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रूस ने किया अंगारा-A5 अंतरिक्ष रॉकेट का सफल प्रक्षेपण

रूस ने 11 अप्रैल 2024 को अंगारा-A5 अंतरिक्ष रॉकेट का सफल परीक्षण किया था. यह परीक्षण वोस्तोचन कोस्मोड्रोम से किया गया था. हालांकि, यह रूस का तीसरा परीक्षण है जो सफल हुआ.

अंगारा रॉकेट 54.5 मीटर (178.81 फुट) लम्बा तीन चरणों वाला रॉकेट है. इसका वजन लगभग 773 टन है, लगभग 24.5 टन वजन अंतरिक्ष में ले जा सकता है.

रूस ने 1991 में सोवियत संघ के विघटन के कुछ साल बाद एक रूस-निर्मित लॉन्च वाहन के लिए अंगारा परियोजना की शुरुआत की थी.

दुनिया का सबसे शक्तिशाली लेजर रोमानिया में विकसित किया गया

रोमानिया में दुनिया का सबसे शक्तिशाली लेजर विकसित किया गया है. यह लेजर सूर्य से अरबों गुना तेज और चमकीली किरण पैदा करने में सक्षम होगी. इसे रोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट में एक अनुसंधान केंद्र ने विकसित किया गया है. यह यूरोपियन यूनियन इंफ्रास्ट्रक्चर एक्सट्रीम लाइट इंफ्रास्ट्रक्चर (ELI) परियोजना का हिस्सा है.

मुख्य बिन्दु

  • इस लेजर तकनीक को चिरप्ड पल्स एम्प्लीफिकेशन (CPA) तकनीक के रूप में जाना जाता है. यह नोबेल पुरस्कार विजेता फ्रांस के जेरार्ड मौरौ (Gérard Mourou) और कनाडा की डोना स्ट्रिकलैंड (Donna Strickland) के आविष्कारों पर आधारित है.
  • चिरप्ड पल्स एम्प्लीफिकेशन के व्यावहारिक कार्यान्वयन के लिए जेरार्ड मौरौ और डोना स्ट्रिकलैंड को 2018 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
  • रोमानिया में विकसित अति-शक्तिशाली लेजर में विभिन्न क्षेत्रों में क्रांति लाने और महत्वपूर्ण समस्याओं को हल करने की क्षमता है.

शक्तिशाली लेजर के कुछ संभावित अनुप्रयोग

  • परमाणु अपशिष्ट उपचार: लेजर का उपयोग परमाणु कचरे की रेडियोधर्मिता अवधि को कम करने के लिए किया जा सकता है, जिससे इसका निपटान सुरक्षित और अधिक प्रबंधनीय हो जाता है.
  • अंतरिक्ष मलबा हटाना: अंतरिक्ष में जमा हो रहे मलबे की बढ़ती मात्रा के साथ, उपग्रहों और अंतरिक्ष यान के साथ टकराव के जोखिम को कम करते हुए, कक्षीय वातावरण को साफ करने के लिए लेजर तकनीक का उपयोग किया जा सकता है.
  • चिकित्सा प्रगति: लेज़र की सटीक और शक्तिशाली प्रकृति लक्षित कैंसर उपचारों और उन्नत शल्य चिकित्सा तकनीकों जैसे चिकित्सा उपचारों में सफलता दिला सकती है.
  • कैंसर थेरेपी: यह कैंसर थेरेपी के फील्ड में भी उपयोगी साबित हो सकती है. इसका उपयोग कैंसर के रेडियोथेरेपी ट्रीटमेंट के लिए एक नई कण त्वरण विधि (Particle acceleration method) की स्टडी करने के लिए भी किया जा सकता है.
  • रिन्यूएबल एनर्जी: यह न्यूक्लियर फ्यूजन, रिन्यूएबल एनर्जी और बैटरी के क्षेत्र में प्रगति को बढ़ावा देगा. इनके अलावा इसके और भी कई अनोखे फायदे होंगे.

इसरो ने सूर्य के अध्ययन के ‘आदित्य एल-1’ उपग्रह का सफल प्रक्षेपण किया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने देश के पहले सौर मिशन ‘आदित्य एल-1’ उपग्रह का 2 सितम्बर को सफल प्रक्षेपण किया था. यह प्रक्षेपण आन्‍ध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से पीएसएलवी रॉकेट के माध्यम से किया गया था.

मुख्य बिन्दु

  • आदित्य एल-1 चार माह में पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर ‘एल-1’ बिंदु पर पहुंचेगा. इस मिशन का उद्देश्य सूर्य के वातावरण का अध्ययन करना है. इस मिशन से सूर्य की बाहरी परत ‘कोरोना’ और सौर पवन के संबंध में जानकारी मिल सकेगी.
  • यह उपग्रह सूर्य और धरती के बीच लैग्रेंज बिन्‍दु ‘एल-1’  के आस-पास ‘हेलो कक्षा’ में स्थापित किया जायेगा. 125 दिन में इस उपग्रह के 15 लाख किलोमीटर दूर ‘एल-1 प्‍वाइंट’ पर पहुंचने की संभावना है.
  • इस उपग्रह में प्रकाशमंडल, क्रोमोस्‍फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परतों यानि कोरोना का अध्ययन करने के लिए सात उपकरण लगे हैं.

रूस का चंद्र मिशन लूना-25 अनियंत्रित होकर चन्द्रमा पर दुर्घटनाग्रस्‍त

रूस द्वारा का चंद्र मिशन ‘लूना-25’ विफल हो गया है. रूस की अंतरिक्ष एजेंसी रॉसकॉसमॉस के अनुसार यह मिशन अनियंत्रित होकर चन्द्रमा पर दुर्घटनाग्रस्‍त हो गया. रूस ने 1 अगस्त 2023 को अपने चंद्र मिशन ‘लूना-25’ को प्रक्षेपित किया था.

लूना-25 मिशन: मुख्य बिन्दु

  • रॉसकॉसमॉस के प्रारंभिक विश्‍लेषण से प‍ता चलता है कि संचालन के वास्‍तविक और परिकलित मानदण्‍डों में अंतर के बाद अंतरिक्ष यान किसी अन्य कक्षा में चला गया और चन्द्रमा की सतह से टकराकर ध्वस्त हो गया.
  • 19 अगस्त को रूस ने लूना-25 की भेजी ज़ीमन क्रेटर की तस्वीर शेयर की थी. चांद के दक्षिणी ध्रुव पर मौजूद क़रीब 20 गहरे गड्ढों में ज़ीमन क्रेटर तीसरा बड़ा क्रेटर है. ये क़रीब 190 किलोमीटर चौड़ा है और 8 किलोमीटर गहरा है.
  • रूस की योजना चांद के दक्षिणी ध्रुव पर इस मानवरहित यान की सॉफ्ट लैंडिग कराने की थी. चांद के दक्षिणी ध्रुव तक पहुंचने में रूस के लूना-25 का भारत के चंद्रयान- 3 से मुक़ाबला हो रहा था. चंद्रयान- 3 को 23 अगस्त को चाँद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिग किया जाना है.
  • अब तक चांद के लिए जो भी सफल मिशन रहे हैं वो चांद के उत्तर या मध्य में हैं. यहां पर लैंडिंग के लिए जगह समतल है और सूरज की सही रोशनी भी आती है.
  • चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर रोशनी नहीं पहुंचती. साथ ही इस जगह पर चांद की सतह पथरीली, ऊबड़-खाबड़ और गड्ढों से भरी है.
  • दक्षिणी हिस्से में सूरज की रोशनी के कारण गड्ढों की परछाईं बहुत लंबी होती है. इस कारण यहां गड्ढों और ऊबड़-खाबड़ ज़मीन की पहचान कर पाना बेहद मुश्किल है.
  • चांद के दक्षिणी ध्रुव से जुड़ी कम ही तस्वीरें उपलब्ध हैं जिस कारण वैज्ञानिक अब तक इस इलाक़े का विस्तार से अध्ययन नहीं कर पाए है.
  • 1976 में रूस ने लूना-24 मिशन ने चांद पर लैंडिंग की थी. इसके 47 साल बाद लूना-25 को चांद के दक्षिणी हिस्से में भेजा गया था, जो नाकाम रहा.

भारत में राष्‍ट्रीय सिकलसेल रक्‍त अल्‍पता उन्‍मूलन मिशन-2047 की शुरूआत

भारत में राष्‍ट्रीय सिकलसेल रक्‍त अल्‍पता उन्‍मूलन मिशन (Sickle Cell Anaemia Elimination Mission)-2047 की शुरूआत हुई है. इसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्‍य प्रदेश के शहडोल जिले के लालपुर गांव में 1 जुलाई को की थी. उन्‍होंने 3.57 करोड आयुष्‍मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्‍य योजना कार्ड के वितरण का भी शुभारंभ किया.

इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा कि विश्‍व में सिकल सेल रोग के कुल मरीजों में से आधे भारत में है, लेकिन आजादी के 70 वर्ष के बाद भी इस ओर ध्यान नहीं दिया गया.

सिकल सेल रोग क्या है?

  • सिकल सेल रोग (SCD) एनीमिया (रक्ताल्पता) लाल रक्त कणिकाएं (RBC) की एक प्रमुख वंशानुगत असामान्यता है.
  • सामान्य अवस्था में RBC गोलाकार होती है और उनका जीवनकाल 120 दिन तक होता है. परन्तु सिकल सेल रोग में RBC का आकार अर्धचंद्र/हंसिया (sickle) की तरह होता है और इनका जीवनकाल मात्र 10-20 तक ही होता है.
  • ये असामान्य आकार की RBC कठोर और चिपचिपी हो जाती हैं और रक्त वाहिकाओं में फंस जाती हैं, जिससे शरीर के कई हिस्सों में रक्त और ऑक्सीजन का प्रवाह कम या रुक जाता है.
  • यह RBC के जीवन काल को भी कम करता है तथा एनीमिया का कारण बनता है, जिसे सिकल सेल एनीमिया (रक्ताल्पता) के नाम से जाना जाता है. इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को बार-बार ब्लड ट्रांसफ्यूज़न की ज़रुरत पड़ती है.

केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय क्‍वांटम मिशन को मंजूरी दी

केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय क्‍वांटम मिशन (National Quantum Mission) को मंजूरी दी है. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 19 अप्रैल को नई दिल्ली में एक बैठक में इस संबंध में निर्णय लिया.

मुख्य बिन्दु

  • इस मिशन का उद्देश्य क्वांटम टेक्नोलॉजी पर आधारित आर्थिक उन्नति को बढ़ावा देना है. साथ ही, भारत को क्वांटम तकनीक और एप्लीकेशन की उपयोगिता के क्षेत्र में सबसे अग्रणी राष्ट्र बनाने का लक्ष्य रखा गया है.
  • इस मिशन को 2023-24 से सात वर्ष की अवधि के लिए छह हजार करोड रुपये से अधिक की राशि स्वीकृत की गई है.
  • क्वांटम आधारित नेशनल मिशन को मंजूरी मिलने के बाद भारत सातवां ऐसा देश बन गया है जिसने क्वांटम कंप्यूटिंग के लिए एक डेडिकेटेड मिशन शुरू किया है.
  • अमेरिका, चीन, फ्रांस, कनाडा, फिनलैंड और ऑस्ट्रिया पहले से ही क्वांटम तकनीक के क्षेत्र व इससे जुड़े अन्य क्षेत्रों में काम कर रहे हैं.

क्या है राष्ट्रीय क्वांटम मिशन

  • इस मिशन के तहत आगामी आठ वर्षों में भारत का लक्ष्य इंटरमीडिएट स्केल क्वांटम कंप्यूटर को विकसित करना है. जिनकी फिजिकल क्षमता 50-1000 क्यूबिट्स की होगी और इनकी उपयोगिता बहुत सारे प्लेटफॉर्म पर की जाएगी. खास करके सुपरकंडक्टिंग और फोटोनीक टेक्नॉलजी के लिए.
  • भारत में पृथ्वी के स्टेशन से 2000 किलोमीटर के रेंज तक सैटेलाइट बेस्ड सेक्योर क्वांटम आधारित संचार किये जा सकेंगे. इसके अलावा लंबी दूरी के लिए दूसरे अन्य देशों के साथ भी संचार स्थापित किए जा सकेंगे.
  • इसके अलावा राष्ट्रीय क्वांटम कार्यक्रम के तहत संचार और नेविगेशन के लिए स्वदेशी मैग्नेटोमीटर, परमाणु घड़ियों, सिंगल फोटॉन आदि के विकास को भी बढ़ावा मिलेगा.
  • राष्ट्रीय क्वांटम मिशन का संचार, स्वास्थ्य, वित्त, ऊर्जा, दवा डिजाइन और अंतरिक्ष अनुप्रयोगों सहित कई उद्योगों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.

क्या है क्वांटम टेक्नोलॉजी?

क्वांटम प्रौद्योगिकी क्वांटम सिद्धांत पर आधारित होता है, जो परमाणु और उप-परमाणु स्तर पर ऊर्जा और पदार्थ की प्रकृति की व्याख्या करती है. इसकी सहायता से डेटा और इंफॉर्मेशन को कम-से-कम समय में प्रोसेस किया जा सकता है. यह महत्त्वपूर्ण क्षमता क्वांटम कंप्यूटरों को पारंपरिक कंप्यूटरों की तुलना में बेहद शक्तिशाली बनाती है.

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 को मंजूरी दी

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 6 अप्रैल को भारतीय अंतरिक्ष नीति (Indian Space Policy) 2023 को मंजूरी दी. नीति का उद्देश्य अंतरिक्ष विभाग की भूमिका को बढ़ाकर और अनुसंधान, शिक्षा, स्टार्टअप और उद्योग से भागीदारी को प्रोत्साहित करके अंतरिक्ष क्षेत्र में विकास को बढ़ावा देना है.

मुख्य बिन्दु

  • यह नीति भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) और निजी क्षेत्र के संस्थाओं की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को निर्धारित करती है.
  • इसरो के मिशनों के परिचालन भाग को न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) में स्थानांतरित कर दिया जाएगा. NSIL अंतरिक्ष विभाग के तहत एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है.
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर निजी भागीदारी के लिए अंतरिक्ष क्षेत्र को खोले जाने की शुरुआत के तीन वर्षों के भीतर इसरो में स्टार्टअप्स की संख्या 150 तक पहुंच गई है.
  • इसरो (ISRO): एक दृष्टि
  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) भारत की अंतरिक्ष एजेंसी है. इसका गठन 15 अगस्त 1969 को किया गया था.
  • इसरो का मुख्य उद्देश्य विभिन्न राष्ट्रीय आवश्यकताओं के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का विकास और अनुप्रयोग है.
  • इसरो का मुख्यालय बेंगलूरु में स्थित है तथा इसकी गतिविधियाँ विभिन्न केंद्रों और इकाइयों में फैली हुई हैं.

नासा ने चांद की परिक्रमा करने वाले चार अंतरिक्ष यात्रियों की टीम की घोषणा की

अमरीका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने चंद्रमा की परिक्रमा करने वाली चार अंतरिक्ष यात्रियों की टीम की घोषणा की है. इनमें अमरीकी नौसेना के पूर्व फाइटर पायलट रीड वाइसमैन, अनुभवी अंतरिक्ष यात्री विक्टर ग्लोवर, क्रिस्टीना कोच और कनाडाई अंतरिक्ष यात्री जेरेमी हैनसेन शामिल होंगे.

मुख्य बिन्दु

  • क्रिस्टीना कोच चांद की परिक्रमा करने वाली पहली महिला यात्री और विक्टर ग्लोवर पहले अश्वेत अंतरिक्ष यात्री होंगे. कनाडाई अंतरिक्ष यात्री जेरेमी हैनसेन चंद्रमा पर जाने वाले पहले गैर-अमरीकी होंगे.
  • नासा इसके लिए 2024 के अंत में आर्टेमिस-2 मिशन रवाना करेगा. नासा का 2022 में आर्टेमिस-1 मिशन सफल रहा था. यह मानव रहित चंद्रमा मिशन था. नासा करीब 50 साल बाद चंद्र मिशन के लिए यात्री भेज रहा है. यह 8 दिवसीय मिशन होगा.
  • आर्टेमिस-1 मिशन से नासा इससे तय करना चाहता था कि वह इंसान को चांद तक भेज सकता है और उन्हें वापस सुरक्षित धरती पर ला सकता है. इस मिशन की सफलता के बाद से ही आर्टेमिस-2 मिशन की तैयारी शुरू हो गई थी.

मानव ने 1969 में पहली बार चांद पर कदम रखे थे

सबसे पहले चांद पर 1969 में मानव ने कदम रखा था. अमरीकी अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रॉन्ग चांद पर उतरने वाले पहले इंसान थे. उसके बाद 11 और लोग चांद की मिट्टी छूने में सफल रहे है. अपोलो-11 के बाद अपोलो-12, अपोलो-14, अपोलो-15, अपोलो-16, अपोलो-17 के जरिए नासा चांद की धरती तक पहुंचता रहा. अपोलो मिशन के करीब 50 साल बाद नासा फिर से लोगों को चांद पर भेजने की कोशिश कर रहा है.

देश की प्रथम क्लोन गिर गाय ‘गंगा’ का जन्म, NDRI करनाल के प्रयासों से मिली सफलता

भारतीय वैज्ञानिकों ने पहली बार स्वदेशी गिर गाय के क्लोन के बछड़े को पैदा करने में सफलता हासिल की है. इस बछिया का जन्म 16 मार्च को हुआ था लेकिन 10 दिनों तक उसके स्वास्थ्य को जांचने के बाद 26 मार्च को इसके बारे में जानकारी सार्वजनिक की गई थी.

मुख्य बिन्दु

  • यह सफलता राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (NDRI) करनाल के प्रयासों से मिली है. इसे जलवायु परिवर्तन के बीच पशु और दुग्ध उत्पादन में क्रांति माना जा रहा है.
  • NDRI के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने इस क्लोन बछिया का नाम ‘गंगा’ रखा गया है. इसका वजन 32 किलोग्राम है और वह बिल्कुल स्वस्थ है.
  • NDRI करनाल ने 2009 में भैंस की क्लोन ‘गरिमा’ तैयार की थी. जलवायु परिवर्तन के बीच ऐसी प्रजातियों की जरूरत महसूस हुई जो गर्मी और ठंड को सहन करे और दुग्ध उत्पादन में सहायक हो.
  • NDRI की इस क्लोनिंग तकनीक से उच्च गुणवत्ता वाली नस्लों पैदा करने में सफलता मिलेगी. दुग्ध उत्पादन बढ़ेगा, खासकर बुल (साड़ों) की कमी दूर होगी.
  • 2021 में उत्तराखंड लाइवस्टॉक डेवलपमेंट बोर्ड देहरादून के सहयोग से NDRI करनाल के पूर्व निदेशक डॉ. एमएस चौहान के नेतृत्व में गिर, साहीवाल और रेड-सिंधी गायों की क्लोनिंग का काम शुरू किया गया था.
  • स्वदेशी गिर गाय की नस्ल मूलतः गुजरात में है. गिर गाय अधिक सहनशील होती है, जो अधिक तापमान और ठंड सहन कर लेती है. यह विभिन्न ऊष्ण कटिबंध के प्रति भी रोग प्रतिरोधक है.

क्लोनिंग तकनीक

  • गिर किस्म की क्लोनिंग में साहीवाल किस्म की गाय से अंडा लिया गया, गिर किस्म का सेल (डीएनए) लिया और परखनली में भ्रूण तैयार करके फिर संकर प्रजाति की गाय में रोपित किया गया.
  • आठ दिन के इन विट्रो-कल्चर के बाद विकसित भ्रूण (ब्लास्टोसिस्ट) को किसी भी गाय में स्थानांतरित किया गया. इसके नौ महीने बाद क्लोन बछड़ी (या बछड़ा) होता है.

भारत ने LVM3-M3 रॉकेट द्वारा वन वेब इंडिया-टू मिशन के 36 उपग्रहों का प्रक्षेपण किया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 26 मार्च को एक साथ 36 उपग्रहों का प्रक्षेपण किया था. यह प्रक्षेपण सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा से LVM3-M3 रॉकेट (प्रक्षेपण यान) से किया गया था.

मुख्य बिन्दु

  • LVM3-M3, इसरो द्वारा विकसित एक अत्याधुनिक रॉकेट है. 43.5 मीटर लंबा LVM3 इसरो का सबसे भारी भरकम प्रक्षेपण यान है जो अब तक पांच सफल उड़ानें पूरी कर चुका है जिसमें चंद्रयान-2 मिशन भी शामिल है.
  • इस रॉकेट के माध्यम से ब्रिटेन की एक कंपनी के 36 उपग्रहों का प्रक्षेपण किया गया. जिन उपग्रहों को लेकर LVM3 ने उड़ान भरी उनका कुल वजन 5 हजार 805 टन है. इस मिशन को LVM3-M3/वनवेब इंडिया-2 नाम दिया गया था.
  • दरअसल ब्रिटेन की वनवेब ग्रुप कंपनी ने इसरो की वाणिज्यिक शाखा न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड से 72 उपग्रह लॉन्च करने का करार किया था. इसमें अक्टूबर 2022 में 23 उपग्रह इसरो पहले ही ल़ॉन्च कर चुका है.
  • वनवेब उपग्रहों का उद्देश्य दुनियाभर में ब्रॉडबैंड सम्‍पर्क प्रदान करना है. ये प्रक्षेपण अगर कामयाब रहती है तो वनवेब इंडिया-2 स्पेस में 600 से ज्यादा लोअर अर्थ ऑर्बिट सेटेलाइट्स के कान्स्टलेशन को पूरा कर लेगी. साथ ही इससे दुनिया के हर हिस्से में स्पेस आधार ब्रॉडबैंड इंटरनेट योजना में मदद मिलेगी.

चंद्रयान-3 का विद्युत चुंबकीय व्‍यवधान और योग्‍यता संबंधी सफल परीक्षण

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने हाल ही में चंद्रयान-3 का विद्युत चुंबकीय व्यवधान और योग्यता (Electro – Magnetic Interference/ Electro – Magnetic Compatibility) संबंधी सफल परीक्षण किया था. यह परीक्षण बैंगलुरू के यू आर रॉव उपग्रह केन्‍द्र में किया गया था. उपग्रहों को तैयार करने में यह एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना जाता है.

मुख्य बिन्दु

  • इस परीक्षण का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि अंतरिक्ष के वातावरण में उपग्रह की प्रणालियां संभावित विद्युत चुंबकीय स्तरों के साथ मिलकर समुचित तरीके से काम करें.
  • इस परीक्षण के दौरान चंद्रयान के लैंडिंग मिशन के बाद के चरण से संबंधित कई मामलों की पडताल की गई. इनमें प्रक्षेपण योग्यता, सभी रेडियो फ्रिक्‍वेंसी प्रणालियों के लिए एंटीना के ध्रुवीकरण और लैंडर तथा रोवर की अनुकूलता सहित कई परीक्षण शामिल हैं. इस दौरान सभी प्रणालियों का प्रदर्शन संतोषजनक रहा.
  • चंद्रयान-3 मिशन में तीन प्रमुख मॉडयूल हैं- प्रोपल्‍शन, लैंडर और रोवर. इस अभियान की जटिलता का संबंध इन मॉडयूल के बीच रेडियो फ्रिक्‍वेंसी संचार संपर्क स्थापित करने से है.

भारत में निर्मित मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम ‘भारओएस’ का सफल परीक्षण

भारत में निर्मित मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम ‘भारओएस’ (BharOS) का सफल परीक्षण 25 जनवरी को किया गया था. शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव के साथ ‘भारओएस’ का सफल परीक्षण किया गया था.

भारत में बना मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्‍टम आईआईटी-मद्रास द्वारा विकसित किया गया है. श्री प्रधान ने कहा कि देश के गरीब लोग एक मजबूत, स्वदेशी, भरोसेमंद और आत्मनिर्भर डिजिटल बुनियादी ढांचे के मुख्य लाभार्थी होंगे.

‘भारओएस’ ऑपरेटिंग सिस्‍टम का विकास डेटा की गोपनीयता के लिए किया गया है.