तहत जम्मू-कश्मीर के सिर्फ स्थायी नागरिकों (जिनके पास राज्य का स्थायी नागरिकता प्रमाण पत्र हो) को ही जमीन खरीदने की अनुमति थी. संशोधन के बाद नागरिकता प्रमाण पत्र की अनिवार्यता सिर्फ कृषि भूमि की खरीद के लिए होगी.

जम्मू और कश्मीर पंचायती राज अधिनियम को अपनाने की मंजूरी दी गयी

जम्मू और कश्मीर में पंचायती राज अधिनियम को अपनाने की हाल ही में मंजूरी दी गयी है. यह मंजूरी 21 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में दी गयी.

पंचायती राज अधिनियम को अपनाने से अब जम्मू-कश्मीर में पंचायती राज के तीन स्तर होंगे. यहाँ के लोगों को अब देश के बाकी हिस्सों की तरह ही अपने स्थानीय प्रतिनिधियों का चुनाव करने का अधिकार होगा.

पंचायती राज व्यवस्था: एक दृष्टि

पंचायती राज, ग्रामीण स्थानीय स्वशासन है. यह 1992 में 73वें संशोधन अधिनियम 1992 द्वारा संवैधानिक रूप से अपनाया गया था. पंचायती राज व्यवस्था के तीन स्तर हैं ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, ब्लॉक स्तर पर मंडल परिषद या ब्लॉक समिति तथा जिला स्तर पर जिला परिषद्.

मनोज सिन्हा जम्मू-कश्मीर के नए उपराज्यपाल नियुक्त, गिरीश चंद्र मुर्मू का इस्तीफा

मनोज सिन्हा जम्मू-कश्मीर के नए उपराज्यपाल नियुक्त किये गये हैं. उन्होंने गिरीश चंद्र मुर्मू का स्थान लिया है. मुर्मू ने 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल पद से इस्तीफा दे दिया था. मुर्मू का इस्तीफा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंजूर कर लिया है.

5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान समाप्त कर दिये थे और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया गया था. इसी के बाद 31 अक्टूबर को मुर्मू को उपराज्यपाल नियुक्त किया गया था. मुर्मू से पहले जब जम्मू-कश्मीर पूर्ण राज्य था तब सत्यपाल मलिक यहां के राज्यपाल थे.

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में नया डोमिसाइल ऐक्ट लागू हुआ

केंद्र शासित प्रदेश (UT) जम्मू-कश्मीर में 19 मई से नया डोमिसाइल ऐक्ट लागू हो गया. सरकार की ओर से जारी नोटिफिकेशन के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन आदेश 2020 में सेक्शन 3A जोड़ा गया है. इसके तहत राज्य/UT के निवासी होने की परिभाषा तय की गई है.

क्या है नया डोमिसाइल ऐक्ट?

  • जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने नए डोमिसाइल सर्टिफिकेट (प्रोसीजर) रूल्स 2020 को लागू कर दिया है. इसी के साथ प्रदेश में स्थानीय नागरिक प्रमाण पत्र (PRC) की जगह डोमिसाइल सर्टिफिकेट जारी करने के लिए 15 दिन का समय निर्धारित किया गया है.
  • नए डोमिसाइल नियमों के मुताबिक, कोई व्यक्ति जो जम्मू-कश्मीर में कम से कम 15 साल रहा है और 10वीं या 12वीं की परीक्षा यहां के किसी संस्थान से पास कर चुका है, तो वह जम्मू-कश्मीर का निवासी कहलाने का हकदार होगा.
  • नए डोमिसाइल ऐक्ट के तहत पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थी, सफाई कर्मचारी और दूसरे राज्यों में शादी करने वाली महिलाओं के बच्चे भी अब डोमिसाइल के हकदार होंगे.

जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के चार राज्यों के परिसीमन के लिए आयोग का गठन किया गया

सरकार ने देश के पांच राज्यों और केंद्रशासित प्रदेश के लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन के लिए हाल ही में एक आयोग का गठन किया है. यह आयोग जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के चार राज्यों असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नगालैंड का परिसीमन करेगा.

पूर्व जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई अध्यक्ष नियुक्त

कानून मंत्रालय की जारी अधिसूचना के अनुसार सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई को इस परिसीमन आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. सेवानिवृत्त जस्टिस देसाई को एक साल के लिए या अगले आदेश तक इस आयोग की अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा और जम्मू-कश्मीर तथा चार राज्यों के राज्य निर्वाचन आयुक्तों को इस आयोग का पदेन सदस्य बनाया गया है.

जम्मू-कश्मीर, असम, अरूणाचल प्रदेश, मणिपुर और नगालैंड में परिसीमन

परिसीमन आयोग ‘जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून’ के प्रावधानों के तहत जम्मू-कश्मीर में लोकसभा एवं विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन करेगा जबकि ‘परिसीमन कानून 2002’ के प्रावधानों के मुताबिक असम, अरूणाचल प्रदेश, मणिपुर और नगालैंड में परिसीमन होगा.

जम्मू-कश्मीर में वर्तमान स्थिति

जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन से पहले यहाँ के विधानसभा में 111 सीटें थीं. इनमें लद्दाख की 4 सीटें और गुलाम कश्मीर (पाकिस्तान के कब्जे में) की 24 सीटें शामिल हैं. अब लद्दाख अलग केंद्र शासित प्रदेश बन चुका है. लद्दाख के 4 सीटें अलग हो जाने के बाद तरह जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल 107 सीटें रह गईं.

यह परिसीमन 2011 की जनसंख्या के आधार पर होगा. परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 7 सीटें बढ़ेंगी और इनकी संख्या बढ़कर 114 हो जाएंगी.

राज्य के पुनर्गठन के बाद जम्मू-कश्मीर में लोकसभा की सीटों में कोई बदलाव नहीं होगा. वर्तमान में जम्मू-कश्मीर में लोकसभा की 5 सीटें और लद्दाख में एक सीट हैं. इस तरह लोकसभा सीटों में फिलहाल कोई बदलाव नहीं होगा.

जम्मू और कश्मीर में अंतिम परिसीमन 1995 में हुआ था. तब राज्य में सीटों की संख्या बढ़ाकर 75 से 87 की गई थी. उसके बाद फारूक अब्दुल्ला सरकार ने जम्मू कश्मीर विधानसभा ने प्रस्ताव पास कर परिसीमन पर रोक लगा दी थी.

2002 के चुनावों में कश्मीर और लद्दाख के मुकाबले जम्मू में मतदाताओं की संख्या अधिक थी. इसके बावजूद कश्मीर में सीटों की संख्या अधिक रही और लगातार कश्मीर केंद्रित दल ही राज्य की सत्ता पर काबिज रहे. यही वजह है कि कश्मीरी दल परिसीमन नहीं होने देना चाहते थे.

क्या है परिसीमन और परिसीमन आयोग?

परिसीमन का तात्पर्य किसी देश या प्रांत में निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं के पुनर्निर्धारण से है. निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं के पुनर्निर्धारण परिसीमन आयोग द्वारा किया जाता है. संविधान के अनुच्छेद 82 के मुताबिक, सरकार हर 10 साल बाद परिसीमन आयोग का गठन कर सकती है. इसके तहत जनसंख्या के आधार पर विभिन्न विधानसभा व लोकसभा क्षेत्रों का निर्धारण होता है.

परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) का गठन

परिसीमन आयोग का गठन भारत सरकार की ओर से ‘परिसीमन अधिनियम, 2002’ की धारा 3 के अन्तर्गत किया जाता है. इस सम्बन्ध में अधिसूचना भारत के राष्ट्रपति के ओर से जारी की जाती है. अब तक चार बार परिसीमन आयोग का गठन हो चुका है. पहली बार 1952 में इस आयोग का गठन किया गया था. इसके बाद 1962, 1972 और 2002 में इस आयोग का गठन किया गया था.

यूरोपीय संघ और खाड़ी के देशों के प्रतिनिधियों का दल जम्मू-काश्मीर की यात्रा की

यूरोपीय संघ और खाड़ी के देशों के प्रतिनिधियों के 25 सदस्‍यों का एक दल 12-13 फरवरी को जम्मू-काश्मीर की यात्रा की. इस समूह में जर्मनी, कनाडा, फ्रांस, न्यूजीलैंड, मैक्सिको, इटली, अफगानिस्तान, ऑस्ट्रिया, उज्‍बेकिस्तान, पॉलैंड के अलावा यूरोपीय संघ के राजनयिक भी शामिल थे. इस यात्रा का उद्देश्य जम्मू-काश्मीर में अगस्‍त 2019 में अनुच्‍छेद 370 हटाए जाने के बाद जमीनी स्‍तर पर जानकारी प्राप्‍त करना था.

इस दल ने बारामूला और श्रीनगर का दौरा कर वहां विभिन्‍न व्‍यापार संघो, प्रशिक्षित युवाओं, सरपंचों और सिविल सोसायटी समूहों से बातचीत की. इस बातचीत में प्रदेश में व्‍यापार और पर्यटन से जुड़े कई मुद्दों पर चर्चा हुई. इस प्रतिनिधिमंडल ने 13 फरवरी को जम्‍मू का दौरा किया और उपराज्‍यपाल गिरीश चन्‍द्र मुर्मू सहित प्रशासनिक अधिकारियों से मुलाकात की. उन्होंने उच्च न्यायालय का भी दौरा किया और जम्मू-कश्मीर के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गीता मित्तल से मुलाकात की.

इसके पहले भारत में अमरीका के राजदूत केन्‍नेथ जस्‍टर सहित 15 प्रतिनिधियों के एक दल ने जनवरी में जम्‍मू कश्‍मीर का दो दिनों का दौरा किया था.

जम्‍मू-कश्‍मीर में केन्द्रीय मंत्रियों के एक दल ने विशेष जनसंपर्क कार्यक्रम आयोजित किया

36 केन्द्रीय मंत्रियों के एक दल ने 18 से 24 जनवरी तक जम्‍मू-कश्‍मीर में विशेष जनसंपर्क कार्यक्रम आयोजित किया. इस दल के यात्रा का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर और इसके लोगों के समग्र विकास के लिए पिछले पांच महीनों में उठाये गये सरकार के कदमों की जानकारी देना था. इस जनसंपर्क अभियान के दौरान ये मंत्री राज्य के लोगों की शिकायतें सुनने के साथ-साथ कई विकास परियोजनाओं का शुभारंभ भी किया.

इस जनसंपर्क कार्यक्रम में पांच विषय शामिल थे

जून 2018 में राष्‍ट्रपति शासन लागू होने और अगस्‍त 2019 में राज्‍य के पुनर्गठन के बाद से तीव्र विकास सहित पांच विषय इस जनसंपर्क कार्यक्रम में शामिल थे. इनमें प्रधानमंत्री विकास कार्यक्रम, सरकार के प्रमुख कार्यक्रम तथा विशेष परियोजनाएं, सभी के लिए समान अवसरों के साथ सुशासन, कानून के शासन और ढांचागत विकास संबंधी कार्यक्रमों की जानकारियां शामिल हैं.

विदेशी राजनायिकों का 15 सदस्‍यीय दल जम्‍मू-कश्‍मीर का दौरा किया

15 देशों के राजनायिकों (राजदूतों) का एक शिष्टमंडल ने 9-10 जनवरी को जम्मू-कश्मीर का दौरा किया. इस यात्रा का उद्देश्‍य विदेशी राजनयिकों को जम्‍मू-कश्‍मीर में हो रहे सामान्‍य स्थिति बहाल करने के सरकार के प्रयासों और उनके परिणाम देखने का अवसर देना था.

इस शिष्टमंडल में भारत में अमरीकी राजदूत केनेथ आई जस्टर सहित बांग्लादेश, वियतनाम, नॉर्वे, मॉलदीव, दक्षिण कोरिया, मोरक्को और नाइजीरिया के राजनयिक शामिल थे. संविधान से अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधान हटाये जाने के बाद राजनयिकों का जम्मू-कश्मीर का यह पहला दौरा था.

इस यात्रा के दौरान इन राजनायिकों ने उपराज्‍यपाल गिरीशचन्द्र मुर्मू और सेना तथा प्रशासन के वरिष्‍ठ अधिकारियों और अन्य शिष्टमण्डलों के साथ विचार-विमर्श किया. केन्द्रशासित प्रदेश के मुख्य सचिव बीवीआर सुब्रमनियन और पुलिस महानिदेशक दिलबाग सिंह के नेतृत्व में उच्चस्तरीय दल ने राजदूतों को अनुच्छेद 370 के निष्प्रभावी किये जाने बाद क्षेत्र में सुरक्षा की स्थिति और विकास की कई पहल के बारे में अवगत कराया.

उच्‍चतम न्‍यायालय ने संविधान के अनुच्‍छेद 19 के तहत इंटरनेट सेवा मूल अधिकार माना

उच्‍चतम न्‍यायालय ने कहा है कि कुछ प्रतिबंधों के साथ संविधान के अनुच्‍छेद 19 के तहत इंटरनेट सेवा मूल अधिकार है. न्‍यायालय ने 10 जनवरी को जम्‍मू-कश्‍मीर प्रशासन से कहा कि केन्‍द्र शासित प्रदेश में लगे प्रतिबंध के सभी आदेशों की एक सप्‍ताह के अंदर समीक्षा की जाए. पीठ ने कहा कि अभिव्‍यक्ति की आजादी और असहमति को दबाने के लिए निषेधाज्ञा का अनिश्चितकाल तक इस्‍तेमाल नहीं किया जा सकता.

न्‍यायमूर्ति एनवी रमणा की अध्‍यक्षता वाली तीन न्‍यायाधीशों की पीठ ने प्रशासन को अस्‍पतालों और शिक्षण केन्‍द्रों जैसी आवश्‍यक सेवाएं उपलब्‍ध कराने वाले सभी संस्‍थानों में इंटरनेट सेवाएं बहाल करने का भी निर्देश दिया. पीठ ने कहा कि प्रेस की आजादी मूल्‍यवान और पवित्र अधिकार है. तीन न्‍यायाधीशों की पीठ में न्‍यायमूर्ति बीआर गवई और आर सुभाष रेड्डी शामिल हैं.

पीठ ने उन याचिकाओं की सुनवाई के दौरान ये निर्देश दिए, जिनमें 5 अगस्‍त को अनुच्‍छेद 370 के प्रावधान निरस्‍त करने के केन्‍द्र के कदम के बाद जम्‍मू-कश्‍मीर में लागू प्रतिबंधों को चुनौती दी गई है. ये याचिकाएं उन याचिकाओं से अलग हैं, जिनमें अनुच्‍छेद 370 को निष्प्रभावी करने की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है और जिनकी सुनवाई पांच न्‍यायाधीशों की संविधान पीठ कर रही है.

क्या है अनुच्छेद 19?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकार की बात करता है. इस अनुच्छेद के मौलिक अधिकार हैं:

  1. अनुच्छेद 19(1)(a): अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (freedom of expression)
  2. अनुच्छेद 19(1)(b): बिना हथियार किसी जगह शांतिपूर्वक इकट्ठा होने का अधिकार
  3. अनुच्छेद 19(1)(c): संघ या संगठन बनाने का अधिकार
  4. अनुच्छेद 19(1)(d): भारत में कहीं भी स्वतंत्र रूप से घूमने का अधिकार
  5. अनुच्छेद 19(1)(e): भारत के किसी भी हिस्से में रहने और बसने का अधिकार
  6. अनुच्छेद 19(1)(g): कोई भी पेशा अपनाने या व्यापार करने का अधिकार

अनुच्छेद 19 (2): भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 (2) के तहत अनुच्छेद 19 (1) इन अधिकारों को सीमित भी किया गया है. अनुच्छेद 19 (2) में कहा गया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से किसी भी तरह देश की सुरक्षा, संप्रभुता और अखंडता को नुकसान नहीं होना चाहिए. इन तीन चीजों के संरक्षण के लिए अगर कोई कानून है या बन रहा है, तो उसमें भी बाधा नहीं आनी चाहिए.

जम्मू-कश्मीर में सरकारी काम-काज निपटाने के लिए प्रशासनिक परिषद गठित की गई

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में सरकारी काम-काज निपटाने के लिए प्रशासनिक परिषद गठित की गई है. उप-राज्यपाल गिरीश चन्‍द्र मुर्मू इस परिषद के अध्यक्ष हैं. मुख्य सचिव इस प्रशासनिक परिषद के सचिव होंगे.

उप-राज्यपाल के सलाहकारों के अतिरिक्त मुख्य सचिव, आम प्रशासनिक विभाग के सचिव व अन्य प्रशासनिक सचिव विभिन्न मामलों में मंत्रियों के अधिकार प्रयोग कर सकेंगे. जो मामले कैबिनेट के सामने लाये जाएंगे, उनमें अध्यादेश जारी करने, राज्य विधानमंडल की बैठक बुलाने, स्थगित, विसर्जित अथवा भंग करने, राज्यपाल, उपराज्यपाल के विधानमंडल को संबोधित करने संबंधी मामले शामिल होंगे.

उपराज्यपाल जीसी मुर्मू ने अपने दो सलाहकारों केके शर्मा व फारूक खान को आम प्रशासनिक विभाग, गृह विभाग व वित्त विभाग जैसे महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी उपराज्यपाल ने अपने पास ही रखी है.

डल झील के आसपास के क्षेत्रों को पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र घोषित करने के लिए समिति का गठन

जम्मू और कश्मीर सरकार ने श्रीनगर की प्रसिद्ध डल झील के आसपास के क्षेत्रों को पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) घोषित करने के लिए एक दस-सदस्यीय समिति का गठन किया है.

डल झील के सिकुड़ते आकार को लेकर चिंताओं के कारण यह निर्णय लिया गया है. ड्रेजिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (DCI) के 2017 के आकलन के अनुसार, प्रदूषण और अतिक्रमणों के कारण डल झील 22 वर्ग किलोमीटर के अपने मूल क्षेत्र से सिकुड़ कर लगभग 10 वर्ग किलोमीटर हो गई है.

चर्चा में: कश्मीर स्थित भारतीय सेना द्वारा की गई पहल ‘ऑपरेशन मां’

कश्मीर स्थित भारतीय सेना द्वारा की गई पहल ‘ऑपरेशन मां’ हाल के दिनों में चर्चा में रहा है. इस पहल के कारण वर्ष 2019 में 50 कश्मीरी युवक आतंक का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा में शामिल हो चुके हैं.

‘ऑपरेशन मां’ भारतीय सेना के 15वीं कोर (चिनार कोर) द्वारा की गई पहल है. इस पहल में लापता युवकों को खोजने और उनके परिजन तक पहुंचाने के काम को अंजाम दिया गया. कोर ने घाटी और नियंत्रण रेखा पर आतंकवाद से लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.