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28 जनवरी 2024 को सर्वोच्च न्यायालय की हीरक जयंती मनाई गई

28 जनवरी 2024 को सर्वोच्च न्यायालय की हीरक जयंती (75वीं वर्षगांठ) मनाई गई थी. इस अवसर पर दिल्‍ली स्थित न्यायालय सभागार में हीरक जयंती (Diamond Jubilee) समारोह आयोजित किया गया था.

मुख्य बिन्दु

  • इस समारोह का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने किया था. प्रधानमंत्री ने इस समारोह में न्यायिक पहुँच तथा पारदर्शिता बढ़ाने के उद्देश्य से कई नागरिक-केंद्रित सूचना तथा प्रौद्योगिकी पहलों का शुभारंभ किया गया. इन पहलों में डिजिटल सुप्रीम कोर्ट रिपोर्ट (SCR), डिजिटल कोर्ट 2.0 और सर्वोच्‍च न्‍यायालय की नई वेबसाइट की शुरूआत शामिल है.
  • डिजिटल सुप्रीम कोर्ट रिपोर्ट (SCR) में वर्ष 1950 के बाद से सर्वोच्च न्यायालय की रिपोर्ट के सभी 519 खंड उपलब्ध होंगे. इनमें 36 हजार से अधिक मुकदमों का ब्‍यौरा दिया गया है. SCR से सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय नागरिकों को निशुल्‍क डिजिटल रूप में उपलब्ध हो सकेंगे.
  • डिजिटल कोर्ट 2.0, कृत्रिम बुद्धिमत्ता के माध्यम से न्यायालय की कार्रवाई का वास्तविक समय प्रतिलेखन करने में सहायता करेगा जो कुशल रिकॉर्ड-कीपिंग और न्यायिक प्रक्रियाओं की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण सफलता है.
  • सर्वोच्च न्यायालय की नई वेबसाइट अब द्विभाषी प्रारूप (अंग्रेज़ी व हिंदी) में उपलब्ध है जो न्यायिक जानकारी तक निर्बाध पहुँच के लिये एक उपयोगकर्ता-अनुकूल इंटरफेस प्रदान करती है.

सर्वोच्च न्यायालय: एक दृष्टि

  • सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना 28 जनवरी 1950 को की गई थी. इसने भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत स्थापित भारत के संघीय न्यायालय का स्थान लिया था.
  • भारतीय संविधान के (भाग V में) अनुच्छेद 124 से 147 तक सर्वोच्च न्यायालय के संगठन, स्वतंत्रता, क्षेत्राधिकार, शक्तियों, प्रक्रियाओं आदि से संबंधित हैं.
  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय में भारत के मुख्य न्यायाधीश और 34 अन्य न्यायाधीश शामिल हैं जिनकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है.
  • भारत के मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त किसी भी अन्य न्यायाधीश की नियुक्ति के लिये भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श अनिवार्य है.

समलैंगिक शादी को कानूनी वैधता पर सर्वोच्‍च न्‍यायालय का निर्णय

सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध करने वाली 21 याचिकाओं पर 17 अक्तूबर को फैसला सुनाया। अपने फैसले में न्‍यायालय ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्‍यता देने के लिए विशेष शादी अधिनियम में संशोधन से इंकार कर दिया है.

मुख्य बिन्दु

  • मुख्‍य न्‍यायाधीश डी.वाई चन्‍द्रचूड की अध्‍यक्षता में पांच न्‍यायाधीशों की पीठ ने केंद्र सरकार की इस दलील पर सहमति व्‍यक्‍त की कि कानून में संशोधन से अन्‍य कानूनों पर असर पड़ सकता है.
  • पीठ के अन्‍य सदस्‍यों में न्‍यायमूर्ति एस.के.कौल, न्‍यायमूर्ति रविन्‍द्र भट्ट, न्‍यायमूर्ति हिमा कोहली तथा न्‍यायमूर्ति पी.एस.नरसिम्‍हा शामिल थे.
  • पीठ सर्वसम्‍मति से देश में समलैंगिक विवाह की अनुमति देने के लिए अधिनियम में संशोधन नहीं करने का फैसला दिया.
  • न्‍यायालय ने केंद्र सरकार को राशन कार्ड, पेंशन, ग्रेच्‍युटी और उत्‍तराधिकारी सहित समलैंगिक जोड़ों की चिंताओं के लिए मंत्रिमंडल सचिव की अध्‍यक्षता में एक उच्‍चस्‍तरीय समिति गठित करने की सलाह दी है.
  • मुख्‍य न्‍यायाधीश ने कहा कि शादी के अधिकार में संशोधन का अधिकार विधायिका के पास है लेकिन समलैंगिक लोगों के पास पार्टनर चुनने और साथ रहने का अधिकार है. इस अधिकार की जड़ें संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और आज़ादी के हक तक जाती हैं.

उच्चतम न्यायालय ने इच्छा मृत्यु के बारे में अपने आदेश में संशोधन किया

उच्चतम न्यायालय ने इच्छा मृत्यु के बारे में अपने 2018 के आदेश में संशोधन किया है. न्यायालय ने मरणासन्न रोगियों से लाइफ सपोर्ट हटाने की प्रक्रिया को रोगियों, उनके परिवारों और डॉक्टरों के लिए कम बोझिल बनाने का प्रावधान किया है.

न्यायालय ने उस शर्त को हटा दिया जिसमें एक गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति को लाइफ स्पोर्ट हटाने के लिए मजिस्ट्रेट की स्वीकृति अनिवार्य थी.

न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि दस्तावेज़ पर अब ‘लिविंग विल’ पर दो साक्ष्यों की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए जाएंगे.

उच्चतम न्‍यायालय ने विमुद्रीकरण के निर्णय को सही ठहराया

उच्‍चतम न्‍यायालय ने वर्ष 2016 में 500 और 1000 रुपये के विमुद्रीकरण (Demonetisation) के निर्णय को सही ठहराया है. पांच न्‍याधीशों की संविधान पीठ ने 4:1 बहुमत से केन्द्र सरकार के नोटबंदी के फैसले को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं को खारिज कर दिया.

मुख्य बिन्दु

  • न्यायमूर्ति एसए नज़ीर की अध्यक्षता में, बीआर गवई, एएस बोपन्‍ना, वीपी राम सुब्रह्मण्‍यम और बीवी नागरत्‍न की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ केन्द्र के फैसलों को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी.
  • इस फैसले पर न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर, एएस बोपन्ना, बीआर गवई और वी रामासुब्रमण्यम ने केन्‍द्र सरकार के निर्णय को सही ठहराया.  न्यायमूर्ति नागरत्‍न ने फैसले पर असहमति व्यक्त की. इसमें उन्होंने माना कि RBI एक्ट की धारा 26(2) का पूरी तरह पालन किए बिना नोटबंदी लागू की गई. हालांकि, अल्पमत के इस फैसले का कोई व्यवहारिक असर नहीं होगा.
  • सरकार ने शपथपत्र में न्यायालय को बताया था कि नोटबंदी का उद्देश्य नकली नोट, काले धन, कर चोरी और आतंकी गतिविधियों के लिए धन मुहैया कराने पर रोक लगाना था.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश की रूप में शपथ ली

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने 9 नवंबर को भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश (CJI)  की रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में पद की शपथ दिलाई। जस्टिस चंद्रचूड़ ने जस्टिस उदय उमेश ललित का स्थान लिया है।

1959 में जन्मे डीवाई चंद्रचूड़ 13 मई, 2016 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त किए गए थे। इससे पहले वे इलाहाबाद उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश रहे। जस्टिस चंद्रचूड़ के पिता वाईपी चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट के 16वें मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं.

भारत के मुख्य न्यायाधीश: एक दृष्टि

  • भारत का मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) भारतीय न्यायपालिका तथा सर्वोच्च न्यायालय का अध्यक्ष होता है.
  • भारत में अब तक कुल 50 (वर्तमान मुख्य न्यायाधीश सहित) न्यायाधीशों ने मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवा की है. न्यायमूर्ति श्री एचजे कनिया भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश थे.
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(2) के अनुसार राष्ट्रपति अपनी इच्छानुसार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सलाह पर मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं.
  • सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का वेतन 2,80,000 मासिक और न्यायाधीश का वेतन 2,50,000 मासिक है. इनके लिए वेतन संसद तय करती है जो कि संचित निधि से पारित होती है.
  • न्यायाधीश का कार्यकाल 65 वर्ष की आयु तक होता है.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ भारत के 50वें CJI मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किए गए

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को भारत का 50वां मुख्य न्यायाधीश (CJI) नियुक्त किया गया है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 16 अक्तूबर को उन्हें इस पद पर नियुक्त किया. वे 9 नवंबर से अपना पदभार ग्रहण करेंगे.

निवर्तमान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया यूयू ललित ने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर केंद्र सरकार से डीवाई चंद्रचूड़ के नाम की सिफारिश की थी.

जस्टिस चंद्रचूड़ 10 नवंबर 2024 को इस पद से सेवानिवृत्त होंगे. जस्टिस चंद्रचूड़ के पिता वाईपी चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट के 16वें मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं.

भारत के मुख्य न्यायाधीश: एक दृष्टि

  • भारत का मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) भारतीय न्यायपालिका तथा सर्वोच्च न्यायालय का अध्यक्ष होता है.
  • भारत में अब तक कुल 49 (वर्तमान मुख्य न्यायाधीश सहित) न्यायाधीशों ने मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवा की है. न्यायमूर्ति श्री एचजे कनिया भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश थे.
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(2) के अनुसार राष्ट्रपति अपनी इच्छानुसार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सलाह पर मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं.
  • सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का वेतन 2,80,000 मासिक और न्यायाधीश का वेतन 2,50,000 मासिक है. इनके लिए वेतन संसद तय करती है जो कि संचित निधि से पारित होती है.
  • न्यायाधीश का कार्यकाल 65 वर्ष की आयु तक होता है.

न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित भारत के 49वें प्रधान न्यायाधीश बने

न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित भारत के 49वें प्रधान न्यायाधीश बने

न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित ने भारत के नए प्रधान न्यायाधीश के रूप में 27 अगस्त को शपथ ली. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु उन्‍हें राष्‍ट्रपति भवन में पद की शपथ दिलाई.

मुख्य बिन्दु

  • वे भारत के 49वें प्रधान न्यायाधीश बने हैं. उन्होंने  सेवानिवृत्त हुए 48वें प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमणा का स्थान लिया है.
  • न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित का कार्यकाल 74 दिन (8 नवंबर 2022 तक) का होगा, जो औसत कार्यकाल से कम है. न्यायमूर्ति ललित के बाद सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ अगले (50वें) प्रधान न्यायाधीश हो सकते हैं. उनका कार्यकाल दो वर्ष का होगा.
  • सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु होने पर सेवानिवृत्त होते हैं.
  • भारत गणराज्य में अब तक कुल 49 (वर्तमान मुख्य न्यायाधीश सहित) न्यायाधीशों ने मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवा की है। न्यायमूर्ति श्री एचजे कनिया भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश थे.

राजीव हत्‍या कांड दोषी पेरारिवलन की रिहाई का आदेश, जानिए क्या है अनुच्छेद 142

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हत्‍या कांड में दोषी एजी पेरारिवलन की रिहाई का आदेश दिया है. पेरारिवलन इस मामले में पिछले 31 सालों उम्रकैद की सजा काट रहे सात दोषियों में से एक है. कोर्ट ने संविधान के अनुच्‍छेद 142 में मिले विशेषाधिकार के तहत यह फैसला लिया.

मुख्य बिंदु

  • पेरारिवलन ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में कहा था कि तमिलनाडु राज्य मंत्रिमंडल ने उसे रिहा करने के लिए राज्यपाल से सिफारिश की थी, लेकिन राज्यपाल ने फाइल को काफी समय तक अपने पास रखने के बाद राष्ट्रपति को भेज दिया था. यह संविधान के खिलाफ है.
  • जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि मामले के सभी सातों दोषियों की समय से पहले रिहाई की सिफारिश संबंधी तमिलनाडु राज्य मंत्रिमंडल की सलाह राज्यपाल के लिए बाध्यकारी थी.
  • सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि अगर राज्यपाल पेरारिवलन के मुद्दे पर राज्य मंत्रिमंडल की सिफारिश को मानने को तैयार नहीं हैं तो उन्हें फाइल को पुनर्विचार के लिए वापस मंत्रिमंडल में भेज देना चाहिए था.
  • सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की उस दलील को भी अस्वीकार कर दिया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत किसी मामले में माफी देने का अधिकार विशिष्ट रूप से राष्ट्रपति के पास है. पीठ ने कहा कि यह अनुच्छेद 161 को निष्प्रभावी कर देगा.
  • दरअसल, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने कहा था कि केवल राष्ट्रपति ही केंद्रीय कानून के तहत दोषी ठहराए गए व्यक्ति की माफी, सजा में बदलाव और दया संबंधी याचिकाओं पर फैसला कर सकते हैं.
  • राजीव गांधी हत्याकांड में सात लोगों को दोषी ठहराया गया था. सभी दोषियों को मौत की सजा सुनाई गई थी, लेकिन साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे आजीवन कारावास में परिवर्तित कर दिया था.
  • तमिलनाडु सरकार राजीव हत्याकांड के आरोपियों की रिहाई चाहती है. मौजूदा डीएमके सरकार के साथ ही पूर्ववर्ती जे जयललिता और एके पलानीसामी की सरकारों ने 2016 और 2018 में दोषियों की रिहाई की राज्यपाल से सिफारिश की थी.
  • 21 मई 1991 को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में हत्या हुई थी. इसके बाद 11 जून 1991 को पेरारिवलन को गिरफ्तार किया गया था.

अनुच्छेद 161 में क्या है?

अनुच्छेद 161 में राज्यपाल के पास दोषी ठहराए गए व्यक्ति की सजा को माफ करने, राहत देने, राहत या छूट देने या निलंबित करने, हटाने या कम करने की शक्ति दी गई.

अनुच्छेद 72 और अनुच्छेद 161 में अंतर

अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति का दायरा अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल की क्षमादान शक्ति से ज्यादा व्यापक है. कोर्ट मार्शल के तहत राष्ट्रपति व्यक्ति की सजा माफ कर सकता है लेकिन अनुच्छेद 161 राज्यपाल को ऐसी कोई शक्ति प्रदान नहीं करता है. राष्ट्रपति उन सभी मामलों में क्षमादान दे सकता है जिसमें मौत की सजा दी गई हो, लेकिन राज्यपाल की क्षमादान शक्ति मौत की सजा के मामले के लिए नहीं होती है.

क्या है संविधान का अनुच्छेद 142?

भरतीय संविधान के अनुच्छेद 142 में सुप्रीम कोर्ट को विशेष अधिकार दिया गया है. इस आर्टिकल के मुताबिक जब तक किसी अन्य कानून को लागू नहीं किया जाता तब तक सुप्रीम कोर्ट का आदेश सर्वोपरि रहेगा. इसके तहत कोर्ट ऐसे फैसले दे सकता है जो किसी लंबित पड़े मामले को पूरा करने के लिए जरूरी हो.

सुप्रीम कोर्ट ने 124-A के अंतर्गत देशद्रोह कानून को स्थगित करने का आदेश दिया

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124-A के अंतर्गत देशद्रोह कानून को स्थगित करने का आदेश दिया है. शीर्ष न्‍यायालय ने एक अंतरिम आदेश में केंद्र और राज्य सरकारों से इस धारा पर पुनर्विचार होने तक कोई भी प्राथमिकी दर्ज नहीं करने का आग्रह किया है.

सुप्रीम कोर्ट इससे संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है. प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यों की पीठ राजद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. इस पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत और हिमा कोहली शामिल हैं.

मुख्य बिंदु

  • न्‍यायालय ने एक कहा है कि धारा 124A के अंतर्गत लगाए गए आरोपों के संबंध में सभी लंबित मामले अपील और कार्यवाही को फिलहाल स्थगित रखा जाए. जो लोग पहले से ही इस धारा के अंतर्गत जेल में हैं, वे जमानत के लिए संबंधित अदालतों में जा सकते हैं.
  • केन्‍द्र सरकार ने उच्‍चतम न्‍यायालय में बताया था कि उसने IPC की धारा 124A के प्रावधानों पर का दुरुपयोग को रोकने के लिए पुनर्विचार करने का फैसला किया है. सरकार ने शीर्ष न्यायालय से आग्रह किया कि जब तक यह काम पूरा नहीं हो जाता, तब तक इससे संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई न की जाए.
  • सरकार ने न्‍यायालय में दाखिल शपथ-पत्र में कहा कि 1962 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने ‘केदारनाथ बनाम बिहार राज्य’ मामले में इस कानून को वैध बताया है.

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124-A: एक दृष्टि

  • भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A को 1870 में शामिल किया गया था. इसके मुताबिक अगर कोई भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमानना फैलाने का प्रयास करता है तो यह राजद्रोह माना जाएगा.
  • भारत में इस कानून को अंग्रेज सरकार भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों की अभिव्यक्ति को दबाने के लिए लेकर आई थी. इसके जरिए महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक जैसे नेताओं के लेखन को दबा दिया गया. इन लोगों पर राजद्रोह कानून के तहत मुकदमे चलाए गए.
  • अनुच्छेद 124A के मुताबिक राजद्रोह एक गैर-जमानती अपराध है. इसके दोषी को तीन साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा के साथ जुर्माना तक हो सकता है. जिस व्यक्ति पर राजद्रोह का आरोप होता है वह सरकारी नौकरी नहीं कर सकता. उसका पासपोर्ट भी जब्त कर लिया जाता है.
  • इस कानून से जुड़ा एक मामला हाल ही में चर्चा में रहा है. अप्रैल, 2022 में महाराष्ट्र में सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा पर राजद्रोह का केस दर्ज हुआ. दोनों नेताओं ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के घर के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ करने का एलान किया था. राज्य सरकार का कहना था कि दोनों सरकार और मुख्यमंत्री के खिलाफ घृणा फैला रहे थे.

न्यायमूर्ति एनवी रमन्ना देश के 48वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली

न्यायमूर्ति एनवी रमन्ना ने 24 अप्रैल को भारत के 48वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ ग्रहण की. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रपति भवन में उन्हें पद की शपथ दिलाई. जस्टिस रमन्ना का कार्यकाल 26 अगस्त 2022 तक होगा.

मौजूदा मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने देश के मुख्य न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति रमन्ना के नाम की सिफारिश की थी जिसे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंजूरी दी थी.

एनवी रमन्ना
एनवी रमन्ना का पूरा नाम नाथुलापति वेंकट रमन्ना है. उन्हें 2014 में सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया था. जून 2000 में जस्टिस रमन्ना आंध प्रदेश हाईकोर्ट के स्थायी जज के तौर पर नियुक्त हुए थे. सितंबर 2013 में वो दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किए गए थे.

भारत के मुख्य न्यायाधीश: एक दृष्टि

भारत का मुख्य न्यायधीश (Chief Justice of India) भारतीय न्यायपालिका तथा सर्वोच्च न्यायालय का अध्यक्ष होता है. भारत में अब तक कुल 48 (वर्तमान मुख्य न्यायाधीश सहित) न्यायाधीशों ने मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवा की है. न्यायमूर्ति श्री एचजे कनिया भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश थे.

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(2) के अनुसार राष्ट्रपति अपनी इच्छानुसार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सलाह पर मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं. वहीं अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति मुख्य न्यायाधीश की सलाह पर करते हैं.

सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का वेतन 2,80,000 मासिक और न्यायाधीश का वेतन 2,50,000 मासिक है. इनके लिए वेतन संसद तय करती है जो कि संचित निधि से पारित होती है. न्यायाधीश का कार्यकाल 65 वर्ष की आयु तक होता है.

न्यायमूर्ति एनवी रमन्ना देश के 48वें मुख्य न्यायाधीश होंगे

न्यायमूर्ति एनवी रमन्ना भारत के 48वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) होंगे. मौजूदा मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने अपने न्यायमूर्ति एनवी रमन्ना के नाम की सिफारिश की थी. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 6 अप्रैल को इनके नाम पर मंजूरी दी.

मौजूदा मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे 23 अप्रैल को सेवानिवृत्त होंगे और 24 अप्रैल को न्यायमूर्ति एनवी रमन्ना अगले मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे. जस्टिस रमन्ना का कार्यकाल 26 अगस्त 2022 तक होगा.

एनवी रमन्ना: एक दृष्टि
एनवी रमन्ना का पूरा नाम नाथुलापति वेंकट रमन्ना है. उन्हें 2014 में सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया था. जून 2000 में जस्टिस रमन्ना आंध प्रदेश हाईकोर्ट के स्थायी जज के तौर पर नियुक्त हुए थे. सितंबर 2013 में वो दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किए गए थे.

उच्चतम न्यायालय ने वाट्सएप, ईमेल और फैक्स से समन भेजने की इजाजत दी

उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने वाट्सएप, ईमेल और फैक्स से लगभग सभी कानूनी प्रक्रियाओं के लिए अनिवार्य समन और नोटिस भेजने की इजाजत दे दी है. मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अगुआई में पीठ ने फोन मैसेंजर सेवाओं के माध्यम से उसी दिन नोटिस और समन भेजे जाने की इजाजत दी. इस पीठ में जस्टिस एएस बोपन्ना और आर सुभाष रेड्डी भी शामिल हैं,

पीठ ने वाट्सएप को विशेष रूप से प्रभावी सेवा के रूप में नामित करने के अटॉर्नी जनरल के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया. पीठ ने कहा, दो नीले निशान बताएंगे कि प्राप्तकर्ता ने नोटिस देख लिया है.